Friday, 4 August 2017

नियमित अभ्यास .......

नियमित अभ्यास .......
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साधना काल में नियमित अभ्यास आवश्यक है| साधना क्रम और साधना काल को धीरे धीरे लगातार आगे बढ़ाएँ| राग-द्वेष और आलस्य .... ये साधक के सबसे बड़े शत्रु हैं, अभ्यास इनसे बचने का भी करें| धीरे धीरे अभ्यास करते करते मन भी मित्र बन जाता है| नित्य मन को प्रशिक्षण दो और बताओ कि हे मन, तूँ कहीं भी चला जा, तूँ जहाँ भी जाएगा, वहाँ मेरे प्रभु के चरण कमलों में ही स्थान पायेगा| मेरे प्रभु के चरण कमल सर्वत्र हैं| तूँ आकाश-पाताल, पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण .... कहीं भी चला जा, उनके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है| मन को समझा-बुझा कर ही वश में कर सकते हैं, बलात् नहीं| एक बार मन वश में हो जाए तो आधा युद्ध जीता हुआ मान लीजिये| अपने चैतन्य में परमात्मा को निरंतर रखें| अभ्यास द्वारा यह संभव है|

आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

हरियाली तीज .....

हरियाली तीज .....
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आज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया है जिसे हरियाली तीज कहते हैं| कल सिंधारा दूज थी| सभी मातृशक्ति को मैं इस पावन अवसर पर नमन करता हूँ|
हरियाली तीज मुख्यत: स्त्रियों का त्योहार है|
इस समय जब प्रकृति में चारों ओर हरियाली की चादर सी बिछी हुई है| वन-बिहार करने पर प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाचने लगता है| तपती गर्मी से अब जाकर राहत भी मिली है|
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अभी कुछ वर्षों पूर्व तक हमारे यहाँ राजस्थान के हर भाग में खूब झूले लगते थे और स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते थे| अभी भी कहीं कहीं यह संस्कृति जीवित बची हुई है| झूलों पर पूरा दम लगाकर बालिकाएँ और महिलाऐं खूब ऊँचाई तक जाती हुईं झूला झूलती थीं मानो आसमान को छूने जा रही हों| इसे हमारी मारवाड़ी भाषा में "पील मचकाना" कहते हैं|
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स्त्रियाँ अपने हाथों पर त्योहार विशेष को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न प्रकार की मेहंदी लगाती हैं|मेहंदी रचे हाथों से जब वह झूले की रस्सी पकड़ कर झूला झूलती हैं तो यह दृश्य बड़ा ही मनोहारी लगता है| जैसे मानसून आने पर मोर नृत्य कर खुशी प्रदर्शित करते हैं, उसी प्रकार महिलाएँ भी बारिश में झूले झूलती हैं, नृत्य करती हैं और खुशियाँ मनाती हैं।
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इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ सुहागी पकड़कर सास के पांव छूकर उन्हें देती हैं| यदि सास न हो तो स्वयं से बड़ों को अर्थात जेठानी या किसी वृद्धा को देती हैं|
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हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं और माता पार्वती की सवारी बड़े धूमधाम से निकाली जाती है| यह त्योहार महिलाओं के लिए एकत्र होने का एक उत्सव है| नवविवाहित लड़कियों के लिए विवाह के पश्चात पड़ने वाले पहले सावन के त्योहार का विशेष महत्त्व होता है|
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पौराणिक रूप से यह शिव पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है|
तीज के बारे में लोक कथा है कि पार्वतीजी के 108वें जन्म में शिवजी उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और पार्वतीजी की अपार भक्ति को जानकर उन्हें अपनी पत्नी की तरह स्वीकार किया|
.पार्वतीजी का आशीष पाने के लिए महिलाएँ कई रीति-रिवाजों का पालन करती हैं| नवविवाहित महिलाएँ अपने मायके जाकर ये त्योहार मनाती हैं|

सिंधारा दूज के दिन जिन लड़कियों की सगाई हो जाती है, उन्हें अपने होने वाले सास-ससुर से सिंजारा मिलता है। इसमें मेहँदी, लाख की चूड़ियाँ, कपड़े (लहरिया), मिठाई विशेषकर घेवर शामिल होता है|
विवाहित महिलाओं को भी अपने पति, रिश्तेदारों एवं सास-ससुर के उपहार मिलते हैं|
कन्याओं का बड़ा लाड-चाव इस दिन किया जाता है|
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पुनश्चः सभी मातृ शक्ति को नमन और शुभ कामनाएँ| ॐ ॐ ॐ ||

05 August 2016

"लिव इन रिलेशनशिप" और समाज का भविष्य -----

मित्रता के नाम पर "लिव इन रिलेशनशिप" क्या सही है ?????
"लिव इन रिलेशनशिप" और समाज का भविष्य -----
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वर्तमान में बड़े शहरों में मित्रता के नाम पर बिना विवाह के लाखों युवक-युवतियाँ रह रहे हैं| यह पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव है जिसे वर्तमान शिक्षा पद्धति के कारण पड़े संस्कारों की वजह से और बड़े शहरों में नौकरी करने और आवासीय समस्याओं के कारण बदल नहीं सकते| यह एक विवशता हो गयी है|
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इससे अनेक सामाजिक समस्याएँ आ रहीं हैं, पर कुछ कर नहीं सकते| इसका परिणाम यह होगा ------
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(१) विवाह की संस्था विफल हो जायेगी| लिव इन रिलेशनशिप में युवा वर्ग की सोच यह है कि जब तक निभती है साथ साथ रहो, जब नहीं निभती तब मित्र की तरह अलग हो जाओ|
लडके देख रहे हैं कि आजकल यह एक फैशन सा हो गया है लडकियों में कि किसी पैसे वाले लडके को कैसे भी फँसाकर विवाह कर लो फिर उसका जीवन दूभर कर दो, वह तलाक देगा और उसकी आधी संपत्ति मिल जायेगी|
महिला अत्याचार विरोधी कानूनों के दुरुपयोग ने लाखों लडके वालों का जीवन नर्क कर रखा है| अतः लड़के विवाह नहीं करना चाहते|
लडकियाँ विवाह से पूर्व अनेक लडकों से यौन सम्बन्ध बना लेती है| विवाह के बाद उसे अपने पति से वह यौन सुख नहीं मिलता जो प्रेमियों से मिलता था अतः अनबन शुरू हो जाती है और विवाह विच्छेद हो जाते हैं|
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(२) हिन्दुओं की जनसंख्या मुसलमानों से कम हो जायेगी और भारत के हिन्दुओं का वो ही हाल होगा जो पाकिस्तान और बंगलादेश में है|
भारत में सारे कानून सिर्फ हिन्दुओं के लिए हैं|
मुसलमानों को सबसे बड़ा लाभ यह है कि जब मर्जी आये तब चाहे जितने विवाह करो और बीबी को जब चाहे तब छोड़ दो| कोई भरण-पोषण का खर्चा भी नहीं देना पड़ता| फिर और विवाह कर लो|
परित्यक्ता हिन्दू से मुसलमान बनी लडकियाँ निराश्रित होने कारण देह-व्यापार में धकेल दी जाती हैं|
हजारों हिन्दू तो इस्लाम काबुल कर लेते हैं सिर्फ अपनी पत्नियों से पीछा छूटाने के लिए|
अतः इस समस्या पर गंभीरता से समाज के नेताओं को विचार करना चाहिए| सिर्फ कानून से इस का समाधान नहीं होगा|
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हिन्दू बच्चों को पहली कक्षा से ही धार्मिक शिक्षा देनी होगी| जो इसे नहीं चाहते वे अपने बच्चों को मदरसों और कोन्वेंट स्कूलों में भेज सकते हैं|
धन्यवाद|

अगस्त ०४, २०१४.

हे मन .....

हे मन .....
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हे मन, तूँ दौड़ता हुआ कहाँ तक कहाँ कहाँ जाएगा ? जहाँ भी तूँ जाएगा वहीं आत्म तत्व के रूप में मैं स्थित हूँ| मुझ ब्रह्म से अतिरिक्त अन्य कोई दूसरा है ही नहीं| याद रख आत्मा के सिवाय कोई अनात्मा नहीं है| तुम्हारी गति मुझ से बाहर नहीं है| अतः तूँ शांत हो और चुपचाप बैठ कर मेरा ही स्मरण चिंतन कर| यह मेरा आदेश है जिसे मानने को तूँ बाध्य है| ॐ ॐ ॐ ||
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हे मन, याद रख यह मोह महा क्लेश है, जिस पर तूँ मोहित है, वह तो है ही नहीं| इस मोह और राग-द्वेष का अस्तित्व निद्रा में एक स्वप्न मात्र था| क्या तो राग, और क्या द्वेष ? आत्म-तत्व के रूप में सर्वत्र ब्रह्म मैं ही हूँ| अतः निरंतर मेरा ही स्मरण चिंतन कर| मेरी जीवनमुक्त ब्रह्मभूतता का निरंतर अनुभव कर| ॐ ॐ ॐ ||
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शिवोहम् शिवोहम् अहं ब्रह्मास्मि || ॐ ॐ ॐ ||

सुख, शांति और सुरक्षा स्वयं के हृदय मंदिर में स्थित परमात्मा में ही है, बाहर कहीं भी नहीं .....

सुख, शांति और सुरक्षा स्वयं के हृदय मंदिर में स्थित परमात्मा में ही है, बाहर कहीं भी नहीं .....
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सुख, शांति और सुरक्षा, सामान्यतः ये तीन सबसे बड़े लक्ष्य हमारे जीवन में होते हैं जिनके लिए हम अपना पूरा जीवन दाँव पर लगा देते हैं| इन्हीं के लिए हम खूब रुपया पैसा कमाते हैं, मकान बनवाते या खरीदते हैं व तरह तरह की आवश्यकता और विलासिता के सामान खरीदते हैं| पूरे जीवन की भागदौड़ और कठिनतम संघर्ष के उपरांत जो हम प्राप्त करते हैं, उस से भौतिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक और सामाजिक संतुष्टि तो मिलती है, पर ह्रदय में एक असंतुष्टि के भाव की वेदना सदा बनी रहती है| सांसारिक दृष्टी से सब कुछ मिल जाने के पश्चात् भी एक खालीपन जीवन में रहता है|
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अनेक बार तो हमारी उपलब्धियाँ हीं हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तनाव और कष्टों का कारण बन जाती हैं| समाज में अपने आसपास कहीं भी देख लो ..... इतनी पारिवारिक कलह, तनाव, लड़ाई-झगड़े, मिथ्या आरोप-प्रत्यारोप, जिन्हें देख कर लगता है कि हमारा सामाजिक ढाँचा ही खोखला हो गया है| मानसिक अवसाद (मेंटल डिप्रेशन) समाज के संपन्न वर्ग में एक सामान्य रोग है| सबसे अधिक आत्महत्याएँ विश्व के संपन्न देशों में और संपन्न लोगों द्वारा ही होती हैं|
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निज जीवन में हम चाहे कितनी भी सकारात्मक सोच रखें पर ईमानदारी से यदि स्वयं से पूछें तो खुद के जीवन में एक खालीपन अवश्य पायेंगे| मुझे इस जीवन में पूरे भारत में और भारत से बाहर भी बहुत सारे देशों में जाने का काम पडा है, और खूब घूमने-फिरने के दुर्लभ अवसर मिले हैं| जीवन का सर्वश्रेष्ठ भाग भारत से बाहर ही बीता है| खूब समुद्री यात्राएँ की हैं| पृथ्वी के अनेक देशों में अनेक तरह के लोगों से मिलने और बातचीत करने के भी अवसर मिले हैं|

मैंने तो अपने पूरे जीवन में अपने इस भौतिक जीवन से संतुष्ट किसी भी व्यक्ति को आज तक नहीं पाया है, हालाँकि कहने मात्र को तो सब अपने आप को संतुष्ट बताते हैं, पर उनकी पीड़ा छिपी नहीं रहती है| सब कुछ होते हुए भी अंतहीन भागदौड़ ही सबका जीवन बन गयी है| खूब संपत्ति और सामाजिक सुरक्षा भी जहाँ है वहाँ भी सब कुछ होते हुए भी लोगों के जीवन में एक शुन्यता और पीड़ा है|
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यह पीड़ा अपनी अंतरात्मा यानि स्वयं को न जानने की पीड़ा है| जीवन में वास्तविक सुख, शांति और सुरक्षा स्वयं के हृदय मंदिर में स्थित परमात्मा में ही है, स्वयं से बाहर कहीं भी नहीं| यह मेरा अपना स्वयं का निजी अनुभव है जिसे मैं यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ|
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हम सब परमात्मा की साकार अभिव्यक्तियाँ हैं| सब को सप्रेम सादर नमन !

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
०३ अगस्त २०१७

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है .......

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है .......
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दर्शन शास्त्र के एक बहुत बड़े विश्व विख्यात भारतीय विद्वान् भारत पर हुए चीनी आक्रमण के कुछ वर्षों उपरांत चीन गए थे और चीन के राष्ट्र प्रमुख माओ से मिले| उन्होंने माओ को भारतीय दर्शन .... वेदांत और गीता आदि की अनेक अच्छी अच्छी बातें बताईं| माओ ने सब बातें बड़े ध्यान से सुनी और तत्पश्चात दो प्रश्न किये जिनके उत्तर वे भारतीय विद्वान् कभी नहीं दे सके|
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माओ ने पहला प्रश्न किया कि १९४८ के भारत-पाक युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया था फिर भी अधिकांश कश्मीर पकिस्तान के कब्जे में क्यों है?
माओ का दूसरा प्रश्न था कि आप युद्ध में हम से पराजित क्यों हो गए थे? आपके आध्यात्म, दर्शन और धर्म की बड़ी बड़ी बातें किस काम आईं?
अंतिम बात माओ ने यह कही कि बहुत शीघ्र ही चीन भारत से अक्साचान (अक्साईचिन) छीन लेगा| भारत में हिम्मत है तो रोक कर दिखा दे|
चीन ने वह भी कर के दिखा दिया क्योंकि हम बलहीन थे|
(अब वर्त्तमान सरकार ने भारत को अपेक्षाकृत काफी शक्तिशाली बना दिया है इसलिए चीन सिर्फ धमकियाँ ही दे रहा है| युद्ध आरम्भ करने का उसका भी साहस नहीं हो रहा है|)
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हमारी विश्व शांति की बड़ी बड़ी बातें, बड़े बड़े उपदेश और झूठा दिखावा सब व्यर्थ हैं यदि हम बलहीन हैं|
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भारत पर यूनानी आकमण हुआ तब पौरुष से पराजित हुई यूनानी फौजें तब भाग खड़ी हुईं जब उन्हें पता चला कि मगध साम्राज्य की सेनाएं लड़ने आ रही हैं| फिर कई शताब्दियों तक किसी का साहस नहीं हुआ भारत की और आँख उठाकर देखने का|
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हम में यह गलत धारणा भर गई थी कि युद्ध करना सिर्फ क्षत्रियों का काम है| यदि पूरे भारत का हिन्दू समाज एकजुट होकर आतताइयों का सामना करता तो किसी का भी साहस नहीं होता हिन्दुस्थान की ओर आँख उठाकर देखने का|
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भारत में विधर्मी मत किसी संत महात्मा द्वारा नहीं आए थे| ये आये थे क्रूरतम आतंक और प्रलोभन द्वारा| हम सिर कटाते रहे और 'अहिंसा परमोधर्म' का जप करते रहे| समय के साथ हम अपनी मान्यताओं और सोच को नहीं बदल सके|
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वर्तमान में हम फिर संकट में हैं| हमें सब तरह के भेदभाव मिटाकर एक होना होगा और शक्ति-साधना करनी होगी, तभी हम अपना अस्तित्व बचा पाएंगे| अपने सोये हुए क्षत्रियत्व और ब्रह्मत्व को जागृत करना होगा|
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हिंदू धर्म ही नहीं बचेगा तो ये दर्शन और आध्यात्म की सब बातें निराधार हो जायेंगी| न तो साधू-संत रहेंगे, न ये बड़े बड़े उपदेशक और दार्शनिक| बचे खुचे हिन्दुओं को तो समुद्र में ही डूब कर मरना पडेगा| भारतवर्ष का ही अस्तित्व समाप्त हो जाएगा|
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इन सारे सेकुलर, माओपंथी, वाममार्गी, प्र्गतिवादी, समाजवादी, साम्यवादी, सर्वधर्मसमभाववादी, धर्मनिरपेक्षतावादी आदि आदि इन सब का अस्तित्व भी तभी तक है जब तक भारत में हिन्दू बहुमत है| जिस दिन हिन्दू अल्पमत में आ गए उस दिन इन सब का हाल भी वही होगा जो सीरिया और इराक में हाल ही में देखने को मिला था|
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धर्म की रक्षा धर्म के पालन से ही होती है, सिर्फ बातों से नहीं| धर्म की रक्षा हम नहीं करेंगे तो धर्म भी हमारी रक्षा नहीं करेगा|
सभी का कल्याण हो | भारत माता की जय | जय श्रीराम |ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
०२ अगस्त २०१७.

एक अनुभूतिजन्य सत्य .....

एक अनुभूतिजन्य सत्य .....
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हमारा जैसा भौतिक और मानसिक परिवेश है, तदनुरूप ही सूक्ष्म जगत के प्राणी हमारे पास आते हैं और हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं| जैसे भौतिक व मानसिक वातावरण में हम रहते हैं वैसे ही सूक्ष्म जगत के प्राणियों को हम आकर्षित करते हैं, जो देवता भी हो सकते हैं और निम्न जगत के अधम प्राणी भी जिन्हें हम आँखों से नहीं देख सकते पर अनुभूत कर सकते हैं|
सूक्ष्म और कारण जगत, भौतिक जगत से दूर नहीं है सिर्फ उनके स्पंदन अलग हैं, वैसे ही जैसे एक ही टेलीविजन पर अलग अलग चैनल पर अलग अलग कार्यक्रम|
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अतः भौतिक रूप से अपने आसपास स्वच्छता और पवित्रता रखें| सुन्दर और स्वच्छ वातावरण में रहें| आपके यहाँ देवताओं का निवास होगा अन्यथा बुरी आत्माएँ आकर्षित होंगी| वैसे ही अपने मन को भी निर्विकार रखने का निरंतर प्रयास करते रहें तो अच्छा है||
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हमारे विचार और भाव ही हमारे कर्म हैं| कर्म का अर्थ भौतिक क्रिया नहीं है| हमारे विचार और भाव ही हमारे कर्म हैं जो निरंतर हमारे खाते में जुड़ते रहते हैं| उनका फल हमें जन्म-जन्मान्तरों में अवश्य मिलता है| जैसे हमारे विचार और भाव होंगे, जैसा हमारा चिंतन होगा और वैसे ही प्राणियों को हम आकर्षित करते हैं|
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अतः हमारा हर विचार सद्विचार हो और हर संकल्प शिवसंकल्प हो| निरंतर प्रभु को अपने ह्रदय में रखें| बाहर का जगत हमारे विचारों की ही अभिव्यक्ति है|
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ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
०१ अगस्त, २०१४.

आध्यात्मिक साधना में हम प्रगति कर रहे हैं या अवनति :---

आध्यात्मिक साधना में हम प्रगति कर रहे हैं या अवनति :---
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स्वयं को धोखे में नहीं रखना चाहिए| महात्मा लोग साधक की तुरंत पहिचान कर लेते हैं| हम उन्हें अपने शब्दजाल से धोखा नहीं दे सकते| हमें भी चाहिए कि हम स्वयं की समय समय पर जाँच करते रहें और अपना स्वयं का मुल्यांकन भी कर लें| अनेक आचार्यों ने इस विषय पर खूब प्रकाश डाला है| नीचे दिए गए मापदंडों से हम अपना स्वयं का मूल्यांकन कर सकते हैं .....
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(१) सबसे पहला मापदंड है .... आहार और वाणी पर नियंत्रण| अधिक बोलने वाला और अधिक खाने वाला व्यक्ति साधक नहीं हो सकता| यदि हमारे में ये अवगुण हैं तो हम निश्चित रूप से कोई प्रगति नहीं कर रहे हैं|
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(२) दूसरों के प्रति किसी भी प्रकार की दुर्भावना का न होना, यह दूसरा मापदंड है| धर्मरक्षा के लिए क्षत्रिय जाति युद्ध में शत्रुओं का बध कर देती थी पर अपने स्वयं के मन में कभी भी उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं आने देती थी| यदि बारबार हमारे मन में दूसरों के प्रति बुरे विचार आते हैं तो हमें तुरंत सतर्क हो जाना चाहिए| यह हमारी अवनति की निशानी है|
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(३) प्रमाद और दीर्घसूत्रता का अभाव, यह तीसरा मापदंड है| प्रमाद का अर्थ होता है आलस्य, और दीर्घसूत्रता का अर्थ है आवश्यक कार्य को सदा आगे के लिए टालना| यदि हमारे में ये दुर्गुण हैं तो इनसे मुक्त हों| ये भी हमारी अवनति ही दिखाते हैं|
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(४) साँस की गति का सामान्य से अधिक न होना, यह चौथा मापदंड है| साधनाकाल में साधक के साँसों की गति बहुत कम होती है| साँस का तेज चलना अच्छा लक्षण नहीं है, यह दिखाता है कि साधना में हमने कोई प्रगति नहीं की है|
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(५) हमारे में कितनी जागरूकता और संवेदनशीलता है, इस से भी हम स्वयं की जाँच कर सकते हैं| धीरे हमारी इच्छाएँ भी कम होते होते समाप्त हो जाती हैं| बार बार इच्छाओं का जागृत होना भी हमारी अवनति है|
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(६) हम जीवन में दुःखी हैं तो यह हमारी अवनति की सबसे बड़ी निशानी है| दुःख एक अभिशाप और सबसे बड़ी पीड़ा है| यदि हम दुःखी हैं तो वास्तव में नर्क में हैं| कैसे भी इस स्थिति से बाहर निकलें| भगवान का भक्त साधक कभी दुःखी नहीं हो सकता| वह हर हाल में प्रसन्न रहता है|
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उपरोक्त मापदंडों से हम अपनी स्वयं की जांच कर सकते हैं कि हम आध्यात्मिक प्रगति कर रहे हैं या अवनति |
सभी को धन्यवाद और नमन !

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
१ अगस्त २०१७.