Wednesday, 5 January 2022

जीवन में आध्यात्मिक प्रगति कैसे हो ? ---

जरा सी भी आध्यात्मिक प्रगति के लिए तीन अनिवार्य आवश्यकताएँ हैं जिन के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते|

(१) पहली आवश्यकता है -- भक्ति, यानि परम प्रेम|
"मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा, किए जोग, तप, ज्ञान विरागा |"
(२) दूसरी आवश्यकता है -- सत्यनिष्ठा (Sincerity)|
(३) तीसरी आवश्यकता है -- नियमित अभ्यास|
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दिन की साधना से अधिक प्रभावशाली -- रात्रि की साधना है| रात्रि को गहरा से गहरा ध्यान कर के उस तरह सोयें जैसे एक छोटा बालक निश्चिंत होकर अपनी माँ की गोद में सोता है| सिर के नीचे तकिया नहीं, माँ का वरद-हस्त होना चाहिए|
दिन का आरंभ भगवान के ध्यान से करें, और पूरे दिन उन्हें अपनी स्मृति में रखें|
सभी को अनंत शुभ कामनाएँ| जय हो| 🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
कृपा शंकर
६ जनवरी २०२१

वेदान्त का ज्ञान अनुभूतिजन्य है जो परमात्मा की कृपा से ही होता है ---

 वेदान्त का ज्ञान अनुभूतिजन्य है जो परमात्मा की कृपा से ही होता है| वेदान्त एक ऐसा विषय है जो अनुभूतियों से ही समझ में आ सकता है, ग्रन्थों के स्वाध्याय से नहीं|

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वेदान्त को समझने के लिए मैंने अनेक ग्रन्थों का स्वाध्याय किया, वेदान्त के शिखर पुरुष स्वामी रामतीर्थ और विवेकानंद के सम्पूर्ण साहित्य का अध्ययन किया, विद्वान वेदांती दंडी सन्यासियों का सत्संग किया और उनके उपदेश भी सुने| लेकिन अपनी सीमित व अत्यल्प मंद बुद्धि से कुछ भी समझ में नहीं आया|
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अंततः भगवान से ही प्रार्थना की कि कुछ तो इस मंदबुद्धि के पल्ले पड़ना ही चाहिए| इस बात के कुछ महीनों बाद की बात है| मैं एक दूसरे नगर में किसी भव्य समारोह में उपस्थित अतिथियों में था| बड़ी भीड़ थी, बहुत अधिक शोरगुल हो रहा था, संगीत बड़े ज़ोर से बज रहा था, मंच पर अनेक लोग नृत्य भी कर रहे थे| मेरे अनेक परिचित लोग भी वहाँ थे|
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अचानक ही पता नहीं क्या हुआ? खड़े खड़े ही मैं एक भाव-समाधि में चला गया| चारों ओर का शोरगुल और सारे दृश्य गायब हो गए| मेरा यह शरीर, जड़ की तरह पता नहीं कितनी देर तक खड़ा रहा| उस समय मुझे किसी ने भी नहीं देखा| किसी की भी दृष्टि मुझ पर नहीं पड़ी| उन क्षणों में न तो यह शरीर था, और न ही कुछ और| चारों ओर अनंत अति सुखद प्रकाश ही प्रकाश, उस प्रकाश के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं| पता नहीं कितने समय तक यह आनंददायक अनुभव चला, जिसमें कोई भी अन्य नहीं था| कुछ देर बाद पुनः भौतिक चेतना में लौट आया, वही भीड़, वही शोरगुल और सब कुछ पूर्ववत्|
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मैं समझ गया कि बहुत लंबे समय पूर्व की गई प्रार्थना आज फलीभूत हुई है| कोई भी आध्यात्मिक ज्ञान हो, वह भगवान की कृपा से ही समझ में आता है, अन्य किसी उपाय से नहीं| सारे आध्यात्मिक ज्ञान का स्त्रोत परमात्मा है, पुस्तकें या अन्य कोई नहीं| अतः अपनी श्रद्धा और आस्था भगवान पर ही रखें|
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परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को सादर नमन!!
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ जनवरी २०२१