अपनी कामनाओं की पूर्ती के लिए ही मनुष्य दर दर भटकता है| पता नहीं
कितनी मनौतियाँ करता है, कितनी दरगाहों में, मजारों पर, समाधियों पर और न
जाने कितने देवस्थानों पर जाकर प्रार्थना और दुआएँ करता है| संयोगवश जहाँ
उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है उस स्थान को वह दैवीय उपस्थिति वाला मान
लेता है|
मुझे अब एक बात समझ में आने लगी है है कि ये मनोकामनायें किसी देवी-देवता, पीर-फ़कीर, या किसी मज़ार पर जाने से नहीं, बल्कि अपने स्वयं के विश्वास द्वारा ही पूरी होती है| भगवान कभी किसी की इच्छा यानि कामनाओं की पूर्ति नहीं करते| कामनाओं की पूर्ती स्वयं के विश्वास से होती हैं| एक पूरी हुई कामना तुरंत अन्य अनेक कामनाओं को जन्म दे देती है, और हमारे दुःख का कारण बनती है| कामना की अपूर्ति से हमें कोई हानि नहीं होती|
मुझे अब एक बात समझ में आने लगी है है कि ये मनोकामनायें किसी देवी-देवता, पीर-फ़कीर, या किसी मज़ार पर जाने से नहीं, बल्कि अपने स्वयं के विश्वास द्वारा ही पूरी होती है| भगवान कभी किसी की इच्छा यानि कामनाओं की पूर्ति नहीं करते| कामनाओं की पूर्ती स्वयं के विश्वास से होती हैं| एक पूरी हुई कामना तुरंत अन्य अनेक कामनाओं को जन्म दे देती है, और हमारे दुःख का कारण बनती है| कामना की अपूर्ति से हमें कोई हानि नहीं होती|
मेरी तो सोच यह है कि भगवान किसी की कामना पूरी करे ही नहीं| इससे संसार का बहुत अधिक भला हो जाएगा| कई भ्रम इससे टूटेंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
९ जून २०१८
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
९ जून २०१८