Sunday, 10 June 2018

भगवान किसी की कामना पूरी करे ही नहीं .....

अपनी कामनाओं की पूर्ती के लिए ही मनुष्य दर दर भटकता है| पता नहीं कितनी मनौतियाँ करता है, कितनी दरगाहों में, मजारों पर, समाधियों पर और न जाने कितने देवस्थानों पर जाकर प्रार्थना और दुआएँ करता है| संयोगवश जहाँ उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है उस स्थान को वह दैवीय उपस्थिति वाला मान लेता है|

मुझे अब एक बात समझ में आने लगी है है कि ये मनोकामनायें किसी देवी-देवता, पीर-फ़कीर, या किसी मज़ार पर जाने से नहीं, बल्कि अपने स्वयं के विश्वास द्वारा ही पूरी होती है| भगवान कभी किसी की इच्छा यानि कामनाओं की पूर्ति नहीं करते| कामनाओं की पूर्ती स्वयं के विश्वास से होती हैं| एक पूरी हुई कामना तुरंत अन्य अनेक कामनाओं को जन्म दे देती है, और हमारे दुःख का कारण बनती है| कामना की अपूर्ति से हमें कोई हानि नहीं होती| 

मेरी तो सोच यह है कि भगवान किसी की कामना पूरी करे ही नहीं| इससे संसार का बहुत अधिक भला हो जाएगा| कई भ्रम इससे टूटेंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
९ जून २०१८

मेरी कमी और विफलता .....

मेरी कमी और विफलता .....
.
अगर मुझ में कोई कमी है व मेरी कोई विफलता है तो मुझे वह छिपानी नहीं चाहिए| उस को छिपाना स्वयं को धोखा देना है| मैं भक्ति और आध्यात्म के ऊपर लिखता हूँ, बड़ी बड़ी बातें करता हूँ, पर उसकी कितनी पात्रता मुझमें है, इसका भी विचार मुझे करना चाहिए| मैं अगर अपनी कमियों व विफलताओं का विश्लेषण करूँ तो मेरी सबसे बड़ी विफलता और सबसे बड़ी कमी यह है ...... " मेरी भक्ति अभी भी व्यभिचारिणी है, और अनन्य भक्ति की प्राप्ति मुझे अभी तक नहीं हुई है|"
.
भक्ति जब अव्यभिचारिणी और अनन्य हो जाए तभी भगवान उपलब्ध होते हैं| गीता के तेरहवें अध्याय के ग्यारहवें श्लोक में भगवान ने अव्यभिचारिणी भक्ति का उल्लेख किया है| अनेक स्वनामधन्य आचार्यों ने इसके ऊपर भाष्य लिखे हैं| पर भगवान की कृपा से जो मुझे समझ में आया है वह ही यहाँ लिख रहा हूँ|
.
भगवान के सिवाय अन्य कहीं भी किसी से भी कोई अनुराग है तो वह भक्ति व्यभिचारिणी है| भगवान के सिवाय हमें अन्य किसी की भावना होनी ही नहीं चाहिए| दूसरी बात यह है कि भगवान से प्रेम करते करते जब पृथकता न रहे, पूर्ण एकत्व हो जाए, व किसी अन्य का कोई बोध ही न रहे तब वह भक्ति अनन्य भक्ति होती है|
.
जब तक भक्ति अनन्य व अव्यभिचारिणी न हो तब तक मुझे सब प्रपंचों से दूर असम्बद्ध ,अप्रतिबद्ध, निःसंग और पूर्ण निष्ठापूर्वक अपनी गुरु प्रदत्त उपासना करनी चाहिए| भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण के अतरिक्त अन्य कोई लक्ष्य न हो| किसी भी तरह का कोई अहंकार न हो|
.
अतः स्वयं को व्यवस्थित करने के लिए वाणी व मन के मौन का अभ्यास व खूब ध्यान साधना करनी चाहिए| वास्तव में कर्ता तो स्वयं भगवान हैं, मैं तो निमित्त मात्र हूँ| पर भगवान को मुझ में प्रवाहित होने का अवसर तो मुझे देना ही पड़ेगा|
.
आप सब महान दिव्यात्माओं को नमन ! आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्तियाँ हो| आप सब के हृदय में भगवान नारायण प्रत्यक्ष बिराजमान हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ जून २०१८

हिन्दू जाति कभी कायर नहीं हो सकती .....

हिन्दू जाति कभी कायर नहीं हो सकती .....

अब तो उत्थान का काल आ गया है| पतन के काल में भी जिस हिन्दू जाति ने गोरा, बादल, राणा सांगा और प्रताप, जयमल और फत्ता, बप्पा रावल, दुर्गादास और शिवाजी, गुरू अर्जुनदेव, गुरू तेगबहादुर, गुरू गोविंद सिंह, महाराजा रणजीत सिंह और हरि सिंह नलवा जैसे हजारों शूरवीरों को उत्पन्न किया वह जाति कभी कायर नहीं हो सकती|

जिस हिन्दू जाति की सैकड़ों स्त्रियों ने अपने हाथों से अपने भाईयों, पतियों और पुत्रों की कमर में शस्त्र बांधे और उनको युद्ध में भेजा, जिस हिन्दू जाति की अनेक स्त्रियों ने स्वयं पुरूषों का वेश धारण कर अपने धर्म व जाति की रक्षा के लिए युद्ध क्षेत्र में लड़ कर सफलता पायी, अपनी आंखों से एक बूंद भी आंसू नही गिराया, जिन्होंने अपने पातिव्रत्य धर्म की रक्षा के लिए दहकती प्रचण्ड अग्नि में प्रवेश किया, वह जाति कभी कायर नहीं हो सकती|

भारत के प्राण ..... वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, स्मृति, पुराण आदि हैं, न कि सेकुलरों द्वारा लिखा गया झूठा इतिहास|
७ जून २०१८

माता पिता दोनों ही प्रथम परमात्मा हैं .....

माता पिता दोनों ही प्रथम परमात्मा हैं| किसी भी परिस्थिति में उनका अपमान नहीं होना चाहिए| उनका सम्मान परमात्मा का सम्मान है| यदि उनका आचरण धर्म-विरुद्ध और सन्मार्ग में बाधक है तो भी वे पूजनीय हैं| ऐसी परिस्थिति में हम उनकी बात मानने को बाध्य नहीं हैं, पर उन्हें अपमानित करने का अधिकार हमें नहीं है| उनका पूर्ण सम्मान करना हमारा परम धर्म है| श्रुति कहती है ..... "मातृदेवो भव, पितृदेवो भव|" उनके अपमान से भयंकर पितृदोष लगता है| पितृदोष जिन को होता है, या तो उनका वंश नहीं चलता या उनके वंश में अच्छी आत्माएं जन्म नहीं लेती| पितृदोष से घर में सुख शांति नहीं होती और कलह बनी रहती है| आज के समय अधिकांश परिवार पितृदोष से दु:खी हैं| वे प्रत्यक्ष रूप से आपके सम्मुख हैं तो प्रत्यक्ष रूप से, और नहीं भी हैं तो मानसिक रूप से उन देवी-देवता के श्री चरणों में प्रणाम करना हमारा धर्म है|
.
(१) "ॐ ऐं" .... मानसिक रूप से जपते हुए इस मन्त्र से अपने पिता को प्रणाम करना चाहिए| यह मन्त्र स्वतः चिन्मय है| "ॐ" तो प्रत्यक्ष परमात्मा का वाचक है| "ऐं" पूर्ण ब्रह्मविद्या स्वरुप है| यह वाग्भव बीज मन्त्र है महासरस्वती और गुरु को प्रणाम करने का| गुरु रूप में पिता को प्रणाम करने से इसका अर्थ होता है .... हे पितृदेव मुझे हर प्रकार के दु:खों से बचाइये, मेरी रक्षा कीजिये|

(२) "ॐ ह्रीं" .... मानसिक रूप से जपते हुए इस मन्त्र से अपनी माता को प्रणाम करना चाहिए यह माया, महालक्ष्मी और माँ भुवनेश्वरी का बीज मन्त्र है जिनका पूर्ण प्रकाश स्नेहमयी माता के चरणों में प्रकट होता है| प्रथम गुरु और जगन्माता के रूप में अपनी माता को प्रणाम करने का अर्थ है ... हे माता मुझे हर प्रकार के दु:खों से बचाइये, मेरी रक्षा कीजिये|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ जून २०१३

एक अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र के अंतर्गत भारत से गौवंश समाप्त किया जा रहा है ....

एक अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र के अंतर्गत भारत से गौवंश समाप्त किया जा रहा है, ताकि .....
.
(१) भारत को यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से उनके दूध का आयात करना पड़े| चीन में गौवंश पूरी तरह समाप्त हो गया है| वहाँ गायें बची ही नहीं है| सोयाबीन से दूध बनाते हैं, और बाहर से मिल्क पाउडर का आयात करते हैं| बिलायती गायों का दूध गुणवत्ता में अच्छा नहीं होता| भारत की देशी नस्ल की गायों को अमेरिका ने अच्छी खुराक देकर अधिक दूध देने वाली गाय बना दिया है जिसका दूध और गायों के दूध से चार गुना अधिक मंहगा है| पकिस्तान में भी सब गायों को मारकर खा गए हैं| अब वहाँ के बच्चों को दूध ही नहीं मिलता| ऑस्ट्रेलिया और डेनमार्क से मिल्क पाउडर आयात कर के पाउडर को घोल कर घोलकर दूध बना कर बच्चों को पिलाते हैं|
.
(२) बिलायती गायों के बैल किसी काम के नहीं होते| उनको खेती के काम में नहीं ला सकते| देशी गौवंश समाप्त हो जाएगा तो खेती के लिए बैल ही नहीं मिलेंगे| फिर डीजल इंजनों से चलने वाले ट्रेक्टरों से ही खेती करनी पड़ेगी, जिसके लिए तेल अरब देशों से खरीदना पडेगा| दुनिया से तेल भी बीस-तीस साल में समाप्त होने वाला है| फिर भारत की कमर टूट जायेगी, ऐसी उनकी सोच है|

मेरे प्राण भगवान परम शिव हैं .....

मेरे प्राण भगवान परम शिव हैं| वे ही सभी जड़, चेतन, व प्राणियों की देहों में प्राण रूप में गतिशील हैं| सारी सृष्टि के वे प्राण हैं| आकाश तत्व भी वे ही हैं| एकमात्र अस्तित्व उन्हीं का है| उनके सिवा अन्य सब मिथ्या है|

इस सूक्ष्म देह की सुषुम्ना नाड़ी में मूलाधार चक्र से सहस्त्रार तक एक ध्यान लिंग है| वह ध्यान लिंग ही मेरा साधना स्थल है| इस ध्यान लिंग के भीतर ही प्राण रूप में मेरे इष्ट देव सभी सातों चक्रों की परिक्रमा करते रहते हैं| इसी से यह देह जीवंत है|

कूटस्थ में इस ध्यान लिंग से ऊपर अनंताकाश है, जिससे भी परे एक विराट श्वेत ज्योतिषांज्योति से आलोकित क्षीर सागर है जहाँ भगवान नारायण का निवास है| वे भगवान नारायण ही पंचमुखी महादेव हैं| उनका प्रबल आकर्षण ही साधना पथ पर भटकने नहीं देता| भटक जाते हैं तो उनकी कृपा बापस सही मार्ग पर ले आती है| वे ही परम शिव हैं, वे ही परात्पर गुरु हैं, और वे ही मेरे परम उपास्य देव और जीवन के उद्देश्य हैं| 

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ जून २०१८

भावनात्मक जुड़ाव क्या एक बंधन है ? .....

भावनात्मक जुड़ाव क्या एक बंधन है ? .....

किसी भी वस्तु या व्यक्ति से भावनात्मक जुड़ाव को ही हम "मोह" या "राग" कह सकते हैं| भावनात्मक जुड़ाव को भी एक बंधन बताया गया है| यदि यह एक बंधन है तो इसे तोड़ना सांसारिक व्यक्ति के लिए तो असम्भव है|

वास्तविक "निर्मोही" या "वैरागी" होना एक बहुत ही उच्च स्तर की बात है| यह उसी के लिए संभव है जो एक अवधूत परमहंस अवस्था में पहुँच चुका हो| इसके लिए तो बहुत अधिक आध्यात्मिक साधना करनी होती है| संकल्प मात्र से इस बंधन से मुक्त होना असंभव है| सब तरह की कामनाओं का त्याग करना होता है|

अपने नाम के साथ कुछ भी लिखना या स्वयं को कुछ भी घोषित करना एक धोखा भी हो सकता है यदि हमारा आचरण वैसा न हो| किसी की बड़ी बड़ी बातें सुनकर, किसी का नाम देखकर या किसी का आवरण देखकर ही हमें प्रभावित नहीं होना चाहिए| आवरण नहीं, आचरण से हम मनुष्य को पहिचानें, नहीं तो धोखा ही धोखा है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ जून २०१८