Thursday 5 September 2019

पाप-पुण्य, स्वर्ग-नर्क और शैतान .... ये मानसिक अवधारणायें ही हैं या भौतिक वास्तविकता ?

पाप-पुण्य, स्वर्ग-नर्क और शैतान .... ये मानसिक अवधारणायें ही हैं या भौतिक वास्तविकता ?
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जहाँ तक मैं समझता हूँ ..... पूर्वजन्म और कर्मफलों का सिद्धांत शत-प्रतिशत सही है पर यह तभी तक सही है जब तक हम अहंकारग्रस्त यानि परमात्मा की अनंतता से पृथक हैं, और स्वयं को एक देह मानते हैं|
आकाश तत्व (ख) से दूरी ही दुःख है, और समीपता सुख| ये दोनों ही मानसिक अवस्थायें हैं| जब कोई व्यक्ति दुःखी होता है तब उसे लगता है कि वह पापी है, और जब सुखी होता है तब स्वयं को पुण्यवान समझता है| पाप और पुण्य दोनों हमारी स्वयं की रचनायें और अन्ततः बंधन ही हैं|
स्वर्ग और नर्क भी हमारी ही प्राणमय और मनोमय लोक की रचनायें हैं, वे मानसिक ही अधिक हैं|
शैतान कोई व्यक्ति नहीं, इब्राहिमी मतों (Abrahamic religions) में एक प्रतीकात्माक शब्द है वासनाओं के लिए, विशेषकर काम वासना के लिए| वासनायें हमें परमात्मा से दूर करती हैं, अतः एक बहाना बना लिया गया कि हमें शैतान ने बहका दिया| हमारी वासनायें ही शैतान हैं, कोई व्यक्ति नहीं| योग-दर्शन में चित्तवृत्तिनिरोध की बात कही गई है| ये चित्तवृत्तियाँ हमारी अधोगामी वासनायें ही हैं| चित्तवृत्तिनिरोध की साधनाओं से भी वासनायें तो रहेंगी ही पर वे ऊर्ध्वगामी होकर अन्ततः परमात्मा में विलीन हो जायेंगी|
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हमारे शास्त्र कहते हैं कि हमें एक ब्रह्मनिष्ठ और श्रौत्रीय (जिसे श्रुतियों का ज्ञान हो) मार्गदर्शक (सद्गुरु) का आश्रय लेकर उनसे मार्गदर्शन लेना चाहिए| पर .... "बिनु सत्संग विवेक न होई। रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।।" अन्ततः एक ही प्रश्न रह जाता है कि परमात्मा की कृपा, उनका अनुग्रह हमारे पर कैसे हो? इसी पर विचार कर के इसका उत्तर हमें स्वयं को ही ढूँढना पड़ेगा| इस पर विचार करें| जीवन की सार्थकता इसी में है|
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ॐ तत्सत ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
७ अगस्त २०१९

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