Thursday, 13 January 2022

कर्तृत्व व धर्म-अधर्म, पुण्य-पाप, सुख-दुःख और प्रकाश-अंधकार से भी परे हमारा वास्तविक अस्तित्व है ---

 कर्तृत्व व धर्म-अधर्म, पुण्य-पाप, सुख-दुःख और प्रकाश-अंधकार से भी परे हमारा वास्तविक अस्तित्व है ---

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एक अवस्था ऐसी भी आती है जब व्यक्ति, भगवान की परम कृपा से कर्तृत्व व धर्म और अधर्म से भी परे चले जाता है| भगवान से उसकी कोई पृथकता नहीं रहती| वह ही सबसे बड़ा और आदर्श ध्येय है|
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सृष्टि में यह माया -- आवरण व विक्षेप के रूप में, सदा से ही अपना काम करती आई है, और सदा करती ही रहेगी| यह बाहरी अंधकार भी बना ही रहेगा, क्योंकि अंधकार के बिना सृष्टि नहीं चल सकती| यह सृष्टि -- अंधकार और प्रकाश का ही मिला-जुला खेल, निर्माण है| बिना अंधकार के प्रकाश नहीं है, और प्रकाश के बिना अंधकार नहीं है| यह खेल ही पाप-पुण्य, अधर्म-धर्म और दुःख-सुख है| भगवान इन सब से परे भी है और इन सब में भी है|
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हमारा लक्ष्य परमात्मा के उस प्रकाश में स्थित होना है जहाँ कोई अंधकार नहीं है| श्रुति भगवती ही प्रमाण है, जो बताती है कि परमात्मा की ज्योति ही सारी सृष्टि को आलोकित कर रही है; परमात्मा को कोई प्रकाशित नहीं कर सकता| वहाँ कोई अंधकार नहीं है| कठ व मुंडक श्रुति कहती हैं --
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः। तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ॥"
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गीता में भगवान कहते हैं ...
"न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः| यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम||१५:६||"
अर्थात् उसे न सूर्य प्रकाशित कर सकता है और न चन्द्रमा और न अग्नि| जिसे प्राप्त कर मनुष्य पुन: (संसार को) नहीं लौटते हैं, वह मेरा परम धाम है||
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"यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्| यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्||१५:१२||
अर्थात् जो तेज सूर्य में स्थित होकर सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है तथा जो तेज चन्द्रमा में है और अग्नि में है, उस तेज को तुम मेरा ही जानो||
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"सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च|
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्||१५:१५||"
अर्थात् मैं ही समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ| मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन (उनका अभाव) होता है| समस्त वेदों के द्वारा मैं ही वेद्य (जानने योग्य) वस्तु हूँ तथा वेदान्त का और वेदों का ज्ञाता भी मैं ही हूँ||
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उन भगवान में स्थिर होना ही हमारा परम लक्ष्य हो, उससे कम कुछ भी नहीं|
सारा ज्ञान उपनिषदों में है| सारे उपनिषदों का सार श्रीमद्भगवद्गीता में है| हम कूटस्थ में भगवान का ध्यान करते हुए, उनमें स्थित होकर ही अपना जीवन व्यतीत करने में प्रयासरत रहें| वे ही परमशिव हैं, वे ही विष्णु, वे ही नारायण, वे ही वासुदेव, श्रीकृष्ण, और वे ही श्रीराम हैं| सारे ज्ञान का आदि और अंत वे ही हैं|
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"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च |
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व |
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ||"
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ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमः शिवाय !! 🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०२१

लोहड़ी के त्योहार की शुभ कामनायें ---

कल मकर संक्रांति, और आज लोहड़ी है. लोहड़ी के त्योहार की शुभ कामनायें और एक महान वीर दुल्ला भट्टी (दूलिया भाटी) को भी नमन जिसकी स्मृति में लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है ---

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एक मध्यकालीन महान राजपूत हुतात्मा धर्मरक्षक महावीर दुल्ला भट्टी (मृत्यु: १५९९) की स्मृति में पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश में मनाए जाने वाला लोहड़ी का त्योहार आज १३ जनवरी को है| पंजाब में जो वीर योद्धा दुल्ला भट्टी के नाम से प्रसिद्ध था, राजपूताने में वह दूलिया भाटी के नाम से विख्यात था| साठ वर्ष पूर्व तक राजस्थान में नौटंकी के लोक कलाकार दूलिया का नाटक दिखाते थे| दूलिया के नाटकों की कुछ-कुछ स्मृति मुझे भी है| पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है| रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं और रेवड़ी, मूंगफली आदि खाते हैं| गीत भी गाये जाते हैं और महिलाएं नृत्य भी करती हैं|
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मुगल बादशाहों के काल में विशेषकर अकबर बादशाह के काल में हिन्दू कन्याओं का अपहरण बहुत अधिक होने लगा था| विवाहों के अवसर पर जब सभी सगे-संबंधी एकत्र होते थे, मुगल सैनिक हमला कर के सभी पुरूषों को मार देते और महिलाओं का अपहरण कर के ले जाते| हिन्दू बहुत अधिक आतंकित थे| तभी से हिंदुओं में बाल-विवाह और रात्री-विवाह की प्रथा पड़ी| तभी से छोटे बच्चों का विवाह रात के अंधेरे में चुपचाप कर दिया जाने लगा|
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दुल्ला भट्टी एक राजपूत थे जिन्हें बलात् मुसलमान बना दिया गया था| पर हिंदुओं की गरीबी और दुःख-दर्द उन से सहन नहीं हुआ और वे विद्रोही बन बैठे| दुल्ला भट्टी बादशाह अकबर के शासनकाल के दौरान पंजाब में रहते थे| उन्होंने एक छापामार विद्रोहियों की सेना बनाकर मुगल अमीरों और जमीदारों से धन लूटकर गरीबो में बाँटने के अलावा, जबरन रूप से बेचीं जा रही हजारों हिंदू लड़कियों को मुक्त करवाया| साथ ही उन्होंने हिंदू परम्पराओं के अनुसार उन सभी हिन्दू लड़कियों का विवाह हिंदू लड़कों से करवाने की व्यवस्था की, और उन्हें दहेज भी प्रदान किया| इस कारण वह पंजाब के हिंदुओं में एक लोक-नायक बन गए| धीरे-धीरे दुला भट्टी के प्रशंसकों और चाहने वालों की संख्या बढऩे लगी| सताये हुए निर्धन हिन्दू अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसके पास जाते और अपना दुखड़ा रोते| उनके दुखों को सुनकर दुला भट्टी उठ खड़ा होता और जैसे भी संभव होता उनकी समस्याओं का समाधान करता|
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एक धर्मांतरित मुसलमान होकर भी हिंदुओं की सेवा करने के कारण दुला भट्टी से अकबर बादशाह बहुत अधिक नाराज हुआ| उस ने दुला भट्टी को एक डाकू घोषित कर दिया और देखते ही उसकी हत्या का आदेश भी जारी कर दिया| अकबर बादशाह के सिपाही कभी भी दुला भट्टी को जीवित नहीं पकड़ सके क्योंकि उसका भी सूचनातंत्र बहुत ही गहरा और व्यापक था| वह मुगलों को लूटता और उस धन से निर्धन हिंदुओं की पुत्रियों का विवाह बड़े धूमधाम से करता| कहीं-कहीं वह यदि व्यक्तिगत रूप से किसी विवाह समारोह में उपस्थित ना हो पाता था तो वहाँ अपनी ओर से धन भेजकर सारी व्यवस्था अपने लोगों के माध्यम से करा देता| दुला भट्टी के लोग पंजाब, जम्मू कश्मीर आज के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, हरियाणा, राजस्थान और पाकिस्तान के भी बहुत बड़े भूभाग पर सक्रिय हो गये थे| इतने बड़े भूभाग में अकबर ने कई बार भट्टी को मारने का अभियान चलाया, परंतु उसे कभी सफलता नहीं मिली|
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एक बार एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पुत्री के विवाह में सहायता प्राप्त करने हेतु दुला भट्टी के पास गया| उस गरीब ब्राह्मण की दरिद्रता को देखकर दुला भट्टी बहुत अधिक दु:खी हुआ| उस गरीब कन्या के कोई भाई नहीं था इस लिए दुला भट्टी ने उसे अपनी धर्मबहिन बना लिया और स्वयं उपस्थित रहकर विवाह करवाने का वचन भी दे दिया| यह समाचार अपने गुप्तचरों से अकबर को मिल गया| उसने उस गाँव के आसपास अपने गुप्तचर इस आदेश के साथ नियुक्त कर दिये कि देखते ही बिना किसी चेतावनी के दुला भट्टी की हत्या कर दी जाये|
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विवाह कार्यक्रम में दुला भट्टी दहेज का सारा सामान लेकर स्वयं उपस्थित हुआ| विवाह के बाद जब डोली विदा हो रही थी तब अकबर के छद्म सैनिकों को पता चल गया और उन्होने उस पर बिना किसी चेतावनी के आक्रमण कर दिया| उसे संभलने का अवसर भी नहीं मिला और वह महान धर्मरक्षक महावीर मारा गया| जिस दिन उस की हत्या हुई वह दिन मकर संक्रांति से पहले वाला दिन था|
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दुला भट्टी के रोम-रोम में अपने देशवासियों के प्रति प्रेम भरा था, वह उनकी व्यथाओं से व्यथित था और उनका उद्घार चाहता था| अपने इसी आदर्श के लिये अपनी समकालीन मुगल सत्ता के सबसे बड़े बादशाह अकबर से टक्कर ली| वह जब तक जीवित रहा तब तक अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करता रहा| वह परम राष्ट्रभक्त था| दुला भट्टी की स्मृति में पंजाब, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, हरियाणा राजस्थान और पाकिस्तान में (अकबर का साम्राज्य की लगभग इतने ही क्षेत्र पर था) लोहिड़ी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व मनाया जाता है| वह महावीर दुल्ला भट्टी अमर है और अमर रहेगा| भारत माता की जय| 🌹🙏🌹
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०२१

हमारी जीवन चेतना, स्थायी रूप से प्रकृति से परे परमशिव में स्थित हो, हम सब परमशिव बनें ---

 हमारी जीवन चेतना, स्थायी रूप से प्रकृति से परे परमशिव में स्थित हो, हम सब परमशिव बनें ---

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आध्यात्मिक दृष्टि से ध्यान में हर साँस के साथ हमारा उत्तरायण और दक्षिणायण चलता रहता है| हमारी सूक्ष्म देह में मूलाधारचक्र -- दक्षिण दिशा; और सहस्त्रारचक्र -- उत्तर दिशा है| कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म -- सूक्ष्मजगत के सवितादेव भगवान भुवन-भास्कर हैं|
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गुरु महाराज की परम कृपा से गहरे ध्यान में, जब हर श्वास के साथ घनीभूत प्राणऊर्जा (कुंडलिनी), सुषुम्ना नाड़ी की ब्राह्मीउपनाड़ी में एक विशेष ध्वनि और विधि से सभी चक्रों को भेदती हुई ऊपर उठकर कूटस्थ तक जाती है, यह मेरा उत्तरायण है|
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वहाँ से वही कुंडलिनी जब एक दूसरी ध्वनि और विधि के साथ सब चक्रों को भेदती हुई नीचे बापस मूलााधार पर लौटती है, तब मेरा दक्षिणायण है|
यह क्रिया हर श्वास-प्र्श्वास के साथ चलती रहती है|
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कभी कभी यह ब्रह्मरंध्र को भी भेदकर अनंतता के साथ मिल जाती है| जिस दिन यह अनंतता से भी परे परमशिव को स्थायी रूप से समर्पित हो जाएगी, उस दिन उसी समय मेरा जीवन धन्य और कृतार्थ हो जाएगा| यह भगवान श्रीहरिः और गुरु महाराज की परम कृपा होगी|
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हमारा जीवन सार्थक हो| हम सब का कल्याण हो| 🌹🙏🕉🙏🌹
कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म को नमन ! ॐ श्रीगुरुभ्यो नमः !!
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०२१