Thursday, 5 August 2021
भगवान शिव अपनी देह में भस्म क्यों लगाते हैं? --- (संशोधित/पुनर्प्रस्तुत लेख)
हे मेरे मन, तूँ अब स्वतंत्र है ---
मेरा स्वाभाविक प्रेम -- भारत और सनातन धर्म से है ---
"तमोगुण से मुक्त कैसे हों?" ---
यह सारा संसार प्रकृति के तीनों गुणों का ही खेल है ----
सुख की अनुभूति मुझे तो सिर्फ अपने आराध्य परमशिव के ध्यान में ही मिलती हैं, अन्यत्र कहीं भी नहीं ---
भगवान को प्राप्त करने से अधिक सरल इस सृष्टि में अन्य कुछ भी नहीं है ---
सुखी वही है जिसके हृदय में राम है ---
स्वयं ही अग्नि बनकर प्रज्ज्वलित हो जाओ ---
परमशिव सम्पूर्ण सृष्टि के मंगल मूल हैं ---
साधना में असफलता को सफलता में परिवर्तित करें ---
गुरु-पूर्णिमा पर गुरु-रूप में परमात्मा की अनंत सर्वव्यापक संपूर्णता को नमन ---
इस जन्म की सबसे बड़ी उपलब्धि ---
हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम (Prophet Abraham) कौन से मज़हब को मानने वाले थे? ---
संशय-विपर्यय को छोड़ो और अभ्यास में लगो ---
यह परमशिव की स्वतंत्र इच्छा है कि वे स्वयं को कैसे व्यक्त करें ---
"भूमा" ही सत्य है, "भूमा" में ही सुख है, अल्पता में नहीं ---
दुविधा, बड़ी भयंकर दुविधा, एक बड़ी भयंकर रस्साकशी चल रही है ---
दुविधा, बड़ी भयंकर दुविधा :--- एक बड़ी भयंकर रस्साकशी चल रही है, एक शक्ति हमें ऊपर परमात्मा की ओर खींच रही है, व दूसरी शक्ति नीचे वासनाओं की ओर; हम बीच में असहाय हैं। शास्त्र हमें अभ्यास और वैराग्य का उपदेश देते हैं।
मेरे जैसे लोग जो कभी साहस नहीं जुटा पाये, उन्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है ---
मेरे जैसे लोग जो कभी साहस नहीं जुटा पाये, उन्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है। वे अपनी अभीप्सा को बनाये रखें। उन्हें फिर अवसर मिलेगा। आध्यात्मिक यात्रा उन साहसी वीर पथिकों के लिए है जो अपना सब कुछ दांव पर लगा सकते हैं। लाभ-हानि की गणना करने वाले और कर्तव्य-अकर्तव्य की ऊहापोह में खोये रहने वाले कापुरुष इस मार्ग पर नहीं चल सकते। यह उन वीरों का मार्ग है जो अपनी इन्द्रियों पर विजय पा सकते हैं, और अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक परिस्थितियों से कोई समझौता नहीं करते। मैं ऐसे बहुत लोगों को जानता हूँ जो बहुत भले सज्जन हैं, उनमें भगवान को पाने की अभीप्सा भी है, लेकिन घर-परिवार के लोगों की नकारात्मक सोच, गलत माँ-बाप के यहाँ जन्म, गलत पारिवारिक संस्कार और गलत वातावरण -- उन्हें कोई साधन-भजन नहीं करने देता। घर-परिवार के मोह के कारण ऐसे जिज्ञासु जीवन में कुछ उपलब्ध नहीं कर पाते। इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में निश्चित ही उन्हें आध्यात्मिक प्रगति का अवसर मिलेगा।
समभाव में स्थिति ही योगसिद्धि है ---
योगारूढ़ (योगयुक्त) कौन है? ---
फिर से होगा भारत अखंड ---
वास्तविक स्वतन्त्रता सिर्फ परमात्मा में है, अन्यत्र कहीं भी नहीं ---
वास्तविक स्वतन्त्रता सिर्फ परमात्मा में है, अन्यत्र कहीं भी नहीं है। पिंजरे में बँधे पक्षी, बैलगाडी में जुड़े बैल, और हमारे में कोई अंतर नहीं है। हम एक बैल की तरह हैं जो बैलगाड़ी में जुड़ा हुआ है। जिनको हम अपना प्रियजन या पारिवारिक सगे-संबंधी कहते हैं, वे डंडे से मार-मार कर हमें हाँक रहे हैं। हम उनकी मार खाकर और उनकी इच्छानुसार चलकर बहुत प्रसन्न हैं और इसे अपना कर्त्तव्य मान रहे हैं।
हम किस की उपासना करें? ---
हम किस की उपासना करें? ---
आध्यात्मिक प्रगति के लक्षण ---
आध्यात्मिक प्रगति के लक्षण ---
(प्रश्न १) भवसागर क्या है? (प्रश्न 2) भवसागर को कैसे पार करें? ---
(प्रश्न १) भवसागर क्या है? (प्रश्न 2) भवसागर को कैसे पार करें? ---
अपने आत्मस्वरूप में स्थित हो जाना ही संसार-सागर को पार करना है ---
स्थितप्रज्ञता यानि अपने आत्मस्वरूप में स्थित हो जाना ही संसार-सागर को पार करना है। संसार-सागर एक मृगतृष्णा मात्र है, कोई वास्तविकता नहीं।
हमारी आभा और स्पंदन पूरी सृष्टि और सभी प्राणियों की सामूहिक चेतना में व्याप्त हैं, और सब का कल्याण कर रहे हैं ---
यह अति सुंदर पुष्प, इस निर्जन पथरीली भूमि पर नहीं, मेरे शुष्क ह्रदय में खिला है. मैं परमात्मा का पुष्प हूँ. प्रभु की उपस्थिति के प्रकाश से इस पुष्प की भक्ति रूपी पंखुडियाँ खिल उठी हैं, और इसकी महक इस हृदय से सभी हृदयों में व्याप्त हो रही हैं. परमात्मा भी मुझे अपनी बाँहों में लेने के लिए बेचैन हैं. मैं उनके साथ एक हूँ.
आध्यात्मिक दृष्टि से एकमात्र सत्य केवल परमात्मा हैं, उनके "कैवल्य" के बोध में स्वयं को समर्पित कीजिये ---
आध्यात्मिक दृष्टि से एकमात्र सत्य केवल परमात्मा हैं, उनके "कैवल्य" के बोध में स्वयं को समर्पित कीजिये ---