Monday 18 October 2021

इस सृष्टि में परमात्मा ही एकमात्र सत्य हैं, वे नित्य हैं, कुछ भी अनित्य नहीं है ---

 

इस सृष्टि में परमात्मा ही एकमात्र सत्य हैं, वे नित्य हैं, कुछ भी अनित्य नहीं है ---
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"साधन चतुष्टय" में पहला साधन - "नित्यानित्य वस्तु विवेक" है। अभी प्रश्न उठता है कि नित्य और अनित्य क्या है? मनीषीगण मुझे क्षमा करें, मेरी दृष्टि में "अनित्य" शब्द मिथ्या है। जो कुछ भी सृष्ट है वह नित्य है, कुछ भी अनित्य नहीं है। हर पदार्थ घनीभूत ऊर्जा है जो सर्वदा शाश्वत (Ever existing), नित्य-परिवर्तनशील-नवीन (Ever new), और नित्य सचेतन (Ever conscious) है। सृष्टि का स्वरूप नित्य-नवीन है। आत्मा कभी मरती नहीं, अपना रूप ही बदलती है। एकमात्र सत्य "परमात्मा" है, जो नित्य है। यह सृष्टि परमात्मा की अभिव्यक्ति है, जो नित्य-नवीन है। यह सृष्टि चल ही इसलिए रही है कि परमात्मा नित्य नवीन है। यह नित्य नवीनता ही सृष्टि का कारण है।
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भगवान की सृष्टि में हम बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं। भगवान ने हमें आत्म-साक्षात्कार यानि भगवत्-प्राप्ति के लिए जन्म दिया है। भगवान ने हमें जहाँ भी रखा है, वहाँ हम अपना सर्वश्रेष्ठ करें, स्वयं के माध्यम से भगवान को व्यक्त करें, और साथ-साथ अधर्म का भी प्रतिकार करें। जीवभाव से शिवभाव में स्वयं को व्यक्त करने का प्रयास ही साधना है। यदि विजय होगी तो वह परमात्मा की होगी, पराजय भी परमात्मा की ही होगी। हम तो निमित्त मात्र हैं। अधर्म का प्रतिकार करते हुए धर्माचरण करते रहें।
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भगवान नित्य हैं, लेकिन उनकी सृष्टि नित्य नवीन, और निरंतर परिवर्तनशील है। संसार की अनित्यता पर ज़ोर देने वाले नास्तिक दर्शनों को महत्व मत दें, अन्यथा जो नित्य (परमात्मा) है, वह ही हमारी चेतना से ओझल हो जायेगा। सृष्टि का एक विशेष उद्देश्य है, जिसे समझे बिना उसके प्रति उपेक्षा भाव उचित नहीं है। हम नश्वर नहीं, शाश्वत जीवात्मा हैं। नश्वर तो यह शरीर है जो इस लोकयात्रा के लिए एक वाहन के रूप में हमें मिला हुआ है। जब यह शरीर जीर्ण हो जाएगा तो दूसरा मिल जाएगा, लेकिन संगी-साथी दूसरे ही रूपों में नए सिरे से मिलेंगे, पिछले वाले शरीर के रूपों में नहीं। रेलगाड़ी में जब भी यात्रा करते हैं तब हर बार नए-नए यात्री साथी ही मिलते हैं, उसी तरह हरेक जन्म में नए ही रूपों में पुराने संबंधी मिलते हैं।
आप सब की जय हो। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१७ अक्तूबर २०२१

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