Thursday 27 July 2017

एकांत में रहते हुए अंतःकरण को परमात्मा में समाहित कैसे करें ? .....

एकांत में रहते हुए अंतःकरण को परमात्मा में समाहित कैसे करें ? .....
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निज जीवन का अवलोकन करता हूँ तो पाता हूँ कि मेरी ही नहीं सभी साधकों की सबसे बड़ी समस्या यही है| चाहते तो सभी साधक यही हैं कि परमात्मा की चेतना सदा अंतःकरण में रहे पर अवचेतन मन में छिपे हुए पूर्वजन्मों के संस्कार जागृत होकर साधक को चारों खाने चित्त गिरा देते हैं| सभी मानते हैं कि तृष्णा बहुत बुरी चीज है पर तृष्णा को जीतना एक जंगली हाथी से युद्ध करने के बराबर है| यह मन का लोभ सुप्त कामनाओं यानि तृष्णाओं को जगा देता है| तो पहला प्रहार मन के लोभ पर ही करना होगा|
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कहीं न कहीं से कुछ न कुछ तो करना ही होगा| एकमात्र कार्य यही कर सकते हैं कि परमात्मा को सदा स्मृति में रखें व उन्हें ही जीवन का कर्ता बनाएँ| प्रयास तो करना ही होगा|
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सर्वश्रेष्ठ उपाय .......
घर का एक कोना निश्चित कर लें जहाँ सबसे कम शोरगुल हो, और जहाँ परिवार के सदस्य कम ही आते हों| उस स्थान को अपना देवालय बना दें| अधिकाँश समय वहीं व्यतीत करें| जो भी साधन भजन करना हो वहीं करें| बार बार स्थान न बदलें| वह स्थान ही चैतन्य हो जाएगा| वहाँ बैठते ही हम परमात्मा को भी वहीं पायेंगे| और इधर उधर कहीं अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं है| वही स्थान सबसे बड़ा तीर्थ हो जाएगा|
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ नमःशिवाय | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२१ जुलाई २०१७

3 comments:

  1. मेरा पतन जब भी होता है तो वह सांसारिक मोहवश ही होता है,
    अन्यथा जहाँ भी मैं हूँ वहीं श्रीगंगा जी का तट है, वहीं हिमालय की गुफा है, वहीं सारे तीर्थ हैं, और वहीं परमात्मा हैं|
    मित्रों को एक ही सलाह है कि घर में कोई एकांत कमरा या एकांत स्थान ढूँढ लें और आराम से वहाँ बैठकर परमात्मा के अपने सर्वप्रिय प्रिय रूप का चिंतन करें| और कुछ नहीं तो शिव शिव शिव शिव शिव का मानसिक जप ही करें|
    मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए| सब को शुभ कामनाएँ| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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  2. (१) मेरे स्वयं के मन का लोभ और वासनाओं के प्रति मोह ही मेरे सब दुःखों-कष्टों का कारण है| अन्य कोई कारण नहीं है| जब तक यह लोभ और मोह रहेगा तब तक ऐसे ही कष्ट पाते रहना पड़ेगा|

    (२) पिछले जन्मों में मोह-माया के बंधनों से मुक्त होने का कोई उपाय नहीं किया इसीलिए यह कष्टमय जन्म लेना पड़ा, और यही क्रम चलता रहेगा|

    (३) हे मन, तूँ एकांत में बैठकर शिव का नाम जप, और उन्हीं परमशिव का ध्यान कर| अन्य कोई मुक्ति का साधन नहीं है|

    ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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  3. भीतर के अन्धकार से बाहर निकल कर तो देखो. अपनी चेतना को पूरी सृष्टि में और उससे भी परे विस्तृत कर दो. परमात्मा की अनंतता ही हमारी वास्तविक देह है. ॐ तत्सत् . ॐ ॐ ॐ ..

    हे अनंत के स्वामी, हे सृष्टिकर्ता, जीवन और मृत्यु से परे मैं सदा तुम्हारे साथ एक हूँ.
    मैं यह भौतिक देह नहीं, बल्कि तुम्हारी अनंतता और परम प्रेम हूँ. ॐ ॐ ॐ ..

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