हर मनुष्य अपने Religion का चुनाव स्वयं करे ......
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क्या मनुष्य जाति के भाग्य में ऐसा भी दिन आयेगा कि हर व्यक्ति समझदार होकर अपने मत / पंथ / मजहब / Religion का चुनाव स्वयं करेगा?
क्या पागलपन है कि ईसाई के घर में जन्मा तो ईसाई, मुसलमान के घर में जन्मा तो मुसलमान, यहूदी के घर जन्मा तो यहूदी, हिन्दू के घर जन्मा तो हिन्दू, बौद्ध के घर जन्मा तो बौद्ध, और जैन के घर जन्मा तो जैन हो गया|
........... क्या यह पागलपन और मुर्खता नहीं है? हिन्दू के घर जन्मा यदि सेकुलर हो जाए तो यह एक अलग ही प्रजाति है|
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किसी भी Religion की श्रेष्ठता का क्या मापदंड हो सकता है?
कोई शिशु समझदार तो होता ही नहीं है, उससे पूर्व ही उस पर मुखौटे ओढा दिए जाते हैं तुम फलाँ फलाँ हो| क्या यह कृत्रिमता नहीं है? मनुष्य जन्म लेता है तब कोरा कागज़ होता है, अकेला होता है, उसे जब भीड़ के साथ जोड़ दिया जाता है तब उसकी आत्मा खो जाती है|
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कम से कम समझदार होने पर हर मनुष्य को यह अवसर मिलना चाहिए कि वह यह निर्णय ले सके कि कौन सा मत/पंथ/सिद्धान्त/Religion/मज़हब उसके लिए सर्वाधिक अनुकूल और सर्वश्रेष्ठ है| फिर उसके निर्णय में किसी अन्य को बाधा नहीं बनना चाहिए|
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इस विषय पर देश-विदेश में मेरी अनेक प्रबुद्ध स्वतंत्र विचारकों से चर्चा हुई है| कई तरह तरह के विचित्र विचित्र उत्तर मुझे लोगों से मिले हैं| धीरे धीरे जैसे जैसे मनुष्य की चेतना विकसित होगी, मानव जाति इसी दिशा में आगे बढ़ेगी|
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यह सत्य नहीं है कि सभी मार्ग एक ही गंतव्य पर जाते हैं| हो सकता हो कि कोई मार्ग सिर्फ भूल-भुलैया ही हो, कहीं भी नहीं जाता हो, या घूम फिर कर वहीं बापस पहुंचा देता हो|
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महाभारत में इसका सही उत्तर है ....
धर्मस्य तत्वं निहितम् गुहायां, महाजनो येन गतः सः पन्था |
यानि महापुरुष जिस मार्ग पर चले हों वही मार्ग सर्वश्रेष्ठ है| परमात्मा की अहैतुकी भक्ति, परम प्रेम, समर्पण, आध्यात्म और आत्मसाक्षात्कार आदि की अवधारणा ही मेरी दृष्टी में धर्म है|
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क्या मनुष्य जाति के भाग्य में ऐसा भी दिन आयेगा कि हर व्यक्ति समझदार होकर अपने मत / पंथ / मजहब / Religion का चुनाव स्वयं करेगा?
क्या पागलपन है कि ईसाई के घर में जन्मा तो ईसाई, मुसलमान के घर में जन्मा तो मुसलमान, यहूदी के घर जन्मा तो यहूदी, हिन्दू के घर जन्मा तो हिन्दू, बौद्ध के घर जन्मा तो बौद्ध, और जैन के घर जन्मा तो जैन हो गया|
........... क्या यह पागलपन और मुर्खता नहीं है? हिन्दू के घर जन्मा यदि सेकुलर हो जाए तो यह एक अलग ही प्रजाति है|
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किसी भी Religion की श्रेष्ठता का क्या मापदंड हो सकता है?
कोई शिशु समझदार तो होता ही नहीं है, उससे पूर्व ही उस पर मुखौटे ओढा दिए जाते हैं तुम फलाँ फलाँ हो| क्या यह कृत्रिमता नहीं है? मनुष्य जन्म लेता है तब कोरा कागज़ होता है, अकेला होता है, उसे जब भीड़ के साथ जोड़ दिया जाता है तब उसकी आत्मा खो जाती है|
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कम से कम समझदार होने पर हर मनुष्य को यह अवसर मिलना चाहिए कि वह यह निर्णय ले सके कि कौन सा मत/पंथ/सिद्धान्त/Religion/मज़हब उसके लिए सर्वाधिक अनुकूल और सर्वश्रेष्ठ है| फिर उसके निर्णय में किसी अन्य को बाधा नहीं बनना चाहिए|
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इस विषय पर देश-विदेश में मेरी अनेक प्रबुद्ध स्वतंत्र विचारकों से चर्चा हुई है| कई तरह तरह के विचित्र विचित्र उत्तर मुझे लोगों से मिले हैं| धीरे धीरे जैसे जैसे मनुष्य की चेतना विकसित होगी, मानव जाति इसी दिशा में आगे बढ़ेगी|
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यह सत्य नहीं है कि सभी मार्ग एक ही गंतव्य पर जाते हैं| हो सकता हो कि कोई मार्ग सिर्फ भूल-भुलैया ही हो, कहीं भी नहीं जाता हो, या घूम फिर कर वहीं बापस पहुंचा देता हो|
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महाभारत में इसका सही उत्तर है ....
धर्मस्य तत्वं निहितम् गुहायां, महाजनो येन गतः सः पन्था |
यानि महापुरुष जिस मार्ग पर चले हों वही मार्ग सर्वश्रेष्ठ है| परमात्मा की अहैतुकी भक्ति, परम प्रेम, समर्पण, आध्यात्म और आत्मसाक्षात्कार आदि की अवधारणा ही मेरी दृष्टी में धर्म है|
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