Tuesday 27 December 2016

नव वर्ष .....

नव वर्ष .....
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वैसे तो हर दिन ही नववर्ष है, पर हर दिन ही क्यों हर पल भी नूतन वर्ष है| जो बीत गया सो बीत गया पर आने वाला हर पल बीत चुके पल से अधिक सार्थक हो ..... यही नव वर्ष का संकल्प और अभिनन्दन हो|
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हमारा एकमात्र लक्ष्य है ..... परमात्मा की प्राप्ति| हम कैसे शरणागत हों व कैसे प्रभु को समर्पित/उपलब्ध हों ..... यही हमारी एकमात्र समस्या है| बाकि सब समस्याएँ तो परमात्मा की हैं|
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यदि हमारा शिव-संकल्प दृढ़ हो तो प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमारा सहयोग करने को बाध्य है| दृढ़ शिव-संकल्प हो तो सृष्टि की कोई भी शक्ति लक्ष्य तक पहुँचने से नहीं रोक सकती|
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सब तरह के नकारात्मक विचारों और भय से मुक्त होने की साधना करो| श्रुति भगवती जब कहती है कि हम परमात्मा के अंश और अमृतपुत्र हैं, तो परमात्मा की शक्ति भी हमारे भीतर निहित है| उस शक्ति का आवाहन कर अग्रसर हो जाओ साधना पथ पर| मार्गदर्शन और रक्षा करने के लिए प्रभु वचनबद्ध हैं|
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हमारे में लाख कमियाँ हैं पर उनका चिंतन ही मत करो| उनके प्रति कोई प्रतिक्रिया ही मत करो| परमात्मा की दिव्य उपस्थिति में वे सब कमियाँ भाग जायेंगी| कमलिनी कुलवल्लभ भगवान भुवनभास्कर जब अपने पथ पर अग्रसर होते हैं तो मार्ग में कहीं भी अन्धकार नहीं मिलता| वैसे ही जब आत्मसूर्य की ज्योति जागृत होगी तब अंतस का अन्धकार कहीं भी अवशिष्ट नहीं रहेगा|
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हमारी साधना समष्टि के कल्याण के लिए है क्योंकि अपने चैतन्य की गहराई में हम समष्टि के साथ एक हैं| जब हम अपना चिंतन करें तब साथ साथ दूसरों का भी चिंतन करें| मान लो किसी को भूत-प्रेत (बुराई) ने पकड रखा है तो आवश्यकता उसे उस प्रेतबाधा से मुक्त करने की है, न कि उसकी निंदा करने की या उसे मारने की| संसार को समय के प्रभाव से एक तरह के भूत-प्रेत ने पकड रखा है| निंदा करने से वह भूत नहीं भागेगा| उसके लिए तो उपाय करना होगा| आज भारत को कई भूत-प्रेतों (बुराइयों) ने पकड रखा है| उनसे देश को मुक्त कराने के लिए हमें एक ब्रह्मतेज की आवश्यकता है जो अनेक लोगों की साधना से प्रकट होगा| उसके प्रभाव से ही, ईश्वर की शक्ति से संयुक्त होकर ही हम कुछ प्रभावी और सार्थक कार्य कर सकते हैं| यही सबसे बड़ी सेवा होगी|
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अतः हर नूतन वर्ष का अभिनन्दन हम प्रभु की साधना द्वारा ही करें| जितना गहन ध्यान हम प्रभु का कर सकते हैं उतना करें और हर नए दिन हमारी साधना, हमारा ध्यान पिछले दिन से अधिक हो| यही हमारा नववर्ष का संकल्प हो|
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शराब पीकर, अभक्ष्य भक्षण कर, उन्मुक्त होकर नाच गाकर नववर्ष मनाने की परंपरा विजातीय है| उससे एक झूठी तृप्ति निज अहंकार को होती है पर उसका दुष्प्रभाव निज चेतना पर बहुत बुरा होता है| अपने साहस को जगाकर इस तरह की बुराई से बचो|
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हर नव वर्ष को प्रभु की चेतना में मनाओ| सदा ऐसे लोगों का संग करो जिनसे आपको सद्प्रेरणा मिलती हो| अधोगामी प्रवृति के लोगों से दूर रहो| यदि अच्छे लोगों का साथ नहीं मिलता है तो परमात्मा का साथ करो| वे तो सदा हमारे चैतन्य में हैं| परमात्मा की अनुभूति ध्यान साधना में सदा निश्चित रूप से होती है| ध्यान की गहराई में उतरो| सारे गुण अपने आप खिंचे चले आयेंगे|
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हमारे जीवन के भीतर और बाहर भगवान् की उपस्थिति निरंतर है| जैसे रेडियो को ट्यून करने पर ही चाहे हुए रेडियो स्टेशन की ध्वनी सुनती है वैसे ही सीधे होकर भ्रूमध्य में ध्यान करने से परमात्मा की उपस्थिति निश्चित रूप से होती है| एक पानी की बोतल को बंद कर यदि हम समुद्र में फेंक देते हैं तो बोतल का पानी समुद्र के पानी से नहीं मिल पाता | यदि ढक्कन को खोल देंगे तो बोतल का पानी समुद्र में मिल जाएगा| वैसे हमारे ऊपर से जब अज्ञान का आवरण हट जाएगा तो हम तत्क्षण परमात्मा के समक्ष होंगे| उस अज्ञान के आवरण को हटाने के लिए हमें भगवान् की शरणागत होना पडेगा तभी हम उन्हें उपलब्ध/समर्पित हो पायेंगे|
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प्रभु की अनंतता हमारा घर है| इस शरीर रुपी धर्मशाला में हम कुछ समय के लिए ही हैं| एक दिन सब कुछ छोडकर अनंत में चल देना होगा तब परमात्मा ही हमारे साथ होंगे| उनका साथ शाश्वत है| वे ही हमारे शाश्वत मित्र हैं| हर नववर्ष में उनसे मित्रता कर उनके साथ ही हम नववर्ष मनाएंगे|
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हर नववर्ष पर संकल्प करो की हम प्रभु के साथ हैं और हम सदा उनके साथ रहेंगे| यही नववर्ष के उत्सव की सार्थकता होगी|
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आप सब के ह्रदय में स्थित परमात्मा को प्रणाम| आप सब मेरी ही निजात्माएँ हैं| मेरे ह्रदय का सम्पूर्ण प्यार आपको अर्पित है| आप सब के जीवन का हर क्षण मंगलमय हो| पुनश्चः शुभ कामनाएँ|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर

सुखी कौन ? .....

सुखी कौन ? .....
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जो प्रभु से सब के कल्याण की प्रार्थना करता है, जो सब को सुखी और निरामय देखना चाहता है, सिर्फ वही सुखी है| प्रभु की सब संतानें यदि सुखी हों तभी हम सुखी हो सकते हैं, अन्यथा नहीं|

सुखी होना एक मानसिक अवस्था है, कोई उपलब्धि नहीं| सुखी होना एक यात्रा है, गंतव्य नहीं| सुखी होना वर्तमान में है, भविष्य में नहीं| सुखी होना एक निर्णय है, परिस्थिती नहीं| सुखी होना स्वयं में स्थित होना है, दिखावे में नहीं|
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संसार को हम स्वयं को बदल कर और स्वयं के दृढ़ संकल्प से ही बदल सकते हैं, अन्यथा नहीं| किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखें और स्वयं का सर्वश्रेष्ठ करें|
 

सब से बड़ा कार्य जो कोई मेरी दृष्टी में कर सकता है वह है कि हम निरंतर प्रभु को प्रेम करें और उन्हीं को समर्पित होने की निरंतर साधना करें| इससे सब का कल्याण होगा|

सभी को शुभ कामनाएँ और सप्रेम नमन ! ॐ ॐ ॐ ||

क्या पाठ्य पुस्तकों में लिखा हुआ सच है ? .....

क्या पाठ्य पुस्तकों में लिखा हुआ सच है ? .....
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पाठ्य पुस्तकों में जो इतिहास पढ़ा था वह अब सारा अविश्वसनीय और गलत सिद्ध हो रहा है| प्रश्न यह है कि सत्य क्या है?
भारत का इतिहास तो भारत के शत्रुओं ने ही लिखा है| अंग्रेजों ने व उनके मानस पुत्रों ने जो इतिहास लिखा वह तो भारतीयों में हीन भावना भरने के लिए ही लिखा था| अपने स्वयं के कुकृत्यों को तो उन्होंने छिपा ही दिया पर भारत के गौरव को तो बिलकुल ही छिपा दिया गया है|
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भारत की तो छोडिये यूरोप और अमेरिका के बारे में भी जो कुछ लिखा है वह भी दुराग्रहग्रस्त है| अपने स्वयं के द्वारा किये गए नरसंहारों को और भारत में हुए नरसंहारों को बिलकुल छिपा दिया गया है|
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इतिहास में पढ़ा था कि कोलम्बस ने अमेरिका की खोज की| पर जब कोलंबस वहाँ पहुँचा तब वहाँ की जनसंख्या दस करोड़ के लगभग थी, वह कहाँ से आ गयी? अमेरिका तो पहिले से ही था विश्व की एक तिहाई जनसंख्या के साथ| तब क्या खोज की उसने? अब कह रहे है कि कोलम्बस से पांच सौ वर्ष पूर्व ही लीफ एरिक्सन नाम का योरोपियन वहां पहुंचा था|
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ऐसे ही 25 दिसंबर को जीसस क्राइस्ट का जन्म हुआ इसका कोई प्रमाण नहीं है| सन 1836 ई. तक तो अमेरिका में ही 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने पर प्रतिबन्ध था क्योंकी इसे एक pagan परम्परा माना जाता था|
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रोम के सम्राट कोंसटेंटाइन दी ग्रेट ने ही यह तय किया था कि जीसस का जन्म 25 दिसम्बर को हुआ| उपरोक्त रोमन सम्राट एक सूर्योपासक था, ईसाई नहीं| उस जमाने में सबसे छोटा दिन 24 दिसंबर होता था (अब 22 दिसंबर)| 25 दिसंबर से दिन बड़ा होने लगता था अतः उसे जीसस का जन्मदिन उसने घोषित कर दिया|
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उसने ईसाईयत का उपयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया| जब वह मर रहा था तब पादरियों ने उस असहाय का बलात् बापतिस्मा कर दिया| वर्त्तमान बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट भी उसी के द्वारा संपादित हुए थे| जीसस के जीवन का असली घटनाक्रम भी छिपा दिया गया है|
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इतिहास में हमें यह कभी नहीं बताया गया कि कोंकण के एक चित्तपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मा विश्वनाथ बालाजी बाजीराव तत्कालीन भारत का महानतम सेनापति था| उसने चालीस से पचास के आसपास युद्ध किये पर कभी पराजय का मुंह नहीं देखा| उसकी असमय मृत्यु नहीं होती तो वह भारत का सम्राट होता| उससे पूर्व हुए हेमचन्द्र विक्रमादित्य जैसे वीरों को भी भारत के इतिहासकारों ने छिपा दिया| विजयनगर साम्राज्य के बारे में तो कुछ नहीं पढ़ाया जाता|
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अब किस पर विश्वास करें, किस पर नहीं, कुछ कह नहीं सकते| कभी न कभी तो भारत का सही इतिहास भी सामने आयेगा ही| असत्य और अन्धकार भी कभी न कभी दूर अवश्य होगा|

जय जननी जय भारत !

सभी लोक भाषाओँ में दिया संतों का ज्ञान .....

पूरे भारतवर्ष में सभी सम्प्रदायों के संतों ने सरलतम लोकभाषाओं में कम से कम शब्दों में कई बार अत्यंत गूढ़ बातें कहीं हैं| जब हरिकृपा से कभी कभी उनका अर्थ समझ में आता है तब हतप्रभ और नतमस्तक हो जाता हूँ|
लोग साहित्यिक दृष्टी से तो उनका अध्ययन करते हैं पर आध्यात्मिक दृष्टी से नहीं|

कई संतों की वाणियों में जब मैं अजपाजप, चक्रभेद, अनाहतनाद, स्वरयोग और भक्ति के बारे में पढता हूँ तो उनके अद्भुत अनुभूत ज्ञान के आगे नतमस्तक हो जाता हूँ|
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धन्य है भारतभूमि जहाँ संत जन्म लेते हैं| संतों के त्याग और तपस्या से ही हमारा धर्म, संस्कृति और राष्ट्र जीवित है| भारत का उद्धार भी उनकी अध्यात्मिक शक्ति ही करेगी|
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ॐ ॐ ॐ ||

साधना में कर्ताभाव से मुक्त रहें .....

अपनी व्यक्तिगत साधना/उपासना के पश्चात उससे प्राप्त आनंद में तो रहें पर कर्ताभाव को बिलकुल भी आस-पास न आने दें| देह और मन की चेतना से ऊपर उठें|

हम ध्यान की अनुभूतियों से ऊपर हैं, मानसिक रूप से जो भी अनुभूत होता है वह हम नहीं है| एकमात्र कर्ता परमात्मा है, अतः किसी भी तरह का अभिमान या दंभ हम में नहीं आना चाहिए| सिर्फ परमात्मा की चेतना में रहें| जो हैं सो परमात्मा ही हैं, हम तो हैं ही नहीं| वे ही कर्ता हैं और वे ही भोक्ता हैं|

किसी भी विभूति की कामना न हो और न ही तुरीयावस्था और तुरीयातीत आदि अवस्थाओं का चिंतन हो| साध्य साधना और साधक, दृष्टी दृश्य और दृष्टा भी वे ही हैं|

पूर्ण समर्पण, पूर्ण समर्पण और पूर्ण समर्पण ...... बस यही साधना का ध्येय है| इसमें कुछ भी प्राप्त करने को नहीं है, सिर्फ और सिर्फ समर्पण ही है| यह देह, मन, बुद्धि आदि सब कुछ, यहाँ तक कि साधन भी उसी का है| सब कामनाएँ विसर्जित हों|

हे परमशिव कृपा करो | हमारा पूर्ण समर्पण स्वीकार करो |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ

आज के इस युग में सद्गृहस्थ ही अधिक सकारात्मक कार्य कर सकते हैं ....

आज के इस युग में सद्गृहस्थ ही अधिक सकारात्मक कार्य कर सकते हैं ....
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वर्तमान समय में जो सज्जन हैं उनकी नियति में कष्ट पाना ही अधिक लिखा है| पर इससे उनको विचलित नहीं होना चाहिए| दुर्जन अधिक सुखी दिखाई दे रहे हैं पर वे भीतर से खोखले हैं| कष्ट पाकर भी सज्जनों को विचलित नहीं होना चाहिए क्योंकी यह आवश्यक नहीं है कि जो दिखाई दे रहा है वह सत्य ही है|
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किसी भी परिस्थिति में अपना सदाचरण नहीं छोड़ना चाहिए| हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं ..... महत्व सिर्फ इसी का है| नश्वर मनुष्य क्या सोचते हैं इसका अधिक महत्व नहीं है|
किसी भी व्यक्ति का आचरण और विचार देखकर ही यह तय करें कि वह कैसा है| किसी की वेश-भूषा और ऊंची ऊंची बातों से घोखा न खाएँ|
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एक बार एक शराब की दूकान के बाहर कुछ साधू वेशधारी पंक्तिबद्ध खड़े थे| यह देखकर मुझे बहुत पीड़ा हुई| पता लगाया तो ज्ञात हुआ उनकी घर-गृहस्थी भी थी| दिन में ये लोग साधू बनकर भीख मांगते और रात में उन पैसों से जमकर शराब पीते और चोरी भी करते| किसी ने साधू का वेश धारण कर रखा है इसका अर्थ यह नहीं है कि वह साधू ही है|
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विदेशी जासूस भी भारत में सदा साधू के वेश में रहे और देश का बहुत अहित किया| मध्य एशिया,मध्यपूर्व एशिया और पश्चिम एशिया से आये लुटेरे आक्रमणकारी अपने आक्रमण से पूर्व सदा अपने तथाकथित संतों को पहिले भेजते थे| वे यहाँ आकर आक्रमण की भुमिका बनाकर मार्गदर्शक का कार्य ही नही, आतताइयों के के लिए खाने पीने की व्यवस्था भी करते थे| पुर्तगाली और अँगरेज़ भी अपनी आक्रमणों से पूर्व जासूस पादरियों की सेना भेजते थे|
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भारत के जितने भी साधू संत पश्चिम में गए उनके साथ सदा अँगरेज़ जासूस साधू वेश में रहते थे| स्वामी रामतीर्थ ने लिखा है कि जब वे हिमालय की एक एकांत कन्दरा में तपस्या करते थे तो वहाँ भी हर समय एक अँगरेज़ जासूस साधू वेश में उनकी निगाह रखता था| एक बार वह अँगरेज़ साधू वेशधारी जासूस भूखा बैठा था तो स्वामी रामतीर्थ को दया आई और उन्होंने अपने मित्र सरदार पूरण सिंह को बोलकर उसके लिए भोजन की व्यवस्था करवाई और उस अँगरेज़ को बताया कि उनकी विश्व यात्रा के समय भी वह एक पादरी के वेश में सदा उनके साथ रहता था| उस अँगरेज़ जासूस को बड़ी ग्लानि हुई और वह अपनी नौकरी छोड़कर बापस अपने देश चला गया|
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वर्तमान समय में भी स्थिति ऐसी ही है किसी के बारे में भी अपने विचार उसके आचरण को देखकर ही बनाएं, उसकी मीठी बातों और वेशभूषा से नहीं| जो लोग साधू बने और जिन्होंने अपनी साधना नहीं की वे मात्र एक भिखारी ही बन पाए| धूने की लकड़ियों के लिए भी कई बार साधुओं को बुरी तरह लड़ते देखा है|
एक बार दो साधुओं के मध्य में मैं बैठ गया तो वे मुझसे लड़ पड़े और कहने लगे कि साधुओं की बराबरी में क्यों बैठे हो? नीचे दूर बैठो|
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संत अपने आचरण से और अपनी गरिमा से ही पहिचाना जाता है| श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ और तपस्वी ही वास्तविक संत हैं|
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इस युग में आध्यात्म जगत में भी सद्गृहस्थों ने बहुत सकारात्माक कार्य किये हैं और कर रहे हैं| गृहस्थ अपने धर्म को निभाएं, और परमात्मा को जीवन का केंद्र बिंदु बनाएं| आप सब परमात्मा के अमृतपुत्र हैं, शाश्वत आत्मा है, परमात्मा के अंश हैं, और परमात्मा को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| कोई भी जन्म से पापी नहीं है| परमात्मा को पाने का मार्ग परमप्रेम है| आप सब के ह्रदय में परमात्मा का परम प्रेम जागृत हो, और जीवन में परमात्मा की प्राप्ति हो| आप सब को शुभ कामनाएँ और आपमें हृदयस्थ प्रभु को नमन|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

परमहंस पं.गणेश नारायण शर्मा, बावलिया बाबा .....

शेखावाटी (राजस्थान) के वचनसिद्ध महात्मा परमहंस पंडित गणेश नारायण जी शर्मा बावलिया बाबा एक परमसिद्ध अघोरी शिव उपासक थे| उनकी वाणी कभी मिथ्या नहीं होती थी| वे जो भी कहते वह सत्य हो जाता था|
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पंडित जी के भक्तों में पिलानी के सेठ श्री जुगल किशोर जी बिड़ला और खेतड़ी नरेश महाराजा अजित सिंह जी शेखावत (जिन्होंने स्वामी विवेकानंद को अमेरिका भेजा) आदि थे| बिड़ला परिवार में आज भी मुख्य पूजा पंडित जी की ही होती है| उनके आशीर्वाद से ही बिड़ला परिवार इतना धनाढ्य बना|
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पंडित जी का जन्म बुगाला गाँव में हुआ था, वे अधिकाशतः नवलगढ़ में ही रहे| उनकी साधना भूमि चौरासिया मंदिर चिड़ावा थी जिसे वे शिवभूमि बना गए|
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किसी भी व्यक्ति को देखते ही उसका भूत भविष्य और वर्तमान उनके सामने आ जाता था| किसी से कभी कुछ स्वीकार नहीं करते थे| एक बार महाराजा अजित सिंह ने उनसे कुछ स्वीकार करने की प्रार्थना की तो उन्होंने कहा कि कुछ केले ला दो| पूरे बाज़ार में और आसपास ढूंढ लिया पर कहीं भी केले नहीं मिले| फिर कहा चलो एक पैसे का ताम्बे का छेद वाला एक सिक्का दे दो| वैसा सिक्का कहीं भी किसी के पास भी नहीं मिला| कोई कुछ खाने का सामान लाता तो वे बाहर खेल रहे बच्चों में बांटने का आदेश दे देते थे|

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ऐसे परम संत को सादर नमन !

संयोग और वियोग .....

संयोग और वियोग .....
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प्रत्येक दिवस की मृत्यु सायंकाल में हो जाती है, और रात्री का जन्म होता है|
प्रत्येक रात्रि की मृत्यु प्रातःकाल में हो जाती है, और दिवस का जन्म होता है|
यह सनातन कालचक्र काल की गति है जिसे कोई नहीं रोक सकता|
इस सीमित जीवन को ही हम पूर्ण जीवन मान लेते हैं, यही विडम्बना है|
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संयोग और वियोग भी सदा ऐसे ही चलते रहेंगे| यही जीवन है| जिसने इसे समझ लिया वह मुक्त हो गया, और जिसने नहीं समझा वह बंधन में है|
फूल खिलता है मुरझाने के लिए, और मुरझाता है नया जन्म लेने के लिए|
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इस सीमित चेतना से परे एक और भी विराट चेतना है, जिससे जुड़ कर ही हम इसका रहस्य समझ पाते हैं|
हे परमशिव, कृपा करो | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

ईसाई मतावलंबियों को क्रिसमस की शुभ कामनाएँ .....

उन सभी मित्रों को जो ईसाई मतावलंबी हैं या ईसा मसीह में आस्था रखते हैं को क्रिसमस की शुभ कामनाएँ| मैं आप सब से यह विनम्र निवेदन करना चाहता हूँ कि .....

>>> आप लोग अपने मत में दृढ़ आस्था रखो पर हमारे गरीब और लाचार हिंदुओं का धर्मांतरण यानि मत परिवर्तन मत करो, व हमारे साधू-संतों को प्रताड़ित मत करो| आप लोग हमारे सनातन धर्म की निंदा और हम पर झूठे दोषारोपण मत करो| आप लोगों ने भारतवर्ष और हम हिन्दुओं को इतना अधिक बदनाम किया है और हमारे ऊपर इतना अत्याचार किया है कि यदि हम पूरे विश्व का कीचड भी आपके ऊपर फेंकें तो वह भी कम पडेगा|
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आपको यह बताना चाहता हूँ कि .....
क्राइस्ट एक चेतना है ... "कृष्णचैतन्य"| आप उस चेतना में रहो|
ईश्वर को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है|
आप भी ईश्वर की संतान हो|
आप जन्म से पापी नहीं हो| आप अमृतपुत्र हैं| मनुष्य को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है|
अपने पूर्ण ह्रदय से परमात्मा को प्यार करो और अपने पड़ोसी को भी उतना ही प्यार करो|
सर्वप्रथम ईश्वर का साम्राज्य ढूँढो अर्थात ईश्वर का साक्षात्कार करो फिर तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा|
ॐ ॐ ॐ ||

"मन" महाराज को धन्यवाद .....

"मन" महाराज को धन्यवाद .....
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आजकल मन अन्यत्र सब स्थानों से हट कर सिर्फ परमात्मा में ही लगा रहता है| इसकी रूचि अब अन्य कहीं भी नहीं रही है| पहिले यह बहुत चंचल और अशांत रहता था| पर अब बहुत कुछ सुधर गया है| अतः यह अब धन्यवाद का पात्र है|
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पीड़ा थोड़ी-बहुत सिर्फ "शरीर" महाराज से ही है जो रुग्ण होकर कई बार अनेक कष्ट देता है| यह भी कभी ना कभी तो सुधरेगा ही, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में|
ॐ ॐ ॐ ||

हे सर्वव्यापी असीम परम चैतन्य परमात्मा .......

हे सर्वव्यापी असीम परम चैतन्य परमात्मा, तुम ही मेरे माता-पिता और सर्वस्व हो|
तुम्हारी कोई भी स्तुति नहीं की जा सकती क्योंकि तुम सब शब्दों से परे हो| सब शब्द तुम्हें सीमाओं में बाँधते है| तुम तो असीम हो| सारे शब्द भी तुम्हीं हो और सारे आकार भी तुम्हीं हो|
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दशों दिशाएँ तुम्हारे वस्त्र हैं, सम्पूर्ण सृष्टि ..... सारी आकाश गंगाएँ, प्रत्येक अणु और प्रत्येक ऊर्जाकण तुम्हीं हो| सम्पूर्ण अस्तित्व तुम्ही हो| तुम सच्चिदानंद हो| तुम्हारी अनुभूती आनंद रूप में क्या सिर्फ समाधि में ही होती है? स्वयं को मुझमें व्यक्त करो|
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मैं तुम्हारे साथ एक हूँ, मैं तुम्हारा पूर्ण पुत्र हूँ, तुम स्वयं को मुझमें व्यक्त कर रहे हो|
हे परम शिव परमात्मा, मेरा आत्मतत्व तुम्हारा मंदिर है, मेरा हृदय तुम्हारा घर है, जहाँ तुम्हारा स्थायी निवास है| अब तुम मुझसे कभी पृथक नहीं हो सकते| ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ |

हरियाणा की खाप पंचायतों द्वारा तैमूर लंग का प्रतिकार ......

हरियाणा की खाप पंचायतों द्वारा तैमूर लंग का प्रतिकार ......
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आजकल "तैमूर लंग" नाम के एक दुर्दांत मंगोल हत्यारे के बारे में काफी कुछ लिखा जा रहा है|
हरियाणा की उन खाप पंचायतों के शूरवीरों के बारे में भी लिखा जाना चाहिए जिन्होनें संगठित होकर इस दुर्दान्त आततायी का सामना किया, उसकी आधी से अधिक सेना को मार डाला और उस पर मर्मान्तक प्रहार कर भारत से भागने को विवश किया|
भारत ने सदा विदेशी लुटेरे आतताइयों का प्रतिकार किया है जिसे भारत के इतिहासकारों ने हमसे छिपा कर रखा| भारत का इतिहास भारत के शत्रुओं (अँगरेज़ व मार्क्सवादियों) ने लिखा है|
तैमूर लंग ने मार्च सन् 1398 ई० में भारत पर 92000 घुड़सवारों की सेना के साथ तूफानी आक्रमण किया| सार्वजनिक कत्लेआम, लूट-खसोट और अत्याचारों से उसने पूरे भारत को आतंकित कर दिया| उसका लक्ष्य हरिद्वार का विध्वंश था| हरियाणा की खाप पंचायतों ने संगठित होकर उसका सामना करने का निर्णय लिया| राजा देवपाल जाट और हरबीर सिंह गुलिया के नेतृत्व में इन्होनें स्वयं को संगठित किया|
हरबीरसिंह गुलिया ने अपनी खाप पंचायती सेना के 25,000 वीर योद्धा सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों पर हमला बोला और शेर की तरह दहाड़ कर तैमूर की छाती में भाला मारा जिससे वह बच तो गया पर उसी घाव से बापस समरकंद उज्बेकिस्तान जाकर मर गया|
पंचायती सेना में लगभग अस्सी हज़ार पुरुष और चालीस हज़ार महिलाओं ने शस्त्र उठाये| इस सेना को एकत्र करने में धर्मपालदेव जाट योद्धा जिसकी आयु 95 वर्ष की थी, ने बड़ा सहयोग दिया था| उसने घोड़े पर चढ़कर दिन रात दूर-दूर तक जाकर नर-नारियों को उत्साहित करके इस सेना को एकत्र किया| उसने तथा उसके भाई करणपाल ने इस सेना के लिए अन्न, धन तथा वस्त्र आदि का प्रबन्ध किया|
वीर योद्धा जोगराजसिंह गुर्जर को प्रधान सेनापति बनाया गया| पाँच महिला वीरांगनाएं सेनापती भी चुनी गईं जिनके नाम थे रामप्यारी गुर्जर, हरदेई जाट, देवीकौर राजपूत, चन्द्रो ब्राह्मण और रामदेई त्यागी|
धूला बालमीकी और हरबीर गुलिया उप प्रधान सेनापति चुने गए|
विभिन्न जातियों के बीस सहायक सेनापति चुने गये|
तैमूरी सेना को पंचायती सेना ने दम नहीं लेने दिया| दिन भर युद्ध होते रहते थे| रात्रि को जहां तैमूरी सेना ठहरती थी वहीं पर पंचायती सेना धावा बोलकर उनको उखाड़ देती थीं| वीर देवियां अपने सैनिकों को खाद्य सामग्री एवं युद्ध सामग्री बड़े उत्साह से स्थान-स्थान पर पहुंचाती थीं| शत्रु की रसद को ये वीरांगनाएं छापा मारकर लूटतीं थीं| आपसी मिलाप रखवाने तथा सूचना पहुंचाने के लिए 500 घुड़सवार अपने कर्त्तव्य का पालन करते थे| रसद न पहुंचने से तैमूरी सेना भूखी मरने लगी| उसके मार्ग में जो गांव आता उसी को नष्ट करती जाती थी|]
मेरठ से मुज़फ्फरनगर और सहारनपुर के मध्य पंचायती सेना ने तैमूरी सेना पर बड़े भयानक आक्रमण किये| हरिद्वार से पांच कोस पहिले तक तैमूरी सेना मार्ग में आने वाले हर गाँव को जलाती हुई और हर आदमी को मारते हुए पहुँच गयी थी|
सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर ने अपने 22000 मल्ल योद्धाओं के साथ शत्रु की सेना पर धावा बोलकर उनके 5000 घुड़सवारों को काट डाला|
हरद्वार के जंगलों में तैमूरी सेना के 2805 सैनिकों के रक्षादल पर बाल्मीकि उपप्रधान सेनापति धूला धाड़ी ने अपने 190 सैनिकों के साथ धावा बोला और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ|
प्रधान सेनापति जोगराजसिंह ने अपने वीर योद्धाओं के साथ तैमूरी सेना पर भयंकर धावा करके उसे अम्बाला की ओर भागने पर मजबूर कर दिया|
तैमूरी सेना हरिद्वार तक नहीं पहुँच सकी और भाग खड़ी हुई|
सेनापति दुर्जनपाल अहीर मेरठ युद्ध में अपने 200 वीर सैनिकों के साथ वीर गति को प्राप्त हुये।
इन युद्धों में तैमूर के ढ़ाई लाख सैनिकों में से खाप पंचायती वीर योद्धाओं ने लगभग एक लाख साठ हज़ार को मौत के घाट उतार कर तैमूर की आशाओं पर पानी फेर दिया था| पंचायती सेना के लगभग पैंतीस हज़ार वीर-वीरांगनाएं इस युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुए| इस युद्ध के अभिलेख खाप पंचायतों के भाटों ने लिखे जो अभी तक सुरक्षित हैं|
(साभार : श्री अक्षय त्यागी रासना के मूल लेख से संकलित).