हे मेरे अशांत चंचल मन, मैं तुम्हे आदेश दे रहा हूँ ..... "शांत होकर निरंतर गुरु-चरणों का सहस्त्रार में ध्यान करो, कहीं भी इधर-उधर मत भागो | यही तुम्हारी सीमा है | मेरा आदेश परमात्मा का आदेश है जिसे मानने को तुम विवश हो |"
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परमात्मा की अनंत शक्ति का प्रवाह मुझमें हो रहा है |
मैं परमात्मा का पूर्ण अमृत पुत्र हूँ | जहां भी मैं हूँ वहीं मेरे प्रियतम परमात्मा भी हैं | जहाँ भी मेरे प्रियतम परमात्मा हैं वहाँ कोई अज्ञान, अन्धकार और असत्य नहीं ठहर सकता | मैं उनकी पूर्णता और प्रेम हूँ, कहीं कोई भेद नहीं है |
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परमात्मा की शक्ति असीम है | वे सदा मेरे साथ हैं, अतः उनकी शक्ति के समक्ष मेरी सब बाधाएँ नष्ट हो रही हैं | उनकी सृजनात्मक शक्ति सदा मेरे साथ है जो निरंतर मेरा मार्गदर्शन कर रही है |
परमात्मा की सारी समृद्धि मेरी समृद्धि है | कोई किसी भी तरह का कहीं अभाव नहीं है | जो कुछ भी परमात्मा का है, वह मेरा भी है |
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हे मेरे मन, मेरा आदेश अब दुबारा सुन | तूँ कहीं नहीं भागेगा, निरंतर मेरे प्रियतम का ध्यान कर |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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परमात्मा की अनंत शक्ति का प्रवाह मुझमें हो रहा है |
मैं परमात्मा का पूर्ण अमृत पुत्र हूँ | जहां भी मैं हूँ वहीं मेरे प्रियतम परमात्मा भी हैं | जहाँ भी मेरे प्रियतम परमात्मा हैं वहाँ कोई अज्ञान, अन्धकार और असत्य नहीं ठहर सकता | मैं उनकी पूर्णता और प्रेम हूँ, कहीं कोई भेद नहीं है |
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परमात्मा की शक्ति असीम है | वे सदा मेरे साथ हैं, अतः उनकी शक्ति के समक्ष मेरी सब बाधाएँ नष्ट हो रही हैं | उनकी सृजनात्मक शक्ति सदा मेरे साथ है जो निरंतर मेरा मार्गदर्शन कर रही है |
परमात्मा की सारी समृद्धि मेरी समृद्धि है | कोई किसी भी तरह का कहीं अभाव नहीं है | जो कुछ भी परमात्मा का है, वह मेरा भी है |
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हे मेरे मन, मेरा आदेश अब दुबारा सुन | तूँ कहीं नहीं भागेगा, निरंतर मेरे प्रियतम का ध्यान कर |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||