Wednesday, 26 January 2022

हम किसी की क्या सहायता कर सकते हैं? ---

 हम किसी की क्या सहायता कर सकते हैं? ---

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जब तक हमारे में लोभ और अहंकार है, तब तक हम किसी की कुछ भी सहायता यथार्थ में नहीं कर सकते, स्वयं की भी नहीं| सबसे बड़ी सहायता की आवश्यकता तो असत्य और अज्ञान के अंधकार में डूबे हुये हम स्वयं को है| आध्यात्मिक रूप से एक वीतराग (राग-द्वेष और अहंकार से मुक्त) व्यक्ति ही किसी की सहायता कर सकता है|
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गीता के दूसरे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण हमें स्थितप्रज्ञ होने का उपदेश देते हैं| बिना स्थितप्रज्ञ हुए हम परमात्म तत्व को उपलब्ध नहीं हो सकते| परमात्व तत्व की उपलब्धि, यानि आत्म-साक्षात्कार ही सबसे बड़ी सेवा है, जो हम समष्टि की कर सकते हैं| इसके लिए हमें वीतराग, विगतस्पृह, और स्थितप्रज्ञ होना पड़ेगा| यही समत्व है, यही ज्ञान है, यही योग की सिद्धि है, यही ब्राह्मी स्थिति है, यही कूटस्थ-चैतन्य में स्थिति है, और यही ईश्वर की प्राप्ति है| 🌹🕉🌹
सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ जनवरी २०२१

जीवन का मूल उद्देश्य है --- शिवत्व की प्राप्ति ---

 जीवन का मूल उद्देश्य है --- शिवत्व की प्राप्ति ---

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हम शिव कैसे बनें एवं शिवत्व को कैसे प्राप्त करें? इस का उत्तर है --- किन्हीं ब्रहमनिष्ठ वेदज्ञ सिद्ध सद्गुरु के मार्गदर्शन व सान्निध्य में कूटस्थ ओंकार रूप शिव का ध्यान, और अजपा-जप| यह किसी कामना की पूर्ती के लिए नहीं, बल्कि कामनाओं के नाश के लिए है| आते जाते हर साँस के साथ उनका चिंतन-मनन और समर्पण -- उनकी परम कृपा की प्राप्ति करा कर आगे का मार्ग प्रशस्त करता है| ऊर्ध्व चेतना की जागृति होने पर अपने आप ही स्पष्ट मार्गदर्शन प्राप्त होने लगता है|
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जिन से जगत की रचना, पालन और नाश होता है, जो इस सारे जगत के कण कण में व्याप्त है, वे शिव हैं| जो समस्त प्राणधारियों की हृदय-गुहा में निवास करते हैं, जो सर्वव्यापी और सबके भीतर रम रहे हैं, वे ही शिव हैं| 'शिव' शब्द का अर्थ है -- आनन्द, परम मंगल और परम कल्याण| जिसे सब चाहते हैं और जो सबका कल्याण करने वाला है वही ‘शिव’ है|
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तत्व रूप में शिव और विष्णु में कोई भेद नहीं है| गीता के भगवान वासुदेव ही वेदान्त के ब्रह्म हैं| वे ही परमशिव हैं| योगमार्ग के पथिकों को ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’ यानि शिव बनकर ही शिव की उपासना करनी पड़ती है| जिन्होने वेदान्त को निज जीवन में अनुभूत किया है वे तो इस तथ्य को समझ सकते हैं, पर जिन्होने गीता का गहन स्वाध्याय और ध्यान किया है वे भी अंततः इसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे|
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ॐ तत्सत् | शिवोहं शिवोहं अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२७ जनवरी २०२१