अति संक्षिप्त और सरलतम भाषा में नवरात्रों का महत्व :----
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भारतीय संस्कृति में जगन्माता की आराधना के पर्व नवरात्रों का एक विशेष
महत्व है| यह भारतीय संस्कृति के सर्वाधिक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक उत्सवों
में से एक है| इसका ज्ञान प्रत्येक भारतीय को होना चाहिए| परमात्मा की
जगन्माता के रूप में भी साधना भारतीय संस्कृति की एक विशेषता है| इस पर्व
में भगवान श्रीराम की भी उपासना उनके भक्त करते हैं| जगन्माता का प्राकट्य
मुख्यतः तीन रूपों में है ..... (१)महाकाली (२)महालक्ष्मी और
(३)महासरस्वती| नवरात्रों की आराधना माँ के उपरोक्त तीन रूपों की प्रीति के
लिए होती है| इनका सम्मिलित रूप दुर्गा है|
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(१) महाकाली:---
जीवन के श्रेष्ठतम जीवन मूल्यों को अर्जित करने के लिए चित्त की समस्त
विकृतियों को नष्ट करना आवश्यक है जो महाकाली की साधना द्वारा होता है|
महाकाली हमारे भीतर की दुष्ट वृत्तियों का नाश कर देती है| 'महिष' तमोगुण
का प्रतीक है| आलस्य, अज्ञान, जड़ता और अविवेक ये सब तमोगुण हैं| महिषासुर
वध हमारे भीतर के तमोगुण के विनाश का प्रतीक है| महाकाली का बीजमंत्र
'क्लीम्' है|
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(२) महालक्ष्मी:--- उपनिषदों में परमात्मा से
प्रार्थना की जाती है कि हमें सांसारिक वैभव तभी प्रदान करना जब हममें सभी
सदगुण पूर्ण रूप से विकसित हो जाएँ| बिना आत्मानुशासन और आत्म-संयम के
भौतिक संपदा नष्ट हो जाती है|
श्रुति भगवती का उपदेश है ..... "अश्माभव
परशुर्भव हिरण्यमस्तृताम् भव |" इसका भावार्थ है कि तूँ चट्टान की तरह
अडिग बन, परशु की तरह तीक्ष्ण बन, और स्वर्ण की तरह पवित्र बन| महासागर में
चट्टान पर विकराल लहरें प्रहार करती रहती हैं, लगातार आंधियाँ और तूफ़ान
आते रहते हैं पर चट्टान अपने स्थान पर अडिग रहती है| जिस पर परशु गिरे वह
तो कट ही जाता है, और जो परशु पर गिरे वह भी कट जाता है| स्वर्ण को पवित्र
माना गया है| स्वर्ण को छूने वाला भी पवित्र बन जाता है| कोई भी दोष और पाप
हमें छू भी न पाए| यह तभी संभव होता है जब हमारा चित्त शुद्ध हो| चित्त को
शुद्ध कर के महालक्ष्मी हमें सभी सदगुण प्रदान करती हैं| महालक्ष्मी का
बीजमंत्र 'ह्रीम्' है|
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(३) महासरस्वती:--- गीता में भगवान कहते
हैं -- 'अपनी आत्मा का ज्ञान ही ज्ञान है, वही मेरी विभूति है, वही मेरी
महिमा है|' आत्मज्ञान के सर्वोत्तम रूप की प्राप्ति महासरस्वती की आराधना
से होती है| महासरस्वती का बीजमंत्र 'ऐम्' (अईम्) है|
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नवार्णमन्त्र ---- महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली से प्रार्थना ही है कि माँ मेरी अज्ञानरुपी ग्रंथियों का नाश करो|
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भगवान श्रीराम :--- जब चित्त की अशुद्धियाँ नष्ट हो जाएँ, हमारा चित्त
सदगुणों से संपन्न हो जाए और आत्मज्ञान की प्राप्ति हो जाए तब चित्त में
'भगवान श्रीराम' का जन्म होता है| वे जो सब के हृदयों में रमण कर रहे हैं
वे ही भगवान श्रीराम हैं| भगवान श्रीराम वह सच्चिदानंद ब्रह्म हैं जिनमें
समस्त योगी सदैव रमण करते हैं| राम, ज्ञान के स्वरूप हैं; सीताजी भक्ति
हैं; और अयोध्या हमारा ह्रदय है| भगवान राम ने भी शक्ति की उपासना की थी
क्योंकि उन्हें समुद्र लांघना था| यह समुद्र अविद्द्या और अविवेक का
महासागर है| अपने भीतर के शत्रुओं को नष्ट करने के लिए इसे पार करना ही
पड़ेगा|
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प्रभु का स्मरण होते ही मेरा चित्त स्तब्ध होजाता है और
वाणी अवरुद्ध हो जाती है, और मैं कुछ ही करने में असमर्थ हो जाता हूँ| हे
जगन्माता यह सब आपकी ही महिमा है| आपकी जय हो|
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ॐ गुरु ! जय माँ ! जय श्री राम ! ॐ नमः शिवाय !
सत्य सनातन धर्म की जय ! भारत माता की जय ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२० सितम्बर २०१४