Wednesday, 30 March 2022

आत्म-तत्व में स्थिति -- भगवान की प्राप्ति है ---

 

🌹🙏🌹 आत्म-तत्व में स्थिति -- भगवान की प्राप्ति है ---
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🌹🙏🌹 परमात्मा के महासागर में मोती ही मोती भरे पड़े हैं| आवश्यकता है गहरे गोते लगाने की, तभी मोती मिलेंगे| मोती नहीं मिलते तो दोष सागर का नहीं, हमारी डुबकी का है|
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🌹🙏🌹 युवावस्था में जो साधक आध्यात्मिक क्षेत्र में आते हैं, उन्हे खेचरी-मुद्रा का अभ्यास कर के इसमें दक्षता प्राप्त कर लेनी चाहिए| वे साधक वास्तव में भाग्यशाली हैं, जिन्हें खेचरी-मुद्रा सिद्ध है, और जिन्होने आतंरिक प्राणायाम द्वारा सुषुम्ना में प्रवाहित हो रहे प्राण-तत्व को नियंत्रित कर लिया है|
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🌹🙏🌹 मौन की सिद्धि खेचरी में ही संभव है, और जिन्हें मौन की सिद्धि है, वे ही मुनि कहलाते हैं| वे ब्रह्मरंध्र-सहस्त्रार से टपकने वाले सोमरस -- अमृत का पान करके भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी आदि पर विजय प्राप्त कर सकते हैं|
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🌹🙏🌹 ब्रह्मा का कमण्डलु तालुरंध्र है, और हरिः का चरण सहस्त्रार है| सहस्त्रार से जो अमृत की धारा तालुरन्ध्र में ऊर्ध्वजिव्हा पर आकर गिरती है, वह अनेक सिद्धियाँ प्रदान करती हैं| वे जितना चाहें उतने समय तक समाधिस्थ रह सकते हैं|
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🌹🙏🌹 ऊर्ध्व में स्थिति प्राप्त होने पर ब्रह्मज्ञान यानि आत्मज्ञान का उदय होता है| उस अवस्था में रमण करने का नाम "राम" है| जो साधक सदा आत्मा में रमण करते हैं, वे स्वयं राममय हो जाते हैं| उनके लिए "राम" तारकमंत्र है| मृत्युकाल में "राम" नाम जिसके स्मरण में रहे वे स्वयं ही ब्रह्ममय हो जाते हैं| आत्म-तत्व में स्थिति -- भगवान की प्राप्ति है|
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🌹🙏🌹 श्रौत्रीय ब्रहमनिष्ठ सिद्ध गुरु से उपदेश लेकर उनकी आज्ञा से पूर्ण भक्ति पूर्वक --अजपा-जप, नाद-श्रवण और सूक्ष्म प्राणायाम का अभ्यास नित्य करना चाहिए| गुरुकृपा से भगवान की प्राप्ति अवश्य होगी| ॐ तत्सत् || ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
‪कृपाशंकर‬
३१ मार्च २०२१
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🌹🙏🌹 पुनश्च:_:---
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ |
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ ||
अर्थ : जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते.

यह हमारी नहीं, भगवान की समस्या है कि वे कब हमें दर्शन दें ---

 

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यह हमारी नहीं, भगवान की समस्या है कि वे कब हमें दर्शन दें ---
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जैसे जैसे जब से भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना बढ़ी है, तब से उन को पाने की अब कोई जल्दी नहीं रही है| जैसे कल प्रातः का सूर्योदय सुनिश्चित है, वैसे ही उन का मिलना भी अब सुनिश्चित ही है| एक तो उन्होने मेरे हृदय में आकर अब अपना डेरा जमा लिया है, यहीं बैठे हैं, और कहीं दूर भी नहीं हैं| दूसरा वे मुझे अपना एक उपकरण यानि निमित्त-मात्र बनाकर सारा कार्य स्वयं कर रहे हैं, अतः उनको पाना अब मेरी समस्या नहीं रही है| यह उनकी ही समस्या है कि वे कब प्रत्यक्ष हों| वियोग का भी एक आनंद है जो योग में नहीं है| वियोग और योग -- दोनों का आनंद उन्हीं का है| ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
३० मार्च २०२१

देवता हमारा कल्याण क्यों नहीं करते? ---

 प्रश्न :----- देवता हमारा कल्याण क्यों नहीं करते?

उत्तर :--- क्योंकि हम यज्ञ द्वारा देवताओं को शक्ति प्रदान नहीं करते|
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देवताओं को शक्ति उन यज्ञों से ही मिलती है जिन में हम आहुतियों द्वारा उन्हें तृप्त करते हैं| देवताओं में जब शक्ति ही नहीं होगी तब वे हमारा कल्याण भी नहीं कर सकते| गीता में भगवान कहते हैं ---
"देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः| परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ|३:११||"
अर्थात् तुम लोग इस यज्ञ द्वारा देवताओं की उन्नति करो और वे देवतागण तुम्हारी उन्नति करें| इस प्रकार परस्पर उन्नति करते हुये परम श्रेय को तुम प्राप्त होंगे||
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समष्टि का कल्याण होगा तो व्यष्टि का भी होगा| भगवान कहते हैं ---
"इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः| तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः||३:१२||"
अर्थात् यज्ञ द्वारा पोषित देवतागण तुम्हें इष्ट भोग प्रदान करेंगे। उनके द्वारा दिये हुये भोगों को जो पुरुष उनको दिये बिना ही भोगता है वह निश्चय ही चोर है||
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देवताओं का हमारे ऊपर ऋण है जिसे चुकाये बिना खाकर यदि हम केवल अपने शरीर और इन्द्रियों को ही तृप्त करते हैं, तो हम चोर हैं| देवताओं को उनके द्वारा दिये भोग उन्हें समर्पित किये बिना जो स्वयं ही भोग लेता है वह चोर ही है|
हम देवताओं के साथ परस्पर एक दूसरे की भावना करें, और उनकी सेवा करते हुए उन्हें पुष्ट करें| हम उन की सेवा करेंगे तो वे भी हमें पुष्ट करेंगे| यज्ञ से पुष्ट हुए देवता हमें भोग्य पदार्थ देते हैं, तब देवताओं को उनका हिस्सा फिर दें| देवताओं को बिना दिये भोग करना, चोरी करना है|
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आध्यात्मिक साधना भी हमें समष्टि के कल्याण के लिए करनी चाहिए| तभी समष्टि हमारा कल्याण करेगी|
ॐ तत्सत् || ॐ स्वस्ति || ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
३० मार्च २०२१