Tuesday, 27 December 2016

हरियाणा की खाप पंचायतों द्वारा तैमूर लंग का प्रतिकार ......

हरियाणा की खाप पंचायतों द्वारा तैमूर लंग का प्रतिकार ......
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आजकल "तैमूर लंग" नाम के एक दुर्दांत मंगोल हत्यारे के बारे में काफी कुछ लिखा जा रहा है|
हरियाणा की उन खाप पंचायतों के शूरवीरों के बारे में भी लिखा जाना चाहिए जिन्होनें संगठित होकर इस दुर्दान्त आततायी का सामना किया, उसकी आधी से अधिक सेना को मार डाला और उस पर मर्मान्तक प्रहार कर भारत से भागने को विवश किया| भारत ने सदा विदेशी लुटेरे आतताइयों का प्रतिकार किया है जिसे भारत के इतिहासकारों ने हमसे छिपा कर रखा| भारत का इतिहास भारत के शत्रुओं (अँगरेज़ व मार्क्सवादियों) ने लिखा है|
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तैमूर लंग ने मार्च सन् 1398 ई० में भारत पर 92000 घुड़सवारों की सेना के साथ तूफानी आक्रमण किया| सार्वजनिक कत्लेआम, लूट-खसोट और अत्याचारों से उसने पूरे भारत को आतंकित कर दिया| उसका लक्ष्य हरिद्वार का विध्वंश था| हरियाणा की खाप पंचायतों ने संगठित होकर उसका सामना करने का निर्णय लिया| राजा देवपाल जाट और हरबीर सिंह गुलिया के नेतृत्व में इन्होनें स्वयं को संगठित किया| हरबीरसिंह गुलिया ने अपनी खाप पंचायती सेना के 25,000 वीर योद्धा सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों पर हमला बोला और शेर की तरह दहाड़ कर तैमूर की छाती में भाला मारा जिससे वह बच तो गया पर उसी घाव से बापस समरकंद उज्बेकिस्तान जाकर मर गया|
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पंचायती सेना में लगभग अस्सी हज़ार पुरुष और चालीस हज़ार महिलाओं ने शस्त्र उठाये| इस सेना को एकत्र करने में धर्मपालदेव जाट योद्धा जिसकी आयु 95 वर्ष की थी, ने बड़ा सहयोग दिया था| उसने घोड़े पर चढ़कर दिन रात दूर-दूर तक जाकर नर-नारियों को उत्साहित करके इस सेना को एकत्र किया| उसने तथा उसके भाई करणपाल ने इस सेना के लिए अन्न, धन तथा वस्त्र आदि का प्रबन्ध किया| वीर योद्धा जोगराजसिंह गुर्जर को प्रधान सेनापति बनाया गया| पाँच महिला वीरांगनाएं सेनापती भी चुनी गईं जिनके नाम थे रामप्यारी गुर्जर, हरदेई जाट, देवीकौर राजपूत, चन्द्रो ब्राह्मण और रामदेई त्यागी| धूला बालमीकी और हरबीर गुलिया उप प्रधान सेनापति चुने गए|
विभिन्न जातियों के बीस सहायक सेनापति चुने गये|
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तैमूरी सेना को पंचायती सेना ने दम नहीं लेने दिया| दिन भर युद्ध होते रहते थे| रात्रि को जहां तैमूरी सेना ठहरती थी वहीं पर पंचायती सेना धावा बोलकर उनको उखाड़ देती थीं| वीर देवियां अपने सैनिकों को खाद्य सामग्री एवं युद्ध सामग्री बड़े उत्साह से स्थान-स्थान पर पहुंचाती थीं| शत्रु की रसद को ये वीरांगनाएं छापा मारकर लूटतीं थीं| आपसी मिलाप रखवाने तथा सूचना पहुंचाने के लिए 500 घुड़सवार अपने कर्त्तव्य का पालन करते थे| रसद न पहुंचने से तैमूरी सेना भूखी मरने लगी| उसके मार्ग में जो गांव आता उसी को नष्ट करती जाती थी|]
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मेरठ से मुज़फ्फरनगर और सहारनपुर के मध्य पंचायती सेना ने तैमूरी सेना पर बड़े भयानक आक्रमण किये| हरिद्वार से पांच कोस पहिले तक तैमूरी सेना मार्ग में आने वाले हर गाँव को जलाती हुई और हर आदमी को मारते हुए पहुँच गयी थी| सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर ने अपने 22000 मल्ल योद्धाओं के साथ शत्रु की सेना पर धावा बोलकर उनके 5000 घुड़सवारों को काट डाला| हरद्वार के जंगलों में तैमूरी सेना के 2805 सैनिकों के रक्षादल पर बाल्मीकि उपप्रधान सेनापति धूला धाड़ी ने अपने 190 सैनिकों के साथ धावा बोला और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ| प्रधान सेनापति जोगराजसिंह ने अपने वीर योद्धाओं के साथ तैमूरी सेना पर भयंकर धावा करके उसे अम्बाला की ओर भागने पर मजबूर कर दिया|
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तैमूरी सेना हरिद्वार तक नहीं पहुँच सकी और भाग खड़ी हुई| सेनापति दुर्जनपाल अहीर मेरठ युद्ध में अपने 200 वीर सैनिकों के साथ वीर गति को प्राप्त हुये। इन युद्धों में तैमूर के ढ़ाई लाख सैनिकों में से खाप पंचायती वीर योद्धाओं ने लगभग एक लाख साठ हज़ार को मौत के घाट उतार कर तैमूर की आशाओं पर पानी फेर दिया था| पंचायती सेना के लगभग पैंतीस हज़ार वीर-वीरांगनाएं इस युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुए| इस युद्ध के अभिलेख खाप पंचायतों के भाटों ने लिखे जो अभी तक सुरक्षित हैं|

(साभार : श्री अक्षय त्यागी रासना के मूल लेख से संकलित).

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