Saturday, 13 September 2025

इस समय देश, समाज और धर्म की स्थिति वास्तव में बहुत अधिक खराब है ---

इस समय देश, समाज और धर्म की स्थिति वास्तव में बहुत अधिक खराब है।

धर्म एक ही है जिसे धारण किया जाता है। धर्म का पालन ही धर्म की रक्षा है। धर्म को वैशेषिक सूत्रों में परिभाषित किया गया है, मनु-स्मृति में इसके दस-लक्षण बताए गए हैं, और महाभारत ग्रंथ में इसे सबसे अच्छी तरह समझाया गया है।
निज जीवन में धर्म का पालन ही देश और समाज की सबसे बड़ी सेवा है। हम एक शाश्वत आत्मा हैं, जिसका स्वधर्म है -- "परमात्मा को समर्पित होने की अभीप्सा"। इससे अतिरिक्त अन्य कोई स्वधर्म-- शाश्वत आत्मा का नहीं है।
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जब आपके घर-परिवार-समाज में कोई व्यक्ति मरणासन्न हो, उसके जीवन की कोई आशा नहीं हो, तव वहाँ "राम" नाम का संकीर्तन करें। इससे बड़ा उपकार उसका अन्य कोई भी नहीं कर सकता। वैसे भी असहाय, निर्बल, रुग्ण व्यक्तियों के लिए राम नाम का संकीर्तन करना ही चाहिए। सबके आध्यात्मिक कल्याण की कामना सदा करें। सभी का कल्याण होगा। हरिः ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
13 सितंबर 2025

सुख अद्वैत में है, द्वैत में नहीं .....

 सुख अद्वैत में है, द्वैत में नहीं .....

सृष्टि के किसी भी भाग में सुख, शांति व सुरक्षा नहीं है, क्योंकि सृष्टि की रचना द्वैत से हुई है जिसमें सदा द्वन्द्व रहता है| "ॐ खं ब्रह्म" ... भगवान ने स्वयं को "खं" यानि आकाश-तत्व के रूप में व्यक्त किया है| जो भगवान के सपीप है, वह "सुखी" है| जो उन से दूर है वह "दुःखी" है|
मूल रूप से सारी सृष्टि एक विराट ऊर्जा-खंड है| इस ऊर्जा से अणुओं का निर्माण हुआ है| अणुओं से पदार्थ की रचना हुई है| अणुओं की संरचना को समझ कर हम सृष्टि को भी समझ सकते हैं| भगवान की शक्ति प्राण-तत्व के रूप में व्यक्त है| हम भगवान के अंश हैं और उन से जुड़कर ही सुखी हैं, और उन से दूर होकर दुःखी|
कृपा शंकर
१३ सितंबर २०२०

अपनी बुद्धि रूपी कन्या का विवाह परमात्मा से कर के निश्चिंत हो जायें। उनसे अच्छा वर और कोई नहीं मिलेगा।

 जीवन में जिस दिन हम अपनी बुद्धि रूपी कन्या का विवाह भगवान से कर देंगे, उस दिन से जीवन में प्रसन्नता ही प्रसन्नता आ जायेगी। दहेज में अपना मन, चित्त और अहंकार भी भगवान को अर्पित कर दो। मन से कह दो कि तुम्हारे स्वामी अब मैं नहीं, भगवान हैं; उनके सिवाय अन्य किसी का चिंतन मत करो। चित्त को भी भगवान की सेवा में लगा दो, और पाओगे कि अहंकार तो अपने आप ही लुप्त हो गया है। सिर्फ भगवान ही हमारे समक्ष रहेंगे।

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संसार में किसी को भी संतुष्ट नहीं कर सकते, चाहे सारा जीवन लगा दो। भगवान यदि प्रसन्न हैं तो उनकी सृष्टि भी प्रसन्न है। अपने आराध्य की आराधना से हमारी बुद्धि रूपी कन्या तो धन्य होगी ही, हम स्वयं भी धन्य हो जाएँगे।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१३ सितंबर २०२३