सुख की खोज हमारे
जीवन का लक्ष्य नहीं है| हमारा एकमात्र लक्ष्य है .... परब्रह्म परमेश्वर
को खोजना व उन्हें व्यक्त करना| यही भगवान की सेवा है|
हानि-लाभ, सुख-दुःख और जन्म-मरण .... इन सब का कारण हमारे स्वयं के विचारों व भावों के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है|
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हमारे विचार, सोच और भाव ही हमारे कर्म हैं| ये सब मायावी दलदल है| जितना
निकलने का प्रयास करते हैं, उतना ही फँसते जाते हैं| दूसरा कोई हमारा कुछ
नहीं बिगाड़ सकता| अपने शत्रु और मित्र हम स्वयं हैं|
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हर संकल्प,
हर इच्छा या कामना पूर्ण अवश्य होती है पर साथ में दुःखदायी कर्मों की
सृष्टि भी कर देती है| ये ही पाप-पुण्य हैं| सृष्टि की रचना ही ऐसी है|
हमारे मनीषियों ने काम (कामना), क्रोध, लोभ, मोह, मद (अहंकार) और मत्सर्य (ईर्ष्या) को नर्क के द्वार बतलाये हैं, जो सत्य है|
अतः हमारा हर संकल्प .... शिव संकल्प हो| समष्टि के प्रति कल्याण की शुभ कामना ही हमारा कल्याण करेगी|
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इस मायावी दलदल से निकलने का एक ही मार्ग है और वह है ---- परमात्मा को
समपर्ण, पूर्ण समर्पण| वहीँ यह भाव काम आता है कि मैं तुम्हारा हूँ|
अपने अच्छे-बुरे सब कर्म भगवान को बापस सौंप दो| उन्हें ही जीवन का कर्ता
बनाओ| किसी के प्रति द्वेष, घृणा और क्रोध मत रखो| सबके कल्याण की कामना
करो, उनकी शरण लो और उन्हें ही समर्पित होने की साधना करो| कल्याण होगा|
हमारा आश्रय भगवान ही हैं| उन्हें किसी भी नाम से पुकारो| वे सदा हमारे
ह्रदय में हैं और हम सदा उनके ह्रदय में हैं| यह सारा ब्रह्मांड हमारा घर
है और सारी सृष्टि हमारा परिवार| यह उन्हीं की अभिव्यक्ति है और हम उन्हीं
के हैं|
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सीमित व अशांत मन से ही सारे प्रश्नों का जन्म होता है|
जब मन शांत व विस्तृत होता है तब सारे प्रश्न तिरोहित हो जाते हैं| चंचल
प्राण ही मन है| प्राणों में जितनी स्थिरता आती है, मन उतना ही शांत और
विस्तृत होता है| प्राणों में स्थिरता आती है प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा
और ध्यान से|
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अहंकार एक अज्ञान है| यह अज्ञान भी ध्यान साधना
द्वारा ही दूर होता है| कोई भी साधना हो वह तभी सफल होती है जब ह्रदय में
भक्ति (परम प्रेम) और अभीप्सा हो| इनके बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||