Saturday, 16 November 2024

सनातन धर्म पर एक चर्चा ---

 

🌹 "सनातन धर्म" ---
सनातन धर्म पर अपनी अति अल्प और सीमित बुद्धि से एक चर्चा करना चाहता हूँ। आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे। जितना मुझे अल्प ज्ञान है उसे ही यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ।
🌹सनातन धर्म को नष्ट करने का पूरा प्रयास अधर्मी असुरों ने किया है लेकिन सत्य-सनातन-धर्म की पुनःप्रतिष्ठा और वैश्वीकरण की प्रक्रिया आरंभ हो गयी है। यह कार्य भगवान ने स्वयं अपने हाथों में ले लिया है, और उनकी प्रकृति अब इसे सम्पन्न करेगी। जो धर्मद्रोही हैं वे अपने कर्मफलों से अपनी आप ही नष्ट हो जाएँगे। यह एक देवों और दानवों का देवासुर संग्राम है जो सृष्टि के आदिकाल से ही चलता आया है।
🌹 सनातन धर्म के नियमों से ही यह सृष्टि संचालित है। धर्म और अधर्म को समझने के लिए सम्पूर्ण महाभारत से अधिक अच्छा कोई दूसरा ग्रंथ नहीं है। धर्म से विमुख करने के लिये हमें अधर्मी फिरंगी पादरियों ने यह सिखाया कि महाभारत को घर में रखने से घर में कलह होती है। यहाँ तक कि महाभारत के चित्रों को को भी घर पर रखने को बुरा बताया गया। जब कि हर घर में महाभारत अपने मूल रूप में होनी चाहिए। अंग्रेजों के वेतनभोगी पादरियों और मार्क्सवादी अधर्मियों द्वारा प्रक्षिप्त किए हुए अंशों को कैसे भी हटाना चाहिए, इस विषय पर कोई शोधकार्य हुआ भी है तो मुझे पता नहीं। महाभारत में धर्म और अधर्म को बहुत अच्छी तरह से समझाया गया है। रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थों के स्वाध्याय से धर्म और अधर्म की समझ बहुत गहरी और स्पष्ट हो जाती है।
🌹 जिस दिन मनुष्य की बुद्धि यह समझ लेगी कि वह एक शाश्वत आत्मा है, यह नश्वर देह नहीं; उसी दिन से उसे सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) क्या है, यह समझ में आने लगेगा। प्रत्यक्ष रूप से सनातन धर्म के चार मुख्य स्तम्भ हैं -- आत्मा की शाश्वतता, कर्मफलों का सिद्धान्त, पुनर्जन्म, और ईश्वर के अवतारों में आस्था।
🌹 हमारे विचार, भाव और आचरण -- हमारे कर्म है, जिसका फल भुगतने के लिए बार बार हमारा जन्म होता है। कर्म करने की स्वतन्त्रता सबको है लेकिन फल भुगतने की नहीं। हम जो भी हैं, वह हमारे पूर्वजन्मों का फल है, और हम जो भी होंगे, वह इस जन्म के कर्मों का फल होगा। कर्मफलों से मुक्ति भी भक्ति और समर्पण द्वारा ही मिल सकती है, लेकिन उसके लिए तप करना पड़ता है।
🌹 परमात्मा की प्राप्ति यानि आत्म-ज्ञान की प्राप्ति ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य है। इसका मार्ग सनातन धर्म ही बताता है। हम एक शाश्वत आत्मा हैं। आत्मा का स्वधर्म क्या है? इसका पता लगाकर अपने स्वधर्म का पालन कीजिये, यही हमारा सब से बड़ा कर्तव्य और सनातन धर्म का पालन है।
🌹 मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण दिये हैं। उनका धारण धर्म है, और उनका अभाव अधर्म है। वैशेषिक सूत्रों में दी हुई कणाद ऋषि की परिभाषा के अनुसार --- अभ्यूदय और निःश्रेयस की सिद्धि - धर्म है।
गीता के अनुसार समत्व में स्थिति ही वास्तविक ज्ञान है। समत्व में स्थित व्यक्ति ही ज्ञानी है।
प्रत्येक मनुष्य को कभी न कभी, किसी न किसी जन्म में परमात्मा के मार्ग पर आना ही पड़ेगा। परमात्मा से हमारा निकास हुआ है, और परमात्मा में ही हमको बापस जाना पड़ेगा। यह परमात्मा का मार्ग ही सत्य-सनातन-धर्म है।
🌹ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ नवंबर २०२४

"ब्रह्मज्योति" के दर्शन ध्यान में ही होते हैं ---

 "ब्रह्मज्योति" के दर्शन ध्यान में ही होते हैं ---

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कोई आवश्यक नहीं है कि मेरा अनुभव ही सत्य हो, लेकिन मेरा अनुभव तो यही कहता है कि हमें भगवान की सर्वप्रथम अनुभूति ज्योति, नाद, और आनंद के रूप में होती है। नेत्रों के गोलकों को बिना किसी तनाव के भ्रूमध्य की ओर रखने और भ्रूमध्य पर ध्यान करते करते कुछ माह की नियमित अजपा-जप की साधना के पश्चात ध्यान में एक ब्रह्मज्योति प्रकट होती है जो आरंभ में एक कोहरे जैसी होती है, तत्पश्चात् प्रचंड सूर्य की आभा जैसी हो जाती है, जिसमें कोई उष्णता नहीं, बल्कि शीतलता होती है।
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यह तभी होता है जब आपका मेरुदण्ड उन्नत हो, ठुड्डी भूमि के समानान्तर, और आप स्वयं खेचरी या अर्धखेचरी मुद्रा में हों। इसे ध्यान-मुद्रा भी कहते हैं। धीरे धीरे वह ज्योति सारे ब्रह्मांड में विस्तृत हो जाती है, लेकिन उस का केंद्र बदलता रहता है। धीरे धीरे उस ज्योति से प्रणव की ध्वनि भी सुनाई देने लगती है। आप उस सर्वव्यापी ज्योति के साक्षी रहते हुए, नाद का श्रवण व अजपा-जप करते रहें। उसी को अपना परमप्रेम और समर्पण करें। उस ज्योति और नाद को ही योग साधक "कूटस्थ" कहते हैं। कूटस्थ-चैतन्य में रहते रहते हमारी प्रज्ञा भी परमात्मा में स्थिर होने लगती है, और हमें स्थितप्रज्ञता और ब्राह्मीस्थिति की प्राप्ति होती है।
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ध्यान में ब्रह्मज्योति के दर्शन, नाद का श्रवण, और आनंद की अनुभूति हमें परमात्मा का आभास कराती है। यह हमारी आध्यात्मिक प्रगति का सूचक है। संतुष्ट होकर मत बैठिये, परमात्मा के महासागर में अभी, और इसी समय से गहरी से गहरी डुबकी लगाना आरंभ कर दीजिये।
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श्वेताश्वतरोपनिषद, श्रीमद्भगवद्गीता, रामचरितमानस, आदि अनेक ग्रन्थों में और संत-साहित्य में इसका बहुत अधिक वर्णन है, जिनका उल्लेख मैं इस लेख के विस्तार भय से नहीं कर रहा हूँ। किसी को कुछ सीखना है तो किसी ब्रह्मनिष्ठ आचार्य से सीखें। मैं समय नहीं दे सकूँगा। आप सब को नमन !!
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ नवंबर २०२४

पंचमुखी महादेव --- (संशोधित व पुनःप्रेषित लेख)

 पंचमुखी महादेव --- (संशोधित व पुनःप्रेषित लेख)

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हमारा ब्रह्मांड पाँच तत्वों से बना है -- जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश। भगवान शिव को पंचानन अर्थात पाँच मुख वाले कहा जाता है। शिवपुराण के अनुसार ये पाँच मुख हैं -- ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात।
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भगवान शिव के ऊर्ध्वमुख का नाम 'ईशान' है जो आकाश तत्व है। पूर्वमुख का नाम 'तत्पुरुष' है, जो वायु तत्व है। दक्षिणी मुख का नाम 'अघोर' है जो अग्नितत्व है। उत्तरी मुख का नाम 'वामदेव' है, जो जल तत्व है। पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है, जो पृथ्वी तत्व है। भगवान शिव की अनुभूति हमें किसी भी रूप में हो सकती है।
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शिव, परमशिव, शंकर और शंभू का अर्थ --
हमें ध्यान में अनंत विस्तृत ज्योति, प्रणव की ध्वनि और एक श्वेत पंचमुखी नक्षत्र के दर्शन का अनुभव जब भी होता है, वह बड़े आनंद का विषय होता है।
विराट अनंतता और विस्तार की अनुभूति को ही मैं 'शिव' कहता हूँ, जिसका अर्थ है कल्याणकारी।
'परमशिव' का अर्थ है -- परम कल्याणकारी। यह एक अनुभूति है, जो सभी को नहीं, केवल उन्नत साधकों को होती है।
शंकर का अर्थ है -- शमनकारी और आनंददायक।
शंभू का अर्थ है -- मंगलदायक।
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भूतनाथ और महाकाल का अर्थ --
भगवान शिव पंचभूतों (पंचतत्वों) के अधिपति हैं इसलिए ये 'भूतनाथ' कहलाते हैं।
भगवान शिव काल (समय) के प्रवर्तक और नियंत्रक होने के कारण 'महाकाल' कहलाते है।
काल की गणना 'पंचांग' के द्वारा होती है।
काल के पाँच अंग -- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं।
रुद्राक्ष सामान्यत: पंचमुखी ही होता है।
शिव-परिवार में भी पांच सदस्य है -- शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदीश्वर। नन्दीश्वर साक्षात धर्म हैं।
शिवजी की उपासना पंचाक्षरी मंत्र .... 'नम: शिवाय' द्वारा की जाती है।
ब्रहृमा-विष्णु-महेश तात्विक दृष्टि से एक ही हैं। इनमें कोई भेद नहीं है।
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योगियों को कूटस्थ में एक स्वर्णिम आभा के मध्य एक नीला प्रकाश दिखाई देता है जिसके मध्य में एक श्वेत पंचकोणीय नक्षत्र दिखाई देता है -- उसे ही 'पंचमुखी महादेव' कहते हैं। उन्नत योगी उसी का ध्यान करते हैं।
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शिव-तत्व को जीवन में उतार लेना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है। यही हमारा लक्ष्य है।
ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च॥ ॐ तत्सत् !! ॐ नमःशिवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ नवंबर २०२२