वे मरे नहीं, अमर हुए. वे हारे नहीं, वीरगति को प्राप्त हुए. उन्होंने भारत की अस्मिता (सनातन धर्म और संस्कृति) की रक्षा के लिए युद्ध किया था. भारत की भूमि पर महाभारत के पश्चात लड़ा गया यह सबसे बड़ा धर्मयुद्ध था.
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१४ जनवरी १७६१ को हुए पानीपत के तीसरे युद्ध में हुतात्मा एक लाख तीस हजार से भी अधिक अमर हिन्दू योद्धाओं को श्रद्धांजलि और नमन !!
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सदाशिव राव भाऊ एक महान वीर हिन्दू योद्धा था, जिसके नेतृत्व में यह युद्ध लड़ा गया था| उसकी सेना धर्मरक्षा हेतु, दुर्दांत लुटेरे अहमदशाह अब्दाली से लड़ने के लिए हजारों मील दूर महाराष्ट्र से पैदल चल कर आई थी, जिसके साथ में भारी तोपखाना भी था| उस के सैनिकों ने उस दिन भूखे, प्यासे, सर्दी में ठिठुरते हुए युद्ध किया था, क्योंकि उन्हें पर्याप्त समय ही नहीं मिला था| फिर भी वे वीरता से लड़े और अमर हुए| महाराष्ट्र का शायद ही कोई ऐसा घर होगा जिसका कोई न कोई सदस्य वीरगति को प्राप्त नहीं हुआ था|
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भारत के शत्रु वामपंथी इतिहासकारों ने भारत का गलत इतिहास लिखा है| इस युद्ध के बाद अहमदशाह अब्दाली भाग गया था और उसका फिर कभी साहस ही नहीं हुआ, भारत की ओर आँख उठाकर देखने का| अहमदशाह अब्दाली ने पंजाब में भयंकर नर-संहार और विनाश किया, फिर मथुरा के और आसपास के सारे हिन्दू मंदिर तोड़कर ध्वस्त कर दिये थे| उसने चालीस हज़ार से अधिक तीर्थयात्रियों व धर्मनिष्ठ नागरिकों का सामूहिक नरसंहार कर उनके नरमुंडों से मथुरा के पास एक मीनार खड़ी कर दी थी| उसी की सजा उसे देने के लिए सदाशिवराव भाऊ महाराष्ट्र से आया था| उस युद्ध के पश्चात पश्चिम में खैबर घाटी से होकर फिर किसी आक्रमणकारी का भारत में आने का साहस नहीं हुआ|
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सिर्फ दस वर्षों में ही मराठे हिन्दुओं ने अपनी खोयी हुई शक्ति को पुनः प्राप्त किया और उन सब विश्वासघातियों को निपटा दिया जिनके कारण पानीपत में उनकी हार हुई थी| महादजी शिंदे ने पूरे रुहेलखण्ड को बर्बाद कर दिया जिनकी गद्दारी से पानीपत में हार हुई थी| बाजीराव ने दिल्ली पर अपना अधिकार कर पूरी मुग़ल सत्ता समाप्त कर दी। साहू जी द्वारा अभयदान देने से ही मुगलों को जीवित छोड़ दिया गया। पंजाब में मराठा सेना की सहायता से ही सिखों का राज्य स्थापित हुआ। अंग्रेजों ने भारत की सत्ता मराठों से प्राप्त की थी, न कि मुगलों से। इस तरह के और भी अनेक युद्ध लड़े गए, जिन्हें छिपाया गया है| वीर-प्रसूता भारत माता की जय|
इस लेख को लिखने का उद्देश्य --- किसी पूर्वजन्म की स्मृति को व्यक्त करना है| ध्यान में वह पूरा युद्ध याद आ जाता है| लगता है किसी पूर्व जन्म में उस महायुद्ध में मेरी भी कोई भूमिका थी|
कृपा शंकर
१५ जनवरी २०२१