हे प्रियतम परमशिव, इस हृदय की अभीप्सा, अतृप्त प्यास, परम वेदना और
तीव्रतम तड़प जो मात्र तुम्हारे लिए है, परम आनंददायी है| वह कभी शांत न हो|
उसकी प्रचंड अग्नि सदा प्रज्ज्वलित रहे|
इस हृदय मंदिर के सारे दीप अपने आप जल उठे हैं, सारे द्वार अपने आप खुल गए हैं, और उस के सिंहासन पर तुम स्वयं बिराजमान हो| तुम्हारे प्रकाश से "मैं" यानि यह समष्टि आलोकित है| चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश है, कहीं कोई अन्धकार नहीं है|
यह तुम ही हो जो यह "मैं" बन गया है| अब पाने को या होने को बचा ही क्या है? सब कुछ तो तुम्हारा ही संकल्प है| यह देह भी तुम्हारी ही है जो तुम्हारे ही प्राणों से जीवंत है| तुम्हारे सिवा अन्य कोई नहीं है| जो कुछ भी है वह अनिर्वचनीय स्वयं तुम हो| मैं नहीं, सिर्फ तुम हो, हे परमशिव !
इस हृदय मंदिर के सारे दीप अपने आप जल उठे हैं, सारे द्वार अपने आप खुल गए हैं, और उस के सिंहासन पर तुम स्वयं बिराजमान हो| तुम्हारे प्रकाश से "मैं" यानि यह समष्टि आलोकित है| चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश है, कहीं कोई अन्धकार नहीं है|
यह तुम ही हो जो यह "मैं" बन गया है| अब पाने को या होने को बचा ही क्या है? सब कुछ तो तुम्हारा ही संकल्प है| यह देह भी तुम्हारी ही है जो तुम्हारे ही प्राणों से जीवंत है| तुम्हारे सिवा अन्य कोई नहीं है| जो कुछ भी है वह अनिर्वचनीय स्वयं तुम हो| मैं नहीं, सिर्फ तुम हो, हे परमशिव !
|| शिवोSहं शिवोSहं शिवोSहं || ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२७ मार्च २०१८
२७ मार्च २०१८