Friday, 11 August 2017

अल्पसंख्यक कौन है ? खतरे में तो भारत की अस्मिता है ....

अल्पसंख्यक कौन है ? खतरे में तो भारत की अस्मिता है ....
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भारत में अल्पसंख्यक होने का मापदंड क्या है ? कश्मीर से मार मार कर सब हिन्दुओं को भगा दिया गया है | दो चार बेचारे इधर उधर छिप कर रह रहे हैं, पर उनको अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त नहीं है | अल्पसंख्यक होने की सुविधा सिर्फ मुसलमानों को है जो वहाँ अन्य किसी को सहन नहीं करते | भारत की सब सरकारें देश के हिन्दुओं का खून चूसकर कश्मीरी मुस्लिमों को ही विशेष सुविधाएँ देती रही हैं | केरल, बंगाल और त्रिपुरा में हिन्दुओं की हत्याएँ नित्य हो रही हैं | पकिस्तान और बांग्लादेश तो हिन्दुओं के लिए नर्क हैं | भारत में ही हिन्दुओं को विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार नहीं है जो मुसलमानों और ईसाईयों को प्राप्त है | हिन्दू भावनाओं को नित्य आहत किया जा रहा है | अतः असुरक्षित तो हिन्दू हैं | हिन्दू ही वास्तविक अल्पसंख्यक हैं |
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भारत का सबसे बड़ा रिलिजन इस्लाम है .......
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हिंदुत्व कोई धर्म या रिलिजन नहीं है | हिन्दू कोई धर्म नहीं, एक जीवन पद्धति है जो शैव, वैष्णव, शाक्त, नाथ, आर्यसमाजी, राधास्वामी, कबीरपंथी, दादूपंथी, आदि सम्प्रदायों में बँटी हुई है | ये सम्प्रदाय रिलिजन नहीं हैं | इस हिसाब से इस्लाम भारत का सबसे बड़ा बहुसंख्यक रिलिजन है | ये शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य, नाथ, आर्यसमाजी, राधास्वामी, आदि आदि ये सब सम्प्रदाय अल्पसंख्यक हैं |
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कोई किसी बहुत बड़े संवेधानिक पद पर बैठा हो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह एक आदर्श और प्रतिष्ठित ब्यक्ति है | अभी कुछ दिन पूर्व ही एक ओछे विचारों के आदमी ने जो घटिया से घटिया बात की उसकी जितनी निंदा की जाए वह कम है |
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भारतीय परिप्रेक्ष्य में अल्पसंख्यक ओर बहुसंख्यक को परिभाषित करना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है |

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पूरे विश्व को, विशेषतः भारत को इस समय सबसे बड़ा खतरा जेहाद की अवधारणा से है |
यह खतरा इतना भयावह है जिसकी एक सामान्य व्यक्ति पूरी कल्पना भी नहीं कर सकता |
बिना दैवीय शक्तियों की सहायता के इस खतरे से नहीं निपटा जा सकता | दैवीय शक्तियों को जागृत करना ही होगा | भगवान से स्वयं की, समाज की, राष्ट्र की और धर्म की रक्षा के लिए प्रार्थना करें | स्वयं को और समाज को संगठित व बलशाली बनाएँ | अन्यथा हम बड़ी क्रूरता से नष्ट कर दिए जाएँगे |

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ॐ ॐ ॐ ||

ॐ ॐ ॐ ||

नियमित साधना को न छोड़ें .....

नियमित साधना को न छोड़ें .....
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अपनी नियमित साधना को किसी भी कीमत पर न छोड़ें | ज्ञान (गीता में बताए हुए "समभाव" में स्थिति यानि "स्थितप्रज्ञता" ही ज्ञान है) की प्राप्ति नहीं भी होगी तो कम से कम भटकाव तो नहीं होगा | नियमित साधना छोड़ देने के कारण ही हम भ्रष्ट हो गए हैं जिसका परिणाम विनाश यानि सर्वनाश ही होता है | नियमित साधना करेंगे तो हमारी सद्गति तो निश्चित ही होगी | भगवान निश्चित रूप से दुर्गति से हमारी रक्षा करेंगे | अतः अपना नित्य कर्म न छोड़ें |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

एकमात्र सत्य ब्रह्म ही है .....

एकमात्र सत्य ब्रह्म ही है .....
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ब्रह्म शब्द की उत्पत्ति बृह् धातु से है जिसका अर्थ है बृहणशील, विस्तृत या विशाल, जिसका निरंतर विस्तार होता रहता है | इसी ब्रह्म से "एकोSहं बहुस्याम्" की भावना से सृष्टि का विस्तार हुआ है | यह परमाणु से भी सूक्ष्म और महत से भी बड़ा है | यह अपरिभाष्य, सच्चिदानन्दरूप और अनुभूतिगम्य है | इस पर उपनिषदों में खूब चर्चा हुई है और भाष्यकार आचार्य शंकर ने इस की खूब व्याख्या की है |
उस ब्रह्म से साक्षात्कार और एकत्व ही हमारे जीवन का लक्ष्य है | गहन ध्यान में ही इसकी अनुभूति की जा सकती है |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

आध्यात्म में अधिकाँश विषय अति सूक्ष्म हैं .....

आध्यात्म में अधिकाँश विषय अति सूक्ष्म हैं .....
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आध्यात्म में अधिकाँश विषय अति सूक्ष्म हैं, वे परमात्मा की प्रत्यक्ष कृपा से ही गहन ध्यान में समझ में आते हैं | बुद्धि की क्षमता से वे परे हैं | सिर्फ पढ़कर बुद्धि से उन्हें कोई नहीं समझ सकता | उन्हें समझने के लिए साधना करनी पड़ती है | उन्हें समझाने वाला भी तत्वज्ञ होना चाहिए और समझने का प्रयास करने वाला भी मुमुक्षु हो | सिर्फ बौद्धिक जानकारी प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति को कभी भी कुछ समझ में नहीं आ सकता |
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सबसे सरल मार्ग है ..... परमात्मा से परम प्रेम और उन पर नियमित ध्यान |
वही जीवन जिओ जो परमात्मा की ओर ले जाता है | संग भी उन्हीं का करो जो परमात्मा की प्राप्ति में सहायक हो, अन्यथा चाहे निःसंग ही रहना पड़े | संबंध भी उन्हीं लोगों से रखो जो परमात्मा से प्रेम करते हैं, अन्यों से नहीं, चाहे सारे सम्बन्ध तोड़ने ही पड़ें | वही भोजन करो जो साधना में सहायक हो, अन्यथा चाहे भूखा ही रहना पड़े | रहो भी वहीं जहाँ परमात्मा की स्मृति बनी रहे, अन्यथा उसकी व्यवस्था परमात्मा पर ही छोड़ दो | यह सांसारिक नारकीय जीवन जीने से तो भगवान का ध्यान करते करते यह देहत्याग करना अच्छा है | भगवान को भुलाकर संसार से आशा ही जन्म-मरण और समस्त दुःखों का कारण है |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||