Sunday 4 March 2018

द्वेषी और क्रूर लोगों की गति :--

द्वेषी और क्रूर लोगों की गति :--
भगवान कहते हैं ....
तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान् | क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ||१६:१९||

आचार्य शंकर ने इसकी व्याख्या की है ..... "तान् अहं सन्मार्गप्रतिपक्षभूतान् साधुद्वेषिणः द्विषतश्च मां क्रूरान् संसारेषु एव अनेकनरकसंसरणमार्गेषु नराधमान् अधर्मदोषवत्त्वात् क्षिपामि प्रक्षिपामि अजस्रं संततम् अशुभान् अशुभकर्मकारिणः आसुरीष्वेव क्रूरकर्मप्रायासु व्याघ्रसिंहादियोनिषु क्षिपामि इत्यनेन संबन्धः||"

अर्थात् सन्मार्ग के प्रतिपक्षी और मेरे तथा साधुपुरुषोंके साथ द्वेष करनेवाले उन सब अशुभकर्मकारी क्रूर नराधमोंको मैं बारंबार संसारमें -- नरकप्राप्तिके मार्गमें जो प्रायः क्रूर कर्म करने वाली व्याघ्रसिंह आदि आसुरी योनियाँ हैं उनमें ही सदा गिराता हूँ क्योंकि वे पापादि दोषोंसे युक्त हैं| क्षिपामि इस क्रियापदका योनिषु के साथ सम्बन्ध है|
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द्वेष पूर्वक क्रोध करने वाले नराधम की श्रेणी में आते हैं| नर शब्द का अर्थ है जो विषयों में रमण न करे| नराधमान् वे नरों में अधम हैं| क्षिपामि अर्थात् फैंकता हूँ|
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आसुरी योनी में जन्म लेकर क्या होता है ? भगवान कहते हैं ....
असुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि| मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्||१६:२०||
अर्थात ..... अविवेकीजन प्रत्येक जन्म में आसुरी योनि को पाते हुए जिनमें तमोगुणकी बहुलता है ऐसी योनियों में जन्मते हुए नीचे गिरते गिरते मुझ ईश्वरको न पाकर उन पूर्वप्राप्त योनियोंकी अपेक्षा और भी अधिक अधम गति को प्राप्त होते हैं|
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अतः किसी से द्वेष न करें और क्रूरता पर विजय पायें| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ मार्च २०१८

अपनी आध्यात्मिक साधना नित्य नियमित करें .....

अपनी आध्यात्मिक साधना नित्य नियमित करें| किसी कारणवश अपना साधन-भजन छुट गया हो तो श्रद्धा-विश्वास के साथ तुरंत प्रारम्भ कर दें| नित्य साधना करने का आदेश स्वयं भगवान दे रहे हैं|
भगवान कहते हैं ....
"अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः| तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः||१८:१४||
अनन्य चित्त वाला योगी सर्वदा निरन्तर प्रतिदिन मुझ परमेश्वरका स्मरण किया करता है| छः महीने या एक वर्ष ही नहीं, जीवनपर्यन्त जो निरन्तर मेरा स्मरण करता है, हे पार्थ उस नित्यसमाधिस्थ योगीके लिये मैं सुलभ हूँ|
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मुझे तो संसार से मोह सदा दुःखदायी रहा है| परमात्मा के प्रेम में ही सुख मिला है| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ मार्च २०१८

"निज विवेक की अग्नि में अपने अहंकार और लोभ की आहुति" ..... ही मनुष्य जाति की सब समस्याओं का समाधान है .....

"निज विवेक की अग्नि में अपने अहंकार और लोभ की आहुति" ..... ही मनुष्य जाति की सब समस्याओं का समाधान है .....
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होली का यह पर्व बहुत मंगलमय है| कल सायं होलिका दहन की अग्नि की लौ की दिशा पहले तो सीधी ऊपर की ओर थी, फिर चारों दिशाओं में घूमी और फिर उत्तर दिशा में स्थिर रही| लोगों की चेतना भी धीरे धीरे ऊपर उठ रही है| एक ही दिन में कोई चमत्कार नहीं हो सकता| आज से पचीस -तीस वर्ष पूर्व तक होली के त्यौहार पर बहुत अधिक फूहड़पन होता था| अब शालीनता आ रही है| लोगों का व्यवहार भी सुधर रहा है| गाली-गलौच और फालतू की बकवास के स्थान पर भगवान की भक्ति जागृत हो रही है| अनेक स्थानों पर लोगों ने भजन-कीर्तन के साथ फूलों से होली मनानी आरम्भ कर दी है| यह एक सकारात्मक प्रगति है| जिस समय मैं ये पंक्तियाँ लिख रहा हूँ, हमारे मोहल्ले की अनेक माताएँ हरि-कीर्तन के साथ प्रभात-फेरी निकाल रही हैं| आज अनेक स्थानों पर भजन-कीर्तन के साथ फूलों की होली खेली जायेगी|
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विश्व के परिदृश्य को देखें तो विश्व की सारी समस्याओं के मूल में मनुष्य का अहंकार और लोभ है| विश्व की सारी समस्याओं का एकमात्र समाधान है ..... "निज विवेक की अग्नि में अपने अहंकार और लोभ की आहुति", अन्यथा विनाश ही विनाश है|
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भगवान की कृपा सर्वत्र है| कोई यह कहे कि उसे मार्गदर्शन नहीं मिल रहा है, तो वह झूठ बोल रहा है| भगवान सब को सन्मार्ग दिखाते हैं, भगवान ने सब को सदबुद्धि दी है| कोई उसका प्रयोग न करे तो यह उसका दुर्भाग्य है|
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आप सब निजात्माओं को सप्रेम सादर नमन ! भगवान की भक्ति सब के ह्रदय में जागृत हो, यही मेरी शुभ कामना है| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०२ मार्च २०१८

तुर्की में ग्रीस के विरुद्ध जिहादी युद्ध का उन्माद .....

अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम :
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तुर्की में ग्रीस के विरुद्ध एक जिहादी युद्ध का उन्माद बहुत तेज़ी से लगातार बढ़ रहा है जो कभी भी एक युद्ध में परिणित हो सकता है| सन १९१४ से १९२३ तक तुर्की ने अनातोलिया में ग्रीक ईसाईयों का, और इजमीर में आर्मेनियन ईसाईयों का बहत बड़ा नरसंहार किया था| अब एजियन सागर में स्थित ग्रीक द्वीपों पर तुर्की बापस अधिकार करना चाहता है क्योंकि ये द्वीप कभी ऑटोमन साम्राज्य के आधीन थे| ऑटोमन साम्राज्य के समय तुर्की का भूभाग बहुत अधिक विशाल था पर बाद में हुए युद्धों में पराजित हुआ तुर्की सिमट गया और अनेक अंतर्राष्ट्रीय संधियों के कारण उसे अधिकाँश भूभाग छोड़ना पड़ा|
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उस क्षेत्र में ईसाईयों और मुसलमानों के मध्य अनेक धर्मयुद्ध हुए थे| आज के युग में उन की कल्पना भी भयानक है| यूरोप के अनेक देशों में बहुत बड़ी संख्या में तुर्क बसे हुए हैं| तुर्की को पूरी उम्मीद है कि विदेशों में बसे तुर्क उस की पूरी सहायता करेंगे|
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सन २०२३ में तुर्की गणराज्य को १०० वर्ष पूरे ही जायेंगे| सन २०७१ में मंज़िकेर्त के युद्ध को एक हजार वर्ष पूरे हो जायेंगे जब तुर्की के जिहादियों ने आर्मेनिया में ग्रीक ईसाई ब्राइज़ेन्ताइन साम्राज्य को हराकर तुर्की का इस्लामी साम्राज्य स्थापित किया| था| तुर्की में ईसाईयों के वर्चस्व को अहल-अल-सलीब कहा जाता है जिन पर विजय का उन्माद वहाँ के दोनों राजनीतिक दल भड़का रहे हैं| सन १९७४ में तुर्की ने साइप्रस पर आक्रमण कर के वहाँ के ईसाईयों को मारकर भगा दिया था|

यूरोप में गृहयुद्ध की सी स्थिति का निर्माण हो रहा है| यदि युद्ध के उन्माद में तुर्की ने ग्रीस पर आक्रमण कर दिया तो उस क्षेत्र में एक विश्वयुद्ध निश्चित है| ग्रीस पर आक्रमण हुआ तो उसके पक्ष में फ़्रांस, इटली और ब्रिटेन भी कूद पड़ेंगे| पूरे पूर्वी यूरोप में तुर्की के विरुद्ध जन भावनाएँ हैं, क्योंकि पूर्व में तुर्कों ने वहां बहुत अत्याचार किये हैं| तुर्की ने यदि बास्फोरस जलडमरूमध्य को बंद कर दिया तो श्याम सागर (Black Sea) के सारे देश तुर्की के विरुद्ध हो जायेंगे| पश्चिमी यूरोप के अनेक देशों में गृहयुद्ध की सी स्थिति हो रही है|
भगवान सबका मंगल करें| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०१ मार्च २०१८

बीते हुए कल २८फरवरी को :---

कल २८फरवरी को :---
(१) भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जिन्होनें दो कार्यकाल पूरे किये, का पुण्य स्मृति दिवस था (मृत्यु- 28 फ़रवरी, 1963, सदाकत आश्रम, पटना)| उन की सेवा-निवृति के पश्चात तत्कालीन भारत सरकार ने व्यक्तिगत द्वेष के कारण उनके लिए न तो कोई रहने की व्यवस्था की और न ही इलाज की| बेचारे दमा के मरीज थे और सदाकत आश्रम के एक सीलन भरे कमरे में रहने को बाध्य किये गए जहाँ बिना इलाज के ही अपनी बीमारी के कारण चल बसे| उनके अंतिम संस्कार में भारत सरकार की ओर से न तो कोई अति महत्वपूर्ण व्यक्ति गया और न ही किसी को जाने दिया गया था| देरी से ही सही आज उनको श्रद्धांजलि दे रहा हूँ|
(२) कल राष्ट्रीय विज्ञान दिवस था| प्रोफेसर सी.वी. रमन ने सन् 1928 में कोलकाता में एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक खोज की थी, जो 'रमन प्रभाव' के रूप में प्रसिद्ध है| रमण की यह खोज 28 फरवरी 1930 को प्रकाश में आई थी। इस कारण 28 फरवरी राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है|
(३) एक महान तपस्वी संत जिन का पूरा जीवन सनातन हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए समर्पित था, कांची कामकोटी पीठ के आचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती कल २८ फरवरी २०१८ को ब्रह्मलीन हुए| वे सनातन हिन्दू धर्म के एक स्तम्भ थे| आदि शंकराचार्य ने भारत की चार दिशाओं में चार पीठ स्थापित कर के अपने चार शिष्यों को वहाँ का आचार्य बनाया, और पाँचवीं पीठ कांची कामकोटी स्वयं के लिए स्थापित की थी| केदारनाथ में अल्पायु में ही वे ब्रह्मलीन हो गए थे| उन्हीं की परंपरा में स्वामी जयेंद्र सरस्वती जी कांची पीठ के शंकराचार्य थे| सनातन हिन्दू धर्म को अपमानित करने और हिन्दुओं में हीनता का बोध लाने के लिए केंद्र की कांग्रेस सरकार ने उन पर ह्त्या का झूठा आरोप लगाकर जेल में बंद भी करवाया था, पर अदालत में वे निर्दोष सिद्ध हुए|
(४) और भी अनेक महत्वपूर्ण घटनाएँ विश्व में कल घटित हुईं|
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पर दुर्भाग्य है इस देश का कि इस के चौथे स्तम्भ यानी समाचार मीडिया ने इस देश के लोगों को मूर्ख समझा और और पूरे दिन एक फ़िल्मी अभिनेत्री जिसके जीवन में कुछ भी आदर्श नहीं था, के शोक में आंसू बहाती रही| धिक्कार है ऐसी निम्नतम घटिया मीडिया पर| मीडिया के लिए और सरकार के लिए वह अभिनेत्री एक एक परम आदर्श रही होगी पर ऐसा घटिया आदर्श हिन्दू जनमानस को स्वीकार्य नहीं हो सकता| एक महान संत की मृत्यु के समाचार को गायब ही कर दिया गया| मैंने इन घटिया टीवी चैनलों पर समाचार न देखने का निर्णय ले लिया है|
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ॐ तत्सत्! ॐ ॐ ॐ !!
१ मार्च २०१८

लगता है अधिकांश समाज ही आजकल प्रेतबाधा से ग्रस्त है .....

लगता है अधिकांश समाज ही आजकल प्रेतबाधा से ग्रस्त है .....
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आसुरी शक्तियाँ प्रकृति में सर्वत्र हैं, विशेष रूप से अपवित्र स्थानों पर, जहाँ से जब कोई गुजरता है तब वह इनसे अवश्य प्रभावित होता है| हम लोगों का मन भी एक अपवित्र स्थान बन गया है जहाँ कोई न कोई असुर आकर बैठ गया है और हमारे ऊपर राज्य कर रहा है| आजकल आसुरी भाव समाज में कुछ अधिक ही व्याप्त है| भगवान की विशेष कृपा ही हमें इन आसुरी शक्तियों से बचा सकती हैं| कई बार हम ऐसी भयानक भूलें कर बैठते हैं कि स्वयं को विश्वास ही नहीं होता कि ऐसा भी हम कर सकते थे, फिर यह कैसे हुआ? कई बार प्राकृतिक आपदाओं में या ऐसे अपने आप ही हम लोग उन्मादग्रस्त होकर एक दूसरे को लूटने व मारने लगते हैं, जैसा कि भारत में आरक्षण आन्दोलनों में हुआ है| दो वर्ष पूर्व हरियाणा में हुए एक आरक्षण आन्दोलन में लगभग पूरा समाज ही आसुरी शक्तियों का शिकार हो गया था जब अधिकांश लोगों ने दूसरों को लूटना और उनकी सम्पत्तियाँ जलाना आरम्भ कर दिया था| कई बार ट्रेन दुर्घटनाओं में देखा गया है कि लोग दुर्घटनाग्रस्त लोगों की सहायता करने की बजाय उन्हें लूटना शुरू कर देते हैं| दुनियाँ में इतने युद्ध, लड़ाई-झगड़े और लूटपाट ये सब इन आसुरी शक्तियों के ही खेल हैं| भारत का विभाजन और उसके बाद हुई तीस लाख से अधिक हिन्दुओं की ह्त्या, अनगिनत मातृशक्ति पर हुए बलात्कार, और लाखों परिवारों का विस्थापन राक्षसी शक्तियों का ही खेल था|
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शराब पीने, मांस खाने, जूआ खेलने वाले, पराये धन और परस्त्री/पुरुष कि अभिलाषा करने वाले तामसिक विचारों के लोग शीघ्र ही सूक्ष्म जगत के असुरों के शिकार बन जाते हैं| आजकल उन्हीं का शासन विश्व पर चल रहा है| हम सब की मनोभूमि पर हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपू राज्य कर रहे हैं| हिरण्याक्ष का अर्थ है .... पराये धन पर दृष्टी| जो कैसे भी पराये धन को हड़पना चाहता है, वह हिरण्याक्ष है| हिरण्यकशिपू का अर्थ है .....जो निरंतर भोग-विलास और वासनाओं में लिप्त है| पृथ्वी पर इस समय इन्हीं का राज्य है| भगवान इनसे रक्षा करे|
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इन राक्षसों से से बचा कैसे जाए? इसका एकमात्र उपाय है .... हम निरंतर परमात्मा का स्मरण करें, वे ही हमारी रक्षा कर सकते हैं| अन्य कोई उपाय नहीं है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ फरवरी २०१८

मैं कर्ता हूँ या अकर्ता ? .....

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अति गंभीरता से विचारणीय एक महत्वपूर्ण विषय :---
गीता में भगवान कहते हैं.....
यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते | हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते ||१८:१७||
इसका भावार्थ यह है कि जिस पुरुष में अहंकार का भाव नहीं है और बुद्धि किसी (गुण दोष) से लिप्त नहीं होती, वह पुरुष इन सब लोकों को मारकर भी वास्तव में न मारता है और न (पाप, पुण्य से) बँधता है||
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आचार्य शंकर, आचार्य श्रीधर स्वामी, आचार्य मधुसुदन सरस्वती, योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी और परमहंस योगानंद जैसे अनेक महान आचार्यों ने उपरोक्त श्लोक की बहुत विस्तार से व्याख्या की है| वर्तमान परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में इसे समझना अति आवश्यक है|

सबसे अच्छी विधी तो यह होगी कि इस का स्वयं अध्ययन करो, फिर भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करो, और अंत में जो भी जैसा भी भगवान की कृपा से समझ में आये उसे स्वीकार कर लो|
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मैं कर्ता या अकर्ता हूँ ये दो प्रकार के मनोभाव हैं| अहंकारशून्य आत्मज्ञ पुरुष को ये दोनों ही भाव नहीं रहते| आत्मा के शुद्ध स्वरुप में कोई 'अध्यास' नहीं है| कौन भोक्ता है और और कौन कर्ता है, इसके समझने से पूर्व यह जान लें कि मैं कौन हूँ और मेरा स्वरुप क्या है|
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परमात्मा के साकार रूप आप सब को सप्रेम सादर नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ फरवरी २०१८
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पुनश्चः :-- "अध्यास", अद्वैत वेदांत का एक पारिभाषिक शब्द है| एक वस्तु में दूसरी वस्तु का भास 'अध्यास' कहलाता है|

मेरा परिचय .....

मेरा परिचय .....
मैं ध्रुव तारा हूँ मेरे ही विखंडित विचारों का,
मैं पथ-प्रदर्शक हूँ स्वयं के भूले हुए मार्ग का.
मैं अनंत, मेरे विचार अनंत,
मेरी चेतना अनंत और मेरा अस्तित्व अनंत.
मेरा केंद्र है सर्वत्र,
परिधि कहीं भी नहीं.
मेरे उस केंद्र में ही मैं स्वयं को खोजता हूँ,
बस यही मेरा परिचय है.
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शिवोहम् शिवोहम् अहम् ब्रह्मास्मि .
कृपा शंकर
२६ फरवरी २०१२

चित्त की वृत्तियों का निरोध एक साधन मात्र है, साध्य नहीं| साध्य तो परमात्मा है .....

चित्त की वृत्तियों का निरोध एक साधन मात्र है, साध्य नहीं| साध्य तो परमात्मा है .....
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"योगः चित्तवृत्तिनिरोधः"| शेषावतार भगवान पातंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है| चित्त की वृत्तियों को समझना एक बड़ा कठिन विषय है| हो सकता है इसका दस लाखवाँ भाग ही मैं समझ पाया हूँ| अतः इसे परमात्मा पर छोड़ रहा हूँ| जब उनकी इच्छा होगी तब वे स्वयं ही मुझे समझा देंगे| यदि वे अनावश्यक समझें तो नहीं समझाएँ, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता|
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योग तो एक साधन मात्र है, साध्य नहीं| साध्य तो परमात्मा हैं जो सदा साक्षात स्वयं मेरे समक्ष हैं| जब वे स्वयं मेरे हृदय में प्रत्यक्ष रूप से बिराजमान हैं और उन्होंने मुझे अपने हृदय में स्थान दे ही दिया है तो मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए| अंतःकरण के मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार का भी हरण उन्होंने कर लिया है| अब न तो कोई चित्त है और न ही उसकी कोई वृत्तियाँ हैं| सब कुछ तो परमात्मा स्वयं ही हैं| सारी साधनाओं के कर्ता भी वे ही हैं, मैं नहीं| मेरी पृथकता का बोध मिथ्या है| एक वे ही हैं, अन्य कोई दूसरा नहीं है| आत्मा नित्य मुक्त है| जैसे पुत्र पिता के बिना नहीं रह सकता, वैसे ही पिता भी पुत्र के बिना नहीं रह सकते| वे स्वयं को अपने मायावी आवरण में कितना भी छिपा लें पर अंततः करूणावश स्वयं को अनावृत कर ही देते हैं|
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अच्छा है भगवान ने मुझे बुद्धि नहीं दी| बुद्धि नहीं दी तो कुबुद्धि भी नहीं दी| अज्ञान-ज्ञान, मूर्खता-चतुरता, अविद्या-विद्या, बुराई-अच्छाई आदि जो कुछ भी उन्होंने दिया वह उनका प्रसाद है जो मुझे स्वीकार है| मैं प्रसन्न हूँ क्योंकि मुझे उन्होंने अपना प्रेम दिया है| और कुछ भी नहीं चाहिए| उनके प्रेम के अतिरिक्त मुझे अन्य कुछ चाहिए भी नहीं था|
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जब इस विषय पर चर्चा छिड़ ही गयी है तो उसका समापन भी करना ही पड़ेगा| थोड़ा बहुत जो मैं समझ पाया हूँ, उसके अनुसार चित्त स्वयं को श्वास-प्रश्वास और वासनाओं के रूप में प्रकट करता है| वासनाएँ तो अति सूक्ष्म हैं जिन्हें हम पकड़ नहीं सकते अतः श्वास-प्रश्वास के माध्यम से उन के निरोध का प्रयास करते हैं| कुछ योगी चंचल प्राण को स्थिर कर के मन को शांत करने का उपदेश देते हैं, पर प्राण तत्व को समझना इस समय तो मेरी क्षमता से परे है| अतः यह विषय यहीं छोड़ रहा हूँ|
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आध्यात्मिक साधनाओं के सारे उपदेश कृष्ण यजुर्वेद के श्वेताश्वतरोपनिषद में हैं| सारी साधनाओं का मूल श्रुतियों से है पर श्रुतियों को तो श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य के चरणों में बैठकर ही सीखा जा सकता है| ऐसे में वे समझ में नहीं आने वाली| अतः उनकी चर्चा यहाँ निरर्थक है| उनकी चर्चा श्रीगुरुचरणों में बैठकर ही करनी चाहिए|
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गीता तो पूरा ही योग का ग्रन्थ है| भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ......
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ||१२:४८||
भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर ने इसकी व्याख्या यूँ की है ....
"योगस्थः सन् कुरु कर्माणि केवलमीश्वरार्थम् तत्रापि ईश्वरो मे तुष्यतु इति सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय | फलतृष्णाशून्येन क्रियमाणे कर्मणि सत्त्वशुद्धिजा ज्ञानप्राप्तिलक्षणा सिद्धिः तद्विपर्ययजा असिद्धिः तयोः सिद्ध्यसिद्ध्योः अपि समः तुल्यः भूत्वा कुरु कर्माणि | कोऽसौ योगः यत्रस्थः कुरु इति उक्तम् इदमेव तत् सिद्ध्यसिद्ध्योः समत्वं योगः उच्यते ||"
अर्थात् ..... "हे धनंजय योगमें स्थित होकर केवल ईश्वरके लिय कर्म कर | उनमें भी ईश्वर मुझपर प्रसन्न हों, इस आशारूप आसक्तिको भी छोड़कर कर | फलतृष्णारहित पुरुषद्वारा कर्म किये जानेपर अन्तःकरणकी शुद्धिसे उत्पन्न होनेवाली ज्ञानप्राप्ति तो सिद्धि है और उससे विपरीत (ज्ञानप्राप्तिका न होना) असिद्धि है ऐसी सिद्धि और असिद्धिमें भी सम होकर अर्थात् दोनोंको तुल्य समझकर कर्म कर | वह कौनसा योग है जिसमें स्थित होकर कर्म करनेके लिये कहा है यही जो सिद्धि और असिद्धिमें समत्व है इसीको योग कहते हैं |"
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भगवान श्रीकृष्ण ने योग के बारे में यह भी कहा है .....
"बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते |
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् "||२:५०||
इस पर भगवान आचार्य शंकर की व्याख्या है :---
"बुद्धियुक्तः कर्मसमत्वविषयया बुद्ध्या युक्तः बुद्धियुक्तः सः जहाति परित्यजति इह अस्मिन् लोके उभे सुकृतदुष्कृते पुण्यपापे सत्त्वशुद्धिज्ञानप्राप्तिद्वारेण यतः तस्मात् समत्वबुद्धि योगाय युज्यस्व घटस्व | योगो हि कर्मसु कौशलम् स्वधर्माख्येषु कर्मसु वर्तमानस्य या सिद्ध्यसिद्ध्योः समत्वबुद्धिः ईश्वरार्पितचेतस्तया तत् कौशलं कुशलभावः | तद्धि कौशलं यत् बन्धनस्वभावान्यपि कर्माणि समत्वबुद्ध्या स्वभावात् निवर्तन्ते | तस्मात्समत्वबुद्धियुक्तो भव त्वम्" ||
अर्थात् ..... "समत्वबुद्धिसे युक्त होकर स्वधर्माचरण करनेवाला पुरुष जिस फलको पाता है वह सुन | समत्वयोगविषयक बुद्धिसे युक्त हुआ पुरुष अन्तःकरणकी शुद्धिके और ज्ञानप्राप्तिके द्वारा सुकृतदुष्कृतको पुण्यपाप दोनोंको यहीं त्याग देता है इसी लोकमें कर्मबन्धनसे मुक्त हो जाता है | इसलिये तू समत्वबुद्धिरूप योगकी प्राप्तिके लिये यत्न कर चेष्टा कर | क्योंकि योग ही तो कर्मोंमें कुशलता है अर्थात् स्वधर्मरूप कर्ममें लगे हुए पुरुषका जो ईश्वरसमर्पित बुद्धिसे उत्पन्न हुआ सिद्धिअसिद्धिविषयक समत्वभाव है वही कुशलता है | यही इसमें कौशल है कि स्वभावसे ही बन्धन करनेवाले जो कर्म हैं वे भी समत्व बुद्धिके प्रभावसे अपने स्वभावको छोड़ देते हैं अतः तू समत्वबुद्धिसे युक्त हो |"
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इससे अधिक कुछ कहना मेरे लिए कृतघ्नता होगा| हे मेरे मन, अब तुम परमशिव का निरंतर ध्यान करो| उसी में तुम्हारा कल्याण है| वे ही ज्ञान के स्त्रोत हैं| अब इस विषय पर और चर्चा नहीं करूंगा|
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आप सब निजात्मगण में भगवान नारायण को नमन ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ फरवरी २०१८

जातिवाद को समाप्त करने के दो ही मार्ग हैं ........

जातिवाद समाप्त कैसे हो? जातिवाद को समाप्त करने के दो ही मार्ग हैं ........
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(१) हर तरह के जातिगत आरक्षण को समाप्त कर, यानि किसी भी सरकारी दस्तावेज पर जाति के उल्लेख पर प्रतिबन्ध लगाकर| भारत में जातिवाद अब तक प्रभावहीन हो गया होता यदि सरकारें और राजनीतिक दल इसको बढ़ावा नहीं देते| जब तक वोटबैंक की राजनीति रहेगी तब तक जातिवाद रहेगा| किसी भी सरकारी दस्तावेज पर जाति का उल्लेख प्रतिबंधित हो और कोई जातिगत आरक्षण न हो, तब जातिवाद अपनी मौत खुद मर जायेगा|
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(३) दूसरा मार्ग है कि जितने भी अनारक्षित वर्ग के लोग हैं उन सब को एक स्थान पर एकत्र कर के उन पर एक अणु बम डाल दिया जाए क्योंकि वे अब तक बहुत अधिक अपमान झेल चुके हैं, और वे इस देश को छोड़कर अन्यत्र कहीं जा भी नहीं सकते|

अंग्रेजों द्वारा रचित एक झूठा इतिहास सब को पढ़ाया जा रहा है कि एक वर्ग ने दूसरे वर्ग पर बहुत अधिक अत्याचार किया है| मार्क्सवादियों ने इस झूठ को बढ़ावा दिया क्योंकि मार्क्सवाद का जन्म और संरक्षण ही वर्गसंघर्ष से होता है|

भारत पर पिछले एक सहस्त्र वर्षों तक विदेशी लुटेरे आक्रमणकारियों ने राज्य किया और वे सभी को अपने मत में मतांतरित करना चाहते थे| समाज के जिन वर्गों ने उनका सबसे अधिक प्रतिकार किया उन सब वर्गों को उन्होंने दलित बना दिया|

वर्त्तमान परिस्थितियों से तो लगता है कि जीने का अधिकार सिर्फ आरक्षित वर्ग को और तथाकथित अल्पसंख्यक वर्ग को ही है| सामान्य वर्ग को अणुबम से मिटा दो, तब न रहेगा बाँस और न बजेगी बांसुरी|

सामान्य वर्ग के लोग अपनी व्यथा कहीं कह भी नहीं सकते| भगवान के सिवा उनका और कोई नहीं है| जब कोई सवर्ण ही नहीं रहेगा तब किसी को कोई ईर्ष्या-द्वेष भी नहीं रहेगा|

इन तथाकथित उच्च जातियों में ऊँचा क्या है ? यह मेरी तो समझ से परे है|
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भगवान सब को विवेक दे| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ फरवरी २०१८