परमशिव सम्पूर्ण सृष्टि के मंगल मूल हैं ---
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जो नियमित ध्यान-साधना करते हैं, उन्हें जब कूटस्थ में एक अति चमकीले श्वेत पंचमुखी नक्षत्र के दर्शन होने लग जाएँ, तब निरंतर उसी का ध्यान और उसी के साथ एकत्व स्थापित करना चाहिए। मेरे लिए वे ही पंचमुखी महादेव हैं, और उन्हीं को मैं परमशिव कहता हूँ। जो भी सत्य है, वह समय आने पर वे स्वयम् समझा देंगे। अभी तो मेरी समझ अति अल्प और अति सीमित है।
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जिस तेल से यह दीपक जल रहा है, वह बहुत कम बचा है, इसलिए मेरी रुचि अब निमित्त मात्र होकर सिर्फ उनके ध्यान और स्मरण में ही है। अब न तो स्वाध्याय का समय है, न सत्संग का, और न ही कुछ और सीखने का। एकमात्र अस्तित्व उन्हीं का है, और ध्यान में उनके अतिरिक्त कोई अन्य नहीं है। मैं, मेरे गुरु, और परमशिव परमात्मा -- तीनों एक हैं। कहीं कोई भेद नहीं है। जो भी थोड़ी-बहुत लौकिकता बची है, वह उन्हीं की इच्छा से है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२५ जुलाई २०२१
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