Tuesday 28 September 2021

अब उनकी ओर निहारें या उनके बारे में लिखें? ---

 

अब उनकी ओर निहारें या उनके बारे में लिखें?
फेसबुक पर जो कुछ जैसा भी मुझे आता-जाता है, वैसे ही लेख लिखता आ रहा हूँ| वही लिखा जिस को लिखने की प्रेरणा मिली| भगवान के प्रेम पर तो लिखना अब अति कठिन है क्योंकि अब उनकी ओर निहारें या उनके बारे में लिखें?
सारी भागदौड़ और दूसरों के पीछे भागना बंद हो गया है| जहाँ भी मैं हूँ, वहीं हर समय भगवान मेरे साथ हैं| जीवन में तृप्ति, संतुष्टि और आनंद है| सभी सत्संगी मित्रों को धन्यवाद, जिनसे मैंने बहुत कुछ सीखा और जिन्होंने मुझे खूब प्रोत्साहन और साथ दिया| समय समय पर फेसबुक पर आता रहूँगा|
"चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ||" "हरिः ॐ तत्सत् !!"
२९ सितंबर २०२०

अर्मेनिया और तुर्की सदा से ही एक दूसरे के कट्टर शत्रु रहे हैं ---

(दिनांक २९ सितंबर २०२० को लिखा लेख)

आज अभी कुछ देर पहिले एक टीवी चैनल पर समाचार देखा कि तुर्की को प्रसन्न करने के लिए पाकिस्तान, आर्मेनिया से लड़ने के लिए अपने सैनिक और जिहादी आतंकियों को अज़रबेजान भेज रहा है| यह समाचार पढ़कर बड़ा अच्छा लगा| यह आज की सबसे अच्छी खबर थी| देखते हैं, पाकिस्तान वहाँ कौन सी तोप चलाता है?
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अर्मेनिया और तुर्की दोनों ही सदा से एक दूसरे के कट्टर शत्रु रहे हैं, वैसे ही जैसे तुर्की और ग्रीस| इसका एकमात्र कारण है अर्मेनिया का कट्टर ईसाई होना, व तुर्की का कट्टर सुन्नी मुसलमान होना| आर्मेनिया की राजधानी येरेवान बहुत प्राचीन नगर है, वेटिकन व रोम से भी अधिक प्राचीन| १६ वी सदी में पूर्वी आर्मेनिया फारस के अधिकार में आ गया था और पश्चिमी भाग तुर्की के अधिकार में| १९ वीं सदी में रूस ने आर्मेनिया को तुर्कों से मुक्त कराया| इस बीच तुर्कों ने लाखों अर्मेनियाई लोगों का नरसंहार किया| आर्मेनिया के कई लाख लोग विश्व के दूसरे भागों में शरणार्थी होकर भाग गए थे| अभी वहाँ की जनसंख्या मुश्किल से ३० लाख से भी कम है, जो सभी कट्टर ईसाई हैं| आर्मेनिया के पूर्व में अजरबेजान है, पश्चिम में तुर्की, उत्तर में रूस, और दक्षिण में ईरान|
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आज़रबेजान अग्निपूजक लोगों का देश था जो अग्नि को देवता मानते थे| वहाँ की खुदाई में हिन्दू देवो-देवताओं की मूर्तियाँ भी निकलती हैं| फारसियों ने वहाँ के अग्निपूजकों को मारकर अधिकांश को मुसलमान बना दिया, व अन्यों को भगा दिया| अब वहाँ ८५% शिया और १५% सुन्नी मुसलमान हैं| वहाँ की कुल जनसंख्या ९९ लाख से भी कम है|
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सोवियत संघ के विघटन तक दोनों देश सोवियत संघ के भाग थे| कोई विवाद नहीं था| स्टालिन के आदेश से नगोरना-काराबाख का ईसाई बहुल क्षेत्र आज़रबेजान को दे दिया गया था| सोवियत संघ के विघटन के बाद नगोरना-काराबाख के ईसाईयों ने विद्रोह कर स्वयं को आर्मेनिया का भाग घोषित कर दिया| यही वहाँ के युद्ध का कारण है| एक बात तो निश्चित है कि रूस कभी भी किसी कीमत पर आर्मेनिया को नहीं हारने देगा|
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तुर्की ने मुस्लिम विश्व का नेता बनने के चक्कर में यह युद्ध आरंभ किया है, जिसमें उसकी पराजय निश्चित है| मुस्लिम देश कभी एक नहीं हो सकते| तुर्क और अरब ... एक-दूसरे की शक्ल भी देखना भी पसंद नहीं करते| शिया और सुन्नियों के बीच में तो एक स्थायी दीवार खिंच गई है| पाकिस्तान अब मुस्लिम विश्व का नेता बनना चाहता है क्योंकि वह स्वयं को अणुबम होने के कारण सबसे अधिक शक्तिशाली मुस्लिम देश मानता है|
२९ सितंबर २०२१

"श्रद्धा" और "व्रत" क्या हैं? ---

 

"श्रद्धा" और "व्रत" क्या हैं?
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जीवन में जैसी हमारी "श्रद्धा" है, वही हम हैं| जैसी हमारी "श्रद्धा" होती हैं वैसे ही हम बन जाते हैं| गीता में भगवान कहते हैं ...
"सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत| श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः||१७:३||"
अर्थात् हे भारत, सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके सत्त्व (स्वभाव, संस्कार) के अनुरूप होती है| यह पुरुष श्रद्धामय है, इसलिए जो पुरुष जिस श्रद्धा वाला है वह स्वयं भी वही है अर्थात् जैसी जिसकी श्रद्धा वैसा ही उसका स्वरूप होता है||
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हमारे ऊपर जैसे संस्कार बार-बार डाले जाते हैं, वैसे ही हम बन जाते हैं| "श्रद्धा" का निर्माण "व्र्त" से होता है| "व्रत" का अर्थ भूखा रहना नहीं है| किसी नियम या विचार का वरण कर के उस पर स्थिर रहने का नाम "व्रत" है| जो हम बनना चाहते हैं, उसके संस्कार डालने पड़ेंगे, बार - बार उसको दोहराना पड़ेगा| यही वास्तविक "श्रद्धा" है और यही वास्तविक "व्रत" है|
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जैसा हम सोचते हैं वैसा ही हम बन जाते हैं| जो भी भाव गहराई से ह्रदय में बैठ जाता है, प्रकृति वैसा ही हमें बना देती है| जो और जैसे भी हम बनना चाहते हैं ह्रदय में गहराई से उसी का चिंतन करते हुए उस पर दृढ़ रहना चाहिए, हम निश्चित रूप से वह ही बन जायेंगे|
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उपास्य यानि परमात्मा के जिन गुणों का हम चिंतन करते हैं वे गुण निश्चित रूप से उपासक में आ जाते हैं| परमात्मा का निरंतर चिंतन करने से निश्चित रूप से हम मानवीय चेतना से मुक्त हो कर परमात्मा से जुड़ जाते हैं| यही अपने सच्चिदानंद स्वरूप में स्थित होना है, यही मुक्ति है| इसी के लिए ध्यान साधना की जाती है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ सितंबर २०२०