Thursday, 29 March 2018

महावीर जयंती की शुभ कामनाएँ .....

जैन धर्म के २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती पर मैं उनके सभी अनुयायियों का और जैन मतावलम्बी अपने सभी मित्रों का अभिनन्दन करता हूँ|
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जहाँ तक मैं समझा हूँ, "जैन" शब्द का अर्थ है .... जीतने वाला .... यानि जिसने अपने मन को, इन्द्रियों को, वाणी को और काया को जीत लिया है, वह जैन है|
जैन धर्म का उद्देश्य है ... "वीतरागता", यानि एक ऐसी अवस्था को प्राप्त करना जो राग, द्वेष और अहंकार से परे हो|
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भगवान महावीर के अनेकान्तवाद और स्यादवाद के दर्शन ने वर्षों पूर्व मुझे अपनी ओर आकर्षित किया था इस लिए मैंने उनका अध्ययन भी किया| भगवान महावीर ने "कैवल्य" शब्द का भी प्रयोग किया है| उन की "कैवल्य" की क्या अवधारणा थी, यह तो वे ही बता सकते हैं| जहाँ तक मैं समझता हूँ, "कैवल्य" .... निर्लिप्त, असम्बद्ध और निःसंग होने की अवस्था का नाम है| इसका अर्थ कई लोग मोक्ष या मुक्ति भी लगाते हैं, जिस से मैं सहमत नहीं हूँ| कैवल्य का अर्थ निःसंग, असम्बद्ध और निर्लिप्त ही हो सकता है| शायद "कैवल्य" और "वीतरागता" एक ही अवस्था का नाम हो, कुछ कह नहीं सकता|
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यह एक नास्तिक धर्म है जो वेदों को अपौरुषेय नहीं मानता| इसमें ईश्वर की परिकल्पना नहीं है, सिर्फ तीर्थंकर, मुनि, आचार्य और उपाध्याय ही हैं| भारत की नास्तिक परम्परा में दो मुख्य धर्म हैं ..... जैन धर्म और बौद्ध धर्म, जो दोनों ही नास्तिक हैं, जिन्होंने जीवन में ईश्वर की आवश्यकता नहीं मानी| आत्मा की शाश्वतता, पुनर्जन्म और कर्मफलों का सिद्धांत .... ये तो भारत में जन्में सभी आस्तिक व नास्तिक धर्मों में है|
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इस धर्म में अनेक बड़े बड़े विद्वान् और दार्शनिक हुए हैं| आधुनिक युग में भी हमारे ही झुंझुनू जिले के टमकोर गाँव में जन्में आचार्य महाप्रज्ञ थे, जो अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी, परम विद्वान् और बहुत प्रसिद्ध तपस्वी संत थे| उन्हीं के उत्तराधिकारी चुरू जिले के सरदारशहर गाँव में जन्में विद्वान् आचार्य महाश्रमण हैं जो वर्तमान में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय के आचार्य हैं|
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पुनश्चः सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
कृपा शंकर
२९ मार्च २०१८

२९ मार्च १९१४ को श्रीमाँ और श्रीअरविंद की भेंट .....

२९ मार्च १९१४ को श्रीमाँ ने पोंडिचेरी आकर श्री अरविन्द से भेंट की| यह एक महान ऐतिहासिक घटना थी जिसका पूरे विश्व की आध्यात्मिक चेतना पर प्रभाव पड़ा| भारत की स्वतंत्रता पर भी इसका प्रभाव पडा और भारत की स्वतंत्रता सुनिश्चित हुई|

श्री अरविन्द ने आश्रम का व सम्बन्धित सारा कार्य श्रीमाँ को सौंप दिया व स्वयं गहन साधना में चले गए| बाहर की दुनियाँ से उनका संपर्क सिर्फ श्रीमाँ के माध्यम से ही रहा| उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात्कार किया और भारत की स्वतंत्रता का वरदान माँगा| भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारे जन्मदिवस (15 अगस्त) को ही भारत स्वतंत्र होगा| उनका उत्तरपाड़ा में दिया भाषण एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है जिसे प्रत्येक भारतीय को पढना चाहिए|

भारत के भविष्य की रूपरेखा भी वे बना कर चले गए| यह कब होगा इसका समय तो उन्होंने नहीं बताया पर यह सुनिश्चित कर के चले गए कि एक अतिमानुषी चेतना का अवतरण होगा जो भारत का रूपान्तरण कर देगी| भारत की अखण्डता की भी भविष्यवाणी उन्होंने की है|

वे इतनी गहन साधना कर सके और इतना महान साहित्य रचा जिसमें अंग्रेजी भाषा का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य -- सावित्री -- भी है, श्रीमाँ के सक्रिय सहयोग के बिना सम्भव नहीं हो सकता था|

श्रीमाँ की उससे अगले दिन की डायरी का यह लेखन है ----
“It matters little that there are thousands of beings plunged in the densest ignorance, He whom we saw yesterday is on earth; his presence is enough to prove that a day will come when darkness shall be transformed into light, and Thy reign shall be indeed established upon earth.”
- The Mother
30 March 1914.

धर्म उसी की रक्षा करेगा जो धर्म की रक्षा करेंगे .....

धर्म उसी की रक्षा करेगा जो धर्म की रक्षा करेंगे .....
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"आध्यात्मिक साधना" और "धर्माचरण" से ही हमारे धर्म की रक्षा हुई है और भविष्य में भी इन्हीं से होगी| जो धर्मरक्षा की बाते करते हैं वे सर्वप्रथम तो अपने निज जीवन में अपने नित्य कर्मों का पालन करें जो उनका धर्म है, फिर धर्मरक्षा की बातें करें| धर्म ही हमारी रक्षा करेगा|
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मनु महाराज का कथन है ....
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः| तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्|| (म.स्म.८:१५)
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गीता में भी भगवान ने कहा है ....
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्|| (२:४०)
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कणाद ऋषि ने वैशेषिक सूत्रों में धर्म को इस प्रकार परिभाषित किया है .... "यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धि: स धर्म:|" (वै.सू.१:१:२)
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मनु महाराज ने धर्म के दस लक्षण बताएँ हैं .....
धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:| धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌|| (म.स्‍म.६:९२)
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पद्मपुराण में कहा गया है .....
श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम्| आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्|| (पद्म.पु.शृष्टि.१९:३५७-३५८)
पद्मपुराण में ही धर्म की रक्षा के उपाय बताये गए हैं ....
ब्रह्मचर्येण सत्येन तपसा च प्रवर्तते| दानेन नियमेनापि क्षमा शौचेन वल्लभ||
अहिंसया सुशांत्या च अस्तेयेनापि वर्तते| एतैर्दशभिरगैस्तु धर्ममेव सुसूचयेत||
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याज्ञवल्क्य ऋषि ने धर्म के नौ साधन बताये है .....
अहिंसा सत्‍यमस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:| दानं दमो दया शान्‍ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्‌||
महाभारत में महात्मा विदुर ने इज्या (यज्ञ-याग, पूजा आदि), अध्ययन, दान, तप, सत्य, दया, क्षमा और अलोभ को धर्म बताया है|
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श्रीमद्भागवत के सप्तम स्कन्ध में धर्म के तीस लक्षण बतलाये हैं और वे बड़े ही महत्त्व के हैं|
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रामचरितमानस के लंका काण्ड में भी संत तुलसीदास जी ने धर्म क्या है इसको स्पष्ट किया है|
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धर्म सदा हम सब भारतीयों के जीवन का केंद्र बिंदु रहा है और धर्म ही भारत का प्राण है| अतः हमारा आचरण धर्ममय हो, यह धर्म ही हमारी रक्षा करेगा| भगवान से हमारी प्रार्थना है कि हमारा आचरण धर्ममय हो और धर्म सदा हमारी सदा रक्षा करे| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर
२९ मार्च २०१८