Friday 22 September 2017

हम जो कुछ भी हैं वह पूर्व जन्म के कर्मों से हैं .....

जीवन में कुछ लोग दूसरों की अपेक्षा अधिक प्रगति करते हैं, इसके पीछे उन सफल लोगों द्वारा जन्म-जन्मान्तरों में किये हुए परिश्रम का फल है | यह एक जन्म की ही नहीं अनेक जन्मों की कमाई का फल होता है | कोई माने या न माने पर कर्मफलों के हिन्दू सिद्धांत के अनुसार यह सही है | कोई व्यक्ति बहुत बुद्धिमान होता है और कोई कम बुद्धिमान होता है .... यह भी पूर्वजन्म के परिश्रम का फल ही है, कोई संयोग नहीं |

आध्यात्म में भी यही नियम है | जो उन्नत आत्माएँ हैं वे अपने पूर्व जन्मों में की हुई साधनाओं के कारण हैं | जो अभी परिश्रम कर रहे हैं उन्हें उनके परिश्रम का फल निश्चित रूप से भविष्य में मिलेगा | प्रकृति में यानि परमात्मा की सृष्टि में कहीं भी कोई अन्याय नहीं है, अन्याय है तो सिर्फ मनुष्य की सृष्टि में | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
आश्विन शु.२, वि.सं.२०७४
22/09/2017

जिन्हें मूर्ति पूजा से विरोध है वे स्वयं मूर्ति पूजा न करें ....,

जिन्हें मूर्ति पूजा से विरोध है वे स्वयं मूर्ति पूजा न करें, पर उन्हें क्या पीड़ा होती है जब अन्य श्रद्धालू मूर्ति पूजा करते हैं ? उन्हें अन्य किसी की आस्था पर प्रहार करने का कोई अधिकार नहीं है| ऐसे ही अन्य कई मतावलंबी हैं जिन्होनें हिन्दुओं का मत परिवर्तन करने का ठेका ले रखा है, कुछ ने तो हिंसा द्वारा और कुछ ने धूर्तता द्वारा| ये धूर्तता वाले अधिक खतरनाक हैं|

हमारी अस्मिता पर प्रहार हो रहे हैं| अपने स्वधर्म और स्वाभिमान की हमें रक्षा करनी ही होगी| यह तभी संभव है जब पहले हम स्वयं अपने स्वधर्म का पालन करें| स्वधर्म का पालन ही हमारी रक्षा करेगा | तभी भगवान हमारा साथ देंगे| ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
आश्विन शु.२, वि.सं.२०७४
22/09/2017

महत्व सिर्फ एक ही बात का है कि हम परमात्मा की दृष्टि में क्या हैं .....

महत्व सिर्फ एक ही बात का है कि हम परमात्मा की दृष्टि में क्या हैं .....
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दूसरों के विचारों के अनुकूल चलना, दूसरों का जीवन जीना, दूसरों को सिर्फ प्रसन्न रखने के लिए अपनी भावनाओं का दमन, और अपने सद्विचारों का परित्याग करना ..... यह हमारे पतन का एक मुख्य कारण है | कौन क्या कह रहे हैं, कौन क्या सोच रहे हैं, इस बात का वास्तव में कोई महत्त्व नहीं है, चाहे वे कितने भी प्रिय हों | महत्त्व सिर्फ एक ही बात का है कि हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं | हमारा कार्य सिर्फ परमात्मा को प्रसन्न कर के उनके साथ जुड़ना है, न कि उन लोगों से जो हमें उन से दूर कर रहे हैं |
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भगवान भुवनभास्कर आदित्य जब अपने पथ पर अग्रसर होते हैं तो वे क्या यह सोचते हैं कि मार्ग का तिमिर उनके बारे में क्या विचार कर रहा है ? वे तो अपने मार्ग पर निरंतर चलते रहते हैं | उन्हें अपने मार्ग में कहीं अन्धकार का अवशेष भी नहीं मिलता | वे यह चिंता नहीं करते कि मार्ग में क्या घटित हो रहा है | महत्व इस बात का भी नहीं है कि अपने साथ क्या हो रहा है | जिन परिस्थितियों और घटनाओं से हम निकलते हैं वे हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं | हर परिस्थिति कुछ सीखने का अवसर है |
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जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उससे तो अच्छा है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हुए हम अपने प्राण न्योछावर कर दें | या तो यह देह रहेगी या अपने लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति ही होगी | हमारे आदर्श तो मार्तंड अंशुमाली भुवन भास्कर भगवान सूर्य हैं जो निरंतर प्रकाशमान और गतिशील हैं | उनकी तरह कूटस्थ में अपने आत्म-सूर्य की ज्योति को सतत् प्रज्ज्वलित रखो और उस दिशा में उसका अनुसरण करते हुए निरंतर अग्रसर रहो | एक ना एक दिन हम पाएँगे कि आत्म-सूर्य की वह ज्योतिषांज्योति हम स्वयं ही हैं |
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ॐ नमः शिवाय | हे भगवान परम शिव, आपकी जय हो, आप ही मेरे जीवन हैं | एक क्षण के दस लाखवें भाग के लिए भी मैं आपसे कभी दूर न रहूँ | जो आप हैं वह ही मैं हूँ | आप ही मेरी गति और पूर्णता हैं, मैं आपके साथ एक हूँ | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
आश्विन शु.२, वि.सं.२०७४
22/09/2017

ये शारदीय नवरात्र समष्टि के लिए मंगलमय हों ....

|| ये शारदीय नवरात्र समष्टि के लिए मंगलमय हों ||
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कृपया मुझे क्षमा करें, जो मैं लिखने जा रहा हूँ, वह छोटे मुँह वाली बड़ी बात है | मुझे इतनी बड़ी बात नहीं लिखनी चाहिए | मैं कोई धर्माचार्य नहीं हूँ | पर एक अकिंचन निष्ठावान साधक के रूप में तो लिख ही सकता हूँ |

"मनुष्य की कोई भी शक्ति, चाहे वह कितनी भी विध्वंशक या नकारात्मक हो, परमात्मा की इच्छा के सामने नहीं टिक सकती | परमात्मा से जुड़ कर ही हम अपने जीवन का कोई श्रेष्ठतम कार्य कर सकते हैं | जीवन में यदि हम कोई भी स्थायी अच्छा कार्य करना चाहें तो परमात्मा से जुड़ना ही पड़ेगा |"

"परमात्मा का अधिकाधिक गहनतम ध्यान करें, और उस चेतना में ही दिन भर के सारे सांसारिक कार्य करें| सारे कार्य परमात्मा के लिए ही करें, और फिर समर्पित होकर परमात्मा को ही अपने माध्यम से कार्य करने दें | परमात्मा को स्वयँ के माध्यम से प्रवाहित होने दें | परमात्मा की अनंतता और पूर्णता में स्वयं को विलीन कर दें |

इस से अधिक लिखने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
२१ सितम्बर २०१७

अति संक्षिप्त और सरलतम भाषा में नवरात्रों का महत्व :----

अति संक्षिप्त और सरलतम भाषा में नवरात्रों का महत्व :----
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भारतीय संस्कृति में जगन्माता की आराधना के पर्व नवरात्रों का एक विशेष महत्व है| यह भारतीय संस्कृति के सर्वाधिक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक उत्सवों में से एक है| इसका ज्ञान प्रत्येक भारतीय को होना चाहिए| परमात्मा की जगन्माता के रूप में भी साधना भारतीय संस्कृति की एक विशेषता है| इस पर्व में भगवान श्रीराम की भी उपासना उनके भक्त करते हैं| जगन्माता का प्राकट्य मुख्यतः तीन रूपों में है ..... (१)महाकाली (२)महालक्ष्मी और (३)महासरस्वती| नवरात्रों की आराधना माँ के उपरोक्त तीन रूपों की प्रीति के लिए होती है| इनका सम्मिलित रूप दुर्गा है|
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(१) महाकाली:--- जीवन के श्रेष्ठतम जीवन मूल्यों को अर्जित करने के लिए चित्त की समस्त विकृतियों को नष्ट करना आवश्यक है जो महाकाली की साधना द्वारा होता है| महाकाली हमारे भीतर की दुष्ट वृत्तियों का नाश कर देती है| 'महिष' तमोगुण का प्रतीक है| आलस्य, अज्ञान, जड़ता और अविवेक ये सब तमोगुण हैं| महिषासुर वध हमारे भीतर के तमोगुण के विनाश का प्रतीक है| महाकाली का बीजमंत्र 'क्लीम्' है|
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(२) महालक्ष्मी:--- उपनिषदों में परमात्मा से प्रार्थना की जाती है कि हमें सांसारिक वैभव तभी प्रदान करना जब हममें सभी सदगुण पूर्ण रूप से विकसित हो जाएँ| बिना आत्मानुशासन और आत्म-संयम के भौतिक संपदा नष्ट हो जाती है|
श्रुति भगवती का उपदेश है ..... "अश्माभव परशुर्भव हिरण्यमस्तृताम् भव |" इसका भावार्थ है कि तूँ चट्टान की तरह अडिग बन, परशु की तरह तीक्ष्ण बन, और स्वर्ण की तरह पवित्र बन| महासागर में चट्टान पर विकराल लहरें प्रहार करती रहती हैं, लगातार आंधियाँ और तूफ़ान आते रहते हैं पर चट्टान अपने स्थान पर अडिग रहती है| जिस पर परशु गिरे वह तो कट ही जाता है, और जो परशु पर गिरे वह भी कट जाता है| स्वर्ण को पवित्र माना गया है| स्वर्ण को छूने वाला भी पवित्र बन जाता है| कोई भी दोष और पाप हमें छू भी न पाए| यह तभी संभव होता है जब हमारा चित्त शुद्ध हो| चित्त को शुद्ध कर के महालक्ष्मी हमें सभी सदगुण प्रदान करती हैं| महालक्ष्मी का बीजमंत्र 'ह्रीम्' है|
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(३) महासरस्वती:--- गीता में भगवान कहते हैं -- 'अपनी आत्मा का ज्ञान ही ज्ञान है, वही मेरी विभूति है, वही मेरी महिमा है|' आत्मज्ञान के सर्वोत्तम रूप की प्राप्ति महासरस्वती की आराधना से होती है| महासरस्वती का बीजमंत्र 'ऐम्' (अईम्) है|
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नवार्णमन्त्र ---- महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली से प्रार्थना ही है कि माँ मेरी अज्ञानरुपी ग्रंथियों का नाश करो|
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भगवान श्रीराम :--- जब चित्त की अशुद्धियाँ नष्ट हो जाएँ, हमारा चित्त सदगुणों से संपन्न हो जाए और आत्मज्ञान की प्राप्ति हो जाए तब चित्त में 'भगवान श्रीराम' का जन्म होता है| वे जो सब के हृदयों में रमण कर रहे हैं वे ही भगवान श्रीराम हैं| भगवान श्रीराम वह सच्चिदानंद ब्रह्म हैं जिनमें समस्त योगी सदैव रमण करते हैं| राम, ज्ञान के स्वरूप हैं; सीताजी भक्ति हैं; और अयोध्या हमारा ह्रदय है| भगवान राम ने भी शक्ति की उपासना की थी क्योंकि उन्हें समुद्र लांघना था| यह समुद्र अविद्द्या और अविवेक का महासागर है| अपने भीतर के शत्रुओं को नष्ट करने के लिए इसे पार करना ही पड़ेगा|
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प्रभु का स्मरण होते ही मेरा चित्त स्तब्ध होजाता है और वाणी अवरुद्ध हो जाती है, और मैं कुछ ही करने में असमर्थ हो जाता हूँ| हे जगन्माता यह सब आपकी ही महिमा है| आपकी जय हो|
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ॐ गुरु ! जय माँ ! जय श्री राम ! ॐ नमः शिवाय !
सत्य सनातन धर्म की जय ! भारत माता की जय ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
२० सितम्बर २०१४