क्या भगवान के भक्त चोर है ? क्या भगवान भी चोरों के चोर हैं ?
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(१) भगवान का एक नाम "हरि" है जिसका अर्थ हरने वाला यानि चोर है|
"हरति पापानि भक्तानां मनांसि वा इति हरि:।"
भगवान अपने भक्तों के मन के सारे पाप हर लेते हैं, अतः उनका एक नाम "हरि" है|
भक्त को तो पता ही नहीं चलता कि उसके पापों की चोरी भी हो गयी है| अतः ऐसे चोर से पूज्य और कौन हो सकता है जो चोरी की इच्छा को ही चुरा लेते हैं|
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(२) गोपाल सहस्त्रनाम में भगवान को "चोरजारशिखामणि" अर्थान चोरों का सरदार कहा गया है|
चोर :-- "चोरयति सर्वविषयाभिलाषम् भक्तानाम् इति |
(चोर :-- जो भक्तों की सम्पूर्ण विषयों की अभिलाषा को चुरा लेते हैं)
जार:-- जारयति संसारबीजम् अविद्याम् इति|"
(जार :-- जो भजनपरायण की संसारकारणीभूता अविद्या को जला देते हैं वे जार हैं)
इन चोर और जारों के जो शिखामणि अर्थात् सर्वश्रेष्ठ हैं । वे भगवान् श्रीब्रजेन्द्रनन्दन ही चोरजारशिखामणि हैं।
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(३) चोर का लक्षण :--
"अतिभक्तिश्चौरलक्षणम् |"
अर्थात जिसने भक्ति का अतिक्रमण कर दिया उसे अतिभक्ति कहते हैं। यही चोर का लक्षण है।
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जब से भगवान ने हमारा ह्रदय (दिल) ही चुरा लिया है तब से हमारा ह्रदय उनका ह्रदय ही हो गया है| अब हमारे पास बचा ही क्या है ? अपना कहने को कुछ भी नहीं रहा है| सब कुछ उन्हीं का हो गया है| उनका ह्रदय जो सब हृदयों का ह्रदय है, वह ही अब हमारा घर हो गया है|
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अब किसको नमन करें ? जब से सर झुका है तब से झुका ही हुआ है, और उठता ही नहीं है |
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श्री हरि | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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(१) भगवान का एक नाम "हरि" है जिसका अर्थ हरने वाला यानि चोर है|
"हरति पापानि भक्तानां मनांसि वा इति हरि:।"
भगवान अपने भक्तों के मन के सारे पाप हर लेते हैं, अतः उनका एक नाम "हरि" है|
भक्त को तो पता ही नहीं चलता कि उसके पापों की चोरी भी हो गयी है| अतः ऐसे चोर से पूज्य और कौन हो सकता है जो चोरी की इच्छा को ही चुरा लेते हैं|
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(२) गोपाल सहस्त्रनाम में भगवान को "चोरजारशिखामणि" अर्थान चोरों का सरदार कहा गया है|
चोर :-- "चोरयति सर्वविषयाभिलाषम् भक्तानाम् इति |
(चोर :-- जो भक्तों की सम्पूर्ण विषयों की अभिलाषा को चुरा लेते हैं)
जार:-- जारयति संसारबीजम् अविद्याम् इति|"
(जार :-- जो भजनपरायण की संसारकारणीभूता अविद्या को जला देते हैं वे जार हैं)
इन चोर और जारों के जो शिखामणि अर्थात् सर्वश्रेष्ठ हैं । वे भगवान् श्रीब्रजेन्द्रनन्दन ही चोरजारशिखामणि हैं।
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(३) चोर का लक्षण :--
"अतिभक्तिश्चौरलक्षणम् |"
अर्थात जिसने भक्ति का अतिक्रमण कर दिया उसे अतिभक्ति कहते हैं। यही चोर का लक्षण है।
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जब से भगवान ने हमारा ह्रदय (दिल) ही चुरा लिया है तब से हमारा ह्रदय उनका ह्रदय ही हो गया है| अब हमारे पास बचा ही क्या है ? अपना कहने को कुछ भी नहीं रहा है| सब कुछ उन्हीं का हो गया है| उनका ह्रदय जो सब हृदयों का ह्रदय है, वह ही अब हमारा घर हो गया है|
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अब किसको नमन करें ? जब से सर झुका है तब से झुका ही हुआ है, और उठता ही नहीं है |
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श्री हरि | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ ॐ ॐ ||