Saturday, 24 June 2017

हर मनुष्य अपने Religion का चुनाव स्वयं करे ......

हर मनुष्य अपने Religion का चुनाव स्वयं करे ......
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क्या मनुष्य जाति के भाग्य में ऐसा भी दिन आयेगा कि हर व्यक्ति समझदार होकर अपने मत / पंथ / मजहब / Religion का चुनाव स्वयं करेगा?
क्या पागलपन है कि ईसाई के घर में जन्मा तो ईसाई, मुसलमान के घर में जन्मा तो मुसलमान, यहूदी के घर जन्मा तो यहूदी, हिन्दू के घर जन्मा तो हिन्दू, बौद्ध के घर जन्मा तो बौद्ध, और जैन के घर जन्मा तो जैन हो गया|
........... क्या यह पागलपन और मुर्खता नहीं है? हिन्दू के घर जन्मा यदि सेकुलर हो जाए तो यह एक अलग ही प्रजाति है|
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किसी भी Religion की श्रेष्ठता का क्या मापदंड हो सकता है?
कोई शिशु समझदार तो होता ही नहीं है, उससे पूर्व ही उस पर मुखौटे ओढा दिए जाते हैं तुम फलाँ फलाँ हो| क्या यह कृत्रिमता नहीं है? मनुष्य जन्म लेता है तब कोरा कागज़ होता है, अकेला होता है, उसे जब भीड़ के साथ जोड़ दिया जाता है तब उसकी आत्मा खो जाती है|
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कम से कम समझदार होने पर हर मनुष्य को यह अवसर मिलना चाहिए कि वह यह निर्णय ले सके कि कौन सा मत/पंथ/सिद्धान्त/Religion/मज़हब उसके लिए सर्वाधिक अनुकूल और सर्वश्रेष्ठ है| फिर उसके निर्णय में किसी अन्य को बाधा नहीं बनना चाहिए|
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इस विषय पर देश-विदेश में मेरी अनेक प्रबुद्ध स्वतंत्र विचारकों से चर्चा हुई है| कई तरह तरह के विचित्र विचित्र उत्तर मुझे लोगों से मिले हैं| धीरे धीरे जैसे जैसे मनुष्य की चेतना विकसित होगी, मानव जाति इसी दिशा में आगे बढ़ेगी|
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यह सत्य नहीं है कि सभी मार्ग एक ही गंतव्य पर जाते हैं| हो सकता हो कि कोई मार्ग सिर्फ भूल-भुलैया ही हो, कहीं भी नहीं जाता हो, या घूम फिर कर वहीं बापस पहुंचा देता हो|
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महाभारत में इसका सही उत्तर है ....
धर्मस्य तत्वं निहितम् गुहायां, महाजनो येन गतः सः पन्था |
यानि महापुरुष जिस मार्ग पर चले हों वही मार्ग सर्वश्रेष्ठ है| परमात्मा की अहैतुकी भक्ति, परम प्रेम, समर्पण, आध्यात्म और आत्मसाक्षात्कार आदि की अवधारणा ही मेरी दृष्टी में धर्म है|

ॐ ॐ ॐ ||

एक पुरानी स्मृति .... बीते हुए कल के हीरो हुए आज जीरो .....

एक पुरानी स्मृति ....
(संसार में कल के बने हीरो आज जीरो हैं, और आज के हीरो बनने वाले कल को जीरो बन जायेंगे)
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आज से ३७ वर्ष पहिले की बात है| सन १९८० में मैं पंद्रह-बीस दिनों के लिए उत्तरी कोरिया गया हुआ था| वहाँ बाहरी विश्व से किसी भी तरह का कोई समाचार सुनना या पढ़ना असम्भव था| उन दिनों तक मेरा रूसी भाषा का ज्ञान बहुत अच्छा था, अतः वहाँ सम्बंधित लोगों से बातचीत में कोई कठिनाई नहीं आती थी क्योंकि सब को रूसी भाषा आती थी| रूसी लोग भी वहाँ काम करते थे| एक दिन सुबह सुबह दो रूसी सज्जन बड़े उदास होकर मुँह लटकाए एक रूसी समाचार पत्र के साथ आये और संवेदना प्रकट करते हुए कहा कि बहुत बुरी खबर है ..... सोवियत संघ में अति लोकप्रिय, आपके देश की प्रधानमंत्री का पुत्र वायुयान दुर्घटना में मारा गया है| उस रूसी अखबार में संजय गाँधी की फोटो भी थी| उसी से पता चला कि संजय गाँधी वायुयान दुर्घटना में मारे गए हैं|
उस घटना के लगभग दो माह बाद एक बार मैं दिल्ली से बीकानेर जा रहा था जहाँ उन दिनों मेरा परिवार रहता था| प्रथम श्रेणी के उस डिब्बे में मेरी सामने वाली बर्थ पर स्वर्गीय राजेश पायलट भी सपत्नीक बीकानेर जा रहे थे| रात को नींद नहीं आई और पूरी रात उनसे बातचीत में ही बीत गयी|
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संजय गाँधी की आज पुण्य तिथि है| १९७५ में लगे आपात्काल में प्रधानमंत्री का पद चाहे इंदिरा गाँधी के पास रहा हो, पर देश के प्रशासन पर चलती संजय गाँधी की ही थी| संजय गाँधी की मर्जी के बिना देश में एक पत्ता भी नहीं हिलता था| सारे मंत्री और सारे सरकारी अधिकारी संजय गाँधी के सामने डर से थरथर काँपते थे| सारे देश में उनका आतंक था| आपात्काल के पश्चात बनी जनता दल की मोरारजी भाई देसाई की सरकार को गिराने में भी संजय गाँधी की कुशाग्रता या कुटिलता को ही श्रेय जाता है| यह एक विवाद का विषय है कि वे वायुयान दुर्घटना में मरे या किसी षडयंत्र में (उनके बारे में अनगिनत लेख लिखे गए थे जो गूगल पर ढूँढने से मिल जायेंगे)|
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आज संजय गाँधी का नाम लेने वाला कोई नहीं है| उनके बारे में कहीं कोई समाचार नहीं है| पता नहीं उनके परिवार वाले भी उनकी समाधि पर पुष्पांजली देने जाते हैं या नहीं|

सार की बात यह है कि कल तक जो हीरो थे, वे आज जीरो हैं| अतः हीरो बनने में कोई सार नहीं है| जीरो बनकर रहना ही अच्छा है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

पता नहीं यह दे बापस मिले या न मिले ...

पता नहीं यह दे बापस मिले या न मिले ...
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अभी तो यह बुद्धि थोड़ा बहुत काम कर रही है, अतः जितना लाभ इससे ले सकता हूँ वह मुझे ले लेना चाहिए| फिर पता नहीं है कि यह बापस मिले या न मिले|
मुझे यह आभास हो रहा है कि इस जन्म में इस शरीर महाराज की मृत्यु से पूर्व यदि आत्मज्ञान प्राप्त नहीं हुआ तो बापस यह लोक या इस से अच्छे लोक मिलेंगे या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है| हो सकता है कई जन्मों तक भटकने के उपरांत बापस यह नरदेह मिले और इस जन्म में जहाँ से छोड़ा था, फिर वहीं से प्रारम्भ करना पड़े| यह शरीर महाराज अब जीर्ण होना आरम्भ हो गया है| बहुत कम समय बचा है|
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हे परमशिव यदि कुछ अनहोनी हो भी जाए और बापस जन्म लेना ही पड़े तो उचित वातावरण में यह नर देह ही देना, किसी भोगभूमि में मत भेजना|
हे परमशिव, आप ही मेरी करुणामयी माता भी हो, अतः इस शरीर महाराज की मृत्यु से पूर्व ही अपना तत्त्व-बोध भी करा दो| मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए| मुझे विषयों में रमण मत कराओ| मेरा रमण निरंतर आप में ही हो|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

हमारा ब्रह्मभाव जागृत क्यों नहीं होता ? .....

हमारा ब्रह्मभाव जागृत क्यों नहीं होता ? .....
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अहंकार, राग-द्वेष, क्रोध, और कामवासना ..... ये जब तक हैं तब तक ब्रह्मभाव जागृत नहीं हो सकता| इनसे मुक्त होने का एक ही उपाय है, और वह है ...... यथासंभव पूर्ण प्रेम पूर्वक आत्माकार वृत्ति से परमात्मा का ध्यान, ध्यान, ध्यान और ध्यान|
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"अहं" शब्द केवल प्रत्यगात्मा यानि परमात्मा के लिए ही प्रयुक्त होना चाहिए, न कि इस देह, बुद्धि और मन के लिए| हमारी चेतना सिर्फ सच्चिदानंद में ही स्थित रहे, ऐसा अनवरत प्रयास हो| हम इस मन, बुद्धि और शरीर को "अहं" मानते हैं, यही अहंकार है|
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हे अकारणकरुणावरुणालय, परमप्रिय, परमशिव, हमारी चेतना क्षणमात्र के लिए भी आपसे विमुख न हो| यही हमारी प्रार्थना है|

ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

हम मुक्त कैसे हों ? ....

हम मुक्त कैसे हों ? ....

इसका एकमात्र उत्तर जो मेरी सीमित व अल्प बुद्धि सोच सकती है वह है .... "परम प्रेम यानि पूर्ण भक्ति को जागृत कर गहन ध्यान साधना द्वारा अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का परमात्मा में पूर्ण विसर्जन|" ...... अन्य कोई मार्ग मेरी दृष्टी में नहीं है|
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वेदांत के शिखर पुरुष स्वामी रामतीर्थ से किन्हीं अनजान लोगों ने पूछा :
"आप देवों के देव हैं ?"
"हाँ|"
"आप ईश्वर हैं ?"
"हाँ, मैं ईश्वर हूँ.... ब्रह्म हूँ|"
"सूरज, चाँद, तारे आपने बनाये ?"
"हाँ, जब से हमने बनाये हैं तबसे हमारी आज्ञा में चल रहे हैं|"
"आप तो अभी आये| आप की उम्र तो तीस-इक्कतीस साल की है |"
"तुम इस विषय में बालक हो| मेरी उम्र कभी हो नहीं सकती| मेरा जन्म ही नहीं तो मेरी उम्र कैसे हो सकती है ? जन्म इस शरीर का हुआ| मेरा कभी जन्म नहीं हुआ|"
न मे मृत्युशंका न में जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः|
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ||
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | शिवोहं शिवोहं | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |
ॐ ॐ ॐ ||

मन में आने वाले दूषित विचारों पर लगाम लगाएँ .....


मन में आने वाले दूषित विचारों पर लगाम लगाएँ  .....
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मन में आने वाले दूषित विचारों पर यदि लगाम नहीं लगाई जाए तो सुषुम्ना में कुण्डलिनी का ऊर्ध्वगमन थम जाता है, सहस्त्रार में आनंद रूपी अमृत का प्रवाह बंद हो जाता है, सारे आध्यात्मिक अनुभव स्मृति से लुप्त होने लगते हैं, और उन्नति के स्थान पर अवनती आरम्भ हो जाती है| बहुत कीमती मूल्य चुका कर यह बात मेरे समझ में आई है|
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अतः हर समय अपने विचारों के प्रति सचेत रहें और चिंतन सदा परमात्मा का ही रहे|
जब भी कोई बुरा विचार आये तब अपने इष्ट देव का स्मरण और ॐ शिव शिव शिव शिव शिव का जाप आरम्भ कर दें| भगवान परम शिव अपने शरणागत की सदा रक्षा करते हैं|
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वह परिवर्तन हम स्वयं हैं जो विश्व में हम होते हुए देखना चाहते हैं
नित्य नियमित परमात्मा का ध्यान करने का संकल्प लें| सिर्फ बातों से कुछ नहीं होगा| परिवर्तन एक एक व्यक्ति में ही होता है| हम स्वयं बदलेंगे तो सारा युग बदलेगा| अन्धकार का सकारात्मक प्रतिकार निरंतर होना चाहिए| कोई भी संकल्प और कोई भी योजना तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक हम स्वयं ध्यान साधना न करें| पूरे विश्व में उथल-पुथल हो जाए तो भी हमारे ह्रदय में शान्ति बनी रहनी चाहिए| यह शांति ध्यान-साधना द्वारा ही संभव है| जीवन की सारी समस्याओं का समाधान ध्यान साधना द्वारा ही करें क्योंकि ध्यान साधना में जागृत परमात्मा की शक्ति ही सृष्टि की धारा को बदलने में पूर्णतः सक्षम है|
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ॐ तत्सत | ॐ ॐ ॐ ||

जाति हमारी ब्रह्म है, माता-पिता हैं राम .....

जाति हमारी ब्रह्म है, माता-पिता हैं राम |
घर हमारा शुन्य में, अनहद में विश्राम ||

इस संसार में अपने प्रारब्ध कर्मों का भोग भोगने के लिए बाध्य होकर हम सब को आना ही पड़ा है| तब कोई विकल्प नहीं था| पर अब तो राग-द्वेष भी नष्टप्राय हो चुका है| एकमात्र सम्बन्ध भी सिर्फ परमात्मा से ही रह गया है|

जाति हमारी "अच्युत" है यानि जो जाति परमात्मा की है, वही जाति हमारी भी है| सांसारिक जातियाँ तो इस नश्वर देह महाराज की हैं, इस शाश्वत जीवात्मा की नहीं| इस नश्वर देह महाराज के अवसान के पश्चात् यह नश्वर जाति भी नष्ट हो जायेगी| साथ सिर्फ परमात्मा का ही होगा|

परमात्मा की अनंतता ही हमारा घर है और प्रणव रूपी अनाहत नाद का श्रवण ही विश्राम है| परमात्मा का और हमारा साथ शाश्वत है|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

चेतना को छल-कपट से मुक्त करें ......


चेतना को छल-कपट से मुक्त करें ......
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प्रातःकाल में जब प्रकृति शांत होती है, तब उठें, कुछ देर प्राणायाम कर के पूर्व या उत्तर की ओर मुँह कर के कुशासन या ऊनी आसन पर बैठ जाएँ| आपको ह्रदय की धड़कन या तो सुनाई देगी या उसकी अनुभूति होगी| ह्रदय की हर धड़कन पर अपने गुरु प्रदत्त बीज मन्त्र का या ओंकार का मानसिक जप करते रहें| जप की गति उस से तीब्र यानि अधिक भी कर सकते हैं पर कम नहीं| यह जप निरंतर चलता रहे, कभी रुके नहीं| अब किसी भी बाहरी ध्वनि को भूल जाएँ ओर अंतर में सुनाई दे रही ब्रह्मांड की ध्वनी को ही अवचेतन मन में सुनते रहें जो हमारा जप है| यह हमारा स्वभाव बन जाना चाहिए| आगे का मार्गदर्शन स्वयं परमात्मा करेंगे|
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इन बीजमंत्रों के जाप से विशुद्ध बुद्धि और परानिष्ठा की प्राप्ति होगी| छल-कपट और राग-द्वेष से रहित बुद्धि ..... विशुद्ध बुद्धि कहलाती है जो हमें साधना से ही प्राप्त होती है| मन में कपट होगा तो बुद्धि में भी कपट होगा| जहां छल-कपट और राग-द्वेष होगा वहाँ भगवान नहीं आते| घर में भी कोई अतिथि आता है तो उसके स्वागत के लिए घर में साफ़-सफाई करते हैं| यहाँ तो हम साक्षात परमात्मा को आमंत्रित कर रहे हैं| परमात्मा को अपने चेतना में प्रतिष्ठित करने के लिए चेतना को छल-कपट रूपी गन्दगी से मुक्त करना होगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२० जून २०१७

बंगाल में गोरखा प्रदेश की माँग पूर्णतः न्यायसंगत और न्यायोचित है ...

बंगाल में गोरखा प्रदेश की माँग पूर्णतः न्यायसंगत और न्यायोचित है .......
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कल मैंने एक पंक्ति प्रस्तुत कर बंगाल के दार्जिलिंग में हो रहे गोरखा आन्दोलन का समर्थन किया था| उसको अनेक लोगों ने पसंद भी किया, और कुछ लोगों ने प्रतिप्रश्न भी पूछा था कि क्या मुझे वहाँ की परिस्थितियों का ज्ञान है?
कल उनको पूरा उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं था अतः मैनें वह प्रस्तुति ही हटा दी थी| आज में कम से कम शब्दों में गोरखाप्रदेश आन्दोलन की पृष्ठ भूमि बताना चाहता हूँ|
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> सन १७८० ई. तक दार्जिलिंग और सिलिगुड़ी सिक्किम का भाग थे|
> सन १७८० ई. में नेपाल ने सिक्किम पर आक्रमण कर वहाँ अपना अधिकार कर लिया था|
> अँगरेज़ सेना नेपाल को तो जीत नहीं पाई थी पर सिक्किम को गुरखाओं से मुक्त कराने के लिए सन १८१४ ई. में अँगरेज़ सेना ने सिक्किम में एंग्लो-गोरखा युद्ध कर के गोरखाओं को पराजित कर दिया|
> सन १८१५ ई.में हुई सुगोली की संधि के अनुसार यह सारा क्षेत्र ब्रिटिश सरकार ने अपने अधिकार में ले लिया|
> सन १८१७ ई. में हुई टटियालिया की संधि के अनुसार सिक्किम का क्षेत्र अंग्रेजों ने सिक्किम के चोग्याल को बापस सौंप दिया,
> पर सन १८३५ ई. में दार्जिलिंग के १३८ वर्गमील के क्षेत्र को सिक्किम के चोग्याल ने अंग्रेजों को भेंट में दे दिया| उसी समय अंग्रेजों ने भूटान के किल्मपोंग को भी अपने अधिकार में ले लिया|
> सन १८६६ ई. में अंग्रेजों ने दार्जिलिंग जिले का निर्माण किया और अंग्रेजों के रहने योग्य मानकर इसका खूब विकास किया|
> आज़ादी के पश्चात नेपाल भी भारत में विलय होना चाहता था, पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने नेपाल को भारत में नहीं मिलने दिया क्योंकि नेपाल के राजा इसका घोषित हिन्दू राष्ट्र का दर्जा बरकरार ही रखना चाहते थे जो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री को पसंद नहीं था| सूचनार्थ यह भी बताना चाहूँगा कि उत्तराखंड का कुमायूँ हिमालय का अधिकाँश क्षेत्र भी कभी नेपाल का ही भाग था जिसे अंग्रेजों ने नेपाल से छीन लिया था|
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> अंग्रेजों ने अपने प्रिय दार्जिलिंग क्षेत्र को बंगाल में मिला दिया था क्योंकि उस समय कोलकाता पूरे भारत की राजधानी थी| दार्जिलिंग क्षेत्र में गोरखाओं का बहुमत है जो बंगला भाषा का बिलकुल भी प्रयोग नहीं करते| ये देवनागरी लिपि में नेपाली भाषा का प्रयोग करते हैं| यहाँ के गोरखा लोग कट्टर हिन्दू हैं जिन्हें गोह्त्या बिलकुल भी सहन नहीं है|
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> जब बंगाल में मार्क्सवादी सत्ता में थे तब कांग्रेस ने मार्क्सवादियों को परेशान करने के लिए अलग गोरखालैंड की माँग का पूरा समर्थन किया था| एक पूर्व फौजी सुभाष घीसिंग जिसने यह आन्दोलन आरम्भ किया था वह पक्का कोंग्रेसी और राजीव गाँधी का भक्त था| उसे राजीव गाँधी का पूरा समर्थन प्राप्त था| सन १९८८ ई. तक इस आन्दोलन में बारह सौ से अधिक लोग सरकारी आंकड़ों के अनुसार मारे जा चुके थे|
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> सन १९८८ में ही एक स्वशासी दार्जिलिंग गोरखा कोंसिल बना कर इस क्षेत्र का प्रशासन उसे सौंप दिया गया| सन २००४ में इस आन्दोलन में फूट पड़ गयी|
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> सन २००९ के आम चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी ने वादा किया था कि यदि वे बापस सत्ता में आये तो तेलंगाना और गोरखालैंड नाम के दो नए राज्य बनाएँगे| इस क्षेत्र के लोगों ने भाजपा का पूरा समर्थन किया और राजस्थान के रहने वाले जसवंत सिंह को यहाँ से सांसद बना कर लोकसभा में भेजा|
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> सन २०११ के विधानसभा के चुनाव में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के चार विधायक जीते| ३० जुलाई २०१३ को कोंग्रेस ने पृथक तेलंगाना राज्य का प्रस्ताव पास कर दिया| पश्चिमी बंगाल सरकार ने पृथक गोरखालैंड नहीं बनने दिया और गोरखा जनमुक्ति आन्दोलन के सभी नेताओं को बंदी बना लिया|
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> पश्चिमी बंगाल में सन १९६१ में नेपाली भाषा को राज्य भाषा का दर्जा मिल गया था| सन १९९२ में नेपाली भाषा को भारत सरकार ने भारतवर्ष की एक सरकारी भाषा की मान्यता दे दी थी|
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> अब बंगाल की वर्त्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाली भाषा को यहाँ अनिवार्य कर दिया है जिसके विरोध में पृथक गोरखालेंड का हिंसक आन्दोलन प्रारम्भ हो गया है| यह यहाँ के लोगों के विरुद्ध एक वचन भंग हुआ है|
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अब मैं इसका निर्णय पाठकों पर छोड़ता हूँ की एक पृथक गोरखा प्रदेश की मांग न्यायसंगत है या नहीं| अगर यह बंगाल का ही भाग रहा तो बांग्लादेशियों से भर जाएगा, यह भी विचार का विषय है|
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जय जननी जय भारत ! ॐ ॐ ॐ ||