क्या में मुक्त हूँ? इसका उत्तर अपने अंतर्मन में झांक कर बहुत अच्छी तरह से सोच-विचार कर दे रहा हूँ -- नहीं, बिल्कुल नहीं।
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अपनी एक कमी का मुझे पता है, जो इस जन्म में दूर नहीं हो सकती। उसके लिए मुझे कम से कम एक और जन्म लेना ही पड़ेगा। इस जीवन में किसी भी तरह की अन्य कोई कमी नहीं थी। भगवान के प्रति भक्ति भी खूब थी, शास्त्रों के अध्ययन, विद्वता और ज्ञान में भी कोई कमी नहीं थी। जीवन में अनेक दिव्य अनुभव हुए। अनेक देशों का भ्रमण किया, इस पृथ्वी की परिक्रमा भी की, अनेक तरह के लोगों से मिला, प्रकृति के सौम्य और विकराल रूपों के दर्शन भी अनेक बार किये।
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भगवान से सदा प्रेरणा मिलती थी कि विरक्त होकर एकांत में रहूँ, और सारा जीवन आध्यात्मिक साधना में व्यतीत करूँ। लेकिन इसके लिए आवश्यक साहस का सदा अभाव रहा। विरक्त होने का साहस नहीं जुटा पाया। पूर्व जन्मों में इतने अच्छे कर्म भी नहीं किये थे कि इस जन्म में पूर्णता मिले।
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किसी को दोष नहीं दे रहा, स्वयं के संचित कर्म ही इतने अच्छे नहीं थे। लेकिन अब एक आंतरिक आश्वासन है कि जब भी पुनर्जन्म होगा तो हर जीवन में जन्म से ही पूर्ण भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और परमात्मा की अभिव्यक्ति होगी। अब कोई इच्छा नहीं रही है। एकांत में भगवान मुझे अपनी उपासना में ही लगाए रखें। किसी भी तरह की किसी कामना का जन्म ही न हो। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
९ अक्तूबर २०२१
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