Thursday 5 August 2021

हर साँस एक पुनर्जन्म है ---

भारतवर्ष में जन्म लेकर भी जिसने भगवान का भजन नहीं किया वह बहुत ही अभागा और इस पृथ्वी पर भार है।

हृदय में बैठे भगवान की ही सुनो, अन्य किसी की नहीं। 
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हर सांस एक पुनर्जन्म है --- दो साँसों के मध्य का संधिक्षण वास्तविक संध्याकाल है, जिसमें की गयी साधना सर्वोत्तम होती है। हर सांस पर परमात्मा का स्मरण रहे, क्योंकि हर सांस तो वे ही ले रहे हैं, न कि हम।
"हं" (प्रकृति) और "सः" (पुरुष) दोनों में कोई भेद नहीं है। प्रणवाक्षर परमात्मा का वाचक है। कोई अन्य नहीं है, सम्पूर्ण अस्तित्व उनकी ही अभिव्यक्ति है।
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हमारा "मौन" भगवान की अभिव्यक्ति है, इसलिए अधिक से अधिक समय मौन व्रत का पालन करें क्योंकि श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय के अड़तीसवें श्लोक में भगवान कहते हैं -- "मौनं चैवास्मि गुह्यानां" अर्थात् "गुप्त रखने योग्य भावों में मैं मौन हूँ"।
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प्राणायाम में स्वाभाविक रूप से कुंभक की अवधि बढ़नी चाहिए। साँसों का सन्धिकाल कुम्भक है। जबतक कोई गति है, तब तक ध्वनि है। गति नहीं, ध्वनि नहीं। कुम्भक में साँसों की गति नहीं है। कुम्भक ही मौन की अभिव्यक्ति है।
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कुंभक काल में मानसिक रूप से ओंकार का जप करें। ॐ ॐ ॐ !!
९ जुलाई २०२१
 
 

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