Friday 7 December 2018

जीवन का हर क्षण परमात्मा का आशीर्वाद है .....

जीवन का हर क्षण परमात्मा का आशीर्वाद है .....
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आज प्रातः उठते ही यह देखकर मन बड़ा प्रसन्न हुआ कि नित्य की तरह आज भी मैं परमात्मा की कृपा से परमात्मा का ही चिंतन, मनन और ध्यान करने के लिए जीवित हूँ| यह जीवन जीने के लिए परमात्मा ने दिया है, और वे ही इस जीवन को जी रहे हैं| आज का दिन ही नहीं अपितु हर दिन जीवन का श्रेष्ठतम दिन है, और बीते हुए दिन से अधिक अच्छा होगा| गुरु व परमात्मा को प्रणाम कर थोड़ी देर उनका ध्यान किया| अब कुछ व्यायाम करूँगा और पास के ही एक बगीचे में घूमने जा रहा हूँ| आधा घंटा वहाँ घूमूँगा और मतदान केंद्र पर सबसे पहिले पहुँच कर ठीक प्रातः ८ बजे (राज्य विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव में) अपने विवेक से मतदान करूँगा जो मेरा राष्ट्रीय दायित्व है|
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प्रातःकाल स्वयं को जीवित पाना परमात्मा का एक आशीर्वाद है| यह जीवन परमात्मा द्वारा उन्हीं की उपासना के लिए दिया हुआ एक सुअवसर है, जिसे वे स्वयं ही जीते हैं| जीवन का हर क्षण आनंद है| पूरा ह्रदय प्रेम से भर गया है|
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आनंद ही आनंद है आनंद में रहेंगे,
कल क्या हुआ कल क्या होगा चिंता नहीं करेंगे.
हम रामजी के रामजी हमारे ही रहेंगे,
कल क्या हुआ कल क्या होगा चिंता नहीं करेंगे..
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चिंता करने के लिए माँ भगवती के रूप में स्वयं परमात्मा हैं| चिंता करना उनका काम है| उन्होंने अपने चरणों में आश्रय दे दिया है, यही क्या कम है ?
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||
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हे प्रभु, तुम्हारा इतना चिंतन करने का सामर्थ्य दो कि सब चिंताएँ तुम्हारी ही हो जायें|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! हर हर महादेव !
कृपा शंकर
७ दिसंबर २०१८

हम एक कण नहीं अपितु सम्पूर्ण प्रवाह हैं ....

हम एक कण नहीं अपितु सम्पूर्ण प्रवाह हैं ....
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सागर की लहरें उठती हैं, गिरती हैं, फिर उठती हैं और निरंतर प्रवाहित होती रहती हैं| उनमें अनंत कण हैं जल के| यह समस्त सृष्टि भी एक प्रवाह है| कुछ भी स्थिर नहीं है| सब कुछ गतिशील है| इसके पीछे एक अनंत ऊर्जा है| उस अनंत ऊर्जा का सतत प्रवाह ही यह सृष्टि है| वह सम्पूर्ण प्रवाह हम स्वयं ही हैं|
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हम एक कण नहीं अपितु सम्पूर्ण प्रवाह हैं| सम्पूर्ण प्रवाह ही नहीं यह महासागर भी हम स्वयं ही हैं| उसके पीछे की समस्त ऊर्जा और विचार भी हम स्वयं ही हैं| रात्रि की नि:स्तब्धता में सृष्टि और प्रकृति का जो अनंत विस्तार दिखाई देता है, वह अनंतता भी हम ही हैं|
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दिन का प्रकाश और रात्रि का अन्धकार हम ही हैं| प्रकृति का सौंदर्य, फूलों की महक, पक्षियों की चहचहाहट, सूर्योदय और सूर्यास्त, प्रकृति की सौम्यता और विकरालता सब कुछ हम ही हैं| दुनिया की सारी भागदौड़, सारी चाहतें, अपेक्षाएँ और कामनाएँ भी हम ही हैं| सारा विस्तार हमारा ही विस्तार है|
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सर्वव्यापकता, सर्वशक्तिमता, सर्वज्ञता, सारे विचार, सारे दृश्य और सम्पूर्ण अस्तित्व ..... हम से परे कुछ भी अन्य नहीं है| जो कुछ भी परमात्मा का है वह सब हम ही है| उस होने पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| हम उसके अमृतपुत्र हैं, हम यह देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं|
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परमात्मा को अपने भीतर प्रवाहित होने दो| फिर उस प्रवाह में सब कुछ समर्पित कर दो| कहीं पर भी कोई अवरोध नहीं होना चाहिए| जो भी अवरोध आये उसे ध्वस्त कर दो| परमात्मा से पृथकता ही सब दु:खों का कारण है| अन्य कोई कारण नहीं है| उससे जुड़ाव ही आनंद है| बाकि सारी खोज एक मृगमरीचिका है जिसकी परिणिति मृत्यु है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
५ दिसंबर २०१७

"उपासना" "तैलधारा" के समान अखंड हो .....

"उपासना" "तैलधारा" के समान अखंड हो .....
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तेल को एक पात्र से जब दूसरे में डालते हैं तब उसकी धारा अखंड रहती है, बीच बीच में टूटती नहीं है, वैसी ही हमारी साधना होनी चाहिए| गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते| सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम्||१२:३||"
आचार्य शंकर ने अपने भाष्य में इस श्लोक की बहुत विस्तृत टीका की है| वह टीका और उसका हिंदी में अनुवाद बहुत बड़ा है जिसे यहाँ इस लेख में प्रस्तुत करना मेरे लिए असम्भव है| अपने भाष्य में इस श्लोक की विवेचना में आचार्य शंकर ने 'उपासना' को 'तैलधारा' के समान बताया है|
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उपासना का शाब्दिक अर्थ है .... समीप बैठना| हमें किसके समीप बैठना चाहिए? मेरी चेतना में एक ही उत्तर है ... गुरु रूप ब्रह्म के| गुरु रूप ब्रह्म के सिवाय अन्य किसी का अस्तित्व चेतना में होना भी नहीं चाहिए| यहाँ यह भी विचार करेगे कि गुरु रूप ब्रह्म क्या है|
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शंकर भाष्य के अनुसार "उपास्य वस्तु को शास्त्रोक्त विधि से बुद्धि का विषय बनाकर, उसके समीप पहुँचकर, तैलधारा के सदृश समान वृत्तियों के प्रवाह से दीर्घकाल तक उसमें स्थिर रहने को उपासना कहते हैं"| 
यहाँ उन्होंने "तैलधारा" शब्द का प्रयोग किया है जो अति महत्वपूर्ण है| तैलधारा के सदृश समानवृत्तियों का प्रवाह क्या हो सकता है? पहले इस पर विचार करना होगा|
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योगियों के अनुसार ध्यान साधना में जब प्रणव यानि अनाहत नाद की ध्वनी सुनाई देती है तब वह तैलधारा के सदृश अखंड होती है| प्रयोग के लिए एक बर्तन में तेल लेकर उसे दुसरे बर्तन में डालिए| जिस तरह बिना खंडित हुए उसकी धार गिरती है वैसे ही अनाहत नाद यानि प्रणव की ध्वनी सुनती है| प्रणव को परमात्मा का वाचक यानि प्रतीक कहा गया है| यह प्रणव ही कूटस्थ अक्षर ब्रह्म है|
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समानवृत्ति क्या हो सकती है? जहाँ तक मैं समझता हूँ इसका अर्थ है श्वास-प्रश्वास और वासनाओं की चेतना से ऊपर उठना| चित्त स्वयं को श्वास-प्रश्वास और वासनाओं के रूप में व्यक्त करता है| अतः समानवृत्ति शब्द का यही अर्थ हो सकता है|
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मेरी सीमित अल्प बुद्धि के अनुसार "उपासना" का अर्थ .... हर प्रकार की चेतना से ऊपर उठकर ओंकार यानि अनाहत नाद की ध्वनी को सुनते हुए उसी में लय हो जाना है| मेरी दृष्टी में यह ओंकार ही गुरु रूप ब्रह्म है|
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योगी लोग तो ओंकार से भी शनेः शनेः ऊपर उठने की प्रेरणा देते हैं क्योंकि ओंकार तो उस परम शिव का वाचक यानि प्रतीक मात्र है जिस पर हम ध्यान करते हैं| हमारी साधना का उद्देश्य तो परम शिव की प्राप्ति है| उपासना तो साधन है, पर उपास्य यानि साध्य हैं ..... परम शिव| उपासना का उद्देश्य उपास्य के साथ एकाकार होना ही है| "उपासना" और "उपनिषद्" दोनों का अर्थ एक ही है| प्रचलित रूप में परमात्मा की प्राप्ति के किसी भी साधन विशेष को "उपासना" कहते हैं|
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व्यवहारिक रूप से किसी व्यक्ति में कौन सा गुण प्रधान है उससे वैसी ही उपासना होगी| उपासना एक मानसिक क्रिया है| उपासना निरंतर होती रहती है| मनुष्य जैसा चिंतन करता है वैसी ही उपासना करता है| तमोगुण की प्रधानता अधिक होने पर मनुष्य परस्त्री/परपुरुष व पराये धन की उपासना करता है जो उसके पतन का कारण बनती है| चिंतन चाहे परमात्मा का हो या परस्त्री/पुरुष का, होता तो उपासना ही है| रजोगुण प्रधान व सतोगुण प्रधान व्यक्तियों की उपासना भी ऐसे ही अलग अलग होगी| हमें तो इन तीनों गुणों से भी ऊपर उठना है|
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अतः एक उपासक को सर्वदा सत्संग करना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में कुसंग का त्याग करना चाहिए क्योंकि संगति का असर पड़े बिना रहता नहीं है| मनुष्य जैसे व्यक्ति का चिंतन करता है वैसा ही बन जाता है| योगसूत्रों में एक सूत्र आता है ..... "वीतराग विषयं वा चित्तः", इस पर गंभीरता से विचार करें|
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उपासना के लिए व्यक्त तथा अव्यक्त दोनों आधार मान्य हैं| जीव वस्तुत: शिव ही है, परंतु अज्ञान के कारण वह इस प्रपंच के पचड़े में पड़कर भटकता फिरता है। अत: ज्ञान के द्वारा अज्ञान की ग्रंथि का भेदन कर अपने परम शिवत्व की अभिव्यक्ति करना ही उपासना का लक्ष्य है|
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जब ह्रदय में परमप्रेम उदित होता है तब भगवान किसी गुरु के माध्यम से मार्गदर्शन देते हैं| गुरु ही इस देहरूपी नौका के कर्णधार होते हैं| गीता और सारे उपनिषद ओंकार की महिमा से भरे पड़े हैं| अतः मुझ जैसे अकिंचन व अल्प तथा सीमित बुद्धि वाले व्यक्ति के लिए स्वभाववश और गुरु महाराज की स्पष्ट आज्ञा से भी ओंकार रूपी अनाहत नाद (कूटस्थ अक्षरब्रह्म) का ध्यान में तैलधारा के सदृश निरंतर श्रवण, और कूटस्थ ब्रह्मज्योति का निरंतर दर्शन ही उपासना है| यह कूटस्थ ही गुरुरूप ब्रह्म है|
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ॐ गुरुभ्यो नमः ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ दिसंबर २०१८

"भारतीय नौसेना दिवस" पर सभी पूर्व वयोवृद्ध व वर्तमान सेवारत नौसैनिकों का अभिनन्दन ......

"भारतीय नौसेना दिवस २०१८" पर सभी पूर्व वयोवृद्ध व वर्तमान सेवारत नौसैनिकों का अभिनन्दन ......
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४ दिसंबर १९७१ को Operation Trident नामक अभियान चलाकर नौसेना ने पाकिस्तान के कराची बन्दरगाह पर सफल आक्रमण किया था| उस दिन की स्मृति में हर वर्ष ४ दिसंबर को नौ सेना दिवस मनाया जाता है| इस हमले में पाकिस्तान के कई जहाज नष्ट कर दिए गए थे| कराची का तेल डिपो सात दिन तक लगातार जलता रहा| कराची के तेल टैंकरों में लगी आग की लपटों को ६० किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता था|
उस समय बंगाल की खाड़ी में भी नौसेना ने बहुत प्रशंसनीय कार्य किया था| नौसेना ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के समुद्री मार्ग को अवरुद्ध कर दिया था और पाकिस्तान की एक पनडुब्बी को विशाखापट्टनम के बाहर डुबा दिया|
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ब्रिटिश भारतीय नौसेना का भारत की स्वतन्त्रता में निर्णायक योगदान ....
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भारत की स्वतन्त्रता में तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय नौसेना का बहुत बड़ा निर्णायक योगदान था| सन १९४६ में तत्कालीन रॉयल इंडियन नेवी के नौसैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था जिसमें सभी अँगरेज़ अधिकारियों को कोलाबा में बंद कर उनके चारों ओर बारूद लगा दी थी| नौसैनिकों ने भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में प्रदर्शन भी किया और बंबई (मुंबई) की सारी जनता नौसैनिकों के पक्ष में आ गयी थी| भारतीय सिपाहियों ने अन्ग्रेज़ अधिकारियों के आदेश मानने बंद कर दिए| इस घटना से अँगरेज़ इतना डर गये थे की उन्होंने भारत छोड़ने का निर्णय ले लिया|
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भारत को आज़ाद करने का जो आधिकारिक कारण ब्रिटिश संसद में वहाँ के प्रधानमंत्री ने जो बताया वह यह था कि .....
........ हिन्दुस्तानी भाड़े के सैनिकों ने अँगरेज़ अधिकारियों का आदेश मानने से मना कर दिया है और द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात ब्रिटिश सेना इतनी बुरी तरह टूट चुकी है कि उनमें भाड़े की हिन्दुस्तानी फौज को काबू में रखने का सामर्थ्य नहीं है| ......
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अँगरेज़ एक तो क्रांतिकारियों से, और नेताजी सुभाष बोस द्वारा आज़ाद हिन्द फौज के गठन से ही डरे हुए थे| फिर नौसेना के विद्रोह से तो बिलकुल ही डर गए थे| भारतीय सैनिकों ने अँगरेज़ अधिकारियों को सलामी देना और उनका आदेश मानना बंद कर दिया था| अँगरेज़ समझ गए कि भारत में कुछ समय और रहे तो उन्हें मार-पीट कर और धक्का देकर भगा दिया जाएगा| इसलिए वे भारत के टुकड़े कर सत्ता अपने मानस पुत्रों को सौंप कर चले गए|
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हमें झूठा इतिहास पढाया जाता है कि .... दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल ..... जो कि भारत के इतिहास का सबसे बड़ा झूठ है|
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भारत माता की जय | वन्दे मातरम् |
कृपा शंकर
४ दिसंबर २०१८

राष्ट्र हित सर्वोपरि...

राष्ट्र हित सर्वोपरि...
आज राष्ट्र की स्थिति अत्यधिक विस्फोटक और चिंताजनक है| इस पर मैनें कई मनीषियों के साथ गंभीर चिंतन भी किया है| मेरे विचार यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ .....
जो परिवर्तन लाना है वह तो भगवान ही लायेंगे, मैं तो एक निमित्त मात्र हूँ| आध्यात्मिक उपासना करनी होगी उसके लिए| 
वह कौन करेगा? क्या मुझे ही करनी होगी?
नहीं, मुझे निमित्त बनाकर स्वयं भगवान ही करेंगे|
फिर जो परिवर्तन लाना है वह तो स्वयं सृष्टिकर्ता भगवान ही लायेंगे| स्वयं की उपासना भी वे स्वयं ही करेंगे| मैं तो उनका एक उपकरण मात्र हूँ, मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है| मैं सिर्फ समर्पण ही कर सकता हूँ, इसके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ दिसंबर २०१८

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः .....

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः ..... (यजुर्वेद ९:२३)
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अर्थात् "हम पुरोहित राष्ट्र को जीवंत ओर जाग्रत बनाए रखेंगे"| पुरोहित का अर्थ होता है जो इस पुर का हित करता है| प्राचीन भारत में शायद ऐसे व्यक्तियों को पुरोहित कहते थे जो राष्ट्र का दूरगामी हित समझकर उसकी प्राप्ति की व्यवस्था करते थे| पुरोहित में चिन्तक और साधक दोनों के गुण होते हैं, जो सही परामर्श दे सकें| हे पुरोहितो, इस राष्ट्र में जागृति लाओ और इस राष्ट्र की रक्षा करो| 
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ऋग्वेद का प्रथम मन्त्र है ..... "अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् | होतारं रत्नधातमम् ||"
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मैं यहाँ आध्यात्मिक दृष्टी से नहीं भौतिक दृष्टी से बात कर रहा हूँ, इसलिए मेरी बातों को कोई अन्यथा न ले| फेसबुक पर अपने विचारों से ज़रा सी भी असहमति होते ही लोग बिना पूरा लेख पढ़े, लेखक के भावों को समझे बिना ही दुर्वचनों और गालियों की बौछार कर देते हैं| ऐसे लोग मुझे अपने मित्रता-संकुल से बाहर कर दें तो उनकी बड़ी कृपा होगी|
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भौतिक दृष्टी से इस पृथ्वी के देवता अग्नि हैं| भूगर्भ में जो अग्नि रूपी ऊर्जा (geothermal energy) है, उस ऊर्जा, और सूर्य की किरणों से प्राप्त ऊर्जा से ही पृथ्वी पर जीवन है| वह अग्नि ही हमें जीवित रखे हुए है| इस पृथ्वी से हमें जो भी धातुएं और रत्न प्राप्त होते हैं वे इस भूगर्भीय अग्नि रूपी ऊर्जा से ही निर्मित होते हैं| अतः यह ऊर्जा यानी अग्नि ही इस पृथ्वी के देवता हैं, वे अग्निदेव ही इस पृथ्वी के पुरोहित हैं, ऐसी मेरी सोच है|
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जैसा मैं समझता हूँ ऊर्जा को ही अग्नि का नाम दिया हुआ है| हमारे विचारों और संकल्प के पीछे भी एक ऊर्जा है| ऐसे ऊर्जावान व्यक्तियों को ही हम पुरोहित कह सकते हैं जो अपने संकल्पों, विचारों व कार्यों से हमारा हित करने में समर्थ हों| ऐसे लोगों को ही मैं निवेदन करता हूँ कि वे इस राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
३ दिसंबर २०१८

संत गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा रामजन्मभूमि विध्वंश का वर्णन .....

संत गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा रामजन्मभूमि विध्वंश का वर्णन .....
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(साभार: Arun Lavania) संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने "दोहा शतक" 1590 मे लिखा था। इसके आठ दोहे , 85 से 92, में मंदिर के तोड़े जाने का स्पष्ट वर्णन है। इसे रायबरेली के तालुकदार राय बहादुर बाबू सिंह जी 1944 में प्रकाशित किया।यह राम जंत्रालय प्रेस से छपा।यह एक ही बार छपा और इसकी एक कौपी जौनपुर के शांदिखुर्द गांव में उपलब्ध है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जब बहस शुरू हुयी तो श्री रामभद्राचार्य जी को Indian Evidence Act के अंतर्गत एक expert witness के तौर पर बुलाया गया और इस सवाल का उत्तर पूछा गया। उन्होंने कहा कि यह सही है कि श्री रामचरित मानस में इस घटना का वर्णन नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने इसका वर्णन अपनी अन्य कृति 'तुलसी दोहा शतक' में किया है जो कि श्री रामचरित मानस से कम प्रचलित है।
अतः यह कहना गलत है कि तुलसी दास जी ने जो कि बाबर के समकालीन भी थे, राम मंदिर तोड़े जाने की घटना का वर्णन नहीं किया है और जहाँ तक राम चरित मानस कि बात है उसमे तो कहीं भी मुग़लों की भी चर्चा नहीं है इसका मतलब ये निकाला जाना गलत होगा कि तुलसीदास के समय में मुगल नहीं रहे।
गोस्वामी जी ने 'तुलसी दोहा शतक' में इस बात का साफ उल्लेख किया है कि किस तरह से राम मंदिर को तोड़ा गया .....
मंत्र उपनिषद ब्रह्माण्हू बहु पुराण इतिहास।
जवन जराए रोष भरी करी तुलसी परिहास।।
सिखा सूत्र से हीन करी, बल ते हिन्दू लोग।
भमरी भगाए देश ते, तुलसी कठिन कुयोग।।
सम्बत सर वसु बाण नभ, ग्रीष्म ऋतू अनुमानि।
तुलसी अवधहि जड़ जवन, अनरथ किये अनमानि।।
रामजनम महीन मंदिरहिं, तोरी मसीत बनाए।
जवहि बहु हिंदुन हते, तुलसी किन्ही हाय।।
दल्यो मीरबाकी अवध मंदिर राम समाज।
तुलसी ह्रदय हति, त्राहि त्राहि रघुराज।।
रामजनम मंदिर जहँ, लसत अवध के बीच।
तुलसी रची मसीत तहँ, मीरबांकी खाल नीच।।
रामायण घरी घंट जहन, श्रुति पुराण उपखान।
तुलसी जवन अजान तहँ, कइयों कुरान अजान।।
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दोहा अर्थ सहित नीचे पढ़ें।
(1) राम जनम महि मंदरहिं, तोरि मसीत बनाय ।
जवहिं बहुत हिन्दू हते, तुलसी किन्ही हाय ॥
जन्मभूमि का मन्दिर नष्ट करके, उन्होंने एक मस्जिद बनाई । साथ ही तेज गति उन्होंने बहुत से हिंदुओं की हत्या की । इसे सोचकर तुलसीदास शोकाकुल हुये ।
(2) दल्यो मीरबाकी अवध मन्दिर रामसमाज ।
तुलसी रोवत ह्रदय हति हति त्राहि त्राहि रघुराज ॥
मीरबकी ने मन्दिर तथा रामसमाज (राम दरबार की मूर्तियों) को नष्ट किया । राम से रक्षा की याचना करते हुए विदिर्ण ह्रदय तुलसी रोये ।
(3) राम जनम मन्दिर जहाँ तसत अवध के बीच ।
तुलसी रची मसीत तहँ मीरबाकी खाल नीच ॥
तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या के मध्य जहाँ राममन्दिर था वहाँ नीच मीरबकी ने मस्जिद बनाई ।
(4) रामायन घरि घट जँह, श्रुति पुरान उपखान ।
तुलसी जवन अजान तँह, कइयों कुरान अज़ान ॥
श्री तुलसीदास जी कहते है कि जहाँ रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से सम्बंधित प्रवचन होते थे, घण्टे, घड़ियाल बजते थे, वहाँ अज्ञानी यवनों की कुरआन और अज़ान होने लगे।
(5) मन्त्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ बहु पुरान इतिहास ।
जवन जराये रोष भरि करि तुलसी परिहास ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध से ओतप्रोत यवनों ने बहुत सारे मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थों (जो वेद के अंग होते हैं) तथा पुराण और इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थों का उपहास करते हुये उन्हें जला दिया ।
(6) सिखा सूत्र से हीन करि बल ते हिन्दू लोग ।
भमरि भगाये देश ते तुलसी कठिन कुजोग ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यग्योपवित से रहित करके उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया ।
(7) बाबर बर्बर आइके कर लीन्हे करवाल ।
हने पचारि पचारि जन जन तुलसी काल कराल ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हाँथ में तलवार लिये हुये बर्बर बाबर आया और लोगों को ललकार ललकार कर हत्या की । यह समय अत्यन्त भीषण था ।
(8) सम्बत सर वसु बान नभ ग्रीष्म ऋतु अनुमानि ।
तुलसी अवधहिं जड़ जवन अनरथ किये अनखानि ॥
(इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे, सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम सम्वत 1585 और विक्रम सम्वत में से 57 वर्ष घटा देने से ईस्वी सन 1528 आता है ।)
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि सम्वत् 1585 विक्रमी (सन 1528 ई) अनुमानतः ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों अवध में वर्णनातीत अनर्थ किये । (वर्णन न करने योग्य) ।
अब यह स्पष्ट हो गया कि गोस्वामी तुलसीदास जी की इस रचना में रामजन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया किया है।
(साभार धन्यवाद माननीय श्री Arun Lavania)

७ दिसंबर २०१७ 

भारत का मौसम सर्वश्रेष्ठ है ......

भारत का मौसम सर्वश्रेष्ठ है ......
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पूरी पृथ्वी पर भारत का मौसम सर्वश्रेष्ठ है| यहाँ वर्ष में अधिकतम दो या तीन बार समुद्री चक्रवात आते हैं, जिनकी भी गहनता अधिक नहीं होती| इनके प्रभाव से तटीय क्षेत्रों में खूब वर्षा होती है|
अगर हम उन विकराल समुद्री तूफानों से तुलना करें जो उत्तरी प्रशांत के पश्चिमी भाग में 180° व 100°E.की देशान्तर रेखाओं के मध्य में फिलिपीन्स सागर में उत्पन्न होते हैं तो भारत के चक्रवात उनके सामने कुछ भी नहीं हैं|
वहाँ अभी सर्दियों में एक के बाद एक महा भयावह तूफानों की श्रृंखला जन्म लेना प्रारम्भ कर देगी| ये फिलिपीन के लुज़ॉन द्वीप के पूर्वी भाग से टकराते हुए ताइवान के पास से जापान की ओर बढ़ जाते हैं| कभी तो ये जापान से टकराते हैं और कभी जापान के पास से अमेरिका के अल्युशियन द्वीप समूह की ओर बढ़ जाते हैं| इनके केंद्र के आसपास कोई जहाज आ जाए तो उसका डूबना निश्चित है| पूरा उत्तरी प्रशांत महासागर छोटे मोटे अनेक तूफानों से भर जाता है| सबसे खराब मौसम तो जापान का है|
प्रकृति ने हमें पृथ्वी पर सबसे अच्छा मौसम दिया है|
धन्य है भारत माँ | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
७ दिसंबर २०१६

हमें सिर्फ और सिर्फ परमात्मा चाहिए, उससे कम कुछ भी अन्य नहीं .....

हमें सिर्फ और सिर्फ परमात्मा चाहिए, उससे कम कुछ भी अन्य नहीं .....
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परमात्मा से कम कुछ भी हमें स्वीकार्य नहीं है| हमें न तो उसकी विभूतियों से कोई मतलब है, न उसके ऐश्वर्य से, और न उसकी किसी महिमा से|
न तो हमें कोई गुरु चाहिए और न कोई शिष्य|
कोई भी और कुछ भी अन्य नहीं चाहिए| किसी भी तरह का कोई सिद्धांत और मत भी नहीं चाहिए|
परमात्मा से अन्य कुछ भी कामना का होना सबसे बड़ा धोखा है, अतः हमें सिर्फ परमात्मा ही चाहिए, अन्य कुछ भी नहीं|
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किसी भी तरह की निरर्थक टीका-टिप्पणी वालों से कोई मतलब हमें नहीं है, और न ही आत्म-घोषित ज्ञानियों से|
यह संसार है, जिसमें तरह तरह के लोग मिलते हैं, जो एक नदी-नाव का संयोग मात्र है, उससे अधिक कुछ भी नहीं|
भूख-प्यास, सुख-दुःख, शीत-उष्ण, हानि-लाभ, मान-अपमान और जीवन-मरण ---- ये सब इस सृष्टि के भाग हैं जिनसे कोई नहीं बच सकता| इनसे हमें प्रभावित भी नहीं होना चाहिए| ये सब सिर्फ शरीर और मन को ही प्रभावित करते हैं| देह और मन की चेतना से ऊपर उठने के सिवा कोई अन्य विकल्प हमारे पास नहीं है|
चारों ओर छाए अविद्या के साम्राज्य से हमें बचना है और सिर्फ परमात्मा के सिवाय अन्य किसी भी ओर नहीं देखना है|
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नित्य आध्यात्म में ही स्थित रहें, यही हमारा परम कर्तव्य है| स्वयं साक्षात् परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं, कुछ भी हमें नहीं चाहिए| यह शरीर रहे या न रहे इसका भी कोई महत्व नहीं है| बिना परमात्मा के यह शरीर भी इस पृथ्वी पर एक भार ही है|
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
७ दिसंबर २०१६

अंडमान का हेवलॉक द्वीप .....

अंडमान का हेवलॉक द्वीप .....
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आज वहाँ आये एक समुद्री चक्रवात के कारण इस द्वीप का नाम बार बार आ रहा है| इस द्वीप पर दो-तीन बार जाने का अवसर मिल चुका है| वहाँ कई बंगाली हिन्दू शरणार्थी परिवार भी बसे हुए हैं जिनमें से एक दो परिवारों से मेरा परिचय भी था| यहाँ के कुछ द्वीपों के अंग्रेजों द्वारा रखे हुए नामों पर मुझे आपत्ति है, विशेषकर नील, हेवलॉक और रोज़ जैसे कुछ द्वीपों के नाम पर| ये नाम उन अँगरेज़ सेना नायकों के नाम हैं जिन्होनें भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम को निर्दयता से कुचला, करोड़ों भारतीयों का नरसंहार किया और झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की ह्त्या की|
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हेवलॉक द्वीप का नाम अँगरेज़ General Sir Henry Havelock के नाम पर रखा गया है जिनके नेतृत्व में अँगरेज़ सेना ने झाँसी की रानी को भागने को बाध्य किया और उनकी ह्त्या की|
ऐसे ही रोज द्वीप का नाम अँगरेज़ Field Marshal Hugh Henry Rose के नाम पर रखा गया है जो १८५७ के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम को कुचलने के जिम्मेदार थे|
ऐसे ही नील द्वीप का नाम भी अँगरेज़ सेनाधिकारी General James George Smith Neill के नाम पर रखा गया है जिसने लाखों भारतीयों की निर्मम हत्याएँ की|
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और भी ऐसे कई उदाहरण हैं| भारत को स्वतंत्र हुए इतने वर्ष बीत गए पर अभी भी गुलामी के निशान इन द्वीपों के नाम यथावत हैं| नेताजी सुभाष बोस ने अंडमान-निकोबार का नाम बदलकर स्वराज-शहीद द्वीप समूह कर दिया था पर भारत सरकार ने अंग्रेजों के दिए हुए नाम ही यथावत रखे|
कम से कम अब तो हमें ये नाम बदलने चाहिएँ|
जय जननी, जय भारत | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
७ दिसंबर २०१६
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प्रख्यात वैदिक विद्वान् श्री अरुण उपाध्याय द्वारा टिप्पणी :---
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अण्डमान निकोबार द्वीप तो मूल पौराणिक नामों के अपभ्रंश हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार राजा इन्द्रद्युम्न ने जगन्नाथ की पूजा जल प्रलय के बाद पुनः आरम्भ कराई थी। उनके नाम पर गंगा सागर (जिसमें गंगा नदी मिलती है) में इन्द्रद्युम्न द्वीप था जिसका अण्डमान हो गया है। दक्षिण के दो बडे द्वीप कुबेर के जुड़वां पुत्रों नर-कूबर के नाम पर था। कुबेर मुख्यतः लंका के राजा थे जिस पर बाद में रावण ने कब्जा कर लिया था। यह द्वीप समूह लंका के अधीन था।
अंग्रेज राक्षसों ने 1857 के विद्रोह का बदला लेने के लिए व्यापक नर संहार किया था जो विश्व इतिहास में सबसे बडा था। कुल एक करोड से अधिक निर्दोष लोगों की हत्या कर उनके शवों को पेड से लटकाया गया था। दो मास के भीतर इतना बडा नर संहार विश्व इतिहास में नहीं हुआ है। बिहार में कुंवर सिंह के क्षेत्र में आरा और गंगा नदी के बीच मेरे गांव पैगा-बसन्तपुर में 3500 लोगों की हत्या अंग्रेज सेनापति नील ने की थी। 26 अप्रैल 1858 को नेपाली सेना की मदद से यह हुआ। बनारस के निकट गहमर गांव में 5500 व्यक्तियों की हत्या हुई। शाहाबाद तथा इलाहाबाद जिलों में अंग्रेजी शासन के रेकॉर्ड के अनुसार 20-20 लाख लोगों की हत्या इन सम्मानित अंग्रेजों ने की थी। ह्यूरोज ने कानपुर की 3 लाख आबादी के 90% लोगों की हत्या कर उसे पूरा श्मशान बना दिया था। इतने घृणित तथा इतिहास के सबसे क्रूर लोगों के सम्मान में इन द्वीपों का नाम रखने से अधिक लज्जा जनक कुछ नहीं हो सकता।