जहां तक मैं समझता हूँ -- विशुद्ध वेदान्त दर्शन केवल मुमुक्षु साधु-संतों व विरक्तों के लिये ही है; शासक-वर्ग, क्षत्रियों, व अन्यों के लिए तो कदापि नहीं। सतयुग में राजा जनक इसके अपवाद थे।
Saturday, 11 January 2025
भगवान श्रीकृष्ण ने हमारे ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया है
परमात्मा के ध्यान में मैं उनकी सारी सृष्टि के साथ एक हूँ ---
फेसबुक व व्हाट्सएप्प पर तो मेरी पहुँच बहुत कम लोगों तक है। लेकिन परमात्मा के ध्यान में मैं उनकी सारी सृष्टि के साथ एक हूँ। मेरी कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं है। मैं आप सब से पृथक नहीं, निरंतर आप सब के साथ एक हूँ। हम सब का जीवन राममय हो।
भगवान की प्राप्ति से अधिक सरल अन्य कुछ भी नहीं है, भगवान कहीं दूर नहीं, हमारे हृदय में ही बैठे हुए हैं ---
'भगवान की उपासना' सतत् निरंतर चलते रहना है। कहीं भी रुक गए तो पतन अवश्यंभावी है। हमें निमित्त बनाकर हमारे माध्यम से भगवान स्वयं को व्यक्त कर रहे हैं। हम उनकी दिव्य तेजस्विता, आलोक, प्रेम और पूर्णता ही नहीं, उनसे अपरिछिन्न प्रत्यगात्मा परमशिव हैं।
भगवान की प्राप्ति से अधिक सरल अन्य कुछ भी नहीं है| भगवान कहीं दूर नहीं, हमारे हृदय में ही बैठे हुए हैं।
शब्दों में रस आना समाप्त हो गया है ---
शब्दों में रस आना समाप्त हो गया है, भारत विजयी होगा, सत्य सनातन धर्म विजयी होगा। शब्द उन सीढ़ियों की तरह हैं जिनका उपयोग कर के हम छत पर चढ़ते हैं। एक बार छत पर पहुँचते ही सीढ़ियों की ओर देखने का मन नहीं करता। वैसे ही अब शब्दों में कोई रुचि नहीं रही है। बिना शब्दों के प्रयोग किये ही जब सच्चिदानंद की अनुभूति होने लगती है, तब उन्हें व्यक्त करने वाले शब्द किसी काम के नहीं रहते हैं। जो भी अवशिष्ट जिज्ञासा है, उसका समाधान साक्षात भगवान श्रीकृष्ण से करेंगे।
हम कभी अकेले साधना नहीं करते, गुरु महाराज और स्वयं भगवान भी सूक्ष्म रूप में हमारे साथ-साथ ही साधना करते हैं ---
आत्म-साक्षात्कार के लिये हमें सिर्फ २५% ही साधना करनी पड़ती है। २५% हमें सद्गुरु के आशीर्वाद से, और ५०% हमें परमात्मा की कृपा से प्राप्त हो जाता है। हमारा जो २५% भाग है उसका शत-प्रतिशत तो हमें पूर्ण सत्य-निष्ठा से करना ही पड़ेगा। उसमें कोई छूट नहीं है।
लगता है यह सारा संसार मानसिक रोगियों से भरा पड़ा है ---
लगता है यह सारा संसार मानसिक रोगियों से भरा पड़ा है। जो मानसिक रोगी नहीं होता उसे मानसिक रोगी बना दिया जाता है। हम सब असहाय हैं, कुछ नहीं कर सकते।