Tuesday 27 December 2016

संयोग और वियोग .....

संयोग और वियोग .....
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प्रत्येक दिवस की मृत्यु सायंकाल में हो जाती है, और रात्री का जन्म होता है|
प्रत्येक रात्रि की मृत्यु प्रातःकाल में हो जाती है, और दिवस का जन्म होता है|
यह सनातन कालचक्र काल की गति है जिसे कोई नहीं रोक सकता|
इस सीमित जीवन को ही हम पूर्ण जीवन मान लेते हैं, यही विडम्बना है|
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संयोग और वियोग भी सदा ऐसे ही चलते रहेंगे| यही जीवन है| जिसने इसे समझ लिया वह मुक्त हो गया, और जिसने नहीं समझा वह बंधन में है|
फूल खिलता है मुरझाने के लिए, और मुरझाता है नया जन्म लेने के लिए|
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इस सीमित चेतना से परे एक और भी विराट चेतना है, जिससे जुड़ कर ही हम इसका रहस्य समझ पाते हैं|
हे परमशिव, कृपा करो | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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