Thursday 23 June 2016

साकार-निराकार, सगुण-निर्गुण ..... इन सब में भेद करना मात्र अज्ञानता है ...

साकार-निराकार, सगुण-निर्गुण .......... इन सब में भेद करना मात्र अज्ञानता है|
इस सृष्टि में कुछ भी निराकार नहीं है| जो भी सृष्ट हुआ है वह साकार है|
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एक बालक चौथी कक्षा में पढ़ता है, और एक बालक बारहवीं में पढता है, सबकी अपनी अपनी समझ है| जो जिस भाषा और जिस स्तर पर पढता है उसे उसी भाषा और स्तर पर पढ़ाया जाता है| जिस तरह शिक्षा में क्रम होते हैं वैसे ही साधना और आध्यात्म में भी क्रम हैं| एक सद्गुरू आचार्य को पता होता है कि किसे क्या उपदेश और साधना देनी है, वह उसी के अनुसार शिष्य को शिक्षा देता है|
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जो लोग समाज में बड़े आक्रामक होकर मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं, वे भी या तो अपने गुरु के भौतिक चेहरे का ध्यान करते हैं, या किसी मन्त्र का जप करते हैं| क्या यह साकार साधना नहीं है?
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वेदांत में जो ब्रह्म है, जिसे परब्रह्म भी कहते हैं, साकार रूप में वे ही भगवान श्रीकृष्ण हैं| उनकी शिक्षाएँ श्रुतियों का सार है|
किसी भी तरह के वाद-विवाद में न पड़ कर अपना समय नष्ट न करें और उसका सदुपयोग परमात्मा के अपने प्रियतम रूप के ध्यान में लगाएँ|
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ शिव !

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