Thursday, 27 July 2017

ब्रह्मविद्या के आचार्य और अधिकारी कौन हैं .....

ब्रह्मविद्या के आचार्य और अधिकारी कौन हैं .....
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ब्रह्मविद्या के आचार्य हैं --- भगवान सनत्कुमार, वे साक्षात मूर्तिमान ब्रह्मविद्या हैं|
उन्हीं की कृपा से सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के मानस पुत्र नारद जी देवर्षि बने| ब्रह्मविद्या का ज्ञान सर्वप्रथम भगवन सनत्कुमार ने नारद जी को दिया था|
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जो धर्म का दान करते हैं और भगवद् महिमा का प्रचार कर नरत्व और देवत्व को उभारते हैं वे ही नारद हैं|
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द्वापर युग में भगवान सनत्कुमार ने विदुर जी को ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया था|
विदुर जी की प्रार्थना स्वीकार कर भगवान सनत्कुमार ने प्रकट होकर धृतराष्ट्र को भी ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया|
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महाभारत युद्ध से पूर्व धृतराष्ट्र ने विदुर जी से प्रार्थना की कि युद्ध में अनेक सगे-सम्बन्धी मारे जायेंगे और भयंकर प्राणहानि होगी, तो उस शोक को मैं कैसे सहन कर पाऊंगा?
विदुर जी बोले की मृत्यु नाम की कोई चीज ही नहीं होती| मृत्युशोक तो केवल मोह का फलमात्र होता है|
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धृतराष्ट्र की अकुलाहट सुनकर विदुर ने उन्हें समझाया कि इस अनोखे गुप्त तत्व को मैं भगवन सनत्कुमार की कृपा से ही समझ सका था पर ब्राह्मण देहधारी ना होने के कारण मैं स्वयं उस तत्व को अपने मुंह से व्यक्त नहीं कर सकता| मैं अपने ज्ञानगुरु मूर्त ब्रह्मविद्यास्वरुप भगवान सनत्कुमार का आवाहन ध्यान द्वारा करता हूँ|
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भगवन सनत्कुमार जैसे ही प्रकट हुए धृतराष्ट्र उनके चरणों में लोट गए और रोते हुए अपनी प्रार्थना सुनाई| तब भगवन सनत्कुमार ने धृतराष्ट्र को ब्रह्मविद्या के जो उपदेश दिए वह उपदेशमाला --- "सनत्सुजातीयअध्यात्म् शास्त्रम्" कही जाती है|
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भगवान सनत्कुमार का ही दूसरा नाम सनत्सुजात है| सनत्कुमार ही स्कन्द यानि कार्तिकेय हैं|
ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय|

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(यह विषय बहुत लंबा है और इसकी चर्चा को कोई अंत नहीं है अतः इसको यहीं विराम देता हूँ)
कृपा शंकर
२८ जुलाई २०१३

राष्ट्र की वर्तमान परिस्थितियाँ और हमारा दायित्व :---

२८ जुलाई २०१४
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राष्ट्र की वर्तमान परिस्थितियाँ और हमारा दायित्व :---
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राष्ट्र की वर्तमान परिस्थितियों और धर्म के इतने ह्रास से मैं अत्यधिक व्यथित रहा हूँ और लगभग निराश ही हो गया था| मात्र आध्यात्म में ही इसका समाधान ढूँढता रहा हूँ| पर अब एक नया दृष्टिकोण सामने आ रहा है|

भारतवर्ष की अस्मिता पर पिछले हज़ार बारह सौ वर्षों से इतने भयानक आक्रमण और अत्याचार हुए हैं की उसका दस लाखवाँ भाग भी किसी अन्य धर्म और संस्कृति पर होता तो वह कभी की समाप्त हो जाती| इतने अन्याय, अत्याचार, विध्वंश और आक्रमणों के पश्चात भी हम हिन्दू जीवित हैं|

भारतवर्ष में हिन्दू जाति अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए ही प्रयत्नशील रही है| इसके लिए उसने दासता भी सही, अत्याचार भी सहे, झुक कर भी रही कि कैसे भी हमारे अस्तित्व की रक्षा हो|

इस अस्तित्व की रक्षा के संघर्ष में अनेक बुराइयाँ हमारे में आ गईं| हम अपने आप में ही बहुत अधिक स्वार्थी और असंवेदनशील हो गए हैं| एक हीन भावना भी हमारे मध्य आ गई है|

इसमें मैं सोचता हूँ कि हिन्दुओं का क्या दोष है| ऐसा होना स्वाभाविक ही था| इसमें आत्म ग्लानी और हीनता के विचार नहीं आने चाहिए| अल्प मात्रा में ही सही जितना हमारे वश में हो सके उतना हमें स्वयं के उदाहरण द्वारा अच्छाई लाने का प्रयास करते रहना चाहिए| अल्प मात्र में ही सही हम अपनी कमियों और बुराइयों को दूर करें, अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें, उन्हें अपने धर्म और संस्कृति का ज्ञान दें और स्वयं पर गर्व करना सिखाएँ| निश्चित रूप से हमारी कमियाँ दूर होंगी|

मेरे विचार से एक आध्यात्मिक राष्ट्रवाद ही वर्तमान समस्याओं का समाधान है| जीवन का केंद्रबिंदु परमात्मा को बनाकर ही कुछ सकारात्मक किया जा सकता है|

जय माँ भारती | जय सनातन धर्म | जय भारतीय संस्कृति | ॐ ॐ ॐ ||

२८ जुलाई २०१४

हमारा वर्ण, गौत्र और जाति क्या है ?

भीतर के अन्धकार से बाहर निकल कर तो देखो. अपनी चेतना को पूरी सृष्टि में और उससे भी परे विस्तृत कर दो. परमात्मा की अनंतता ही हमारी वास्तविक देह है. ॐ तत्सत् . ॐ ॐ ॐ ..

हे अनंत के स्वामी, हे सृष्टिकर्ता, जीवन और मृत्यु से परे मैं सदा तुम्हारे साथ एक हूँ.
मैं यह भौतिक देह नहीं, बल्कि तुम्हारी अनंतता और परम प्रेम हूँ. ॐ ॐ ॐ ..
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हमारा वर्ण, गौत्र और जाति क्या है ?
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विवाह के उपरांत जैसे पत्नी का गौत्र, वर्ण और जाति वही हो जाती है जो उसके पति की है; वैसे ही परमात्मा को समर्पित होते ही हमारी भी जाति "अच्युत" यानी वही हो जाती है जो परमात्मा की है| जाति, वर्ण आदि तो शरीर के होते हैं, आत्मा के नहीं| हम तो शाश्वत आत्मा हैं, यह देह नहीं; अतः आत्मा की चेतना जागृत होते ही हमारी न तो कोई जाति है, न कोई वर्ण और न कोई गौत्र| उस चेतना में हम शिव हैं, यह शरीर नहीं|
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"जाति हमारी ब्रह्म है, माता-पिता हैं राम|
गृह हमारा शुन्य में, अनहद में विश्राम||"

ब्रह्म यानि परमात्मा के सिवाय हमारी अन्य कोई जाति नहीं हो सकती| परमात्मा के सिवा न हमारी कोई माता है और न हमारा कोई पिता| शुन्य यानि परमात्मा की अनंतता ही हमारा घर है और ओंकार रूपी अनहद की ध्वनि का निरंतर श्रवण ही हमारा विश्राम है|
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वास्तव में यह सारा ब्रह्मांड ही हमारा घर है, और यह समस्त सृष्टि ही हमारा परिवार जिसके कल्याण के लिए हम निरंतर श्रम करते हैं| भगवान परमशिव ही हमारी गति हैं, और वे ही हमारे सर्वस्व हैं| हमारा उनसे पृथक होने का आभास एक मिथ्या भ्रम मात्र है, वे ही एकमात्र सत्य हैं| हम स्वयं को अब और सीमित नहीं कर सकते| हमारा एकमात्र सम्बन्ध भी सिर्फ और सिर्फ परमात्मा से ही है|
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इस दैहिक सांसारिक चेतना से ऊपर उठकर ही हम कोई वास्तविक कल्याण का कार्य कर सकते हैं| हमारे लिए सबसे बड़ी सेवा और सबसे बड़ा यानी प्रथम अंतिम व एकमात्र कर्त्तव्य है .... परमात्मा को उपलब्ध होना| बाकी सब भटकाव है|
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रात्री को सोने से पूर्व भगवान का गहनतम ध्यान कर के सोएँ| सोएँ इस तरह जैसे जगन्माता की गोद में निश्चिन्त होकर सो रहे हो| प्रातः उठते ही एक गहरा प्राणायाम कर के कुछ समय के लिए भगवान का ध्यान करें| दिवस का प्रारम्भ सदा भगवान के ध्यान से होना चाहिए| दिन में जब भी समय मिले भगवान का फिर ध्यान करें| उनकी स्मृति निरंतर बनी रहे| यह शरीर चाहे टूट कर नष्ट हो जाए, पर परमात्मा की स्मृति कभी न छूटे|
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आप सब परमात्मा के साकार रूप हैं, आप सब ही मेरे प्राण हैं| आप सब को नमन|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२७ जुलाई २०१७
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पुनश्चः :---
राष्ट्रहित में यह लिख रहा हूँ| राष्ट्र की जो वर्त्तमान समस्याएँ हैं उनका समाधान यही है कि सर्वप्रथम हम सब में भारत की अस्मिता यानि सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति पर गर्व हो, हम अपने पर थोपे हुए झूठे हीनता के बोध से मुक्त हों| हमें आवश्यकता है एक ब्रह्मतेज की जो साधना द्वारा ही उत्पन्न हो सकता है| हम अपनी चेतना को परमात्मा से जोड़कर ही कोई सकारात्मक रूपांतरण कर सकते हैं, अन्यथा नहीं| भारत एक आध्यात्मिक धर्म-सापेक्ष राष्ट्र है| भारत की आत्मा आध्यात्मिक है, अतः एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति ही भारत का उद्धार कर सकती है|
ॐ ॐ ॐ ||

विश्व का सबसे बड़ा गोसेवा केंद्र -------

July 27, 2014.
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विश्व का सबसे बड़ा गोसेवा केंद्र -------
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कल हरियाली अमावास्या थी| पारंपरिक तौर से प्रकृति प्रेमी हिन्दू लोग हरियाली अमावस्या को वन-विहार के लिए जाते हैं| पर मैंने कुछ गोसेवकों व गोरक्षकों के साथ विश्व के सबसे बड़े गौ सेवा केंद्र श्रीकृष्ण गोपाल गोसेवा समिति (गो चिकित्सालय) नागौर (राजस्थान) जाने और गो चिकित्सालय के संचालक श्री श्री १००८ महामंडलेश्वर स्वामी कुशालगिरी जी महाराज का सत्संग लाभ लेने का निर्णय लिया|
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यह गो चिकित्सालय नागौर-जोधपुर राजमार्ग ६५ पर नागौर से मात्र ४ किलोमीटर दूर है|
वहाँ की शानदार व्यवस्था देखकर मैं हतप्रभ रह गया| विश्व में ऐसा अद्भुत गो सेवा केंद्र अन्यत्र कहीं भी नहीं है| अनाथ, अशक्त, रुग्ण, वृद्ध और असहाय हजारों गायों की सेवा और उपचार का एकमात्र केंद्र है यह|
व्यवसायिक रूप से उपयोगी गायों की सेवा तो सब करते हैं पर व्यवसायिक रूप से अनुपयोगी गायों को हिन्दू लोग ही या तो कसाइयों को बेच देते हैं या मरने के लिए आवारा छोड़ देते हैं| पर इस गोलोक महातीर्थ में एक भी दुधारू गाय नहीं है| हजारों रुग्ण वृद्ध और असहाय गायें हैं जिनकी निरंतर बड़ी आत्मीयता से सेवा होती है|
यहाँ १६ तो पशु अम्बुलेंस हैं जो २०० किलोमीटर तक के क्षेत्र में घायल या रुग्ण गायों को लेकर आती हैं| अनेक गो भक्त पशु चिकित्सक व सैंकड़ों गो सेवक यहाँ दिन रात काम करते हैं| आधुनिकतम अंतर्राष्ट्रीय स्तर की गो सेवा सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध हैं|
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प्रत्येक हिन्दू गो सेवक को इस गोलोक महातीर्थ की यात्रा एक बार अवश्य करनी चाहिए| इतना ही नहीं पूरा सहयोग भी करना चाहिए और यहाँ से प्रेरणा लेकर इस तरह के गो चिकित्सालय अन्यत्र भी खोलने चाहियें|
e-mail : godhamsevatirth@gmail.com
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सायंकाल बापस जयपुर होते हुए आये और जयपुर के पास बगरू गाँव की रामदेव गौशाला का भ्रमण किया| मेरे विचार से यह राजस्थान की दूसरी सबसे बड़ी गोशाला है जो परम पूज्य संत शिरोमणी श्री नारायण दास जी महाराज त्रिवेणी धाम के आशीर्वाद, प्रेरणा और जनसहयोग से चलती है| यहाँ निराश्रित गोवंश की भी रक्षा होती है|
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यहाँ अमावस्या भगवन्नाम संकीर्तन में भाग लिया और प्रसाद ग्रहण किया| देर रात्रि को बापस घर लौटे|
जो श्रद्धालु जयपुर आते हैं, उन्हें यदि समय मिले तो इस गोशाला का भ्रमण अवश्य करना चाहिए|
उपरोक्त दोनों स्थानों पर जाने से उतना ही संतोष मिला जितना मथुरा वृन्दावन की तीर्थयात्रा से मिलता है| .
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राजस्थान में विश्व की सबसे बड़ी --- पथमेड़ा की गोशाला का भ्रमण तो अब तक नहीं कर पाया हूँ पर वहाँ के संत स्वामी दत्तशरणानन्द जी महाराज का सतसंग लाभ ले चूका हूँ|

जय गोमाता ! जय गोपाल ! सनातन हिन्दू धर्म की जय हो | भारत माता की जय हो |

२७ जुलाई २०१४

भूत को भगाएँ, न कि उसके शिकार को .......

भूत को भगाएँ, न कि उसके शिकार को .......
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अगर किसी व्यक्ति पर भूत यानि आसुरी प्रेतात्मा चढ़ जाए तो उस व्यक्ति का क्या दोष है? आवश्यकता तो उसे उस भूत से मुक्ति दिलाने की है| वह तो उस भूत का एक शिकार मात्र है|
वह भूत कई रूपों में आता है जैसे किसी आसुरी विचारधारा के रूप में जो कोई मत या सम्प्रदाय या पंथ बन जाती है|

ठन्डे दिमाग से चिंतन करेंगे तो पाएँगे कि बीमारी का कारण उस भूत में है, न कि उस व्यक्ति में| अतः बिना किसी उत्तेजना या क्रोध से शांतिपूर्वक चिंतन मनन कर के पता करें कि कौन तो भूतवाधा से ग्रस्त व्यक्ति हैं और वह भूत क्या है|

फिर यह भी सोचिये कि उस भूत को आप कैसे उतार सकते हैं| अगर आपको बोध हो जाए कि उस भूतबाधा को कैसे दूर कर सकते हैं तो जुट जाइए अपने प्रयास में|

इस समय विश्व पर कुछ असुरों का आधिपत्य छाया हुआ है| वे असुर असत्य और अन्धकार की शक्तियाँ हैं| उस असत्य और अन्धकार को दूर करने का प्रयास करें, ना कि उनके शिकार हुए लोगों को बुरा बताने का|
आशा है आप मेरी बात समझ गए होंगे|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

धरती के स्वर्ग का दुर्भाग्य ......

धरती के स्वर्ग का दुर्भाग्य ......
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कश्यप ऋषि की तपोभूमि कश्मीर जो कभी वैदिक शिक्षा और शैव मत का केंद्र हुआ करती थी आज वहाँ दौलत-ए-इस्लामिया (Islamic State of Iraq & Syria) के काले झंडे लहराए जा रहे हैं| गज़वा-ए-हिन्द की शुरुआत हो चुकी है, और कब यह खुरासान बन जाए कुछ कह नहीं सकते|
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श्रीनगर को सम्राट अशोक ने बसाया था और जब चीनी यात्री ह्वैंसान्ग भारत आया था तो उसने कश्मीर में लगभग ढाई हज़ार प्राचीन मठों के अवशेष देखे थे| पाक अधिकृत कश्मीर में प्रसिद्ध वैदिक शारदा पीठ हुआ करती थी जिसकी अब कैसी स्थिति है, किसी को पता नहीं है|
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कश्मीर के दुर्भाग्य का आरम्भ तब से हुआ जब पश्चिम एशिया में मंगोल आक्रमणकारियों ने वहाँ की मुस्लिम जनसंख्या का जनसंहार करना आरम्भ किया और उनके दबाव से मुस्लिम शरणार्थी कश्मीर आने आरम्भ हुए|
कश्मीर के हिन्दुओं ने उन शरणार्थियों का स्वागत किया और उन्हें वहाँ बसाया| सन १३१३ में शाह मीर नामक एक ईरानी सपरिवार आकर वहाँ बसा| उसके पीछे पीछे जिहादियों के वहाँ आने की शृंखला बन गयी| सूफी बुलबुल शाह अपने साथ दो सौ से अधिक सूफी वहाँ लेकर आये जिन्होनें स्वयं को हिन्दू बताया| उनका एक शागिर्द नुरुद्दीन तो बहुत प्रसिद्ध हुआ था| उन्होंने यह प्रचार किया कि मोहम्मद हिन्दुओं का अवतार है| उन सूफियों ने अपने दुष्प्रचार से बहुत सारे हिन्दुओं को मुसलमान बनाया| इराक के बगदाद से मूसा सैयद ने अपने साथ सैंकड़ों मुसलमान प्रचारकों को वहाँ लाकर बसाया| महाराजा शाहदेव के समय में वहाँ एक गृहयुद्ध छिड़ गया था, जिसका लाभ उठाकर लद्दाख के बौद्ध राजकुमार रिन्छाना ने कश्मीर घाटी पर अधिकार कर लिया| शाहदेव प्राण बचाकर किश्तवाड़ भाग गए| राजकुमार रिन्छाना हिन्दू धर्म में दीक्षित होना चाहते थे पर पंडितों ने मना कर दिया अतः इससे चिढ़कर और सूफियों के प्रभाव से वे मुस्लिम धर्म में दीक्षित हो गए| इसकी पश्चात वहाँ जोरशोर से इस्लाम का प्रचार-प्रसार आरम्भ हो गया| सूफियों और सैयदों के प्रभाव से हिन्दुओं का उत्पीड़न सिकंदर बुतशिकन द्वारा आरम्भ हुआ| इस उत्पीड़न के पीछे ईरानी सूफी मीर अली हमदानी, और तुर्की के सूफी मूसा रेहना का भी दबाव था|
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दस हज़ार मंदिर ध्वस्त कर दिए गए, लाखों ब्राह्मणों की ह्त्या कर दी गयी, जिन लोगों ने इस्लाम कबूलने से इनकार कर दिया उन्हें बोरियों में बंद कर नदियों और झीलों में फेंक दिया गया| हिन्दू संस्कृति और संस्कृत भाषा का कश्मीर से नामोनिशान मिट गया| इस्लामीकरण का क्रम जो आरम्भ हुआ था वह आज भी चल रहा है|
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पंजाब के महाराज रणजीतसिंह जी ने कश्मीर को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया था और अपने एक डोगरा राजपूत सेनानायक गुलाब सिंह को वहाँ का महाराजा बना दिया था| महाराजा गुलाब सिंह के समय कश्मीर के सारे मुसलमान बापस हिन्दू धर्म में आना चाहते थे| पर वहाँ के पंडितों ने मना कर दिया और महाराजा गुलाब सिंह से कहा कि यदि आपने मुसलमानों को हिन्दू बनने दिया तो हम सब नदी में डूबकर आत्महत्या कर लेंगे और आपको ब्रह्महत्या का पाप लगेगा| यह एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य था हिन्दुओं का| यदि ऐसा हो जाता तो कश्मीर की कोई समस्या ही नहीं होती|
तथाकथित आज़ादी के बाद तो नेहरू जी ने भी स्पष्ट कह दिया था कि देश का कोई मुसलमान हिन्दू नहीं बन सकता, और यदि कोई संगठन शुद्धि आंदोलन चला रहा है, तो वह हिन्दू धर्म के विरुद्ध है|
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कश्मीर के मुसलमानों के शरीर में खून तो भारतीय ऋषियों का ही है| यह कश्मीरियत और कश्मीरियों का सांप्रदायिक सौहार्द क्या है ? इसे कोई परिभाषित नहीं कर सका है|
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केंद्र में जिस भी दल की सरकार आती है, सत्ता में आते ही उस पर सेकुलरिज्म और तुष्टिकरण का नशा चढ़ जाता है|
बहुत सारी बातें है जिन्हें इस समय लिखना संभव नहीं है| इतना समय भी नहीं है और टाइप करने में भी अब बहुत जोर आता है|
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>>> यह सृष्टि परमात्मा की है, वही इसके लिए जिम्मेदार है| होगा तो वही जो उसकी इच्छा होगी| यदि उसकी यही इच्छा है कि पृथ्वी पर असत्य और अन्धकार का राज्य हो, तो सनातन धर्म विलुप्त हो जाएगा| यदि परमात्मा स्वयं को व्यक्त करना चाहेंगे तो सनातन धर्म की निश्चित रूप से पुनर्स्थापना होगी|
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मैं इस लेख पर की गयी किसी भी टिप्पणी का उत्तर नहीं दूंगा| इतना समय नहीं है| श्रावण का पवित्र महीना है, घर के एकांत में बैठकर या किसी शिवालय में जाकर भगवान शिव का ध्यान करें| अपनी रक्षा करने में हम समर्थ हों, और परमात्मा सदा हमारी रक्षा करें|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
 कृपा शंकर
२५ जुलाई 2017

मल, विक्षेप और आवरण .....

मल, विक्षेप और आवरण .....
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मल >>>>> हमारे पूर्व जन्मों के किये हुए सारे संचित पाप और पुण्य कर्म जो हमारे संस्कारों में परिवर्तित हो गए हैं .... वे मल दोष हैं| हमें उन से मुक्त होना ही होगा| बंधन तो बंधन ही हैं, चाहे वे स्वर्ण के हों या लौह के| बन्धनों से तो मुक्त होना ही होगा|
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विक्षेप >>>>> परमात्मा को परमात्मा न जानकर उसकी रचना यानि संसार को ही जान रहे हैं| आकारों के सौन्दर्य से हम इतने मतिभ्रम हैं कि मूल तत्व को विस्मृत कर गए हैं ..... यह विक्षेप दोष है|
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आवरण >>>>> हम अपने सच्चिदानंद स्वरुप को भूलकर स्वयं को यह देह मान बैठे हैं, यह आवरण दोष है|
मन को एकाग्र कर के सच्चिदानंद पर ध्यान करने से ही ये सब दोष दूर होते हैं| शिष्यत्व की पात्रता होते ही इसके लिए मार्गदर्शन परमात्मा स्वयं ही श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ गुरु के रूप में करते हैं|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२४ जुलाई २०१७

भोजन एक प्रत्यक्ष वास्तविक यज्ञ और ब्रह्मकर्म है ......

भोजन एक प्रत्यक्ष वास्तविक यज्ञ और ब्रह्मकर्म है ......
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हम जो भोजन करते हैं, वास्तव में वह भोजन हम स्वयं नहीं करते, बल्कि भगवान स्वयं ही प्रत्यक्ष रूप से हमारे माध्यम से करते हैं|
भोजन इसी भाव से करना चाहिए कि भोजन का हर ग्रास हवि रूप ब्रह्म है जो वैश्वानर रूपी ब्रह्माग्नि को अर्पित है| भोजन कराने वाले भी ब्रह्म हैं और करने वाले भी ब्रह्म ही हैं| सब प्राणियों की देह में वैश्वानर अग्नि के रूप में, प्राण और अपान के साथ मिलकर चार विधियों से अन्न (भक्ष्य, भोज्य, लेह्य, चोष्य) ग्रहण कर वे ही पचाते हैं|
अतः भोजन स्वयं की क्षुधा की शांति और इन्द्रियों की तृप्ति के लिए नहीं, बल्कि एक ब्रह्मयज्ञ रूपी ब्रह्मकर्म के लिए है| यज्ञ में एक यजमान की तरह हम साक्षिमात्र हैं| कर्ता और भोक्ता तो भगवान स्वयं ही हैं| गीता में भगवान ने इसे बहुत अच्छी तरह समझाया है|
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ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ||
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ||
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अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित: |
प्राणापानसमायुक्त: पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ||
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>>> गहरे ध्यान में मेरुदंड में एक शीत और ऊष्ण प्रवाह की अनुभूति सभी साधकों को होती है जो ऊपर नीचे बहते रहते हैं, वे ही सोम और अग्नि है, वे ही प्राण और अपान है जिनके समायोजन की प्रक्रिया से प्रकट यज्ञाग्नि वैश्वानर है| भोजन हम नहीं बल्कि वैश्वानर के रूप में भगवान स्वयं करते हैं जिससे समस्त सृष्टि का पालन-पोषण होता है| जो भगवान को प्रिय है वही उन्हें खिलाना चाहिए| कर्ताभाव शनेः शनेः तिरोहित हो जाना चाहिए|
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जैसा मैनें अनुभूत किया और अपनी सीमित व अल्प बुद्धि से समझा वैसा ही मेरे माध्यम से यह लिखा गया| यदि कोई कमी या भूल है तो वह मेरी सीमित और अल्प समझ की ही है| कोई आवश्यक नहीं है कि सभी को ऐसा ही समझ में आये| किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए भगवान से क्षमा याचना करता हूँ|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

एकांत में रहते हुए अंतःकरण को परमात्मा में समाहित कैसे करें ? .....

एकांत में रहते हुए अंतःकरण को परमात्मा में समाहित कैसे करें ? .....
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निज जीवन का अवलोकन करता हूँ तो पाता हूँ कि मेरी ही नहीं सभी साधकों की सबसे बड़ी समस्या यही है| चाहते तो सभी साधक यही हैं कि परमात्मा की चेतना सदा अंतःकरण में रहे पर अवचेतन मन में छिपे हुए पूर्वजन्मों के संस्कार जागृत होकर साधक को चारों खाने चित्त गिरा देते हैं| सभी मानते हैं कि तृष्णा बहुत बुरी चीज है पर तृष्णा को जीतना एक जंगली हाथी से युद्ध करने के बराबर है| यह मन का लोभ सुप्त कामनाओं यानि तृष्णाओं को जगा देता है| तो पहला प्रहार मन के लोभ पर ही करना होगा|
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कहीं न कहीं से कुछ न कुछ तो करना ही होगा| एकमात्र कार्य यही कर सकते हैं कि परमात्मा को सदा स्मृति में रखें व उन्हें ही जीवन का कर्ता बनाएँ| प्रयास तो करना ही होगा|
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सर्वश्रेष्ठ उपाय .......
घर का एक कोना निश्चित कर लें जहाँ सबसे कम शोरगुल हो, और जहाँ परिवार के सदस्य कम ही आते हों| उस स्थान को अपना देवालय बना दें| अधिकाँश समय वहीं व्यतीत करें| जो भी साधन भजन करना हो वहीं करें| बार बार स्थान न बदलें| वह स्थान ही चैतन्य हो जाएगा| वहाँ बैठते ही हम परमात्मा को भी वहीं पायेंगे| और इधर उधर कहीं अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं है| वही स्थान सबसे बड़ा तीर्थ हो जाएगा|
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ नमःशिवाय | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२१ जुलाई २०१७

आज से ३५७ वर्ष पूर्व घटित वीरता की एक महान घटना :---

१३ जुलाई २०१७
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आज से ३५७ वर्ष पूर्व घटित वीरता की एक महान घटना :---
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१३ जुलाई १६६० को भारत के इतिहास में हिन्दू मराठा वीरों की वीरता की एक महान घटना घटित हुई थी जिसे धर्मनिरपेक्षों (सेक्युलरों) के इतिहास में कभी नहीं पढ़ाया जाएगा|
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पन्हाला के किले के पतन के पश्चात छत्रपति शिवाजी अपनी सुरक्षा के लिए विशालगढ़ के किले की ओर अपने सेनापती बाजी प्रभु देशपांडे और ३०० मराठा सैनिकों के साथ प्रस्थान कर रहे थे| उनका पीछा मुग़ल सेनापती सिद्दी जौहर अपने हजारों सिपाहियों के साथ कर रहा था| लगता था कि शत्रु सेना किसी भी क्षण पास में आ सकती है|
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बाजी प्रभु देशपांडे ने अति आग्रह कर के शिवाजी को विशालगढ़ सुरक्षित पहुँच जाने को कहा और स्वयं अपने ३०० सिपाहियों के साथ हजारों की संख्या वाली मुग़ल सेना का सामना करने को रुक गया| अपने सैनिकों के साथ दोनों हाथों में तलवारें लिए हुए उस वीर योद्धा ने मुग़ल सेना को तब तक रोके रखा जब तक शिवाजी के सुरक्षित पहुँचने की सूचना देने के लिए विशालगढ के किले से तोप नहीं दागी गयी| उसके पश्चात् युद्ध करते हुए वह योद्धा अपने सभी सिपाहियों के साथ वीर गति को प्राप्त हुआ|
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उसकी वीरता और बलिदान से शिवाजी महाराज के प्राण बचे और वे भारत की स्वाधीनता के लिए और अनेक युद्ध करने को जीवित रहे|
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हर हर महादेव ! भारत माता की जय !
१३ जुलाई २०१७