जिनकी भाषा अभद्र है, उन राजनेताओं से मुझे कोई मतलब नहीं है .....
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कुछ राजनेता मूर्खतापूर्ण और असभ्य भाषा का प्रयोग कर रहे हैं मैं कभी भूल कर भी उन का समर्थन नहीं कर सकता, विशेषकर एक ऐसे घटिया राजनेता और उसके अंधभक्तों का जो अपना गला फाड़ फाड़ कर बिना किसी प्रमाण के देश के प्रधानमंत्री को चोर बता रहे हैं|
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मुझे सन १९६२ में हुए चीनी आक्रमण के समय का घटनाक्रम पूरी तरह याद है| उस समय मेरी आयु चौदह वर्ष की थी| वह युद्ध हम पूरी तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री की मूर्खता के कारण हारे थे| उन्होंने अपने निज जीवन में ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया जिसे हम आदर्श कह सकें| उनके समय देश का पहला रक्षा घोटाला हुआ था| उसके बाद उनके वंशज शासकों ने महा भयंकर घोटाले ही घोटाले किये| क्या इस घटिया राजनेता ने अपने पूर्वजों को कभी चोर कहा है?
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राफेल का पूरा विवाद यही है कि एक विमान के लिए २००७ में जो मूल्य निर्धारित हुआ था वह २०१७ में तीन गुणा कैसे हो गया? मेरा सीधा सा प्रश्न है कि सांसदों को इस समय उस समय से आठ गुणा अधिक वेतन क्यों मिल रहा है? सांसदों को भी भी वही वेतन मिलना चाहिए जो २००७ में मिल रहा था| कम से कम इस राजनेता के अंधभक्तों को तो ग्यारह वर्ष पुराना वेतन ही लेना चाहिए था|
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एक भवन के सामने मोहल्ले के सारे चोर एकत्र होकर नारे लगा रहे थे कि चौकीदार चोर है चोर है, ताकि वह चौकीदार भाग जाए औए वे खुल कर चोरी कर सकें| इस बात का राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं है|
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कुछ राजनेता मूर्खतापूर्ण और असभ्य भाषा का प्रयोग कर रहे हैं मैं कभी भूल कर भी उन का समर्थन नहीं कर सकता, विशेषकर एक ऐसे घटिया राजनेता और उसके अंधभक्तों का जो अपना गला फाड़ फाड़ कर बिना किसी प्रमाण के देश के प्रधानमंत्री को चोर बता रहे हैं|
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मुझे सन १९६२ में हुए चीनी आक्रमण के समय का घटनाक्रम पूरी तरह याद है| उस समय मेरी आयु चौदह वर्ष की थी| वह युद्ध हम पूरी तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री की मूर्खता के कारण हारे थे| उन्होंने अपने निज जीवन में ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया जिसे हम आदर्श कह सकें| उनके समय देश का पहला रक्षा घोटाला हुआ था| उसके बाद उनके वंशज शासकों ने महा भयंकर घोटाले ही घोटाले किये| क्या इस घटिया राजनेता ने अपने पूर्वजों को कभी चोर कहा है?
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राफेल का पूरा विवाद यही है कि एक विमान के लिए २००७ में जो मूल्य निर्धारित हुआ था वह २०१७ में तीन गुणा कैसे हो गया? मेरा सीधा सा प्रश्न है कि सांसदों को इस समय उस समय से आठ गुणा अधिक वेतन क्यों मिल रहा है? सांसदों को भी भी वही वेतन मिलना चाहिए जो २००७ में मिल रहा था| कम से कम इस राजनेता के अंधभक्तों को तो ग्यारह वर्ष पुराना वेतन ही लेना चाहिए था|
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एक भवन के सामने मोहल्ले के सारे चोर एकत्र होकर नारे लगा रहे थे कि चौकीदार चोर है चोर है, ताकि वह चौकीदार भाग जाए औए वे खुल कर चोरी कर सकें| इस बात का राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं है|
सभी को साभार सादर धन्यवाद !
२५ सितम्बर २०१८
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श्री अरुण उपाध्याय जी द्वारा टिप्पणी .....
अन्य देशों में भी अपने देश का विरोध करने वाले हुए हैं, पर भारत से बहुत कम। दूसरे देशों में उनको दण्डित किया जाता है। यहां वे पूजनीय और आदर्श बन जाते हैं। एक और बड़ा अन्तर यह है कि अन्य स्थानों में सरकार विरोधी लोग ही विदेशी मदद लेते हैं, वह भी बहुत कम समय के लिए, उनके भक्त कभी नहीं होते।
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भारत जैसा कभी और कहीं नहीं हुआ कि शासक ही देश का सबसे बड़ा शत्रु हो और विश्व शान्ति और अहिंसा के नाम पर अपने ही देश की आधी भूमि दूसरे देश को सौंप दे तथा करोड़ देशवासियों की हत्या करवा दे। शासन पाने के लिये पाकिस्तान अलग किया गया, कश्मीर भी पाकिस्तान को देने की कोशिश हुयी और आज तक भारत से अलग ही है तथा संविधान की ३७० धारा का समर्थन कांग्रेस द्वारा हो रहा है। उसके बाद तिब्बत चीन को बिना लड़े सौंप दिया तथा उसकी अनुमति ब्रिटेन से लेने की कोशिश की। ब्रिटेन ने अपने विवेक का उपयोग करने के लिये कहा तो तुरत तिब्बत चीन को सौंप दिया। पाकिस्तान+ कश्मीर +तिब्बत का क्षेत्रफल वर्तमान भारत के बराबर है।
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हिन्दू मुस्लिम के आधार पर विभाजन हुआ, अतः पाकिस्तान मुस्लिम देश बना, पर भारत भी अल्पसंख्यक सुविधा के नाम पर व्यवहार में मुस्लिम देश ही रहा। यदि भारत हिन्दू देश नहीं था,तो पाकिस्तान के हिन्दू जान बचाने के लियॆ भारत क्यों आये, ईरान-अफगानिस्तान भी जा सकते थे। तिब्बत यदि भारत का अंग नहीं था, तो तिब्बती शरणार्थी और दलाई लामा जान बचाने के लिये भारत क्यों आये।
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द्वितीय विश्वयुद्ध में परमाणु बम मिला कर १०० लाख लोग मरे थे। उसमें भारत के २७ लाख सैनिक थे। अर्थात् शेष विश्व के मात्र ७३ लाख मरे। भारत में इसके अतिरिक्त विभाजन में तथा तिब्बत में ३०-३० लाख लोग अहिंसा के नाम पर मरे जबकि उस समय भारत के पास आधुनिक हथियार वाली सबसे बड़ी स्थल सेना थी। अर्थात् भारत मे सत्य-अहिंसा से ८७ लाख, बाकी विश्व में युद्ध और अणु बम से ७३ लाख मरे।
२५ सितम्बर २०१८
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श्री अरुण उपाध्याय जी द्वारा टिप्पणी .....
अन्य देशों में भी अपने देश का विरोध करने वाले हुए हैं, पर भारत से बहुत कम। दूसरे देशों में उनको दण्डित किया जाता है। यहां वे पूजनीय और आदर्श बन जाते हैं। एक और बड़ा अन्तर यह है कि अन्य स्थानों में सरकार विरोधी लोग ही विदेशी मदद लेते हैं, वह भी बहुत कम समय के लिए, उनके भक्त कभी नहीं होते।
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भारत जैसा कभी और कहीं नहीं हुआ कि शासक ही देश का सबसे बड़ा शत्रु हो और विश्व शान्ति और अहिंसा के नाम पर अपने ही देश की आधी भूमि दूसरे देश को सौंप दे तथा करोड़ देशवासियों की हत्या करवा दे। शासन पाने के लिये पाकिस्तान अलग किया गया, कश्मीर भी पाकिस्तान को देने की कोशिश हुयी और आज तक भारत से अलग ही है तथा संविधान की ३७० धारा का समर्थन कांग्रेस द्वारा हो रहा है। उसके बाद तिब्बत चीन को बिना लड़े सौंप दिया तथा उसकी अनुमति ब्रिटेन से लेने की कोशिश की। ब्रिटेन ने अपने विवेक का उपयोग करने के लिये कहा तो तुरत तिब्बत चीन को सौंप दिया। पाकिस्तान+ कश्मीर +तिब्बत का क्षेत्रफल वर्तमान भारत के बराबर है।
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हिन्दू मुस्लिम के आधार पर विभाजन हुआ, अतः पाकिस्तान मुस्लिम देश बना, पर भारत भी अल्पसंख्यक सुविधा के नाम पर व्यवहार में मुस्लिम देश ही रहा। यदि भारत हिन्दू देश नहीं था,तो पाकिस्तान के हिन्दू जान बचाने के लियॆ भारत क्यों आये, ईरान-अफगानिस्तान भी जा सकते थे। तिब्बत यदि भारत का अंग नहीं था, तो तिब्बती शरणार्थी और दलाई लामा जान बचाने के लिये भारत क्यों आये।
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द्वितीय विश्वयुद्ध में परमाणु बम मिला कर १०० लाख लोग मरे थे। उसमें भारत के २७ लाख सैनिक थे। अर्थात् शेष विश्व के मात्र ७३ लाख मरे। भारत में इसके अतिरिक्त विभाजन में तथा तिब्बत में ३०-३० लाख लोग अहिंसा के नाम पर मरे जबकि उस समय भारत के पास आधुनिक हथियार वाली सबसे बड़ी स्थल सेना थी। अर्थात् भारत मे सत्य-अहिंसा से ८७ लाख, बाकी विश्व में युद्ध और अणु बम से ७३ लाख मरे।