Sunday 11 December 2016

भगवान् तो हमारे साथ सदैव हैं, यहीं है, इसी समय हैं, .....

भगवान् तो हमारे साथ सदैव हैं, यहीं है, इसी समय हैं,
निरंतर हैं और सदा रहेंगे | अब भय और चिंता किस बात की ? .....
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जहाँ भगवान हैं वहाँ चिंता और भय हो ही नहीं सकते| भय की सीमा इतनी ही है कि वह कोई गलत कार्य करने से पूर्व हमें चेतावनी दे दे, बस, इससे अधिक और कुछ नहीं|
जो लोग भगवान से डरना सिखाते हैं वे गलत शिक्षा दे रहे हैं| भगवान तो प्रेम हैं, प्रेम से भय कैसा? हम लोग अपने बच्चों को डरा डरा कर डरपोक बना देते हैं, जो गलत है| किसी को भी भयभीत करना सबसे बड़ा दंड है और पाप भी है|
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भगवान श्रीराम वाल्मीकि रामायण में कहते हैं .....
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते । अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम ॥"
अर्थात् एक बार भी जो मेरी शरणागत होकर "मैं तुम्हारा हूँ" ऐसा कह कर मुझ से रक्षा की याचना करता है, उसको मैं सम्पूर्ण प्राणियों से अभय कर देता हूँ’ ..... यह मेरा व्रत (प्रतिज्ञा) है|
जब साक्षात् परब्रह्म भगवान श्रीराम का यह वचन है तब जो उनके शरणागत ना हो, उससे बड़ा अभागा और कौन हो सकता है? गीता में भी सारे उपदेश देकर अंत में भगवान् शरणागति का ही उपदेश देते हैं|
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हमारी एकमात्र समस्या ..... "अपूर्णता" है, .... और एकमात्र समाधान ..... "पूर्णता" है| पूर्णता ही परमेश्वर की अभिव्यक्ति है|
व्यक्तिगत साधना में हमें ध्यान ..... समस्या का नहीं, अपितु समाधान का करना चाहिए|
हमारी हर समस्या का समाधान सिर्फ और सिर्फ भगवान हैं|
हमारे में अपूर्णता इसीलिए है कि हम पूर्णता की खोज करें| अपूर्णता का चिंतन न करें|
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जीवन में आनंद ही आनंद है ..... क्योंकि हमारे भगवान सदा हमारे साथ हैं|
हम यह देह नहीं हैं, शाश्वत आत्मा हैं| देह की मृत्यु जिस दिन आनी होगी उस दिन आ जायेगी| जब तक यह देह मरे नहीं तब तक तो जीवित हैं, देह जब मर ही गयी तो बात ही समाप्त हो गयी| अब भय कैसा?
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जब भय की अनुभूति हो तब लम्बी लम्बी साँसे लो और अपने आप को भगवान के हवाले कर दो| अब यह दायित्व भगवान का बन जाता है कि वे आपकी रक्षा करें| जब आप परमात्मा को समर्पित हो तो प्रकृति की प्रत्येक शक्ति आपका सहयोग करने को बाध्य है|
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शरीर का ध्यान रखो पर निर्भरता सिर्फ परमात्मा पर ही हो|
उन लोगों का साथ विष की तरह छोड़ दो जो सदा नकारात्मक बातें करते हैं| दूसरों की भावनाओं का सम्मान करो, चाहे उनकी बातों से आप सहमत ना हों|
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सब बातो का एक ही सार है कि ..... प्रभु को प्रेम करो, और अधिक प्रेम करो, व इतना प्रेम करो कि आप स्वयं प्रेममय हो जाएँ| निरंतर उसी की चेतना में रहो|
>>>>> यही साधना है, यही वैराग्य है, और यही आध्यात्म है| <<<<<
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प्रभु के प्रति परम प्रेम ही पूर्णता है| निष्ठावान रहो, निष्ठावान रहो, निष्ठावान रहो|
रात्रि को सोने से पूर्व भगवान का खूब गहरा ध्यान करो| मानसिक रूप से सदा भगवान् के मध्य में रहो और भगवान् के साथ एक होकर रहो|
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भगवन को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| उस जन्मसिद्ध अधिकार को प्राप्त करने के लिए कैसी प्रार्थना??? क्या आप अपने माता-पिता का प्यार पाने के लिए प्रार्थना करते हैं? वह तो आपका अधिकार है| कोई प्रार्थना नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, कोई गिडगिडाना नहीं, सिर्फ प्यार करना, सिर्फ प्यार करना, सिर्फ प्यार करना, और वे भी आपको प्यार करने को बाध्य हो जायेंगे क्योंकि यह उनका स्वभाव है|
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ॐ ॐ ॐ | बस और कुछ नहीं कहना है| यह मैं नहीं कह रहा हूँ| सूक्ष्म जगत की महान आत्माएँ मेरे माध्यम से यह लिखवा रही हैं| यह महान गुरुओं की इच्छा है कि हम प्रभु की शरणागत हों और प्रभु को अपना परम प्रेम दें| आप सब की आने वाले महाभय से रक्षा होगी|
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यह सब लिखने की मेरी औकात नहीं है| मैं आप सब का एक अकिंचन सेवक मात्र हूँ, उससे अधिक और कुछ नहीं|
आप सब में हृदयस्थ प्रभु को नमन !
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

ह्रदय के उदगार .....

अनंत जन्मों से एकत्र हो रहे इस ह्रदय के सम्पूर्ण प्रेम को अभी इसी समय स्वीकार करो  .....
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वर्त्तमान शिक्षा हमें चरित्रवान नहीं बनाती, सिर्फ धन कमाना या बनाना मात्र सिखाती है| जब तक मनुष्य के जीवन में परमात्मा न हो, वह चरित्रवान हो ही नहीं सकता|
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हम लोग अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए अनेक मजारों पर जाकर अपना सिर पटकते हैं, विभिन्न देवी-देवताओं की मनौतियाँ करते हैं, यह हमारा लोभ ही है| हमें पता ही नहीं चलता कि ऐसा करने से हमारी चेतना कितनी नीचे चली जाती है| हम मंगते भिखारी ही बने रहते हैं|
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किसी भी शब्द को बोलने से पहले दस बार सोचें| अनमोल हैं हमारे वचन| हमारी वाणी मिथ्या न हो| लोभ-लालच में आकर झूठ न बोलें| सत्य ही नारायण है और सत्य ही परमशिव परमात्मा है| असत्य बोलने से हमारी वाणी दग्ध हो जाती है| उस दग्ध वाणी से की गयी कोई भी प्रार्थना, जप, स्तुति आदि कभी फलीभूत नहीं होती|
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द्वैत-अद्वैत, साकार-निराकार सब तुम्हीं हो| मुझे कोई संशय नहीं है| 
ॐ ॐ ॐ ||
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आत्म तत्व में स्थित होना ही स्वस्थ होना है|

मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती पर सभी श्रद्धालुओं का अभिवादन ....

मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती पर सभी श्रद्धालुओं का अभिवादन | 
ॐ ॐ ॐ ||
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः|
यच्छेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्||
गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी की सभी श्रद्धालुओं को शुभ कामनाएँ .........

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गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन (जन्म-मरण) से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है | गीता का उद्देश्य ईश्वर का ज्ञान होना माना गया है|
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स्वयं भगवान ने दिया है गीता का उपदेश ..........
विश्व के किसी भी धर्म या संप्रदाय में किसी भी ग्रंथ की जयंती नहीं मनाई जाती| हिंदू धर्म में भी सिर्फ गीता जयंती मनाने की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है क्योंकि अन्य ग्रंथ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं, जबकि गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान के श्रीमुख से हुआ है .........
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता।।
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श्रीगीताजी की उत्पत्ति धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी को हुई थी। यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है। गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए हैं। इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है इसलिए इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है।
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इसके छोटे-छोटे 18 अध्यायों में इतना सत्य, ज्ञान व गंभीर उपदेश हैं, जो मनुष्य मात्र को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठाने की शक्ति रखते हैं।
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वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् | 
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||

चिंता और भय हमारे सबसे बड़े छिपे हुए शत्रु हैं ......

चिंता और भय हमारे सबसे बड़े छिपे हुए शत्रु हैं ......
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ये हम पर कब प्रहार करते हैं हमें पता ही नहीं चलता| जब तक इनके दुष्परिणाम सामने आते हैं तब तक बहुत देर हो जाती है|
प्रकृति ने हमें भय और चिंता मात्र सतर्क रहने के लिए ही प्रदान की हैं, न कि इनका शिकार बनने के लिए| बीमारी, दरिद्रता, अपमान, अपेक्षाओं का पूरा न होना, और मृत्यु की चिंता हमें सबसे अधिक होती हैं|
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मनोचिकित्सकों के अनुसार भय हमारी इच्छा शक्ति को समाप्त कर हमें मानसिक रूप से विक्षिप्त कर देता है| चिंता ह्रदय और फेफड़ों की क्षमता को कम कर देती है| यदि आपको विश्वास न हो तो यह बात आप मनोचिकित्सकों से पूछ सकते हैं| इससे शरीर में लकवा भी मार सकता है और अकाल मृत्यु भी हो सकती है|
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साढे छः वर्ष पूर्व मुझे जीवन में दूसरी बार हृदयाघात हुआ और जयपुर में एंजियोप्लास्टी हुई, यानि ह्रदय की एक धमनी में स्टेंट डाला गया| इसके कुछ वर्ष पश्चात मेरी जाँच मेरे एक गुरुभाई मित्र ने की जो एम्स में कार्डियोलॉजी के वरिष्ठ प्रोफेसर पद से सेवानिवृत हुए थे| उन्होंने अपनी जाँच कर के बताया कि मुझे हृदयाघात किसी भौतिक कारण से नहीं हुआ था बल्कि किसी बात का गहरा सदमा लगने के कारण हुआ| उन्होंने बताया कि किसी बात का मुझे गहरा सदमा लगा और उससे खून का थक्का जम गया जिससे हृदयाघात हुआ और उससे मेरी मृत्यु भी हो सकती थी| यह बचा हुआ आगे का जीवन परमात्मा की विशेष अनुकम्पा से ही मिला है| उन्होंने चिंतामुक्त जीवन जीने की सलाह दी और कहा कि तीसरा हृदयाघात अंतिम सिद्ध हो सकता है| चिंतामुक्त जीवन जीने की बात ही वे सभी चिकित्सक कहते हैं जिनसे मैं नियमित जाँच करवाता हूँ|
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भगवान ने यह देह हमें एक उपकरण के रूप में दी है पर इसमें पूर्णता इसलिए नहीं दी कि हम इस देह में रहते हुए पूर्णता की प्राप्ति कर सकें|
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भय और चिंता एक मृत्यु दंड है जो हम स्वयं को बिना किसी कारण के देते हैं|
ये भय और चिंता हमें पता नहीं कितनी बार मृत्यु दंड देते है| बार बार या निरंतर कष्ट पाने से तो साहस के साथ एक बार मर जाना ही अधिक अच्छा है|
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हम यह हाड-मांस की देह नहीं हैं, शाश्वत आत्मा हैं| यह देह एक वाहन है जो भगवान ने हमें लोकयात्रा के लिए दिया है| परमात्मा में गहन आस्था रखें और अपनी सारी चिंताएँ और भय भगवान को सौंप दें|
भगवान सब परिस्थितियों में हमारी रक्षा करता है| मेरी ही नहीं हम सब की रक्षा भगवान ने अनेक बार की है|
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एक ऐसी चेतना का विकास करें जिसमें कोई हमें विचलित न कर सके| ऐसे नकारात्मक लोगों का साथ विष की तरह छोड़ दो जो जीवन में सदा शिकायत ही शिकायत, निंदा ही निंदा और असंतोष ही असंतोष व्यक्त करते रहते हैं|
समष्टि के कल्याण में ही हमारा कल्याण है अतः निरंतर समष्टि के प्रति सद्भावना और प्रेम व्यक्त करते रहो|
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परमात्मा कोई भय या डरने का विषय नहीं है| जो लोग परमात्मा से डरने की बात कहते हैं वे गलत शिक्षा दे रहे हैं| परमात्मा तो प्रेम का विषय है| जो परमात्मा को प्रेम नही कर सकते वे किसी को भी प्रेम नहीं कर सकते| मेरा प्रत्यक्ष अनुभव तो यही है कि जब हम परमात्मा से प्रेम करते हैं तो प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमें प्रेम करेगी|
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हर रात सोने से पूर्व यह प्रार्थना करके सोयें .... "हे जगन्माता, आप मेरी निरंतर रक्षा कर रही हैं, आप सदा मेरे साथ हैं, इस जीवन का समस्त भार आपको समर्पित है| मेरे चैतन्य में आप निरंतर बिराजमान रहो| ॐ ॐ ॐ ||"
फिर एक बालक की तरह जगन्माता की गोद में निश्चिन्त होकर सो जाओ|
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||

जो दूसरों को तलवार से काटते हैं वे स्वयं भी तलवार से ही काटे जाते हैं ....

जो दूसरों को तलवार से काटते हैं वे स्वयं भी तलवार से ही काटे जाते हैं ....
प्रकृति किसी को क्षमा नहीं करती| कर्मों का फल निश्चित रूप से मिलता है ...
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He that leadeth into captivity shall go into captivity: he that killeth with the sword must be killed with the sword.
Revelation 13:10 KJV.
उपरोक्त उद्धरण प्राचीन लैटिन बाइबल की Revelation नामक पुस्तक के किंग जेम्स वर्ज़न से लिया गया है| एक धर्मगुरु अपने एक नौकर के कान अपनी तलवार से काट देता है जिस पर जीसस क्राइस्ट ने उसे तलवार लौटाने को कहा और उपरोक्त बात कही|
(विडम्बना है कि उसी जीसस क्राइस्ट के अनुयायियों ने पूरे विश्व में सबसे अधिक अत्याचार और नर-संहार किये)
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For all who will take up the sword, will die by the sword.
Live by the sword, die by the sword.
यह सदा चरितार्थ होता रहा है| पिछले दो वर्षों में इस्लामिक स्टेट के पचास हज़ार से भी अधिक आतंकी मारे गए हैं|
आज इराक के मौशुल शहर में इराकी फौज और स्थानीय लोगों के द्वारा इस्लामिक स्टेट के जीवित पकडे, आतंकियों को गाडी के पीछे बाँध कर, मौशुल की सड़कों पर घसीटा जा रहा है| बीच में रोक-रोक कर, उनको कूटा-पीटा जा रहा है| आतंकी रहम की भीख मांग रहे हैं,लहू-लुहान हो रहे हैं,कुत्ते की मौत मारे जा रहे हैं|
प्रकृति में न्याय भी है और दंड भी जो देर सबेर हर अन्यायी को मिलता ही है|

ईसा मसीह एक हिन्दू संत थे .....

ईसा मसीह एक हिन्दू संत थे .....
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सन १९४६ ई.में वीर विनायक दामोदर सावरकर के बड़े भाई गणेश सावरकर ने एक पुस्तक "क्राइस्ट परिचय" लिखी थी जिसमें उन्होंने सिद्ध किया था कि ईसा मसीह एक तमिल हिंदू थे और भगवान शिव की आराधना करते थे| उनका असली नाम केशव कृष्ण था जो गहरे रंग के थे और उनकी मातृभाषा तमिल थी| उस समय फिलिस्तीन और अरब क्षेत्र हिंदू भूमि थी| ईसा मसीह जन्म से एक ‘विश्वकर्मा ब्राह्मण’ थे, जिनका 12 साल की उम्र में जनेऊ संस्कार भी हुआ था|. किताब के मुताबिक उनका परिवार भारतीय वेषभूषा में रहता था| इसी आधार पर ये भी दावा किया गया है कि ईसाईयत हिंदुत्व का एक पंथ है|
‘क्राइस्ट परिचय’ में ये भी दावा किया गया है कि ‘एस्सेन’ सम्प्रदाय के लोगों ने सूली पर चढ़ाए गए ईसा मसीह को बचाया और हिमालय की औषधीय पौधों तथा जड़ी बूटियों से उन्हें पुनर्जीवित किया| 49 साल की उम्र में ईसा मसीह ने पहलगाँव कश्मीर में अपना देह त्याग किया|
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इससे पहले फ्रांस के एक वकील, साहित्यकार लुइस जेकोलियत ने 1869 ई. में अपनी एक पुस्तक ‘द बाइबिल इन इंडिया’ में दावा किया है कि ईसा मसीह और भगवान श्रीकृष्ण एक ही थे| अपने तुलनात्मक अध्ययन में उन्होंने दावा किया है कि ‘जीसस’ नाम भी उनके अनुयायियों ने दिया था जिसका संस्कृत में अर्थ होता है ‘मूल तत्व’| इसके अलावा उन्होंने ये भी दावा किया कि अपने भारत भ्रमण के दौरान ईसा मसीह पुरी के जगन्नाथ के मंदिर में रुके थे. एक रूसी अन्वेषक निकोलस नोकोविच ने अपनी किताब ‘द अननोन लाइफ ऑफ जीसस क्राइस्ट’ में दावा किया है कि ईसा मसीह सिल्क रूट से भारत आए थे और यह आश्रम इसी तरह के सिल्क रूट पर था। उन्होंने 13 से 29 वर्ष की उम्र तक यहां रहकर बौद्घ धर्म की शिक्षा ली.
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परमहंस योगानंद जी ने भी दो खण्डों में एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम "Second Coming of Christ" है| इस पुस्तक का सार यह है कि ईसा मसीह की मूल शिक्षाएँ भगवान श्रीकृष्ण की ही शिक्षाएँ थीं|
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स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि ने भी संस्कृत में "कैवल्य दर्शनम्" नामक एक पुस्तक लिखी है जिसमें यह सिद्ध किया गया है कि ईसा मसीह की मूल शिक्षाएँ सनातन धर्म की ही थीं|
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पूरी के पूर्व शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ ने भी सप्रमाण यह दावा किया था कि ईसा मसीह ने पुरी में हिन्दू धर्म शास्त्रों का अध्ययन किया था और वे सनातन हिन्दू धर्म को मानते थे|
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महान इतिहासकार श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ने एक पुस्तक लिखी थी जिसका शीर्षक था "क्रिश्चियनिटी कृष्णनीति है"| यह पुस्तक जब छपी थी तब बहुत लोकप्रिय हुई थी और अभी भी पुस्तकों की बड़ी दुकानों पर उपलब्ध है|
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इस विषय पर बहुत अधिक साहित्य उपलब्ध है| आचार्य रजनीश उर्फ़ ओशो ने भी अपनी एक पुस्तक में विस्तार से ईसा मसीह के भारत प्रवास के बारे में लिखा है|
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मेरा यह मानना है कि अगले पचास-साठ वर्षों में ईसाईयत के हिन्दू धर्म में मिलने की पूरी पूरी सम्भावना है|

विकास क्या है ? .....

विकास क्या है ? .....
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आज का मनुष्य विकास के नाम पर क्या सिर्फ खूब रुपये कमाने, स्वादिष्ट भोजन करने, भोग करने, और संतान उत्पन्न करने की मशीन मात्र बनकर रह गया है ? उच्च चरित्र और जीवन की गुणवत्ता की उपेक्षा हो रही है| क्या यही विकास है?
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विनाश के लक्षण .....
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आज का मनुष्य पृथ्वी के लिए अभिशाप हो गया है| प्राणियों पर अत्याचार हो रहे है, गौ वंश का विलोप हो रहा है, वेदज्ञ ब्राह्मणों को सांप्रदायिक और मनुवादी बताकर तिरस्कृत किया जा रहा है, श्रुतियों को समझने और समझाने वाले निरंतर कम हो रहे हैं, लोभ-लालच और अधर्म हावी हो रहा है| धर्मात्मा शासक नहीं दिखाई दे रहे हैं| प्रदूषण, अनाचार और अराजकता बढ़ रही है| आज की शिक्षा मात्र रोजगारमुखी होकर रह गयी है| कोई दिव्य वस्तु या व्यक्ति द्रष्टिगोचर हो ही नहीं रहा है|
ये सब विनाश के लक्षण हैं| हम स्वयं ही भस्मासुर बन गये हैं अतः विनाश तो होगा ही|
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परमात्मा से विमुखता ही हमारे सब दुःखों का कारण है| दुःख तभी दूर होंगे जब हम परमात्मा से जुड़ेंगे| यह संसार एक पाठशाला है जहाँ एक ही पाठ लगातार पढ़ाया जा रहा है| जो इस को पाठ को नहीं समझना चाहते वे इसे समझने को बाध्य कर दिए जायेंगे|
ॐ तत्सत् | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||