जैन धर्म के २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती पर मैं उनके सभी
अनुयायियों का और जैन मतावलम्बी अपने सभी मित्रों का अभिनन्दन करता हूँ|
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जहाँ तक मैं समझा हूँ, "जैन" शब्द का अर्थ है .... जीतने वाला .... यानि जिसने अपने मन को, इन्द्रियों को, वाणी को और काया को जीत लिया है, वह जैन है|
जैन धर्म का उद्देश्य है ... "वीतरागता", यानि एक ऐसी अवस्था को प्राप्त करना जो राग, द्वेष और अहंकार से परे हो|
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भगवान महावीर के अनेकान्तवाद और स्यादवाद के दर्शन ने वर्षों पूर्व मुझे अपनी ओर आकर्षित किया था इस लिए मैंने उनका अध्ययन भी किया| भगवान महावीर ने "कैवल्य" शब्द का भी प्रयोग किया है| उन की "कैवल्य" की क्या अवधारणा थी, यह तो वे ही बता सकते हैं| जहाँ तक मैं समझता हूँ, "कैवल्य" .... निर्लिप्त, असम्बद्ध और निःसंग होने की अवस्था का नाम है| इसका अर्थ कई लोग मोक्ष या मुक्ति भी लगाते हैं, जिस से मैं सहमत नहीं हूँ| कैवल्य का अर्थ निःसंग, असम्बद्ध और निर्लिप्त ही हो सकता है| शायद "कैवल्य" और "वीतरागता" एक ही अवस्था का नाम हो, कुछ कह नहीं सकता|
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यह एक नास्तिक धर्म है जो वेदों को अपौरुषेय नहीं मानता| इसमें ईश्वर की परिकल्पना नहीं है, सिर्फ तीर्थंकर, मुनि, आचार्य और उपाध्याय ही हैं| भारत की नास्तिक परम्परा में दो मुख्य धर्म हैं ..... जैन धर्म और बौद्ध धर्म, जो दोनों ही नास्तिक हैं, जिन्होंने जीवन में ईश्वर की आवश्यकता नहीं मानी| आत्मा की शाश्वतता, पुनर्जन्म और कर्मफलों का सिद्धांत .... ये तो भारत में जन्में सभी आस्तिक व नास्तिक धर्मों में है|
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इस धर्म में अनेक बड़े बड़े विद्वान् और दार्शनिक हुए हैं| आधुनिक युग में भी हमारे ही झुंझुनू जिले के टमकोर गाँव में जन्में आचार्य महाप्रज्ञ थे, जो अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी, परम विद्वान् और बहुत प्रसिद्ध तपस्वी संत थे| उन्हीं के उत्तराधिकारी चुरू जिले के सरदारशहर गाँव में जन्में विद्वान् आचार्य महाश्रमण हैं जो वर्तमान में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय के आचार्य हैं|
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पुनश्चः सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
कृपा शंकर
२९ मार्च २०१८
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जहाँ तक मैं समझा हूँ, "जैन" शब्द का अर्थ है .... जीतने वाला .... यानि जिसने अपने मन को, इन्द्रियों को, वाणी को और काया को जीत लिया है, वह जैन है|
जैन धर्म का उद्देश्य है ... "वीतरागता", यानि एक ऐसी अवस्था को प्राप्त करना जो राग, द्वेष और अहंकार से परे हो|
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भगवान महावीर के अनेकान्तवाद और स्यादवाद के दर्शन ने वर्षों पूर्व मुझे अपनी ओर आकर्षित किया था इस लिए मैंने उनका अध्ययन भी किया| भगवान महावीर ने "कैवल्य" शब्द का भी प्रयोग किया है| उन की "कैवल्य" की क्या अवधारणा थी, यह तो वे ही बता सकते हैं| जहाँ तक मैं समझता हूँ, "कैवल्य" .... निर्लिप्त, असम्बद्ध और निःसंग होने की अवस्था का नाम है| इसका अर्थ कई लोग मोक्ष या मुक्ति भी लगाते हैं, जिस से मैं सहमत नहीं हूँ| कैवल्य का अर्थ निःसंग, असम्बद्ध और निर्लिप्त ही हो सकता है| शायद "कैवल्य" और "वीतरागता" एक ही अवस्था का नाम हो, कुछ कह नहीं सकता|
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यह एक नास्तिक धर्म है जो वेदों को अपौरुषेय नहीं मानता| इसमें ईश्वर की परिकल्पना नहीं है, सिर्फ तीर्थंकर, मुनि, आचार्य और उपाध्याय ही हैं| भारत की नास्तिक परम्परा में दो मुख्य धर्म हैं ..... जैन धर्म और बौद्ध धर्म, जो दोनों ही नास्तिक हैं, जिन्होंने जीवन में ईश्वर की आवश्यकता नहीं मानी| आत्मा की शाश्वतता, पुनर्जन्म और कर्मफलों का सिद्धांत .... ये तो भारत में जन्में सभी आस्तिक व नास्तिक धर्मों में है|
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इस धर्म में अनेक बड़े बड़े विद्वान् और दार्शनिक हुए हैं| आधुनिक युग में भी हमारे ही झुंझुनू जिले के टमकोर गाँव में जन्में आचार्य महाप्रज्ञ थे, जो अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी, परम विद्वान् और बहुत प्रसिद्ध तपस्वी संत थे| उन्हीं के उत्तराधिकारी चुरू जिले के सरदारशहर गाँव में जन्में विद्वान् आचार्य महाश्रमण हैं जो वर्तमान में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय के आचार्य हैं|
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पुनश्चः सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
कृपा शंकर
२९ मार्च २०१८