Tuesday, 26 November 2024

दुनियाँ कुछ भी कहे कोई फर्क नहीं पड़ता, हम अपना कर्मयोग करते रहेंगे ---

 दुनियाँ कुछ भी कहे कोई फर्क नहीं पड़ता, हम अपना कर्मयोग करते रहेंगे ---

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आलोचना करने वाले आलोचना करते रहेंगे, हमारा कर्मयोग है --परमात्मा के प्रकाश में उपासना द्वारा निरंतर वृद्धि। ध्यान साधना में आने वाली आवरण और विक्षेप रूपी बाधाओं का एकमात्र समाधान है -- सत्संग, सत्संग और निरंतर सत्संग। अन्य कोई समाधान नहीं है। बाधादायक किसी भी परिस्थिति को तुरंत नकार दो, सात्विक जीवन जीओ और आध्यात्मिक रूप से उन्नत लोगों के साथ ही रहो। अपने ह्रदय में पूर्ण अहैतुकी परमप्रेम को जागृत करो और अपने अस्तित्व को गुरु व परमात्मा के प्रति समर्पित करने का निरंतर अभ्यास करते रहो। गुरु के प्रति समर्पण का अर्थ है -- जिस आध्यात्मिक धरातल पर गुरु महाराज हैं, उसी धरातल पर उन के साथ एक होने की निरंतर साधना। परमात्मा को समर्पण का अर्थ भी है -- परमात्मा के साथ एक होने की साधना।
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जीभ को सदा ऊपर की ओर मोड़ कर रखने का प्रयास करते रहो। खेचरी मुद्रा का खूब अभ्यास करो। खेचरी मुद्रा सिद्ध होने पर ध्यान खेचरी मुद्रा में ही करो। खेचरी मुद्रा के इतने लाभ हैं कि यहाँ उन्हें बताने के लिए स्थान कम पड़ जाएगा।
ऊनी कम्बल के आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर बैठो। समय हो तो ध्यान से पूर्व कुछ देर हठयोग के हल्के व्यायाम जैसे सूर्य नमस्कार और कुछ आसन कर लो जिससे कमर सीधी रहे। "शिव-संहिता" में महामुद्रा का अभ्यास बताया गया है। ध्यान से पूर्व महामुद्रा का अभ्यास नियमित रूप से नित्य करने से कमर सीधी रहती है और कभी नहीं झुकती। नींद की झपकियाँ आने लगे तब पुनश्चः तीन चार बार महामुद्रा का अभ्यास कर लो। कमर सीधी कर के बैठो इससे नींद नहीं आएगी। शिव-संहिता में बताई गई महामुद्रा का अभ्यास तभी सिद्ध होगा जब हठयोग के पश्चिमोत्तानासन का भी अभ्यास होगा। घेरण्ड-संहिता में बताए गये त्रिबंधों का अभ्यास ब्रह्मचर्य में सहायक होगा।
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ध्यान करने से पहले अपने गुरु और परमात्मा से उनके अनुग्रह के लिए प्रार्थना अवश्य करें। गुरु की आज्ञा से भ्रूमध्य पर ध्यान करें। आगे का मार्गदर्शन गुरु महाराज करेंगे।
अपने अहं यानि अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का समर्पण गुरु तत्व में करना ही साधना है और उनके श्रीचरणों में आश्रय मिलना ही सबसे बड़ी सिद्धि है|
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आप सब में मैं गुरु रूप ब्रह्म को नमन करता हूँ। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ नवंबर २०२२

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