Sunday, 19 June 2016

परस्त्री और पर धन की कामना, दूसरो का अहित और अधर्म की बाते सोचना हमारे मन के पाप हैं, जिनका दंड भुगतना ही पड़ता है..

परस्त्री और पर धन की कामना, दूसरो का अहित और अधर्म की बाते सोचना हमारे मन के पाप हैं, जिनका दंड भुगतना ही पड़ता है|
ऐसे ही असत्य और अहंकार युक्त वचन, पर निंदा, हिंसा, अभक्ष्य भक्षण, और व्यभिचार हमारे शरीर के पाप हैं, जिनका भी दंड भुगतना ही पड़ता है|
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वर्तमान समय में अन्नदान, जलदान और वृक्षारोपण परम पुण्यदायी हैं|
ॐ ॐ ॐ ||

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