विश्व की भारत से अपेक्षाएँ --------
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(यह लेख जब मैं लिख रहा था उस समय रूस और युक्रेन में तनाव की स्थिति थी | अब रुसी सेना क्रीमिया से बापस चली गयी है | पर रूस ने दिखा दिया है वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा| काश! ऐसा साहस हमारे देश में भी होता|)
(इस लेख में मैं स्वभाववश अपने कुछ अनुभव और विचार लिख रहा हूँ|)
रूस और युक्रेन में अगर क्रीमिया को लेकर यदि युद्ध हुआ तब यह एक भयानक त्रासदी होगी जिसका भारत पर भी बुरा असर पड़ेगा | मैं रूस में भी खूब रहा हु और युक्रेन में भी | क्रीमिया के भी कुछ मित्र रहे है | रूस और युक्रेन की संस्कृतियों में इतनी समानता रही है कि अंतर कर पाना अति कठिन है | पूर्व सोवियत संघ के दिनों से ही रूस, युक्रेन और बेलारूस के लोगों में अत्यधिक घनिष्ठता रही है | मैं कल्पना भी नहीं कर सकता की रूस और युक्रेन कभी लड़ भी सकते हैं क्या | दोनों भारत के मित्र देश भी हैं |
दोनों में सनातन धर्म का बहुत तेजी से प्रचार प्रसार हो रहा है| रूस को तो मैं भविष्य का हिन्दू देश मानता हूँ| हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार इसी तरह स्वतः होता रहा तो अगले ५०-६० वर्षों में रूस एक हिन्दू देश होगा| ईसाईयत के आने से पूर्व रूस में सनातन धर्म था जिसके अवशेषों को पहिले तो चर्च ने फिर साम्यवादियों ने नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी| रुसी भाषा की व्याकरण संस्कृत से प्रभावित है|
लिथुआनिया जैसे देश की भाषा की व्याकरण पर तो संस्कृत का बहुत अधिक प्रभाव है|
रूस के तातारिस्तान गणराज्य के तातार मुसलमान तो स्वयं को भारतीयों का वंशज मानते हैं|
भारत में सनातन धर्म का वर्चस्व बढेगा तो मध्य एशिया उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा| भारत पर जिन मुगलों ने राज्य किया वे उज्बेकिस्तान से आये थे| आज पूरे मध्य एशिया में एक शुन्य की सी स्थिति है और वहां के लोग भारतवर्ष से बहुत अपेक्षाएँ रखते हैं| इस्लाम के आगमन से पूर्व पूरा मध्य एशिया बौद्ध था| वहाँ के विद्वान भी यह मानते हैं कि बौद्ध धर्म से पूर्व वहाँ सनातन धर्म था|
युक्रेन के घटनाक्रम का बुल्गारिया, रोमानिया और तुर्की जैसे श्याम सागर में स्थित पड़ोसी देशों पर भी असर पड़े बिना नहीं रहेगा| तुर्की और रोमानिया का भी मुझे बहुत अनुभव है|
रोमानिया जैसे कट्टर साम्यवादी देश में जब साम्यवाद के विरुद्ध जनविद्रोह हुआ, उस समय रूस ने वहाँ के कट्टर साम्यवादी तानाशाह चाऊशेस्को के विरुद्ध हुए विद्रोहियों का समर्थन किया था| उसी समय मैं समझ गया था की साम्यवाद अपनी अंतिम साँसे ले रहा है| रोमानिया में भ्रष्टाचार और नैतिक पतन अपने चरम पर था|
संयोग से मैं उस समय युक्रेन में ही था| उसके पूरे एक वर्ष बाद सोवियत संघ बिखर गया और रूस सहित सभी सोवियत गणराज्यों में साम्यवाद धराशायी हो गया| पूर्व सोवियत देशों की स्थिति यह थी कि साम्यवादी लोग अपने घरों में छिप गए थे| लोगों ने वहाँ के हर चौराहे पर लगी लेनिन और मार्क्स की विशाल मूर्तियों को तोड़ तोड़ कर नीचे गिरा दिया था| ऐसी स्थिति आ गयी थी कि सडक पर कोई साम्यवादी दल का सदस्य मिलता तो लोग उसकी पिटाई कर देते थे|
यह संयोग ही था कि रूस में ब्रेझनेव के समय में जब साम्यवाद अपने चरम उत्कर्ष पर था तब भी मैं उसका साक्षी था| सन १९६७ ई. में जब बोल्शेविक क्रांति की ५० वीं वर्षगाँठ मनाई जा रही थी तब मैं रूस में ही था| मेरी आयु भी उस समय १९-२० वर्ष की ही थी| उसके पूरे २०-२१ वर्ष बाद सोवियत संघ से साम्यवाद को धराशायी होते हुए भी वहीँ रहकर देखा|
कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि साम्यवाद जैसी भयावह आसुरी व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी|
साम्यवाद जहाँ जहाँ था वहाँ वहाँ उसने मानवीय मूल्यों के विनाश की एक बहुत बड़ी रेखा छोड़ दी|
साम्यवाद से मुक्त होने में पोलैंड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया और पूर्वी जर्मनी ने भी देरी नहीं की| युगोस्लाविया में गृहयुद्ध हुआ और वह देश भी बिखर गया| बचे खुचे को अमेरिका ने बर्बाद कर दिया|
चीन में माओ ने चाहे करोड़ों लोगों की हत्याएं की हों और निरंकुशता से राज्य किया हो पर उसने अपने देश के लिए एक काम बहुत अच्छा किया कि अपनी विचारधारा को चीनी राष्ट्रवाद से जोड़ दिया| चीन की वर्तमान प्रगति का रहस्य भी वहाँ का राष्ट्रवाद ही है|
भारत में साम्यवाद को लाने का श्रेय एम.एन. रॉय जैसे बुद्धिजीवियों को है जिहोनें इसे राष्ट्रवाद के विरुद्ध स्थापित किया| यह विचारधारा भारत में राष्ट्रवाद के विरुद्ध है|
चीन ने भी स्वयं को साम्यवाद से मुक्त कर लिया है| वहाँ "चीन की साम्यवादी पार्टी" नाम का एक गिरोह आतंक के जोर पर राज्य कर रहा है| मैं उस पार्टी को गिरोह ही कहूँगा क्योंकि वह बहुत क्रूर है| उसके सदस्य किसी भी तरह का विरोध सहन नहीं करते|
विएतनाम में साम्यवाद अपनी स्वाभाविक मौत मर गया है| क्यूबा में भी साम्यवाद ध्वस्त हो गया है|
उत्तरी कोरिया में एक तानाशाही परिवार आतंक के जोर पर राज्य कर रहा है| उत्तरी कोरिया एक सैनिक किले की तरह है जहाँ के लोगों को बाहर की दुनिया का कुछ भी ज्ञान नहीं है| सन १९८० में २० दिनों के लिये वहाँ जाने का अवसर मिला था| वह देश पूरी तरह सेना के नियन्त्रण में था जहाँ किसी भी विदेशी को आम आदमी से बात करने का अधिकार नहीं था| पुलिस, अर्धसैनिक बलों और प्रशासन का कार्य भी सेना के ही आधीन था| भारत में जैसे प्रत्येक जिले का जिलाधीश एक प्रशासनिक अधिकारी होता है वैसे ही वहाँ सेना का एक कर्नल होता था| वहाँ के सभी अधिकारीयों को रुसी भाषा आती थी| रुसी भाषा के ज्ञान के कारण मुझे वहाँ बातचीत में कोई कठिनाई नहीं हुई|
यह भी एक संयोग ही था की जब कोरियाई युद्ध की चालीसवीं वर्षगाँठ मनाई जा रही थी तब मैं उत्तरी कोरिया में ही था|
वहाँ का एक दृश्य मैं कभी नहीं भूल सकता| जब श्रमिक लोग कहीं काम करते थे तो एक महिला ध्वनी वितारक यंत्र से उनके पीछे खड़ी होकर उनको खूब कठिन श्रम करने की भाषण द्वारा प्रेरणा देती, और साथ में बन्दूक ताने एक सिपाही भी खड़ा रहता| इसका अर्थ आप समझ सकते हैं|
साम्यवाद बचा है तो सिर्फ भारत के बंगाल और केरल प्रान्त में| जैसे सारी भौतिकवादी विचारधाराएँ ध्वस्त हुई हैं वैसे ही यह भी ध्वस्त हो जाएगा| पश्चिम का पूँजीवाद और भोगवाद भी धराशायी होगा|
सारी दुनिया एक तनाव, भय और असुरक्षा के भाव से ग्रस्त है| सब लोग सुख, शांति और सुरक्षा को ही ढूँढ रहे हैं जो उन्हें कहीं नहीं मिलती|
पश्चिम के कई ईसाई देशों में खूब जाने का अवसर भगवान ने दिया है, वहाँ भी लोगों को मैंने सुखी नहीं पाया| अपनी भौतिक व्यवस्थाओं से वे त्रस्त हैं|
कुछ इस्लामिक देशों जैसे मिश्र, सऊदी अरब, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को और बांग्लादेश में भी जाने का अवसर मिला है और वहाँ के जीवन को भी बहुत समीप से देखा है| वहाँ भी घोर आतंरिक अशांति है|
भारत से बहुत दूर दूर के देशों में भी ऐसे अनेक लोग मिले जिन्होंने चुपचाप भारत के योग, और वेदांत दर्शनों के बारे में मुझसे प्रश्न पूछे| घोर साम्यवादी व्यवस्था में जहाँ धर्म की चर्चा करना भी अपराध था, मैंने लोगों में सनातन हिन्दू धर्म के प्रति छिपी हुई रूचि पाई| १९६८ में लाटविया की राजधानी रीगा में एक एक लडकी ने मुझसे मित्रता कर छिपाकर भारत से योग दर्शन का साहित्य मँगवाने का अनुरोध किया जो उस समय असंभव था| युक्रेन में रहने वाले मध्य एशिया के दो मुसलमान परिवारों ने मुझे अपने घरों में सिर्फ हिन्दू धर्म के बारे में जानने के लिए भोजन पर निमंत्रित किया| उन्होंने बहुत परिश्रम कर पुस्तकों में पढ़ कर मेरे लिए शाकाहारी भोजन बनवाया|
उन्होंने भी हिन्दू धर्म पर मुझसे पुस्तकें माँगी जो उस समय एक असंभव कार्य था|
विश्व के अधिकाँश देशोंका मैंने भ्रमण किया है और अनेक तरह के लोगों से मिला हूँ| मैं इस निर्णय पर पहुंचा हूँ कि पूरा विश्व भारत से यह अपेक्षा करता है कि भारत एक आध्यात्मिक देश बने और आध्यात्म की ज्योति के दर्शन पूरे विश्व को कराये| अब यह भारत के लोगों पर निर्भर है कि वे कितने आध्यात्मिक बनते हैं|
इस लेख का मैं यहीं समापन करता हूँ| अगले लेख में लिखूँगा की पिछले सौ - सवा सौ वर्षों में विश्व में ऐसे क्या महत्वपूर्ण घटनाएँ हुई हैं जिन्होंने भारत पर गहरा प्रभाव डाला है|
जय सनातन वैदिक संस्कृति | जय भारत | जय श्री राम |
कृपा शंकर
३ मार्च २०१४
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