हमारा उच्चतम दायीत्व परमात्मा के प्रति समर्पण है|
सृष्टि कि प्रत्येक शक्ति का स्त्रोत परमात्मा है| इस जन्म से पूर्व भी हमारा उन्हीं का साथ था और इस जन्म के पश्चात भी उन्हीं का साथ रहेगा| उनका साथ शाश्वत है|
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भौतिक मृत्यु के साथ सांसारिक दायीत्व समाप्त हो जाते हैं पर परमात्मा को उपलब्ध होने तक उनके प्रति दायीत्व बना ही रहता है| जब तक हम उन्हें उपलब्ध नहीं होते, हमारे ह्रदय की तड़फ बनी ही रहेगी| वे ही हमारे सम्बन्धी, शत्रु और मित्र हैं|
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सबसे बड़ी सेवा जो हम समाज, राष्ट्र और दूसरों के लिए कर सकते हैं, वह है परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण| हम स्वयं परमात्मा को उपलब्ध हो कर के, उस उपलब्धि के द्वारा बाहर के विश्व को एक नए साँचे में ढाल सकते हैं| सर्वप्रथम हमें स्वयं को परमात्मा के प्रति पूर्णतः समर्पित होना होगा|
फिर हमारा किया हुआ हर संकल्प पूरा होगा| तब प्रकृति की हरेक शक्ति हमारा सहयोग करने को बाध्य होगी| जिस प्रकार एक इंजन अपने ड्राइवर के हाथों में सब कुछ सौंप देता है, एक विमान अपने पायलट के हाथों में सब कुछ सौंप देता है वैसे ही हमें अपनी सम्पूर्ण सत्ता परमात्मा के हाथों में सौंप देनी चाहिए|
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जो लोग भगवान से कुछ माँगते हैं, भगवान उन्हें वो ही चीज देते हैं जिसे वे माँगते हैं| परन्तु जो लोग अपने आप को दे देते हैं और कुछ भी नहीं माँगते, उन्हें वे अपना सब कुछ दे देते हैं, उस व्यक्ति का हर संकल्प पूरा होता है|
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अपने लिए हमें कोई कामना नहीं रखनी चाहिये, जिससे परमात्मा हमारे माध्यम से कार्य कर सकें| परमात्मा एक प्रवाह हैं| उन्हें अपने भीतर प्रवाहित होने दें| सारे अवरोध नष्ट कर दें| हमारी एकमात्र कामना होनी चाहिए परमात्मा को उपलब्ध होना, अर्थात परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
सृष्टि कि प्रत्येक शक्ति का स्त्रोत परमात्मा है| इस जन्म से पूर्व भी हमारा उन्हीं का साथ था और इस जन्म के पश्चात भी उन्हीं का साथ रहेगा| उनका साथ शाश्वत है|
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भौतिक मृत्यु के साथ सांसारिक दायीत्व समाप्त हो जाते हैं पर परमात्मा को उपलब्ध होने तक उनके प्रति दायीत्व बना ही रहता है| जब तक हम उन्हें उपलब्ध नहीं होते, हमारे ह्रदय की तड़फ बनी ही रहेगी| वे ही हमारे सम्बन्धी, शत्रु और मित्र हैं|
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सबसे बड़ी सेवा जो हम समाज, राष्ट्र और दूसरों के लिए कर सकते हैं, वह है परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण| हम स्वयं परमात्मा को उपलब्ध हो कर के, उस उपलब्धि के द्वारा बाहर के विश्व को एक नए साँचे में ढाल सकते हैं| सर्वप्रथम हमें स्वयं को परमात्मा के प्रति पूर्णतः समर्पित होना होगा|
फिर हमारा किया हुआ हर संकल्प पूरा होगा| तब प्रकृति की हरेक शक्ति हमारा सहयोग करने को बाध्य होगी| जिस प्रकार एक इंजन अपने ड्राइवर के हाथों में सब कुछ सौंप देता है, एक विमान अपने पायलट के हाथों में सब कुछ सौंप देता है वैसे ही हमें अपनी सम्पूर्ण सत्ता परमात्मा के हाथों में सौंप देनी चाहिए|
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जो लोग भगवान से कुछ माँगते हैं, भगवान उन्हें वो ही चीज देते हैं जिसे वे माँगते हैं| परन्तु जो लोग अपने आप को दे देते हैं और कुछ भी नहीं माँगते, उन्हें वे अपना सब कुछ दे देते हैं, उस व्यक्ति का हर संकल्प पूरा होता है|
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अपने लिए हमें कोई कामना नहीं रखनी चाहिये, जिससे परमात्मा हमारे माध्यम से कार्य कर सकें| परमात्मा एक प्रवाह हैं| उन्हें अपने भीतर प्रवाहित होने दें| सारे अवरोध नष्ट कर दें| हमारी एकमात्र कामना होनी चाहिए परमात्मा को उपलब्ध होना, अर्थात परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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