लंबी यात्रा न कर सकें तो परमात्मा की गहराई में उतरें ...
--------------------------------------------------
हम लंबी यात्रा नहीं कर सकते तो जहाँ पर भी हैं वहीं से गहराई में तो उतर ही सकते हैं| नकारात्मकता का चिंतन न करें| हमारी भूलें चाहे हिमालय से भी बड़ी हों, जीवन में चाहे कितना भी भयावह अंधकार हो, उसका चिंतन न करें| परमात्मा का चिंतन हमारी हर कमी को दूर कर सकता है| मेरुदंड को उन्नत रखते हुए एकांत व पवित्र स्थान में बैठकर दृष्टिपथ को भ्रूमध्य में रखें| अजपा-जप का अभ्यास करें| कानों को बंद कर भगवान के पवित्र नाम का श्रवण करें| हर साँस हमें परमात्मा से जोड़ती है| अपना पूर्ण प्रेम परमात्मा को दें| स्वयं को परमात्मा को समर्पित कर दें| हमारे में परमप्रेम और सत्यनिष्ठा होगी तो हमें मार्गदर्शन भी मिलेगा, हमारी रक्षा भी होगी और भगवान की परमकृपा भी होगी|
.
आध्यात्मिक
मार्ग में सबसे अधिक संघर्ष स्वयं की निम्न-प्रकृति से होता है|
निम्न-प्रकृति अधोगामी होती है जो हमें परमात्मा से दूर ले जाती है|
उच्च-प्रकृति ऊर्ध्वगामी होती है जो परमात्मा की ओर बढ़ने की ओर प्रेरणा
देती है| इनमें संघर्ष व्यक्तित्व का विखंडन तक कर सकता है| इससे बचने के
लिए हमें सत्संग यानि उस तरह के लोगों का साथ चाहिए जैसा हम बनना चाहते
हैं| सत्संग भी सुलभ नहीं है, यह हरिः कृपा से ही प्राप्त होता है| सत्संग
के नाम पर ठगी भी बहुत अधिक है| बाहरी सत्संग न मिले तो परमात्मा के साथ या
महापुरुषों के साथ आंतरिक सत्संग करें| भगवान से यदि हम सत्संग लाभ के लिए
सत्यनिष्ठा से प्रार्थना करते हैं तो भगवान निश्चित रूप से हम पर कृपा
करते हैं|
.
जीवन में और उस से भी परे, ईश्वर ही एकमात्र सत्य है। यह आभासित जगत उसी की अभिव्यक्ति है, पर यह आभासित जगत एक धोखा है| किसी से किसी भी प्रकार की अपेक्षा महादुःखदायी है| स्वयं में ही उसे व्यक्त करना होगा| बाहर की भागदौड़ और अपेक्षाओं का अब अंत होना चाहिए|
.
उस परम सत्य का बोध जब हो जाये तब इस अंतहीन भागदौड़ पर पूर्णविराम लगना ही चाहिए अन्यथा धोखा ही धोखा है| हमारी हर साँस, हमारा हर क्षण, हमारा हर विचार, उसी परम सत्य परमात्मा की अभिव्यक्ति हो|
ॐ ॐ ॐ !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शांकर
६ अक्टूबर २०२०