Wednesday, 2 March 2022

स्वयं का आंकलन कर लेना चाहिए कि हम कहाँ खड़े हैं ---

 आजकल का जैसा खराब समय चल रहा है, उसमें हमें एक बार बड़े ध्यान से गीता के १६वें अध्याय "देव असुर संपदा विभाग योग" का स्वाध्याय कर के स्वयं का आंकलन कर लेना चाहिए कि हम कहाँ खड़े हैं। उसके बाद गीता में से ही अन्यत्र ढूंढ़ कर स्वयं के उद्धार का उपाय भी करना चाहिए। भगवान को सदा अपने हृदय में रखें। निकट भविष्य में ही आने वाले बहुत अधिक कठिन समय में हमारी रक्षा निश्चित रूप से होगी। सिर्फ भगवान ही हमारी रक्षा कर सकते हैं।

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पुनश्च: ॥ कुछ सुझाव देना चाहता हूँ जिसके लिए कृपया बुरा न मानें ---
(१) नियमित साधना दृढ़ता से करें। हर समय भगवान का चिंतन करें, और भगवान में दृढ़ आस्था रखें। जीवन सादा और विचार उच्च हों। अपने आसपास का वातावरण पूर्णतः सात्विक रखें।
(२) हर तरह के नशे का पूर्णतः त्याग करें। जो भगवान को प्रिय है, वैसा ही भोजन, भगवान को निवेदित कर के ही ग्रहण करें।
(३) भगवान ने हमें विवेक दिया है| निज विवेक के प्रकाश में सारे कार्य परमात्मा की प्रसन्नता के लिए ही करें।
परमात्मा हमारी बुद्धि को तदानुसार प्रेरित करेंगे, फिर जो भी होगा वह हमारे भले के लिए ही होगा। सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
कृपा शंकर
२ मार्च २०२२

अब किस से, किस की, और क्या शिकायत करूँ? ---

 अब किस से, किस की, और क्या शिकायत करूँ?

मेरे अब तक के निजी अनुभव और सोच-विचार से - समस्या कहीं बाहर नहीं, समस्या तो मैं स्वयं हूँ।
निज जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो, यही एकमात्र समाधान और सत्य है। अन्य सब एक मृगतृष्णा और भटकाव है।
🌹🥀🌺🙏🕉🕉🕉🙏🌺🥀🌹
यह संसार मेरा नहीं, परमात्मा का है, और उनके बनाए हुए नियमों के अनुसार उनकी प्रकृति चलाती रहेगी। निज जीवन में परमात्मा की प्राप्ति ही जीवन का उद्देश्य और सबसे बड़ी सेवा है। ॐ ॐ ॐ !!
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🌹समस्या भी मैं हूँ, और समाधान भी मैं स्वयं ही हूँ।
🌹समस्या है ..... संसार से अपेक्षा, जो निराशा को जन्म देती है।
🌹समाधान है -- समर्पण -- अपने कर्मों, कर्मफलों और अंतःकरण
(मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) का।
🌹मार्ग है -- परमप्रेम -- जिस पर जो चल पड़ा, वह भगवान को अपने हृदय में ही पाता है।
🌹भगवान कहीं दूर नहीं हैं, यहीं पर और इसी समय मेरे समक्ष प्रत्यक्ष बिराजमान हैं। दोष मेरी दृष्टि का है। भगवान मेरे हृदय में, और मैं भगवान के हृदय में हूँ।
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🌹अपनी चेतना को भ्रूमध्य से ऊपर रखो और निरंतर परमात्मा का चिंतन करो।
🌹फिर हमारी चिंता स्वयँ परमात्मा करेंगे।
🌹आध्यात्मिक दृष्टी से मनुष्य की प्रथम, अंतिम और एकमात्र समस्या -- परमात्मा की प्राप्ति है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई समस्या नहीं है। अन्य सब समस्याएँ परमात्मा की हैं। सब समस्याओं का समाधान -- परमात्मा को प्राप्त करना है। एकमात्र मार्ग है -- परमप्रेम और मुमुक्षुत्व।
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ॐ तत्सत्। ॐ ॐ ॐ !! 🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
कृपा शंकर
३ मार्च २०२२

शिवलिंग पूजा का महत्व :---

 शिवलिंग पूजा का महत्व :---

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मैं आत्मप्रेरणावश अपनी सीमित बुद्धि से इस विषय पर चर्चा छेड़ रहा हूँ जिस का मुझे तनिक आभास मात्र ही है| मनीषीगण इस पर और प्रकाश डालें|
शिवरात्रि का पावन पर्व आने वाला है| उससे पूर्व ही इस विषय पर जितनी चर्चा हो जाये उतना ही अच्छा है|
हिन्दू धर्म के आलोचक अज्ञानतावश शिवपूजा का एक अश्लील अर्थ लगाकर आलोचना करते है| अतः सही अर्थ बता देना आवश्यक है|
"लिंग" शब्द का अर्थ होता है --- "चिन्ह" या "प्रतीक"|
मैंने कही पढ़ा है ---
"न लिंगं लिंगमिथ्याहु: यस्मिन् सर्वे प्रलीयन्ते तल्लिंगम लिंगमुच्यते|"
जिसके अन्दर सब का लय होता है ---- स्थूल, सूक्ष्म और कारण जगत का जिस तुरीय चेतना में लय होता है उस तुरीय चेतना का प्रतीक ---- शिवलिंग है|
जिस अनंत और परम चैतन्य रूप शिव तत्व का ध्यान की गहराइयों में आभास होता है उस शिव तत्व का स्थूल प्रतीक है शिवलिंग|
जिन से सकल जड़ व चेतन पदार्थों की सृष्टि हुई है, जिन की द्वीप्ति से यह विश्व प्रकाशित है, उस परम शिव तत्व का प्रतीक है शिवलिंग|
"यं प्रपश्यन्ति देवेशं भक्त्यानुग्रहिणो जना:|
तमाहुरेकं कैवल्यं शंकरं दु:खतस्करं ||"
यहाँ "दु:खतस्करं" शब्द का प्रयोग हुआ है| तस्कर शब्द का अर्थ है -- चोर या हरण करे वाला| जो अपने भक्तों के दु:खों और कष्टों का हरण कर लेते है उन परम कैवल्य स्वरुप परम तत्व का प्रतीक है -- शिवलिंग|
ॐ नमः शिवाय|
३ मार्च २०१३

विश्व की भारत से अपेक्षाएँ ----

 विश्व की भारत से अपेक्षाएँ --------

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(यह लेख जब मैं लिख रहा था उस समय रूस और युक्रेन में तनाव की स्थिति थी | अब रुसी सेना क्रीमिया से बापस चली गयी है | पर रूस ने दिखा दिया है वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा| काश! ऐसा साहस हमारे देश में भी होता|)
(इस लेख में मैं स्वभाववश अपने कुछ अनुभव और विचार लिख रहा हूँ|)
रूस और युक्रेन में अगर क्रीमिया को लेकर यदि युद्ध हुआ तब यह एक भयानक त्रासदी होगी जिसका भारत पर भी बुरा असर पड़ेगा | मैं रूस में भी खूब रहा हु और युक्रेन में भी | क्रीमिया के भी कुछ मित्र रहे है | रूस और युक्रेन की संस्कृतियों में इतनी समानता रही है कि अंतर कर पाना अति कठिन है | पूर्व सोवियत संघ के दिनों से ही रूस, युक्रेन और बेलारूस के लोगों में अत्यधिक घनिष्ठता रही है | मैं कल्पना भी नहीं कर सकता की रूस और युक्रेन कभी लड़ भी सकते हैं क्या | दोनों भारत के मित्र देश भी हैं |
दोनों में सनातन धर्म का बहुत तेजी से प्रचार प्रसार हो रहा है| रूस को तो मैं भविष्य का हिन्दू देश मानता हूँ| हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार इसी तरह स्वतः होता रहा तो अगले ५०-६० वर्षों में रूस एक हिन्दू देश होगा| ईसाईयत के आने से पूर्व रूस में सनातन धर्म था जिसके अवशेषों को पहिले तो चर्च ने फिर साम्यवादियों ने नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी| रुसी भाषा की व्याकरण संस्कृत से प्रभावित है|
लिथुआनिया जैसे देश की भाषा की व्याकरण पर तो संस्कृत का बहुत अधिक प्रभाव है|
रूस के तातारिस्तान गणराज्य के तातार मुसलमान तो स्वयं को भारतीयों का वंशज मानते हैं|
भारत में सनातन धर्म का वर्चस्व बढेगा तो मध्य एशिया उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा| भारत पर जिन मुगलों ने राज्य किया वे उज्बेकिस्तान से आये थे| आज पूरे मध्य एशिया में एक शुन्य की सी स्थिति है और वहां के लोग भारतवर्ष से बहुत अपेक्षाएँ रखते हैं| इस्लाम के आगमन से पूर्व पूरा मध्य एशिया बौद्ध था| वहाँ के विद्वान भी यह मानते हैं कि बौद्ध धर्म से पूर्व वहाँ सनातन धर्म था|
युक्रेन के घटनाक्रम का बुल्गारिया, रोमानिया और तुर्की जैसे श्याम सागर में स्थित पड़ोसी देशों पर भी असर पड़े बिना नहीं रहेगा| तुर्की और रोमानिया का भी मुझे बहुत अनुभव है|
रोमानिया जैसे कट्टर साम्यवादी देश में जब साम्यवाद के विरुद्ध जनविद्रोह हुआ, उस समय रूस ने वहाँ के कट्टर साम्यवादी तानाशाह चाऊशेस्को के विरुद्ध हुए विद्रोहियों का समर्थन किया था| उसी समय मैं समझ गया था की साम्यवाद अपनी अंतिम साँसे ले रहा है| रोमानिया में भ्रष्टाचार और नैतिक पतन अपने चरम पर था|
संयोग से मैं उस समय युक्रेन में ही था| उसके पूरे एक वर्ष बाद सोवियत संघ बिखर गया और रूस सहित सभी सोवियत गणराज्यों में साम्यवाद धराशायी हो गया| पूर्व सोवियत देशों की स्थिति यह थी कि साम्यवादी लोग अपने घरों में छिप गए थे| लोगों ने वहाँ के हर चौराहे पर लगी लेनिन और मार्क्स की विशाल मूर्तियों को तोड़ तोड़ कर नीचे गिरा दिया था| ऐसी स्थिति आ गयी थी कि सडक पर कोई साम्यवादी दल का सदस्य मिलता तो लोग उसकी पिटाई कर देते थे|
यह संयोग ही था कि रूस में ब्रेझनेव के समय में जब साम्यवाद अपने चरम उत्कर्ष पर था तब भी मैं उसका साक्षी था| सन १९६७ ई. में जब बोल्शेविक क्रांति की ५० वीं वर्षगाँठ मनाई जा रही थी तब मैं रूस में ही था| मेरी आयु भी उस समय १९-२० वर्ष की ही थी| उसके पूरे २०-२१ वर्ष बाद सोवियत संघ से साम्यवाद को धराशायी होते हुए भी वहीँ रहकर देखा|
कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि साम्यवाद जैसी भयावह आसुरी व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी|
साम्यवाद जहाँ जहाँ था वहाँ वहाँ उसने मानवीय मूल्यों के विनाश की एक बहुत बड़ी रेखा छोड़ दी|
साम्यवाद से मुक्त होने में पोलैंड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया और पूर्वी जर्मनी ने भी देरी नहीं की| युगोस्लाविया में गृहयुद्ध हुआ और वह देश भी बिखर गया| बचे खुचे को अमेरिका ने बर्बाद कर दिया|
चीन में माओ ने चाहे करोड़ों लोगों की हत्याएं की हों और निरंकुशता से राज्य किया हो पर उसने अपने देश के लिए एक काम बहुत अच्छा किया कि अपनी विचारधारा को चीनी राष्ट्रवाद से जोड़ दिया| चीन की वर्तमान प्रगति का रहस्य भी वहाँ का राष्ट्रवाद ही है|
भारत में साम्यवाद को लाने का श्रेय एम.एन. रॉय जैसे बुद्धिजीवियों को है जिहोनें इसे राष्ट्रवाद के विरुद्ध स्थापित किया| यह विचारधारा भारत में राष्ट्रवाद के विरुद्ध है|
चीन ने भी स्वयं को साम्यवाद से मुक्त कर लिया है| वहाँ "चीन की साम्यवादी पार्टी" नाम का एक गिरोह आतंक के जोर पर राज्य कर रहा है| मैं उस पार्टी को गिरोह ही कहूँगा क्योंकि वह बहुत क्रूर है| उसके सदस्य किसी भी तरह का विरोध सहन नहीं करते|
विएतनाम में साम्यवाद अपनी स्वाभाविक मौत मर गया है| क्यूबा में भी साम्यवाद ध्वस्त हो गया है|
उत्तरी कोरिया में एक तानाशाही परिवार आतंक के जोर पर राज्य कर रहा है| उत्तरी कोरिया एक सैनिक किले की तरह है जहाँ के लोगों को बाहर की दुनिया का कुछ भी ज्ञान नहीं है| सन १९८० में २० दिनों के लिये वहाँ जाने का अवसर मिला था| वह देश पूरी तरह सेना के नियन्त्रण में था जहाँ किसी भी विदेशी को आम आदमी से बात करने का अधिकार नहीं था| पुलिस, अर्धसैनिक बलों और प्रशासन का कार्य भी सेना के ही आधीन था| भारत में जैसे प्रत्येक जिले का जिलाधीश एक प्रशासनिक अधिकारी होता है वैसे ही वहाँ सेना का एक कर्नल होता था| वहाँ के सभी अधिकारीयों को रुसी भाषा आती थी| रुसी भाषा के ज्ञान के कारण मुझे वहाँ बातचीत में कोई कठिनाई नहीं हुई|
यह भी एक संयोग ही था की जब कोरियाई युद्ध की चालीसवीं वर्षगाँठ मनाई जा रही थी तब मैं उत्तरी कोरिया में ही था|
वहाँ का एक दृश्य मैं कभी नहीं भूल सकता| जब श्रमिक लोग कहीं काम करते थे तो एक महिला ध्वनी वितारक यंत्र से उनके पीछे खड़ी होकर उनको खूब कठिन श्रम करने की भाषण द्वारा प्रेरणा देती, और साथ में बन्दूक ताने एक सिपाही भी खड़ा रहता| इसका अर्थ आप समझ सकते हैं|
साम्यवाद बचा है तो सिर्फ भारत के बंगाल और केरल प्रान्त में| जैसे सारी भौतिकवादी विचारधाराएँ ध्वस्त हुई हैं वैसे ही यह भी ध्वस्त हो जाएगा| पश्चिम का पूँजीवाद और भोगवाद भी धराशायी होगा|
सारी दुनिया एक तनाव, भय और असुरक्षा के भाव से ग्रस्त है| सब लोग सुख, शांति और सुरक्षा को ही ढूँढ रहे हैं जो उन्हें कहीं नहीं मिलती|
पश्चिम के कई ईसाई देशों में खूब जाने का अवसर भगवान ने दिया है, वहाँ भी लोगों को मैंने सुखी नहीं पाया| अपनी भौतिक व्यवस्थाओं से वे त्रस्त हैं|
कुछ इस्लामिक देशों जैसे मिश्र, सऊदी अरब, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को और बांग्लादेश में भी जाने का अवसर मिला है और वहाँ के जीवन को भी बहुत समीप से देखा है| वहाँ भी घोर आतंरिक अशांति है|
भारत से बहुत दूर दूर के देशों में भी ऐसे अनेक लोग मिले जिन्होंने चुपचाप भारत के योग, और वेदांत दर्शनों के बारे में मुझसे प्रश्न पूछे| घोर साम्यवादी व्यवस्था में जहाँ धर्म की चर्चा करना भी अपराध था, मैंने लोगों में सनातन हिन्दू धर्म के प्रति छिपी हुई रूचि पाई| १९६८ में लाटविया की राजधानी रीगा में एक एक लडकी ने मुझसे मित्रता कर छिपाकर भारत से योग दर्शन का साहित्य मँगवाने का अनुरोध किया जो उस समय असंभव था| युक्रेन में रहने वाले मध्य एशिया के दो मुसलमान परिवारों ने मुझे अपने घरों में सिर्फ हिन्दू धर्म के बारे में जानने के लिए भोजन पर निमंत्रित किया| उन्होंने बहुत परिश्रम कर पुस्तकों में पढ़ कर मेरे लिए शाकाहारी भोजन बनवाया|
उन्होंने भी हिन्दू धर्म पर मुझसे पुस्तकें माँगी जो उस समय एक असंभव कार्य था|
विश्व के अधिकाँश देशोंका मैंने भ्रमण किया है और अनेक तरह के लोगों से मिला हूँ| मैं इस निर्णय पर पहुंचा हूँ कि पूरा विश्व भारत से यह अपेक्षा करता है कि भारत एक आध्यात्मिक देश बने और आध्यात्म की ज्योति के दर्शन पूरे विश्व को कराये| अब यह भारत के लोगों पर निर्भर है कि वे कितने आध्यात्मिक बनते हैं|
इस लेख का मैं यहीं समापन करता हूँ| अगले लेख में लिखूँगा की पिछले सौ - सवा सौ वर्षों में विश्व में ऐसे क्या महत्वपूर्ण घटनाएँ हुई हैं जिन्होंने भारत पर गहरा प्रभाव डाला है|
जय सनातन वैदिक संस्कृति | जय भारत | जय श्री राम |
कृपा शंकर
३ मार्च २०१४

🙏भगवान को निश्चित रूप से पाने का मार्ग जो भगवान ने स्वयं बताया है ---

🙏भगवान को निश्चित रूप से पाने का मार्ग जो भगवान ने स्वयं बताया है ---
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"अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः |
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ||१८:१४||"
अर्थात् अनन्य चित्त वाला योगी सर्वदा निरन्तर प्रतिदिन मुझ परमेश्वरका स्मरण किया करता है| (छः महीने या एक वर्ष ही नहीं, जीवनपर्यन्त जो निरन्तर मेरा स्मरण करता है) हे पार्थ, उस नित्यसमाधिस्थ योगीके लिये मैं सुलभ हूँ|
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"मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय |
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः ||१२:८||"
अर्थात् तुम अपने मन और बुद्धि को मुझमें ही स्थिर करो, तदुपरान्त तुम मुझमें ही निवास करोगे, इसमें कोई संशय नहीं है||
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"अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम् |
अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय||१२:९ ||"
अर्थात् हे धनंजय ! यदि तुम अपने मन को मुझमें स्थिर करने में समर्थ नहीं हो, तो अभ्यासयोग के द्वारा तुम मुझे प्राप्त करने की इच्छा (अर्थात् प्रयत्न) करो||
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"अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव |
मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि ||१२:१०||"
अर्थात् यदि तुम अभ्यास में भी असमर्थ हो तो मत्कर्म परायण बनो; इस प्रकार मेरे लिए कर्मों को करते हुए भी तुम सिद्धि को प्राप्त करोगे||
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"अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रितः |
सर्वकर्मफलत्यागं ततः कुरु यतात्मवान् ||१२:११||"
अर्थात् और यदि इसको भी करने के लिए तुम असमर्थ हो, तो आत्मसंयम से युक्त होकर मेरी प्राप्ति रूप योग का आश्रय लेकर, तुम समस्त कर्मों के फल का त्याग करो||
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"श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते |
ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् ||१२:१२||"
अर्थात् - अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है; ज्ञान से श्रेष्ठ ध्यान है और ध्यान से भी श्रेष्ठ कर्मफल त्याग है; त्याग से तत्काल ही शान्ति मिलती है||
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"अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च |
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी ||१२:१३||"
अर्थात् भूतमात्र के प्रति जो द्वेषरहित है तथा सबका मित्र तथा करुणावान् है; जो ममता और अहंकार से रहित, सुख और दु:ख में सम और क्षमावान् है||
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"सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः |
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः ||१२:१४||"
अर्थात् जो संयतात्मा, दृढ़निश्चयी योगी सदा सन्तुष्ट है, जो अपने मन और बुद्धि को मुझमें अर्पण किये हुए है, जो ऐसा मेरा भक्त है, वह मुझे प्रिय है||
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"यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः |
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः ||१२:१५||"
अर्थात् जिससे कोई लोक (अर्थात् जीव, व्यक्ति) उद्वेग को प्राप्त नहीं होता और जो स्वयं भी किसी व्यक्ति से उद्वेग अनुभव नहीं करता तथा जो हर्ष, अमर्ष (असहिष्णुता) भय और उद्वेगों से मुक्त है,वह भक्त मुझे प्रिय है||
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सबसे अंत में यह सदा याद रखें .....
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः |
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ||१८:७८||"
अर्थात् जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन है वहीं पर श्री, विजय, विभूति और ध्रुव नीति है, ऐसा मेरा मत है||
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निरंतर हृदय में उन की उपस्थिति का आभास और अपने सभी कर्मों व कर्मफलों का उन्हें समर्पण ...... उन्हें पाने का सरलतम और लघुत्तम मार्ग है|
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परमात्मा की अनंतता और सर्वव्यापकता के ध्यान का निरंतर सचेतन अभ्यास बहुत बड़ी साधना है| भगवान कोई ऊपर से उतर कर आने वाली चीज नहीं हैं| वे निरंतर हमारे चैतन्य में हैं| वे यहीं है, इसी समय हैं और कभी हम से दूर हो ही नहीं सकते| सतत रूप से उनका स्मरण तो करना ही होगा| अन्य कोई विकल्प नहीं है| भगवान जब स्वयं हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं, तब जो उन की बात भी न सुने, वह अभागा है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय || 🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
कृपा शंकर
३ मार्च २०२१

 

अब बाहरी रुचियाँ धीरे धीरे समाप्त हो रही हैं ---

 जब से ब्रह्मनिष्ठा स्पष्ट रूप से जागृत हुई है, तब से सारी अवशिष्ट ऊर्जा का प्रवाह ऊर्ध्वगामी होकर एक ही दिशा में प्रवाहित हो रहा है। अन्यत्र रुचियाँ क्षीण होते होते समाप्त हो रही हैं।

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जब भी समय मिले, कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम का ध्यान करें। गीता में जिस ब्राह्मी स्थिति की बात कही गई है, निश्चयपूर्वक प्रयास करते हुए आध्यात्म की उस परावस्था में रहें। सारा जगत ही ब्रह्ममय है। किसी भी परिस्थिति में परमात्मा के अपने इष्ट स्वरूप की उपासना न छोड़ें।
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कहीं भी आने-जाने के लिए अब मुझे साथ में एक सहायक की आवश्यकता पड़ने लगी है। अकेले कहीं यात्रा करना अब लगभग असंभव सा हो रहा है। इसलिए अति आवश्यक होने पर ही कहीं जाता हूँ। बाहर की दुनियाँ से संपर्क धीरे धीरे अब कम होता जा रहा है।
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जब से सृष्टि का आरंभ हुआ है तभी से सत्य-सनातन-धर्म हमारा स्वधर्म है, जिस पर दृढ़ रहें, और राष्ट्र की रक्षा करें। निज जीवन में परम सत्य की अभिव्यक्ति और आत्म-साक्षात्कार -- सनातन धर्म का सार है। प्रकृति के नियमों के अनुसार संसार ऐसे ही चलता रहेगा। परमात्मा ही परम सत्य है।
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आत्मा की शाश्वतता, कर्मफलों का सिद्धांत, पुनर्जन्म, और ईश्वर के अवतारों में आस्था -- ये आधार हैं, जिन पर हमारी आस्था टिकी हुई है। स्वधर्म में ही जीना और मरना ही श्रेष्ठ है, स्वधर्म का थोड़ा-बहुत पालन भी महाभय से हमारी रक्षा करता है।
जीवन में भक्ति, ज्ञान और कर्म को समझें और अपने आचरण में उन्हें उतारें। सभी को शुभ कामनायें और नमन !!
ॐ तत्सत् !!
ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च।
मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च॥"
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सभी का कल्याण हो। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ मार्च २०२२

यूक्रेन के विरुद्ध चल रहे युद्ध में रूस का पक्ष धर्म-सम्मत और न्यायोचित है, अतः मैं रूस का पूरी तरह समर्थन करता हूँ ---

 यूक्रेन के विरुद्ध चल रहे युद्ध में रूस का पक्ष धर्म-सम्मत और न्यायोचित है, अतः मैं रूस का पूरी तरह समर्थन करता हूँ ---

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भारत की बिकी हुई अविश्वसनीय समाचार मीडिया झूठ बोल रही है। असली लड़ाई रूस को लूटने की है। अगला नंबर भारत और चीन का है। रूस ध्वस्त हो जायेगा तो भारत को लूटना अत्यधिक आसान हो जायगा। अमेरिका और उसके साथी पश्चिमी देशों की गिद्ध-दृष्टि रूस के प्राकृतिक संसाधनों पर लगी हुई है। अमेरिका व उसके साथी पश्चिमी देशों के प्राकृतिक संसाधन लगभग समाप्त हो चुके है। आमने-सामने की लड़ाई में रूस को हराना असंभव है, अतः किसी बहाने रूस को आक्रमणकारी घोषित करके आर्थिक प्रतिबन्धों द्वारा बर्बाद करना पश्चिम की नीति है, ताकि पुतिन के विरुद्ध विद्रोह भड़के। पुतिन ने रूस को बहुत सशक्त बनाया है जो अमेरिका को पसंद नहीं आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ में अमरीका का आरोप था कि वीडियो फुटेजों से सिद्ध हो गया है कि रूस यूक्रेनी नागरिकों पर बमबारी कर रहा है। रूस का कहना था कि उन वीडियो फुटेजों में से कुछ तो यूक्रेनियों द्वारा बमबारी के हैं,कुछ अन्य देशों के पुराने फुटेज हैं, और कुछ अमरीका ने वीडियो गेम सॉफ्टवेयरों द्वारा बनाये हैं। सत्य क्या है इसकी जांच होनी चाहिए। अमेरिका की नीति झूठे आरोप लगा कर रूस जैसे विशाल देश को नष्ट करना है। अमेरिका इसी तरह के झूठे आरोप लगाकर इराक़ पर आक्रमण कर चुका है। उसका उद्देश्य इराक़ को लूटना मात्र था।
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अमेरिका ने कोरिया, विएतनाम, युगोस्लाविया, इराक़, व अफगानिस्तान जैसे देशों पर आक्रमण करने के लिए क्या संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति ली थी? नेटो देश आज किस मुंह से रूस को आक्रमणकारी कह रहे है? युगोस्लाविया को तो पूरी तरह अमेरिका ने नष्ट कर दिया था। नेटो देशों ने इतिहास में जितने युद्ध, उपनिवेशवाद, दास−व्यापार और अत्याचार किए हैं, उतने किसी ने भी नहीं किए। भारत इसका भुक्तभोगी है। भारत को सावधान हो जाना चाहिये। कमजोर की कोई नहीं सुनता। डॉलर के चँगुल से हम अपना रूपया कैसे निकालें? इस पर हमें विचार करना चाहिए। डॉलर के नकली विनिमय मूल्य द्वारा अमेरिका हमें लूट रहा है। भारत को चाहिए कि थोरियम की शक्ति को तेजी से विकसित करे ताकि पेट्रोलियम पर निर्भरता समाप्त हो। आर्थिक दृष्टि से भी हम अति शीघ्रता से आत्मनिर्भर बनें।
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अमेरिका अफगानिस्तान से क्यों भागा? इसका सीधा सा उत्तर है -- दुनिया के सबसे बड़े ड्रग-तस्कर हक्कानी गिरोह को खुश करने के लिए, ताकि अमेरिका में सत्तासीन बड़े बड़े अंतर्राष्ट्रीय तस्करों को तालिबान से निरंतर कोकीन की सप्लाई मिलती रहे। अमेरिका ने अपने धन बल से यूक्रेन में एक ड्रग-एडिक्ट को वहाँ का राष्ट्रपति बनाया और ड्रग तस्करों की सरकार स्थापित की ताकि वे अमेरिका के चंगुल में फंसे रहें। पिछले दो दशकों से हिटलर की नकल में नात्सी विचारधारा यूक्रेनियों को पिलायी जा रही है। उनको सिखाया जाता है कि रूसी नस्ल घटिया है, जिसे मिटाना पुण्यकार्य है। यूक्रेनियों द्वारा सवाल न पूछे जाएँ, इसके लिये उनको कोकीन और डॉलर दिये जा रहे हैं। जिस तरह पाकिस्तान में लगभग सारे हिन्दुओ की हत्या कर दी गई थी, जर्मनी में यहूदियों की हत्या की गई थी, और बांग्लादेश में पाकिस्तानियों ने लगभग पचीस लाख बंगाली हिंदुओं की हत्या की थी, उसी तर्ज पर यूक्रेन में रूसी मूल के नागरिकों का नर संहार किया जाने लगा था। पूरे विश्व की समाचार मीडिया पर तो अमेरिका का अधिकार है, इस बात को छिपाया गया। रूस में बहुत अधिक रूसी मूल के यूक्रेनी नागरिक शरणार्थी के रूप में आने लगे। इसी कारण रूस को यूक्रेन पर आक्रमण करने को बाध्य होना पड़ा, वैसे ही जैसे १९७१ में भारत को पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध कर के बांग्लादेश को मुक्त करना पड़ा था। रूस ने बातचीत करने का भी बहुत प्रयास किया लेकिन उसकी बात सुनी ही नहीं गई।
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अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति पर अमेरिका में ही आरोप है कि वे ड्रग तस्करों द्वारा उनके समर्थन में किए गए दुष्प्रचार के कारण सत्ता में आए। यह बात सही भी हो सकती है। उनका एक बेटा तो अत्यधिक नशे की लत के कारण मर गया था, और दूसरे बेटे को ड्रग लेने की आदत के कारण अमेरिकी नौसेना ने नौकरी से बर्खास्त कर दिया था। कहते है कि उनका वही बेटा यूक्रेन के मामलों को देख रहा था। अमेरिका में वर्तमान राष्ट्रपति की छवि एक ड्रग लॉर्ड की है।
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यूक्रेन में मारकाट CIA के पाले हुये गुंडे कर रहे हैं। लगभग बीस हज़ार लोगों की 'अजोव बटालियन' नाम की एक नाजी सेना वहाँ बनाई गई है जिसका काम ही रूसी मूल के लोगों की हत्या करना है। रूस नष्ट हो जाएगा तो अगला नंबर भारत के हिंदुओं का है। फिर चीन का होगा। फिर दुनिया के अन्य गरीब देशों का नंबर आयेगा। जीवित रहने का अधिकार सिर्फ धनवान गोरों का ही होगा।
यह है यूक्रेन व रूस के मध्य हो रही लड़ाई का कारण। यही कारण है कि इस युद्ध में मैं रूस का समर्थन करता हूँ। सभी को धन्यवाद। नमस्ते॥
२ मार्च २०२२

हमारा यह शरीर-महाराज (या देह-महारानी) और हम ---

 हमारा यह शरीर-महाराज (या देह-महारानी) और हम ---

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भगवान ने यह शरीर हमें हमारी इस वर्तमान लोकयात्रा के लिए ही दिया है| इस शरीर के साथ हमारा बस उतना ही संबंध है, जितना हमारा संबंध हमारी किसी साइकिल, मोटर-साइकिल, स्कूटर या मोटर-कार के साथ है| जिस तरह से हम उन वाहनों की देखभाल करते हैं, उसी तरह से उतनी ही देखभाल हमें इस शरीर की भी करनी है| हमारा व्यक्तिगत संबंध सिर्फ और सिर्फ परमात्मा से है| अगर आप आध्यात्म-पथ के पथिक हैं, यो स्वयं को यह शरीर-महाराज (या देह-महारानी) मानना छोड़ना ही पड़ेगा|
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हम स्वयं को यह शरीर मानते हैं, इसीलिए हमें स्वर्ग/नर्क, सुख/दुःख व कर्मफलों के भोगों की प्राप्ति होती है| अन्यथा हमारा निवास तो उस लोक में है जिसके बारे में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ---
"न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः| यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम||१५:६||"
अर्थात् "उसे न सूर्य प्रकाशित कर सकता है और न चन्द्रमा और न अग्नि| जिसे प्राप्त कर मनुष्य पुन: (संसार को) नहीं लौटते हैं, वह मेरा परम धाम है||"
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आचार्य शंकर ने अपने भाष्य में लिखा है कि -- "वह धाम एक परमपद है जिसे प्रकाशित करने की शक्ति सूर्य, चन्द्र, और अग्नि में भी नहीं है| उस वैष्णवपद को पाकर मनुष्य पीछे नहीं लौटते, वह विष्णु का परमधाम ही हमारा निवास है| सभी गतियाँ अन्त में पुनर्रागमनयुक्त होती हैं, सभी संयोग अन्तमें वियोगवाले होते हैं| लेकिन उस धाम को प्राप्त हुओं का पुनर्रागमन नहीं होता|"
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भगवान आगे फिर कहते हैं ---
"ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः| मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति||१५:७||"
"शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः| गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात्||१५:८||"
"श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च| अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते||१५:९||"
"उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम्| विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः||१५:१०||"
(उपरोक्त श्लोकों का गहन स्वाध्याय स्वयं करें)
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सार की बात यह है कि हम यह देह नहीं, एक शाश्वत आत्मा हैं, और परमात्मा के साथ एक हैं| जिन्हें हम सत्य-नारायण, वासुदेव, पुरुषोत्तम, विष्णु, परमशिव, परमब्रह्म आदि कहते हैं, उन परमात्मा के हृदय में ही हमारा निवास है|
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गुरु महाराज कहते हैं कि सिर्फ स्वाध्याय, संकल्प या चर्चा मात्र से ही काम नहीं चलेगा| इसके लिए भगवान से परमप्रेम, और समर्पित होकर गहन ध्यान साधना/उपासना करनी पड़ेगी|
सभी को शुभ कामनाएँ और नमन!!
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ मार्च २०२१

गायत्री मंत्र और सावित्री मंत्र ---

 गायत्री मंत्र और सावित्री मंत्र ---

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परंपरा के अनुसार गायत्री-मंत्र व सावित्री-मंत्र के जप का अधिकार सिर्फ उनको ही है जिनका अधिकृत आचार्य गुरु द्वारा उपनयन यानि यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका है| जिन का जनेऊ यानि उपनयन अभी तक नहीं हुआ है, वे गायत्री-मंत्र व सावित्री-मंत्र का जप न करें| उन के लिए अन्य अनेक पौराणिक मंत्र हैं| सांसारिक लाभ के लिए गायत्री जप नहीं करना चाहिये| यह केवल आध्यात्मिक ज्ञान के लिये है| सांसारिक और आध्यात्मिक ज्ञान के लिए भी अन्य भी अनेक मंत्र हैं| परंपरानुसार वे विवाहित महिलायें भी गायत्री मंत्र का जप कर सकती हैं जिनके पतियों का उपनयन हो चुका है| कन्याओं के लिए गायत्री-मंत्र के जप की अनुमति नहीं है| कुछ आचार्य, कन्याओं को भी इसकी अनुमति दीक्षोपरांत देते हैं|
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सामान्यतः गायत्री मंत्र का जप तीन व्याहृतियों -- ॐ भूः , ॐ भुवः, ॐ स्वः के साथ होता है| जब गायत्री मंत्र का जप सात व्याहृतियों -- ॐ भूः , ॐ भुवः, ॐ स्वः, ॐ महः, ॐ जनः, ॐ तपः, ॐ सत्यं --- के साथ किया जाता है, तब यह सावित्री मंत्र कहलाता है| गायत्री-मंत्र का ही विस्तृत रूप -- सावित्री मन्त्र है, जिस का प्रयोग वैदिक-प्राणायाम के लिए होता है|
क्रिया-योग में सप्त व्याहृतियों के साथ की जाने वाली एक गायत्री-क्रिया है जो गोपनीय है| उसकी विधि गुरु-परंपरा में ही गुरु द्वारा शिष्य को सामने बैठाकर पात्रतानुसार सिखाई जाती है|
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प्राणायाम में जप हेतु सावित्री मन्त्र :--
"ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यं | ॐ तत्सवितुर्वरेण्यम् | भर्गो देवस्य धीमहि | धियो योनः प्रचोदयात् || ॐ आपो ज्योतिरसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ||"
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(Note: "ज्योति" शब्द को लिखते समय "ति" की मात्रा छोटी होती है, लेकिन मानसिक जप में यह बड़ी यानि "ती" हो जाती है)
ॐ तत्सत् !
२ मार्च २०२१