हम किसी की क्या सहायता कर सकते हैं? ---
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जब तक हमारे में लोभ और अहंकार है, तब तक हम किसी की कुछ भी सहायता यथार्थ में नहीं कर सकते, स्वयं की भी नहीं| सबसे बड़ी सहायता की आवश्यकता तो असत्य और अज्ञान के अंधकार में डूबे हुये हम स्वयं को है| आध्यात्मिक रूप से एक वीतराग (राग-द्वेष और अहंकार से मुक्त) व्यक्ति ही किसी की सहायता कर सकता है|
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गीता के दूसरे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण हमें स्थितप्रज्ञ होने का उपदेश देते हैं| बिना स्थितप्रज्ञ हुए हम परमात्म तत्व को उपलब्ध नहीं हो सकते| परमात्व तत्व की उपलब्धि, यानि आत्म-साक्षात्कार ही सबसे बड़ी सेवा है, जो हम समष्टि की कर सकते हैं| इसके लिए हमें वीतराग, विगतस्पृह, और स्थितप्रज्ञ होना पड़ेगा| यही समत्व है, यही ज्ञान है, यही योग की सिद्धि है, यही ब्राह्मी स्थिति है, यही कूटस्थ-चैतन्य में स्थिति है, और यही ईश्वर की प्राप्ति है|
सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ जनवरी २०२१