Thursday 23 June 2016

नित्य गीता पाठ का महत्व .......

नित्य गीता पाठ का महत्व .......

" गीता पाठ समायुक्तो मृतो मानुषतां वृजेत् |
गीताभ्यासःपुनः कृत्वा लभते मुक्तिमुत्तमाम् || " (गीता महात्म्य)
अर्थात् .....
गीता-पाठ करनेवाला (अगर मुक्ति होनेसे पहले ही मर जाता है,तो) मरने पर फिर मनुष्य ही बनता है और फिर गीता अभ्यास करता हुआ उत्तम मुक्तिको प्राप्त कर लेता है |

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वर्षों पहिले मैंने एक नियम बनाया था .... गीता का एक पूरा अध्याय या क्रमशः कम से कम पाँच श्लोक अर्थ सहित नित्य पाठ करने का| पर इसे मेरा दुर्भाग्य कहिये या तमोगुण का प्रभाव कि वह नियम छूट गया| मुझे इससे बड़ी ग्लानि होती थी और बार बार प्रेरणा भी मिलती थी नित्य गीतापाठ की, पर वह नियम दुबारा प्रारम्भ नहीं हो पाया जिससे मुझे बड़ी अशांति रहती थी|
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प्रभु की कृपा थी कि कल शाम को जोधपुर से स्वामी मृगेंद्र सरस्वती जी (सर्वज्ञ शङ्करेन्द्र) का अचानक फोन आया और वे गीता की महिमा बताने लगे, जिसे बताते बताते उन्होंने नित्य गीता पाठ का आदेश भी दे दिया और उसकी एक नई विधी भी बता दी|
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उन्होंने आदेश दिया कि गीता पाठ से पूर्व और पश्चात वैदिक शान्तिपाठ करना है और पिछले दिन जो पाठ किया उसकी भी पुनरावृति करनी है व अर्थ समझने के लिए शंकर भाष्य का मनन करना है|
अब इतने महान संत की अवज्ञा तो कर नहीं सकते अतः उनकी आज्ञा को शिरोधार्य कर लिया|
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मेरी दृष्टी में गीता भारत का प्राण है| सनातन हिन्दू संस्कृति का आधार ही गौ, गंगा, गीता और गायत्री है| गीता में सम्पूर्ण वेदों का सार निहित है| गीता की महत्ता को शब्दों में वर्णन करना असम्भव है क्योंकि यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से निकली है| गीता पाठ का महत्व उतना ही है जितना नित्य संध्या का|
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स्वयं भगवान श्रीकृष्ण इसका महत्व बताते हुए कहते हैं .... कि जो पुरुष प्रेमपूर्वक निष्काम भाव से इसे भक्तों को पढ़ाएगा अर्थात् उनमें गीता का प्रचार करेगा वह निश्चय ही मुझको (परमात्मा) प्राप्त होगा ।
जो पुरुष स्वयं इस जीवन में गीता शास्त्र को पढ़ेगा अथवा सुनेगा वह सब प्रकार के पापों से मुक्त हो जाएगा|
अतः गीता का नित्य पाठ परम कल्याणकारी है|
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स्वामी रामसुखदास जी तो अपने हर प्रवचन से पूर्व इन श्लोकों का नित्य पाठ करते थे ....
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् | देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतनामीश्वरो$पि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठायसम्भवाम्यात्ममायया ||
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ||
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन||
वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः |
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ||
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् | देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||

1 comment:

  1. पूर्णिमा दोनों पक्ष की प्रथमा { एकम ]अष्टमी चतुर्दशी , अमावस्या को भाष्य पद
    का पाठ नही करना चाहिए !

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