Monday 26 March 2018

एक छोटी सी अनुभूति .....

हे प्रियतम परमशिव, इस हृदय की अभीप्सा, अतृप्त प्यास, परम वेदना और तीव्रतम तड़प जो मात्र तुम्हारे लिए है, परम आनंददायी है| वह कभी शांत न हो| उसकी प्रचंड अग्नि सदा प्रज्ज्वलित रहे|

इस हृदय मंदिर के सारे दीप अपने आप जल उठे हैं, सारे द्वार अपने आप खुल गए हैं, और उस के सिंहासन पर तुम स्वयं बिराजमान हो| तुम्हारे प्रकाश से "मैं" यानि यह समष्टि आलोकित है| चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश है, कहीं कोई अन्धकार नहीं है|

यह तुम ही हो जो यह "मैं" बन गया है| अब पाने को या होने को बचा ही क्या है? सब कुछ तो तुम्हारा ही संकल्प है| यह देह भी तुम्हारी ही है जो तुम्हारे ही प्राणों से जीवंत है| तुम्हारे सिवा अन्य कोई नहीं है| जो कुछ भी है वह अनिर्वचनीय स्वयं तुम हो| मैं नहीं, सिर्फ तुम हो, हे परमशिव !

|| शिवोSहं शिवोSहं शिवोSहं || ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२७ मार्च २०१८

भारत का कल्याण सिर्फ "धर्म" से ही हो सकता है .....

भारत का कल्याण सिर्फ "धर्म" से ही हो सकता है .....
.
भारत एक आध्यात्मिक देश है जिसका प्राण ...'धर्म' ... है| भारत सदा धर्मसापेक्ष रहा है, वह कभी धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता| भारत की आत्मा 'धर्म' है| 'धर्म' सनातन है, और इसकी सर्वाधिक अभिव्यक्ति भारतवर्ष में हुई है| श्रीअरविन्द के शब्दों में 'सनातन धर्म' भारत है और भारत 'सनातन धर्म' है| भारत का भविष्य 'सनातन धर्म' पर निर्भर है, इस पृथ्वी का भविष्य भारत के भविष्य पर निर्भर है, और इस सृष्टि का भविष्य इस पृथ्वी के भविष्य पर निर्भर है| भारत की राजनीति भी सनातन धर्म ही हो सकती है| भारत में 'धर्म' को नष्ट करने हेतु किये जा रहे मर्मान्तक प्रहार इस सभ्यता और सृष्टि का नाश कर देंगे| 'धर्म' को तो भगवान कभी नष्ट नहीं होने देंगे|
.
धर्म को नष्ट करने के प्रयासों का जन्म मनुष्य की वासनाओं से होता है| ये वासनाएँ हैं -- लोभ, अहंकार, कामुकता, विलासिता, मोह व ईर्ष्या आदि| ये जन्म जन्मान्तरों में एकत्र होकर मनुष्य के चित्त में गहराई से बैठ जाती हैं और अवसर मिलते ही प्रकट हो जाती हैं| ये ही चित्त की वृत्तियाँ हैं जिनके निरोध को 'योग' कहा गया है| इन वासनाओं पर संकल्प शक्ति द्वारा नियन्त्रण नहीं किया जा सकता| ये दूर होती है ब्रह्मज्ञान से| ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है अहैतुकी परमप्रेमरूपा भक्ति, अष्टांगयोग साधना, शरणागति, समर्पण, स्वाध्याय और हरिकृपा से| गीता ब्रह्मज्ञान का ग्रन्थ है|
.
हम सब की समष्टि दृष्टि होनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत दृष्टी| ईश्वर की सर्वव्यापकता और पूर्णता पर ही ध्यान और समर्पण होना चाहिए| अपनी दूष्टि को व्यक्तिगत रखेंगे तो उन्नति कभी नहीं होगी| जब समाज की उन्नति का आधार व्यक्ति नहीं ब्रह्म ज्ञान बनेगा तभी समाज की उन्नति होगी| समाज और देश का कल्याण केवल ब्रह्म ज्ञान से ही हो सकता है| हम सब ब्रह्म-चिन्तन के अनुगामी बनें| सबके मंगल में ही अपना मंगल है|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मार्च २०१६

आध्यात्मिक होली पंचमुखी महादेव के साथ .......

आध्यात्मिक होली पंचमुखी महादेव के साथ .......
.
गहन ध्यान में अपनी प्राण चेतना को मेरुदंड में सुषुम्ना के माध्यम से मेंरुशीर्ष तक ले आयें| अपना ध्यान कूटस्थ केंद्र पर रखें| साधना में प्रगति के अनुसार कूटस्थ केंद्र भ्रूमध्य में भी हो सकता है, या सहस्त्रार में या सहस्त्रार से ऊपर भी हो सकता है| कुछ देर में अनेक प्रकार के आध्यात्मिक रंग और ध्वनियाँ सुनने लगेंगी| सबसे तीब्र ध्वनी को सुनिए और मानसिक रूप से ॐ ॐ ॐ का जप करते रहें| "चारूस्थितं सोमकलावतंशं वीणाधरं व्यक्तजटाकलापं| उपासते केचन योगिनस्तन् उपात्तनादानुभव प्रमोदं|| (दक्षिणामूर्ति स्तोत्र) यही नादानुसंधान है|
.
उन आध्यात्मिक रंगों के साथ होली खेलिए| धीरे धीरे एक स्वर्णिम और तत्पश्चात नीली आभा को भेदकर हमें एक विराट श्वेत ज्योति के दर्शन होंगे जो एक श्वेत पञ्चकोणीय नक्षत्र में परिवर्तित हो जायेगी| ये ही पंचमुखी महादेव हैं| अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को उनमें समर्पित कर दो| हमारा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है| आध्यात्मिक ध्वनियाँ प्रणव नाद में परिवर्तित हो जायेंगी| उनका आनंद लीजिये| यही वास्तविक आनंद है|
.
जहाँ अहंकार जागृत हो जाए वह हिरण्यकशिपू की चेतना है| अपनी परम प्रेम रूपा भक्ति यानि प्रहलाद को उस अहंकार रुपी हिरण्यकशिपू से बचाइये और अपने परम शिव चैतन्य में रहिये|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मार्च २०१३