भगवान वासुदेव को नमन जो आप सब महान आत्माओं के रूप में सर्वदा सर्वत्र व्यक्त हो रहे हैं .....
या तो ...(१) मैं स्वयं ही गलत हूँ, (२) या गलत स्थान पर हूँ, (३) या गलत समय पर हूँ|
मुझे लगता है कि मैं गलत समय और गलत स्थान पर तो हूँ ही, पर स्वयं भी गलत हूँ| जैसा स्वभाव भगवान ने मुझे दिया है, उसके अनुसार तो इस संसार में मैं बिलकुल अनुपयुक्त यानि misfit हूँ| परमात्मा की परम कृपा से ही अब तक की यात्रा कर पाया हूँ| इसमें मेरी कोई महिमा नहीं है| पिछलें जन्मों में कोई अच्छे कर्म नहीं किए और मुक्ति का उपाय नहीं किया इसलिए संचित कर्मों का फल भोगने के लिए यह जन्म लेना पड़ा| वे संचित कर्म ही प्रारब्ध बन गए|
.
भगवान वासुदेव को मुझ पर विश्वास था इसलिए उन्होंने मुझे यहाँ भेज रखा है| उन से तो मैं विश्वासघात कर नहीं सकता| वे मेरे हृदय में ही स्थायी रूप से आकर बैठ गए हैं| निरंतर उनकी पूरी दृष्टि मुझ अकिंचन पर है| मेरे लिए कहीं कोई छिपने या बचकर भागने का स्थान भी नहीं है, अतः उन भगवान वासुदेव को समर्पण कर देना ही अच्छा है| दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है| समर्पण करना ही पड़ेगा और कर भी चुका हूँ|
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जहाँ भी मैं हूँ वहाँ मेरे परमात्मा भगवान वासुदेव भी साथ साथ हैं| वे मुझ से पृथक हो ही नहीं सकते .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति| तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति||६:३०||"
वे सब की आत्मा भगवान वासुदेव सर्वत्र व्यापक हैं, सब कुछ उन्हीं में है, और वे सभी में हैं|
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते| वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः||७:१९||"
उन भगवान वासुदेव को नमन जो आप सब महान आत्माओं के रूप में सर्वदा सर्वत्र व्यक्त हो रहे हैं |
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ सितंबर २०१९
या तो ...(१) मैं स्वयं ही गलत हूँ, (२) या गलत स्थान पर हूँ, (३) या गलत समय पर हूँ|
मुझे लगता है कि मैं गलत समय और गलत स्थान पर तो हूँ ही, पर स्वयं भी गलत हूँ| जैसा स्वभाव भगवान ने मुझे दिया है, उसके अनुसार तो इस संसार में मैं बिलकुल अनुपयुक्त यानि misfit हूँ| परमात्मा की परम कृपा से ही अब तक की यात्रा कर पाया हूँ| इसमें मेरी कोई महिमा नहीं है| पिछलें जन्मों में कोई अच्छे कर्म नहीं किए और मुक्ति का उपाय नहीं किया इसलिए संचित कर्मों का फल भोगने के लिए यह जन्म लेना पड़ा| वे संचित कर्म ही प्रारब्ध बन गए|
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भगवान वासुदेव को मुझ पर विश्वास था इसलिए उन्होंने मुझे यहाँ भेज रखा है| उन से तो मैं विश्वासघात कर नहीं सकता| वे मेरे हृदय में ही स्थायी रूप से आकर बैठ गए हैं| निरंतर उनकी पूरी दृष्टि मुझ अकिंचन पर है| मेरे लिए कहीं कोई छिपने या बचकर भागने का स्थान भी नहीं है, अतः उन भगवान वासुदेव को समर्पण कर देना ही अच्छा है| दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है| समर्पण करना ही पड़ेगा और कर भी चुका हूँ|
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जहाँ भी मैं हूँ वहाँ मेरे परमात्मा भगवान वासुदेव भी साथ साथ हैं| वे मुझ से पृथक हो ही नहीं सकते .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति| तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति||६:३०||"
वे सब की आत्मा भगवान वासुदेव सर्वत्र व्यापक हैं, सब कुछ उन्हीं में है, और वे सभी में हैं|
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते| वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः||७:१९||"
उन भगवान वासुदेव को नमन जो आप सब महान आत्माओं के रूप में सर्वदा सर्वत्र व्यक्त हो रहे हैं |
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ सितंबर २०१९