Saturday, 3 June 2017

आनन्द सिन्धु मध्य तव वासा, बिनु जाने तू मरत पियासा .....

आनन्द सिन्धु मध्य तव वासा, बिनु जाने तू मरत पियासा .....
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आज तक के इस जीवन में जितने भी संतों से मेरा सत्संग हुआ है, एक बात तो प्रायः सभी ने कही है कि मनुष्य की देह, बुद्धि, भक्ति और सत्संग लाभ पा कर भी परमात्मा का चिंतन मनन और ध्यान न करना प्रमाद यानि मृत्यु है|
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अब स्वयं के बारे में सोच कर ही विचार होता है कि मैं जीवित हूँ या मृत ?
लगता है मृत ही अधिक हूँ|
गुण गोविन्द गायो नहीं, जनम अकारथ कीन| कहे नानक हरी भज मना, जा विध जल की मीन||

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क्षण क्षण बीत गये, कितने दिन-रात, महीने-वर्ष और जीवन बीत गया| माया के पीछे भागे तो ...."माया मिली न राम" .... वाली कहावत स्वयं पर ही चरितार्थ हो गयी|
परमात्मा सामने है, उसका महासागर उमड़ रहा है, फिर भी उससे भेद है| मेरी इस पीड़ा को मैं ही जानता हूँ|
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"आनन्द सिन्धु मध्य तव वासा, बिनु जाने तू मरत पियासा|
धन्य हैं गोसांई बाबा तुलसीदासजी जो हम सब के लिए इतनी बड़ी बात कह गए कि तुम आनन्द के समुद्र में रह रहे हो, लेकिन बिना जाने प्यासे मर रहे हो|
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हे परमशिव, रक्षा करो| आप मेरे समक्ष हैं फिर भी मैं उल्टी दिशा में आपसे दूर आपकी इस मृग-मरीचिका रूपी माया के पीछे भाग रहा हूँ|
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त्राहीमाम् त्राहीमाम् त्राहीमाम् रक्षा करो हे राम ! अपने ध्यान से मुझे विमुख मत करो | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
०३ जून २०१७