Monday, 18 October 2021

क्या में मुक्त हूँ? ---

क्या में मुक्त हूँ? इसका उत्तर अपने अंतर्मन में झांक कर बहुत अच्छी तरह से सोच-विचार कर दे रहा हूँ -- नहीं, बिल्कुल नहीं।

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अपनी एक कमी का मुझे पता है, जो इस जन्म में दूर नहीं हो सकती। उसके लिए मुझे कम से कम एक और जन्म लेना ही पड़ेगा। इस जीवन में किसी भी तरह की अन्य कोई कमी नहीं थी। भगवान के प्रति भक्ति भी खूब थी, शास्त्रों के अध्ययन, विद्वता और ज्ञान में भी कोई कमी नहीं थी। जीवन में अनेक दिव्य अनुभव हुए। अनेक देशों का भ्रमण किया, इस पृथ्वी की परिक्रमा भी की, अनेक तरह के लोगों से मिला, प्रकृति के सौम्य और विकराल रूपों के दर्शन भी अनेक बार किये।
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भगवान से सदा प्रेरणा मिलती थी कि विरक्त होकर एकांत में रहूँ, और सारा जीवन आध्यात्मिक साधना में व्यतीत करूँ। लेकिन इसके लिए आवश्यक साहस का सदा अभाव रहा। विरक्त होने का साहस नहीं जुटा पाया। पूर्व जन्मों में इतने अच्छे कर्म भी नहीं किये थे कि इस जन्म में पूर्णता मिले।
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किसी को दोष नहीं दे रहा, स्वयं के संचित कर्म ही इतने अच्छे नहीं थे। लेकिन अब एक आंतरिक आश्वासन है कि जब भी पुनर्जन्म होगा तो हर जीवन में जन्म से ही पूर्ण भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और परमात्मा की अभिव्यक्ति होगी। अब कोई इच्छा नहीं रही है। एकांत में भगवान मुझे अपनी उपासना में ही लगाए रखें। किसी भी तरह की किसी कामना का जन्म ही न हो। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
९ अक्तूबर २०२१

पूरी सख्ती के साथ ड्रग्स के धंधे को बंद कर देना चाहिए ---

आतंकियों को सारा धन ड्रग्स के धंधे से मिलता है। भारत सरकार को पूरी सख्ती के साथ ड्रग्स के धंधे को बंद कर देना चाहिए। ड्रग के धंधे में लिप्त व्यक्ति को मृत्यु दंड मिलना चाहिए जैसे -- सिंगापूर, मलयेशिया, इन्डोनेशिया, जापान और अमेरिका व अन्य अनेक देशों में है।
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भगवान ने भारत की रक्षा की हैं। मैं भगवान के प्रति नतमस्तक हूँ। पाकिस्तान की I.S.I. के आतंकवादी हाल में ही पकड़े गए थे। उनसे पूछताछ करने के बाद त्वरित कारवाई कर के आतंकी समूहों की योजना विफल कर दी गई, अन्यथा बहुत ही भयंकर विनाश और भारत की पूरी व्यवस्था विफल हो सकती थी। जब तक पाकिस्तान का पूर्ण विनाश नहीं होता तब तक पाकिस्तान का अस्तित्व भारत के लिए विनाशकारी ही रहेगा। इनकी योजना पाँच चरणों में थी, जो कल आठ अक्तूबर से ही आरंभ हो जाती। अब तो सोशियल मीडिया पर सब कुछ स्पष्ट हो गया है।
पहले चरण में इनकी योजना भारत के हवाई अड्डों के Air Traffic Control को Hack कर के अनेक वायुयानों को दुर्घटनाग्रस्त करना और पूरी व्यवस्था को विफल करना था।
दूसरे चरण में इनकी योजना पूरे भारत के Power grids को विस्फोटों से उड़ाकर पूरे भारत में बिजली बंद कर के अंधकार फैलाना था।
तीसरे चरण में इनकी योजना देश के सारे बड़े रेलवे पुलों को उड़ाना था।
चौथे चरण में इनकी योजना देश के प्रमुख हिन्दू मंदिरों को विस्फोटों से उड़ाना था।
पांचवे चरण में देश के प्रमुख हिन्दू नेताओं की हत्या करना और संघ के मुख्यालय को उड़ाना था।
भगवान की कृपा से सारे आतंकी पकड़े गए और उनकी योजना धरी रह गई।
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पुनश्च:--- आतंकियों को सारा धन ड्रग्स के धंधे से मिलता है। भारत सरकार को पूरी सख्ती के साथ ड्रग्स के धंधे को बंद कर देना चाहिए। ड्रग के धंधे में लिप्त व्यक्ति को मृत्यु दंड मिलना चाहिए जैसे -- सिंगापूर, मलयेशिया, इन्डोनेशिया, जापान और अमेरिका व अन्य अनेक देशों में है।
समीर वानखेडे जैसे व्यक्तियों और उनके सहयोगियों को सम्मानित करना चाहिए।
९ अक्तूबर २०२१

 

मेरे इष्टदेव कौन हैं? ---

मेरे इष्टदेव कौन हैं? ---
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यह भगवान की समस्या है, मेरी नहीं। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका कोई उत्तर मेरे पास नहीं है। क्या इष्ट देव होना अनिवार्य है? यह भगवान की मर्जी, वे किसी भी रूप में आ जाएँ। सारे रूप उन्हीं के हैं, सब कुछ वे ही हैं। यह मैंने भगवान पर छोड़ दिया है कि वे जिस भी रूप में आना चाहें आयें, उनका स्वागत है।
वे कभी परमशिव के रूप में आते है और छा जाते हैं, कभी श्रीसीताराम के रूप में, कभी श्रीलक्ष्मीनारायण के रूप में, कभी श्रीराधाकृष्ण के रूप में, और कभी त्रिभंग मुद्रा में वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण के रूप में आते हैं।
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वे चाहे जिस रूप में आयें, उनकी मर्जी, मेरी ओर से उनका स्वागत है। मेरे अंतरतम हृदय का रहस्य तो रहस्य ही रहेगा, क्योंकि वह सिर्फ भगवान के लिये आरक्षित है, और किसी को नहीं बता सकता।
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जिस समाज को मैं अपना समझता था उस समाज में तो मेरे साथ दुर्व्यवहार और अन्याय ही हुआ है, जिसकी पीड़ा तो सदा मेरे हृदय में ही रहेगी। किसी की मैं न तो आलोचना करूंगा, और न ही निंदा। भगवान से मुझे पूरा प्रेम मिला है, और भगवान ने मुझे अपने हृदय में स्थान दिया है, यही मेरे जीवन की एकमात्र उपलब्धि है।
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आप सब में हृदयस्थ भगवान को नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१० अक्तूबर २०२१

 

जिसे हम खोज रहे हैं, वह तो हम स्वयं हैं ---

जिसे हम खोज रहे हैं, वह तो हम स्वयं हैं। भगवान से पृथकता ही हमारे सब दु:खों का कारण है। अन्य कोई कारण नहीं है। उन से जुड़ाव ही आनंद है, बाकि सब एक मृगमरीचिका है, जिसकी परिणिति मृत्यु है। भगवान को अपने भीतर प्रवाहित होने दो, फिर उस प्रवाह में सब कुछ समर्पित कर दो। कहीं पर भी कोई अवरोध नहीं होना चाहिए। दिन का प्रकाश, रात्रि का अन्धकार, प्रकृति का सौंदर्य, फूलों की महक, पक्षियों की चहचहाहट, सूर्योदय और सूर्यास्त, प्रकृति की सौम्यता और विकरालता, यह सारा विस्तार और उस से परे जो कुछ भी है, सर्वव्यापकता, सर्वशक्तिमत्ता, सर्वज्ञता, सारे विचार, सारे दृश्य और सम्पूर्ण अस्तित्व मैं हूँ। मुझ से परे अन्य कुछ भी नहीं है। मैं यह देह नहीं, परमशिव हूँ।

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आनंदस्वरूप तो हम स्वयं हैं, सुख की खोज स्वयं की खोज है, बाहर की खोज एक पराधीनता है; पराधीन व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकत।
“Knock, And He'll open the door
Vanish, And He'll make you shine like the sun
Fall, And He'll raise you to the heavens
Become nothing, And He'll turn you into everything.” (Rumi)
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इस सृष्टि में जिसे मैं ढूँढ़ रहा हूँ, वह तो मैं स्वयं ही हूँ। सारी दुनिया भाग रही है, लेकिन मैं उसके साथ नहीं भाग सकता, कयोंकि यह एक अंतहीन दौड़ है। इस सारी भागदौड़ का एक ही उद्देष्य है --सुख की प्राप्ति। सुख की खोज के लिए मुनष्य दिन रात एक करता है, खून पसीना बहाता है, और आकाश-पाताल एक करता है। सुख की खोज के लिए ही व्यक्ति धर्म-अधर्म से धन-सम्पत्ति एकत्र करता है, दूसरों का शोषण करता है, और पूरा जीवन खर्च कर देता है। पर क्या वास्तव में उसे सुख मिलता है? मनुष्य जो भी मौज-मस्ती करता है, वह करता है सुख के लिए| सुखी होना चाहता है आनंद के लिए। पर क्या वह कभी आनंद को पा सकता है? मेरा तो अनुभव तो यही है कि आनंद न तो बाहर है और न भीतर है। जिस सुख और आनंद को हम बाहर और भीतर ढूंढ रहे हैं, वह आनंदस्वरूप तो हम स्वयं हैं। सुख की खोज स्वयं की खोज है। बाहर और भीतर की खोज एक गुलामी यानी पराधीनता है। पराधीन व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता।
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एक आदमी ने एक बैल को रस्सी से बाँध रखा है और सोचता है की बैल उसका गुलाम है। पर जितना बैल उसका गुलाम है उतना ही वह भी बैल का भी गुलाम है। हम स्वयं आनंदस्वरूप हैं, हम सच्चिदानंद स्वरुप हैं। उस आत्म तत्व को खोजिये जिसकी कभी कभी एक झलक मिल जाती है। उस झलक मात्र में जो आनंद है, पता नहीं उसको पा लेने के बाद तो जीवन में आनंद के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं बचेगा। उस आत्म-तत्व के अलावा सब कुछ दु:ख और भटकाव ही है।
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० अक्तूबर २०२१
 

दशहरा की अनंत शुभ कामनाएं। एक स्मृति ग्रेट निकोबार की ---

आजकल धार्मिक/आध्यात्मिक/देशभक्ति व सब तरह के लेख लिखना बंद कर दिया है। आज दशहरे का अभिनंदन किये बिना नहीं रह सका अतः दशहरे का अभिनंदन भी कर रहा हूँ, और बधाई व शुभ कामनाओं के साथ-साथ एक पुराना यात्रा वृतांत भी साझा कर रहा हूँ। आजकल किसी से किसी भी तरह की अनावश्यक बातचीत और मेलजोल बंद कर रखा है। भगवान से प्रेरणा तो मुझे यही मिल रही है कि इस वृद्धावस्था में ईश्वर के ध्यान-चिंतन में ही सारा समय बिताया जाए और ईश्वर का चिंतन करते-करते ही जब भी समय आए तब इस देह का त्याग भी कर दिया जाए। भगवान की इच्छा होगी तो वे आर्त-सन्यास भी दिला देंगे।
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यह संसार द्वैत से बना है जहाँ बुराई और भलाई दोनों ही साथ-साथ रहेंगी। यदि संसार में सिर्फ भलाई, या सिर्फ बुराई ही रह जाए तो यह संसार उसी समय नष्ट हो जाएगा। कहते हैं कि दशहरे का त्योहार सत्य पर असत्य की विजय का प्रतीक है। लेकिन रावण भी उतना ही सत्य है जितने भगवान श्रीराम। हमारी काम-वासना, क्रोध, लोभ और अहंकार -- ही रावण है, जो हमारे अवचेतन मन में रहता है। भगवान का निवास हमारे हृदय में है। श्रीराम -- सच्चिदानंद ब्रह्म हैं, जिनमें समस्त योगी और भक्त सदैव रमण करते हैं। सीताजी -- भक्ति हैं, और अयोध्या -- हमारा हृदय है। राम को पाने के लिए हमें जगन्माता सीता जी (भक्ति) का आश्रय लेना ही होगा। अहेतुकी परमप्रेम जागृत कर अपने अहंभाव का सम्पूर्ण समर्पण भगवान को करना होगा, तभी यह रावण हमारे चित्त से हटेगा। जरा सी भी असावधानी से ये फिर बापस आ जाएगा। अपने अवचेतन मन में स्थायी रूप से राम को प्रतिष्ठित करना ही रावणवध है।
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भारत के सबसे दक्षिणी भाग की यात्रा का अवसर सन २००१ में मुझे दो बार मिला है। उसकी बड़ी मधुर स्मृति है। कई अच्छी व बुरी बातें स्मृति में आती हैं। ग्रेट निकोबार द्वीप के समुद्र तट विश्व के सबसे शानदार और सबसे सुरक्षित समुद्र तटों में से हैं। विदेशी पर्यटकों को यहाँ आने की बिल्कुल भी अनुमति नहीं हैं। वहाँ के वीरान समुद्र तटों पर और जंगलों में मैं अकेला ही कई दिनों तक नित्य निर्भय होकर घूमने जाता था, क्योंकि कोई हिंसक जीव वहाँ नहीं होते। कोई चोर व डकैत भी नहीं होते। एक बार मुझे लगा कि वहाँ कोई जंगली सूअर है तो दूसरे दिन आत्मरक्षा के लिए एक बल्लम हाथ में लेकर गया जिससे आत्मरक्षा का पूरा मुझे पूरा अभ्यास था। लेकिन उसकी आवश्यकता कभी नहीं पड़ी। फिर वहाँ के स्थानीय लोगों ने बताया कि डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। वहाँ कोई जंगली सूअर नहीं होते। दूर से किसी जंगली हिरण को मैंने सूअर समझ लिया होगा।
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वहाँ के इतिहास के अनुसार दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य के राजा राजेन्द्र चोल का साम्राज्य पूरे इंडोनेशिया और पूरे विएतनाम पर था। वे एक बार केरल से दस सहस्त्र सैनिकों के साथ इस द्वीप पर पधारे थे, और यहाँ एक सहस्त्र रुद्राक्ष के पेड़ लगवाये। रुद्राक्ष के पेड़ की आयु दो हजार वर्ष होती है। उनके समय के पाँच सौ से अधिक रुद्राक्ष के वृक्ष अभी भी जीवित हैं।
१४ अक्तूबर २०१८ को मैंने अपनी उस यात्रा पर एक लेख लिखा था, जिसे यहाँ शेयर कर रहा हूँ ---
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एक स्मृति इंदिरा पॉइंट की .....
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भारत के सबसे दक्षिणी भाग का नाम "इंदिरा पॉइंट" है| यह नाम स्वयं इंदिरा गाँधी ने दिया था| इस से पूर्व इस स्थान का नाम पिग्मेलियन पॉइंट था| यह बहुत सुन्दर एक छोटा सा गाँव है| नौसेना, वायुसेना व कुछ अन्य विभागों के सरकारी कर्मचारी भी यहाँ रहते हैं| यहाँ के प्रकाश-स्तम्भ पर चढ़ कर बहुत सुन्दर दृश्य दिखाई देते हैं| मैं सन २००१ में वहाँ गया था| बाद में २००४ में आई सुनामी में यह प्रकाश स्तम्भ थोड़ा सा हटकर पानी से घिर गया था| इस सुनामी में यहाँ के २० परिवार, चार वैज्ञानिक और बहुत सारे सरकारी कर्मचारी मारे गए थे|
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यहाँ के जंगलों में मैनें एक विशेष अति सुन्दर चिड़िया की तरह के पक्षी देखे जो भारत में अन्यत्र कहीं भी दिखाई नहीं दिये| ऐसे ही एक विशेष शक्ल के बन्दर देखे जो भारत में अन्यत्र कहीं भी नहीं दिखाई दिए| एक समुद्र तट यहाँ है जिस की रेत में अंडे देने के लिए कछुए ऑस्ट्रेलिया तक से आते हैं| यह स्थान अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में ग्रेट निकोबार द्वीप पर निकोबार तहसील की लक्ष्मी नगर पंचायत में है|
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ग्रेट निकोबार द्वीप पर सबसे बड़ा स्थान "कैम्पवेल बे" है जो अच्छी बसावट वाला छोटा सा नगर है| सारी सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध हैं| यहाँ तमिलनाडू से आकर बहुत लोग बसे हैं जो सब हिंदी बोलते हैं| यहाँ के समुद्र तट बहुत ही सुन्दर हैं जहाँ प्रातःकाल घूमने का बड़ा ही आनंद आता है| तीन-चार हिन्दू मंदिर और एक ईसाई चर्च भी यहाँ है| 'कैम्पवेल बे' नगर में आने के लिए पोर्ट ब्लेयर से पवनहंस हेलिकोप्टर सेवा है| सप्ताह में एक दिन एक यात्री जलयान भी पोर्ट ब्लेयर से यहाँ आता है| यहाँ रुद्राक्ष के पेड़ बहुत हैं और रुद्राक्ष खूब मिलता है| अब तो व्यवसायिक रूप से यहाँ ताड़ के पेड़ और जायफल/जावित्री के पौधे भी खूब बड़े स्तर पर लगाए गए हैं| यहाँ के शास्त्री नगर से इंदिरा पॉइंट की दूरी २१ किलोमीटर है जो सड़क से जुड़ा हुआ है| मार्ग में गलाथिया नाम की एक नदी भी आती है जिस पर पुल बना हुआ है|
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यहाँ से सिर्फ १६३ किलोमीटर दक्षिण में इंडोनेशिया में सुमात्रा का सबांग जिला है जहाँ भारत के सहयोग से एक नौसैनिक अड्डा बनाए जाने की योजना है, जो लीज पर भारत के आधीन रहेगा| मैं अंडमान-निकोबार के कई द्वीपों में गया हूँ जिनमें से कुछ तो अविस्मरणीय हैं| विएतनाम तो कभी जाने का अवसर नहीं मिला, लेकिन मलयेशिया, इन्डोनेशिया और सिंगापूर का भ्रमण किया है।
कृपा शंकर
१४ अक्टूबर २०१८
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आप सब को दशहरा की अनंत शुभ कामनाएं। परमब्रह्म भगवान श्रीराम का स्थायी निवास आपके हृदय-मंदिर में हो। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१५ अक्तूबर २०२१

 

बुराई पर अच्छाई की विजय एक भ्रम है, इन दोनों से ही ऊपर उठना होगा ----

बुराई पर अच्छाई की विजय एक भ्रम है। इन दोनों से ही ऊपर उठना होगा। यह छाया और प्रकाश का खेल है। सूर्य की ओर मुंह करेंगे तो हमारे समक्ष प्रकाश होगा, और विपरीत दिशा में अंधकार। परमात्मा की ओर उन्मुख होंगे तो सुख है और उससे विपरीत दिशा में दुःख। हमारे अनुभव हमें सब सीखा देंगे। जीवन का उद्देश्य भगवत्-प्राप्ति है। यह भगवत्-प्राप्ति ही सत्य-सनातन धर्म है। यही भारत की अस्मिता और भारत का प्राण है।

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ॐ खं ब्रह्म॥ ख - आकाश-तत्व ईश्वर है, जिस से दूरी ही दुःख है, और समीपता ही सुख। इस समय इतना ही पर्याप्त है।
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 हमारी सबसे बड़ी बुराई -- "अज्ञानता" यानि परमात्मा से पृथकता है। बंद आँखों के अंधकार के पीछे परमात्मा की ज्योति के दर्शन करो। एकांत में उनकी दिव्य ध्वनि को सुनो। परमात्मा के दो रूप सदा मेरे समक्ष रहते हैं ---
त्रिभंग मुद्रा में भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण का, और अनंताकाश से भी परे सर्वव्यापी ज्योतिर्मय परमशिव का। इन्हीं से परम संतुष्टि और तृप्ति है। और कुछ भी नहीं चाहिए। सब कुछ इन्हीं में समाहित है। ये दोनों भी पृथक-पृथक नहीं, एक ही हैं।
 
ॐ तत्सत् !!
१५ अक्तूबर २०२१

भारत में वास्तविक विकास तभी होगा जब पूरे देश में ---

भारत में वास्तविक विकास तभी होगा जब पूरे देश में ---

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(१) सभी विद्यार्थियों के लिए एक समान शिक्षा हो -- यानि पूरे देश में हर एक कक्षा में एक समान पाठ्यक्रम, एक समान पुस्तकें, और एक समान परीक्षा हो। देश को स्कूल माफिया, कोचिंग माफिया, और पुस्तक माफिया से मुक्ति मिले। पाठ्यक्रम का निर्धारण देश के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा-विशेषज्ञ करें, न कि राजनेता। 
 
(२) समान नागरिक संहिता लागू हो। कोई अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक न हो। अल्पसंख्यकों के नाम से बनी सभी संस्थाएँ तुरंत प्रभाव से बंद हो। सभी नागरिकों के लिए सभी कानून एक समान हों। एक देश - एक कानून। 
 
(३) सभी नागरिकों को एक समान अवसर मिलें। किसी भी तरह का कोई आरक्षण न हो।
 
(४) देश की एकमात्र समस्या -- "राष्ट्रीय चरित्र का अभाव" है। और कोई समस्या देश में नहीं है। यदि हम एक राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण कर सकें तो अन्य समस्याएँ अपने आप ही दूर हो जायेंगी।

भारत विजयी हो ---

भारत विजयी हो। जीवन में भगवत्-प्राप्ति ही सत्य-सनातन-धर्म है। यही भारत की अस्मिता और प्राण है। सत्य-सनातन-धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण हो। भारत में छाया असत्य का अंधकार दूर हो। भारत ही सनातन-धर्म, और सनातन-धर्म ही भारत है। मुझे इसी जीवन में पूर्ण वैराग्य, ज्ञान, भक्ति और भगवान की प्राप्ति हो। माया का आवरण और विक्षेप सदा के लिए मुझ से दूर हो। और कुछ नहीं चाहिए।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१६ अक्तूबर २०२१
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पुनश्च: :---
इस राष्ट्र में ब्रह्मतेजयुक्त ब्राह्मण जन्म लें। अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग करने वाले कुशल तेजस्वी क्षत्रिय जन्म लें। व्यवसाय-कुशल धर्मनिष्ठ वैश्य हों और समर्पित कर्मकुशल शूद्र हों। अधिक दूध देने वाली गायें हों। अधिक बोझ ढो सकें ऐसे बैल हों। ऐसे घोड़े हों जिनकी गति देखकर पवन भी शरमा जाये। राष्ट्र को धारण करने वाली बुद्धिमान तथा रूपशील स्त्रियां हों, विजय संपन्न करने वाले महारथी हों। समय समय पर उचित वर्षा हो, वनस्पति वृक्ष और उत्तम फल हों। हमारा योगक्षेम सुखमय बने।
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धेनु द्विज ऋषि मुनि सशंकित, अवतरण हो परशुधर का।
शस्त्र-शास्त्रों से सजे फ़िर शौर्य भारतवर्ष का॥
दमन-अत्यचार पर फिर गिराएँ गाज ऐसी।
गगन कांपे धरा दहले, दामिनी दमके प्रलय सी॥
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अपने प्राणों से राष्ट्र बड़ा होता है, हम मिटते हैं तो राष्ट्र खड़ा होता है।
नित्य पूजित ब्राह्मण न हुए तो, ज्ञान बीज कहाँ से आएगा?
धरती को माँ कहकर, वसुधैव कुटुम्ब का घोष कौन दोहराएगा?
जब न्याय धर्म खतरे में हो, गाण्डीव उठाना पड़ता है।
सम्मुख हो गुरु अथवा दादा सबसे टकराना पड़ता है॥
जो चीर हरण पर मौन रहें उन सबको मरना पड़ता है।
अर्जुन को कर्ण सहोदर का भी कंठ कतरना पड़ता है॥
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मुश्किल से अवसर आया है, भारत का भाग्य बदलने का।
यों झिझक-झिझक पग धरने से वह लक्ष्य नहीं है मिलने का॥
खुलकर खेलें, जमकर जूझें, वह अनीकिनी तैयार करो।
इतिहास खड़ा सहमा ठिठका उठ अंध गुफा को पार करो॥
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हे राम के वंशजो जागो ! भीष्म की सी प्रतिज्ञा करने वाले, और कर्ण के से दानदाता अब कहाँ मिलेंगे? सदाचार से युक्त, ज्ञान की खोज में रत समाधिस्थ तपस्वी अब कहाँ हैं? इस अन्धकारी कुहू को अब तो दूर फेंको। आसुरी वृत्ति का नाश करो।
जय जननी!! जय भारत!! जय सत्य सनातन धर्म!!
 

इस सृष्टि में परमात्मा ही एकमात्र सत्य हैं, वे नित्य हैं, कुछ भी अनित्य नहीं है ---

 

इस सृष्टि में परमात्मा ही एकमात्र सत्य हैं, वे नित्य हैं, कुछ भी अनित्य नहीं है ---
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"साधन चतुष्टय" में पहला साधन - "नित्यानित्य वस्तु विवेक" है। अभी प्रश्न उठता है कि नित्य और अनित्य क्या है? मनीषीगण मुझे क्षमा करें, मेरी दृष्टि में "अनित्य" शब्द मिथ्या है। जो कुछ भी सृष्ट है वह नित्य है, कुछ भी अनित्य नहीं है। हर पदार्थ घनीभूत ऊर्जा है जो सर्वदा शाश्वत (Ever existing), नित्य-परिवर्तनशील-नवीन (Ever new), और नित्य सचेतन (Ever conscious) है। सृष्टि का स्वरूप नित्य-नवीन है। आत्मा कभी मरती नहीं, अपना रूप ही बदलती है। एकमात्र सत्य "परमात्मा" है, जो नित्य है। यह सृष्टि परमात्मा की अभिव्यक्ति है, जो नित्य-नवीन है। यह सृष्टि चल ही इसलिए रही है कि परमात्मा नित्य नवीन है। यह नित्य नवीनता ही सृष्टि का कारण है।
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भगवान की सृष्टि में हम बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं। भगवान ने हमें आत्म-साक्षात्कार यानि भगवत्-प्राप्ति के लिए जन्म दिया है। भगवान ने हमें जहाँ भी रखा है, वहाँ हम अपना सर्वश्रेष्ठ करें, स्वयं के माध्यम से भगवान को व्यक्त करें, और साथ-साथ अधर्म का भी प्रतिकार करें। जीवभाव से शिवभाव में स्वयं को व्यक्त करने का प्रयास ही साधना है। यदि विजय होगी तो वह परमात्मा की होगी, पराजय भी परमात्मा की ही होगी। हम तो निमित्त मात्र हैं। अधर्म का प्रतिकार करते हुए धर्माचरण करते रहें।
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भगवान नित्य हैं, लेकिन उनकी सृष्टि नित्य नवीन, और निरंतर परिवर्तनशील है। संसार की अनित्यता पर ज़ोर देने वाले नास्तिक दर्शनों को महत्व मत दें, अन्यथा जो नित्य (परमात्मा) है, वह ही हमारी चेतना से ओझल हो जायेगा। सृष्टि का एक विशेष उद्देश्य है, जिसे समझे बिना उसके प्रति उपेक्षा भाव उचित नहीं है। हम नश्वर नहीं, शाश्वत जीवात्मा हैं। नश्वर तो यह शरीर है जो इस लोकयात्रा के लिए एक वाहन के रूप में हमें मिला हुआ है। जब यह शरीर जीर्ण हो जाएगा तो दूसरा मिल जाएगा, लेकिन संगी-साथी दूसरे ही रूपों में नए सिरे से मिलेंगे, पिछले वाले शरीर के रूपों में नहीं। रेलगाड़ी में जब भी यात्रा करते हैं तब हर बार नए-नए यात्री साथी ही मिलते हैं, उसी तरह हरेक जन्म में नए ही रूपों में पुराने संबंधी मिलते हैं।
आप सब की जय हो। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१७ अक्तूबर २०२१

मेरा अस्तित्व ही भगवान की अभिव्यक्ति है। जहाँ तक भगवान की भक्ति है वह दो चरणों में होती है ---

 

मेरा अस्तित्व ही भगवान की अभिव्यक्ति है।
जहाँ तक भगवान की भक्ति है वह दो चरणों में होती है --
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(१) प्रथम चरण में हम इस शरीर में नहीं रहते। हमारी चेतना इस शरीर से सारी सृष्टि में, सारे ब्रह्मांड में फैल जाती है। सारी पृथ्वी, सारे ग्रह-उपग्रह, सारी आकाश-गंगाएँ, समस्त जड़-चेतन, और सपूर्ण सृष्टि के सारे प्राणी, --- हमारे साथ एक हो जाते हैं। कहीं कोई पृथकता नहीं है।
यह संपूर्णता ही हमारे साथ भगवान का ध्यान, स्मरण, उपासना, आराधना करती है। हम यह शरीर नहीं, भगवान की संपूर्णता हैं। जब मैं साँस लेता हूँ, तो सम्पूर्ण सृष्टि मेरे साथ साँस लेती है, मेरे साथ-साथ ही पूरी सृष्टि भगवान का स्मरण, चिंतन और ध्यान करती है। मेरी प्रार्थना उस समग्रता के द्वारा, समग्रता के लिए ही होती है।
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(२) दूसरे चरण में उपरोक्त समग्रता ही भगवान बन जाती है। भगवान अपना ध्यान, अपनी साधना स्वयं करते हैं। मेरा कोई अस्तित्व उस समय नहीं होता। एकमात्र अस्तित्व भगवान का ही होता है। सारे रूप, सारे गुण उन्हीं के हैं। एकमात्र अस्तित्ब उन्हीं का है, उनके सिवाय कोई अन्य नहीं है। अपनी प्रार्थना भी वे स्वयं, स्वयं के लिए ही करते हैं। उनके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है।
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मेरी साधना, उपासना और भक्ति -- मेरा निजी मामला है। इस से किसी का कुछ लेना-देना नहीं है। मुझे किसी से कुछ चाहिए भी नहीं, क्योंकि सब कुछ तो मैं ही हूँ। जहाँ तक इस शरीर का प्रश्न है, चाहे यह भूख-प्यास या बीमारी से मर जाये, लेकिन कभी किसी से कुछ भी याचना या अपेक्षा नहीं करेगा, किसी से कुछ भी नहीं माँगेगा। मैं भी इसकी मृत्यु का साक्षी ही रहूँगा। अतः कोई यह न सोचे कि मैं किसी से कुछ मांग लूँगा। मुझे किसी से कुछ भी नहीं चाहिए। मेरा अस्तित्व ही भगवान की अभिव्यक्ति है।
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सूक्ष्ण जगत से पूर्व जन्मों के मेरे गुरु मेरे ऊपर अपनी कृपा-दृष्टि रखते हुये मेरा निरंतर मार्ग-दर्शन कर रहे हैं। वे सदा हर सुख-दुख में अपनी संपूर्णता में मेरे साथ हैं। भगवान स्वयं मेरे साथ हैं। मुझे किसी से कुछ भी नहीं चाहिए।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१८ अक्तूबर २०२१

हमारा चरित्र, श्वेत कमल की भाँति इतना उज्जवल हो, जिसमें कोई धब्बा ना हो ---

 

हमारा चरित्र, श्वेत कमल की भाँति इतना उज्जवल हो, जिसमें कोई धब्बा ना हो| हमारे आदर्श और हमारा चिंतन उच्चतम हो| यह तभी संभव है जब हम भगवान के प्रति समर्पित हों| जिस क्षण हमें भगवान की याद आती है, वह क्षण बहुत अधिक शुभ होता है| उस क्षण कोई देश-काल या शौच-अशौच का बंधन नहीं होता| भगवान से एक क्षण का वियोग भी मृत्यु-तुल्य है| भगवान के लिये एक बेचैनी, तड़प और घनीभूत प्यास बनाए रखें|
कीटक नाम का एक साधारण सा कीड़ा भँवरे से डर कर कमल के फूल में छिप जाता है| भँवरे का ध्यान करते करते वह स्वयं भी भँवरा बन जाता है| वैसे ही हम भी निरंतर भगवान का ध्यान करते करते उन के साथ एक हो जाते हैं|
भगवान की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को नमन!!
१८ अक्तूबर २०२०

हम नवरात्रि के त्योहार क्यों मनाते हैं?

 

हम नवरात्रि के त्योहार क्यों मनाते हैं?
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आध्यात्मिक दृष्टि से भारतीय संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण पर्व 'नवरात्री' है जो वर्ष में दो बार मनाया जाता है| इसमें हम भगवान के मातृ रूप की दुर्गादेवी के रूप में आराधना करते हैं| दुर्गा देवी तो एक हैं पर उनका प्राकट्य तीन रूपों में है, इन तीनों रूपों का एकत्व ही दुर्गा है| ये तीन रूप हैं ...
(१) महाकाली| (२) महालक्ष्मी (३) महासरस्वती|
नवरात्रों में हम माँ के इन तीनों रूपों की साधना करते हैं| माँ के इन तीन रूपों की प्रीति के लिए ही समस्त साधना की जाती है|
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(१) महाकाली ... महाकाली की आराधना से विकृतियों और दुष्ट वृत्तियों का नाश होता है| माँ दुर्गा का एक नाम है ... महिषासुर मर्दिनी| महिष का अर्थ होता है ... भैंसा, जो तमोगुण का प्रतीक है| प्रमाद, दीर्घसूत्रता, अज्ञान, जड़ता और अविवेक ये तमोगुण के प्रतीक हैं| महिषासुर का वध हमारे भीतर के तमोगुण के विनाश का प्रतीक है| इनका बीज मन्त्र "क्लीम्" है|
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(२) महालक्ष्मी ... ध्यानस्थ होने के लिए अंतःकरण का शुद्ध होना आवश्यक होता है जो महालक्ष्मी की कृपा से होता है| सच्चा ऐश्वर्य है आतंरिक समृद्धि| हमारे में सद्गुण होंगे तभी हम भौतिक समृद्धि को सुरक्षित रख सकते हैं| तैतिरीय उपनिषद् में ऋषि प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु जब पहिले हमारे सद्गुण पूर्ण रूप से विकसित हो जाएँ तभी हमें सांसारिक वैभव देना| हमारे में सभी सद्गुण आयें यह महालक्ष्मी की साधना है| इन का बीज मन्त्र "ह्रीं" है|
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(३) महासरस्वती ... हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार आत्म-तत्व का ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान है| इस आत्मज्ञान को प्रदान करती है ... महासरस्वती| इनका बीज मन्त्र "ऐं" (शुद्ध उच्चारण 'अईम्') है|
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नवार्ण मन्त्र ... माँ के इन तीनों रूपों से प्रार्थना है कि हमें अज्ञान रुपी बंधन से मुक्त करो|
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कृपा शंकर
१८ अक्तूबर २०२०