Monday 1 August 2016

आज वास्तव में शिवकृपा की वर्षा हो रही है .........

आज वास्तव में शिवकृपा की वर्षा हो रही है .........
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आज श्रावण के पवित्र माह का द्वितीय सोमवार है और इस श्रावण मास की शिवरात्री भी है| आज भगवान शिव की साक्षात् परम कृपा बरस रही है|
आज भगवान शिव का चाहे थोड़ा सा ही ध्यान करो, बड़ी सुन्दर अनुभूतियाँ होंगी| किसी शिवालय में जाकर भगवान शिव का अभिषेक करो और वहीं बैठकर उन का ओंकार रूप में ध्यान करो, आनंद से भर जाओगे|
हमने घर पर ही एक पारद शिवलिंग, और एक नर्मदेश्वर बाणलिंग स्थापित कर रखा है जिस का नित्य अभिषेक होता है| आज स्वप्रेरणा से नर्मदेश्वर बाणलिंग को भस्म स्नान और खस के इत्र से स्नान कराया, जिसकी अनुभूतियाँ बड़ी सुखद थीं|
भगवान शिव की कृपा सब पर हो|
ॐ नमःशिवाय ! ॐ नमःशिवाय ! ॐ नमःशिवाय ! ॐ ॐ ॐ ||
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(नर्मदा नदी में ओंकारेश्वर के पास "धावड़ी कुंड" नामक एक स्थान है, जहां से प्राप्त शिवलिंग को बाणलिंग कहते हैं| यह पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है| यह कभी शिवभक्त वाणासुर का यज्ञकुंड था जो कालान्तर में नर्मदा में समाहित हो गया| अब तो वहाँ बाँध बनने से धावडी कुन्ड भी नर्मदा जल में डूब गया है|)

नियमित गहन और दीर्घ ध्यान साधना की आवश्यकता .......

नियमित गहन और दीर्घ ध्यान साधना की आवश्यकता .......
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आप सभी निजात्माओं को नमन ! आज कई दिनों के पश्चात फेसबुक पर उपस्थित हुआ हूँ| भौतिक रूप से आप सब से दूर था पर आप सब मेरे ह्रदय में थे| लिखने की आदत छूट सी गयी है| कुछ दिनों में लिखने का अभ्यास पुनश्चः हो जाएगा|
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कभी कभी एकांत में दूर जाकर उचित वातावरण में अधिकाधिक समय देकर गहन और दीर्घ काल तक साधना में रहना चाहिए| पर जहाँ भी रहें नियमित गहन ध्यान साधना आवश्यक है क्योंकि हमारा अवचेतन मन अथाह है जिसमें इस जन्म के ही नहीं, अनेक जन्मों के अच्छे-बुरे संस्कार भरे हुए हैं; कब कौन सा कुसंस्कार जागृत हो जाए कुछ कह नहीं सकते|
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कई बार अनायास हम ऐसे गलत कार्य कर बैठते हैं जिन पर विश्वास नहीं कर सकते कि हमारे होते हुए भी यानी in spite of me यह कैसे हो गया| यह हमारे अवचेतन मन में छिपे कुसंस्कारों के अनायास जागृत होने से होता है|
नियमित गहन और दीर्घ साधना से अवचेतन मन में छिपे कुसंस्कार नष्ट होते हैं| अन्य कोई मार्ग नहीं है|
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नियमित ध्यान साधना से हमारा अधिचेतन मन सक्रिय हो जाता हैं जो अंतर्ज्ञान यानि सीधे सत्य का बोध कराता है और किसी भी तरह के गलत कार्यों से हमें रोकता है|
अधिचेतन मन की जागृति .... समाधि की प्रथम अवस्था है, जो आत्मा की शुद्ध, अंतर्ज्ञानात्मक और आनंद दायक चेतना है| अपनी मनोदशाओं पर नियंत्रण का अन्य कोई मार्ग नहीं है|
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पुनश्चः आप सब को नमन ! आप सब मेरी ही निजात्मा हैं, मेरे ही प्राण हैं| आप सब के कल्याण में ही मेरा कल्याण है| ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !

एक विचार बहु विवाह के बारे में ........

एक विचार .....
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मैं प्रबुद्ध और चिंतनशील लोगों के विचार जानना चाहता हूँ बहु-विवाह पर| वर्तमान में एक धर्म विशेष के लोगों को अनेक पत्नियां रखने की छूट है| उनकी जनसंख्या तीब्रता से बढ़ रही है, वहीं हिंदुओं की तीब्रता से घट रही है|
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सनातन धर्म में एक से अधिक पत्नियां रखने का कहीं भी निषेध नहीं है| भारत के सभी राजाओं के (भगवान श्री राम को छोड़कर) अनेक पत्नियाँ थीं| अनेक ऋषि-मुनियों की भी अनेक पत्नियाँ थीं| सामान्य नागरिकों के लिए भी बहु-विवाह अति सामान्य था| भारत में तलाक की अनुमति कभी नहीं थी| एक से अधिक पत्नी रखना कभी भी बुरा नहीं माना जाता था| जवाहर लाल नेहरु ने हिंदू विवाह कानून हिंदुओं पर थोपा वह धर्म-विरुद्ध था| या तो यह कानून सभी नागरिकों के लिए समान होता पर सिर्फ हिंदुओं के लिए ऐसा बनाना एक सोची समझी जेहादी चाल थी|
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समाज में बहुत सी परित्यक्ता, असहाय, निर्धन और विपरीत परिस्थितियों की शिकार महिलायें होती हैं| कोई हिंदू चाह कर भी इन्हें नहीं अपना सकता| ऐसी स्त्रियाँ अंततः विधर्मियों के जाल में फँस जाती हैं और उनकी जनसंख्या और भी तेजी से बढ़ती है|
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हिंदुओं को यदि बचे रहना है तो या तो सामान नागरिक क़ानून की मांग करनी चाहिए या इस कानून में संशोधन की मांग करनी चाहिए और बहु-विवाह करने चाहियें| अन्यथा अगले बीस तीस साल में हिंदुओं की वही गति होगी जो आज पाकिस्तान और बंगला-देश में हो रही है| याद रखिये कि आप की धर्म-निरपेक्षता तभी तक है जब तक यहाँ हिंदू बाहुल्य है| जब हिंदू अल्पसंख्यक हो जयेगा तब आप अपनी धर्मनिरपेक्षता का कीर्तन करते रहना पर सुनने वाला कोई नहीं होगा और यह देश पाकिस्तान का ही भाग होने को विवश कर दिया जाएगा|
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आप सब से हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि उपरोक्त विषय पर विचार करें और जन मानस में चेतना जगाएं| इस विचार से सभी को अवगत कराएं| धन्यवाद|

एक अनुभूति .....

एक अनुभूति .....
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हमारा जैसा भौतिक और मानसिक परिवेश है, तदनुरूप ही सूक्ष्म जगत के प्राणी हमारे पास आते हैं और हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं| जैसे भौतिक व मानसिक वातावरण में हम रहते हैं वैसे ही सूक्ष्म जगत के प्राणियों को हम आकर्षित करते हैं, जो देवता भी हो सकते हैं और निम्न जगत के अधम प्राणी भी जिन्हें हम आँखों से नहीं देख सकते पर अनुभूत कर सकते हैं|
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सूक्ष्म और कारण जगत, भौतिक जगत से दूर नहीं है सिर्फ उनके स्पंदन अलग हैं, वैसे ही जैसे एक ही टेलीविजन पर अलग अलग चैनल पर अलग अलग कार्यक्रम|
अतः भौतिक रूप से अपने आसपास स्वच्छता और पवित्रता रखें| सुन्दर और स्वच्छ वातावरण में रहें| आपके यहाँ देवताओं का निवास होगा अन्यथा बुरी आत्माएँ आकर्षित होंगी| वैसे ही अपने मन को भी निर्विकार रखने का निरंतर प्रयास करते रहें तो अच्छा है||
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हमारे विचार और भाव ही हमारे कर्म हैं| कर्म का अर्थ भौतिक क्रिया नहीं है| हमारे विचार और भाव ही हमारे कर्म हैं जो निरंतर हमारे खाते में जुड़ते रहते हैं| उनका फल हमें जन्म-जन्मान्तरों में अवश्य मिलता है| जैसे हमारे विचार और भाव होंगे, जैसा हमारा चिंतन होगा और वैसे ही प्राणियों को हम आकर्षित करते हैं|
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अतः हमारा हर विचार सद्विचार हो और हर संकल्प शिवसंकल्प हो| निरंतर प्रभु को अपने ह्रदय में रखें| बाहर का जगत हमारे विचारों की ही अभिव्यक्ति है|

ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||