Saturday, 11 January 2025

हम कभी अकेले साधना नहीं करते, गुरु महाराज और स्वयं भगवान भी सूक्ष्म रूप में हमारे साथ-साथ ही साधना करते हैं ---

आत्म-साक्षात्कार के लिये हमें सिर्फ २५% ही साधना करनी पड़ती है। २५% हमें सद्गुरु के आशीर्वाद से, और ५०% हमें परमात्मा की कृपा से प्राप्त हो जाता है। हमारा जो २५% भाग है उसका शत-प्रतिशत तो हमें पूर्ण सत्य-निष्ठा से करना ही पड़ेगा। उसमें कोई छूट नहीं है।

ध्यान-साधना में गुरु महाराज की उपस्थिती का आभास सभी साधकों को होता है। एक समय ऐसा भी आता है जब भगवान स्वयं ही साकार रूप में हमें निमित्त बनाकर अपनी साधना स्वयं करने लगते हैं। हर साधक को वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण की उपस्थिती का आभास अवश्य होता है। कभी वे शांभवी मुद्रा में होते हैं तो कभी त्रिभंग मुद्रा में। लेकिन सारी साधना वे स्वयं करते हैं। हमारा कुछ भी होने का भ्रम मिथ्या है।
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हिमालय से भी बड़े बड़े मेरे बुरे कर्म और मेरी भूलें हैं, लेकिन उनके कृपा-सिंधु में वे छोटे-मोटे कंकर-पत्थर से अधिक नहीं हैं। हम कभी भी अकेले नहीं हैं। भगवान सदा हमारे साथ हैं। वास्तव में हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। सारा अस्तित्व भगवान का है, हमारा कुछ होने का भ्रम मिथ्या है।
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ब्रह्मानंदं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं| द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम्||
एकं नित्यं विमलंचलं सर्वधीसाक्षीभूतम्| भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि||
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च ।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ॥
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ जनवरी २०२५
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पुनश्च: --
वायु = अनाहतचक्र, यम = मूलाधारचक्र, अग्नि = मणिपुरचक्र, वरुण = स्वाधिष्ठानचक्र, शशांक = विशुद्धिचक्र, प्रजापति = आज्ञाचक्र, प्रपिता = सहस्त्रारचक्र ॥ कुंडलिनी महाशक्ति मूलाधार से जागृत होकर स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि व आज्ञा से होती हुई सहस्त्रार में परमशिव को नमन कर बापस लौट आती है। वहीं भगवान विष्णु और भगवती श्री के पद्मपाद हैं। इन का रहस्य गुरुकृपा से ही समझ में आता है।

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