Saturday 21 May 2022

परमात्मा की एक झलक जब भी मिल जाये तब अन्य सब गौण है ---

 परमात्मा की एक झलक जब भी मिल जाये तब अन्य सब गौण है। वे ही एकमात्र सत्य हैं, वे ही लक्ष्य हैं, वे ही मार्ग हैं, वे ही सिद्धान्त हैं, और सब कुछ वे ही हैं। उनसे परे इधर-उधर देखना भटकाव है। वे धर्म-अधर्म और सब से परे हैं। उनके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है -- मैं भी नहीं।

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हे प्रभु, आप इस तरह मुझे छोड़कर कहीं जा नहीं सकते। जो स्थितप्रज्ञता, समत्व, और पूर्णता अभीप्सित थी, वह अभी तक मुझमें कहीं भी दिखाई नहीं दी है। एक बहुत पतले धुएँ का सा आवरण अभी भी मेरे समक्ष है। इस हृदय को पूरी तृप्ति अभी भी नहीं मिली है, और मन पूरी तरह नहीं भरा है। ऐसे में आपको यहीं रहना होगा। मैंने जो स्वप्न देखा था -- वैराग्य, वीतरागता, सत्यनिष्ठा, परमप्रेम, और स्थितप्रज्ञता का, उसे साकार किए बिना आपको कहीं जाने का अधिकार नहीं हैं। जब तक यह हृदय तृप्त नहीं होता, आप यहीं रहेंगे।
आप तो कालों के काल हैं -- "कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धोलोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।" मेरे सारे राग-द्वेष, अहंकार, लोभ और पृथकता के बोध की असीम वेदना को काल-कवलित कर दीजिये। अब आप कहीं भी नहीं जाएँगे, आपका हृदय ही मेरा भी हृदय है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
२१ मई २०२१