Monday 25 October 2021

भगवान श्रीराम की उपासना हमें निर्भीक व शक्तिशाली बनाती है ---

 

विजयदशमी का दिव्य-तेजस्वी पर्व धनुर्धारी भगवान श्रीराम को अपने हृदय में रखते हुए उन सब आध्यात्मिक सीमाओं के उल्लंघन का पर्व है जिन्होने हमें सीमित बना रखा है| जो भी अस्त्र-शस्त्र-आयुध हमारे पास हैं, उनका पूजन करें| हमारा सबसे बड़ा शस्त्र तो हमारी हर आती-जाती साँस और हमारा मन है| सब सीमाओं का उल्लंघन कर भगवान श्रीराम का कूटस्थ में ध्यान करें और उन्हें समर्पित हों|

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रावण की चिंता न करें| रावण कभी मरने वाला नहीं है| रावण है हमारा लोभ व अहंकार, जो निरंतर पराये धन व पराई स्त्री/पुरुष की कामना करता है|
महिषासुर भी हमारा तमोगुण, प्रमाद व दीर्घसूत्रता है| यह भी कभी नहीं मरता|
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भगवान जब हमारे हृदय में प्रतिष्ठित होंगे, तभी ये तमोगुण रूपी असुर भागेंगे| भगवान श्रीराम की उपासना हमें निर्भीक व शक्तिशाली बनाती है|
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भगवान श्रीराम जब रावण से युद्ध करने गए तब उनके पास न तो रथ था, न उन के पैरों में जूते, और न ही उनकी सेना के पास कोई अस्त्र-शस्त्र| उनकी ओर से लड़ रहे वानर और रीछ, वृक्षों और पत्थरों को ही अस्त्र-शस्त्र बनाकर लड़ रहे थे| रावण को रथ पर और श्री रघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए| प्रेम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया कि वे बिना रथ के रावण को कैसे जीत सकेंगे|
श्रीराम जी के चरणों की वंदना करके वे स्नेह पूर्वक कहने लगे ... हे नाथ! आपके न रथ है, न तन की रक्षा करने वाला कवच है और न जूते ही हैं| वह बलवान्‌ वीर रावण किस प्रकार जीता जाएगा?
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कृपानिधान श्री रामजी ने कहा ... हे सखे! सुनो, जिससे जय होती है, वह रथ दूसरा ही है ... शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिए हैं| सत्य और शील (सदाचार) उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं| बल, विवेक, दम (इंद्रियों का वश में होना) और परोपकार ... ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समता रूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं|
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ईश्वर का भजन ही (उस रथ को चलाने वाला) चतुर सारथी है, वैराग्य ढाल है, और संतोष तलवार है| दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है|
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निर्मल (पापरहित) और अचल (स्थिर) मन तरकस के समान है| शम (मन का वश में होना), (अहिंसादि) यम और (शौचादि) नियम- ये बहुत से बाण हैं| ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है| इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है|
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हे धीरबुद्धि वाले सखा! सुनो, जिसके पास ऐसा धर्ममय दृढ़ रथ हो, वह वीर संसार (जन्म-मृत्यु) रूपी महान्‌ दुर्जय शत्रु को भी जीत सकता है (रावण की तो बात ही क्या है)|
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रावनु रथी बिरथ रघुबीरा| देखि बिभीषन भयउ अधीरा||
अधिक प्रीति मन भा संदेहा| बंदि चरन कह सहित सनेहा||१||
नाथ न रथ नहि तन पद त्राना| केहि बिधि जितब बीर बलवाना||
सुनहु सखा कह कृपानिधाना| जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना||२||
सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥
बल बिबेक दम परहित घोरे| छमा कृपा समता रजु जोरे||३||
ईस भजनु सारथी सुजाना| बिरति चर्म संतोष कृपाना||
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा| बर बिग्यान कठिन कोदंडा||४||
अमल अचल मन त्रोन समाना| सम जम नियम सिलीमुख नाना||
कवच अभेद बिप्र गुर पूजा| एहि सम बिजय उपाय न दूजा||५||
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आप सब महान दिव्य आत्माओं को नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ अक्टूबर २०२०

श्रीकृष्ण समर्पण ---

 श्रीकृष्ण समर्पण ...

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आजकल पिछले कुछ दिनों से एक विचित्र सी स्थिति हो गई है| इस से एक परम शांति भी मिल रही है और भगवान से एक दिव्य आश्वासन भी|
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अपने चारों ओर ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में हो रहे घटनाक्रम के प्रति मैं बहुत अधिक संवेदनशील हूँ| पूरी पृथ्वी का और पृथ्वी के हर भाग का मानचित्र मेरे मानस में है| इतना ही नहीं, पृथ्वी के हर भाग की जलवायू, और विश्व की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं आदि का भी काफी कुछ ज्ञान है| विश्व के बहुत सारे देशों का भ्रमण भी किया है, सभी महासागरों को जलयान से पार किया है, पृथ्वी की परिक्रमा भी की है, व प्रकृति का सौम्य और विकराल रूप भी देखा है| अपने निज जीवन के भूतकाल की अनेक बुरी-अच्छी स्मृतियाँ आती हैं| बहुत अधिक विचित्र अनुभव हैं, कई बातों की पीड़ा भी होती है| भारत और सनातन धर्म की वर्तमान दुःखद स्थिति की भी पीड़ा होती है|
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पर अब परिदृश्य परिवर्तित हो गया है| अच्छी-बुरी जो भी स्मृति आती है, वे सब अब भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित हो जाती हैं| जीवन का हरेक अच्छा-बुरा पक्ष, हर अनुभव, सब कुछ, पूरा जीवन ही श्रीकृष्ण को समर्पित है| बस एक यही भाव है जो जीवन के हर अभाव और कष्ट को दूर करता है| सारे अभाव व कष्ट, सारी अपूर्णता-पूर्णता, सारा अस्तित्व ... श्रीकृष्ण को समर्पित है| कुछ भी अपने लिए नहीं रखा है, सब कुछ भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है|
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गीता का यह चरम श्लोक बार-बार स्मृति में आमने आता है ...
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
अब भगवान वासुदेव ही सर्वस्व हैं|
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते| वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः||७:१९||"
सारा जीवन उन्हें समर्पित है| मेरा कहने को कुछ भी नहीं है|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ अक्तूबर २०२०