Tuesday, 26 November 2024

आजकल देरी से विवाह के कारण अनेक सामाजिक समस्याओं का जन्म हो रहा है ---

आजकल देरी से विवाह के कारण अनेक सामाजिक समस्याओं का जन्म हो रहा है। विवाह योग्य लड़के भी नहीं मिलते और लड़कियाँ भी नहीं मिलतीं। बहुत देरी से विवाह होते हैं, जिसके कारण अनेक समस्याएँ जन्म ले रही हैं। दोनों ही ओर से महत्वाकांक्षाएँ बहुत अधिक बढ़ गई हैं।

किसी भी परिस्थिति में लड़कों का विवाह २५ वर्ष की आयु से पूर्व हो जाना चाहिए, और लड़कियों का विवाह २२ वर्ष की आयु तक हो जाना चाहिए। विवाह के बाद भी उन्हें अपनी पढ़ाई-लिखाई चालू रखने का अवसर मिलना चाहिए।
.
भारत के हिन्दू समाज में विदेशी अधर्मी आक्रांताओं के आतंक और अत्याचार के कारण बाल-विवाह की कुप्रथा सामाजिक विवशताओं के कारण आरंभ हुई थी। ये विदेशी अधर्मी आक्रांता भारत में बालिकाओं का अपहरण कर के ले जाते, और उनके परिवार के बड़े-बूढ़ों की हत्या कर देते थे। अब तो स्वतंत्र भारत में बाल-विवाह की प्रथा समाप्त हो गई है।
रात्री में विवाह की कुप्रथा (जो दुर्भाग्य से अभी भी चल रही है) भी विदेशी अधर्मी आक्रांताओं के आतंक के कारण आरंभ हुई थी। विदेशी आक्रमणों से पूर्व विवाह संस्कार दिन में ही होते थे। दिन में विवाह होने से विवाह का बहुत अधिक अनावश्यक खर्च बच जाता है।
कृपा शंकर
27 नवंबर 2022

दुनियाँ कुछ भी कहे कोई फर्क नहीं पड़ता, हम अपना कर्मयोग करते रहेंगे ---

 दुनियाँ कुछ भी कहे कोई फर्क नहीं पड़ता, हम अपना कर्मयोग करते रहेंगे ---

.
आलोचना करने वाले आलोचना करते रहेंगे, हमारा कर्मयोग है --परमात्मा के प्रकाश में उपासना द्वारा निरंतर वृद्धि। ध्यान साधना में आने वाली आवरण और विक्षेप रूपी बाधाओं का एकमात्र समाधान है -- सत्संग, सत्संग और निरंतर सत्संग। अन्य कोई समाधान नहीं है। बाधादायक किसी भी परिस्थिति को तुरंत नकार दो, सात्विक जीवन जीओ और आध्यात्मिक रूप से उन्नत लोगों के साथ ही रहो। अपने ह्रदय में पूर्ण अहैतुकी परमप्रेम को जागृत करो और अपने अस्तित्व को गुरु व परमात्मा के प्रति समर्पित करने का निरंतर अभ्यास करते रहो। गुरु के प्रति समर्पण का अर्थ है -- जिस आध्यात्मिक धरातल पर गुरु महाराज हैं, उसी धरातल पर उन के साथ एक होने की निरंतर साधना। परमात्मा को समर्पण का अर्थ भी है -- परमात्मा के साथ एक होने की साधना।
.
जीभ को सदा ऊपर की ओर मोड़ कर रखने का प्रयास करते रहो। खेचरी मुद्रा का खूब अभ्यास करो। खेचरी मुद्रा सिद्ध होने पर ध्यान खेचरी मुद्रा में ही करो। खेचरी मुद्रा के इतने लाभ हैं कि यहाँ उन्हें बताने के लिए स्थान कम पड़ जाएगा।
ऊनी कम्बल के आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर बैठो। समय हो तो ध्यान से पूर्व कुछ देर हठयोग के हल्के व्यायाम जैसे सूर्य नमस्कार और कुछ आसन कर लो जिससे कमर सीधी रहे। "शिव-संहिता" में महामुद्रा का अभ्यास बताया गया है। ध्यान से पूर्व महामुद्रा का अभ्यास नियमित रूप से नित्य करने से कमर सीधी रहती है और कभी नहीं झुकती। नींद की झपकियाँ आने लगे तब पुनश्चः तीन चार बार महामुद्रा का अभ्यास कर लो। कमर सीधी कर के बैठो इससे नींद नहीं आएगी। शिव-संहिता में बताई गई महामुद्रा का अभ्यास तभी सिद्ध होगा जब हठयोग के पश्चिमोत्तानासन का भी अभ्यास होगा। घेरण्ड-संहिता में बताए गये त्रिबंधों का अभ्यास ब्रह्मचर्य में सहायक होगा।
.
ध्यान करने से पहले अपने गुरु और परमात्मा से उनके अनुग्रह के लिए प्रार्थना अवश्य करें। गुरु की आज्ञा से भ्रूमध्य पर ध्यान करें। आगे का मार्गदर्शन गुरु महाराज करेंगे।
अपने अहं यानि अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का समर्पण गुरु तत्व में करना ही साधना है और उनके श्रीचरणों में आश्रय मिलना ही सबसे बड़ी सिद्धि है|
.
आप सब में मैं गुरु रूप ब्रह्म को नमन करता हूँ। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ नवंबर २०२२

भगवान ही एकमात्र सत्य है, बाकी सब मिथ्या है ---

 भगवान ही एकमात्र सत्य है, बाकी सब मिथ्या है ---

.
जब से यह अनुभूति हुई है कि भगवान स्वयं ही यह सारी सृष्टि बन गए है, कुछ भी लिखने योग्य विषय नहीं बचा है। भगवान ने कुछ भी नहीं बनाया है, जो कुछ भी है, वह सब वे स्वयं हैं। जब तक समर्पित होकर हम उनके साथ एक नहीं होते, तब तक यह पुनर्जन्म, जन्म-मृत्यु और सुख-दुःख का चक्र चलता रहेगा।
.
हम कूटस्थ में उनकी ज्योति का निरंतर दर्शन करें, उनके नाद को निरंतर सुनें, और उनके प्रति अनन्य-अहैतुकी भक्ति को विकसित करें। मुक्ति का यही एकमात्र मार्ग है। द्वैत भाव का एकमात्र उद्देश्य है -- परमप्रेम यानि भक्ति की सिद्धि। फिर वही भक्ति अद्वैत में व्यक्त हो। भगवान ही एकमात्र सत्य है, बाकी सब मिथ्या है।
.
आप सब में मैं स्वयं को नमन करता हूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ नवंबर २०२३

हम भगवान से क्या माँगें?

 हम भगवान से क्या माँगें?

.
भगवान से कुछ माँगना, भगवान का अपमान है। हम तो भगवान को अपना अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) और सर्वस्व अर्पित कर समर्पण करना चाहते हैं, अतः उनसे कुछ माँगना उन का अपमान करना है। हम भगवान को अपना सब कुछ दे रहे हैं, उनसे कुछ ले नहीं रहे।
.
हे प्रभु, हमारा समर्पण स्वीकार करो। आपका दिया हुआ जो भी सामान है वह बापस ले लो। आपकी दी हुई हर वस्तु का उपभोग आप ही कर रहे हो, हम नहीं। हमें माध्यम बनाकर आप ही सब कुछ भोग रहे हो। जो कुछ भी है वह आपका ही है, और आप ही भोक्ता हो। हमारा कुछ भी नहीं है। आप स्वयं ही यह सब बन गए हो।
.
मैं आपका अनिर्वचनीय परमप्रेम, आपकी सर्वव्यापक अनंतता और आपकी पूर्णता हूँ। मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए। जो आप हैं, वह ही मैं हूँ। मेरी कोई पृथकता नहीं है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ नवंबर २०२३
.
पुनश्च: :--- भगवान कुछ मांगने को कहें तो उनसे इतनी ही प्रार्थना करें कि वे अपना सारा सामान बापस लेने की कृपा करें। उनका सारा सामान उनको बापस कर दो।